Tirupati Balaji History in Hindi: भारत को मंदिरों का देश कहा जाता है, इसी वजह से भारत में हर साल लाखों पर्यटक सिर्फ मंदिर देखने और भगवान के दर्शन करने के लिए आते हैं। भारत में सबसे पोपुलर मंदिर या फिर सबसे ज्यादा पर्यटकों वाला मंदिर अगर कोई है तो वह है तिरुपति बालाजी मंदिर।
इस मंदिर में हर दिन लाखों की संख्या में पर्यटक दर्शन के लिए आते हैं। चूँकि यह मंदिर अपने आप में ही बहुत ख़ास है। माना जाता है कि जो भी इस मंदिर आया है, उसकी हर मनोकामना पूरी हुई है। दुनिया के बड़े-बड़े लोग भी इस मंदिर में भगवान के दर्शन के लिए आते है। इस मंदिर की बनावट और इस मंदिर का हर एक अंश काफी दर्शनीय और लोगों को अपनी और आकर्षित करने वाला है।
इस आर्टिकल में हम आपको तिरुपति बालाजी का इतिहास, तिरुपति बालाजी मंदिर का इतिहास (Tirupati Balaji Temple History), तिरुपति बालाजी किसका रूप है? एवं इस मंदिर से जुड़ी अनेक ऐसी जानकारियां बताने वाले है, जो बहुत कम लोगों को पता है। वैसे तो मंदिर हिन्दू धर्म के लोगों का धार्मिक स्थल है, लेकिन यहाँ पर मंदिर के दर्शन करने के लिए हर धर्म के लोग आते हैं। आइये जानते है मंदिर और मंदिर के इतिहास के बारें में विस्तार से।
तिरुपति बालाजी मंदिर का इतिहास (Tirupati Balaji History in Hindi)
तिरुपति बालाजी को वेंकटेश्वर भगवान भी कहा जाता है, जो भगवान विष्णु जी का ही अवतार माना जाता है। भगवान तिरुपति बालाजी का मंदिर तिरुमला पहाड़ी पर स्थित है। यह कुल 7 पहाड़ी है और उनमें से सातवी पहाड़ी पर भगवान वेंकटेश्वर का मंदिर है।
तिरुपति बालाजी मंदिर के इतिहास की बात करें तो यह 9वीं शताब्दी से अस्तित्व में है। लेकिन अनेक एतिहासिक ग्रंथो में इसका जिक्र उससे पहले का भी हुआ है। कहते है कि कांचीपुरम के राजा वंश पल्लवों ने इस मंदिर की जगह पर कब्जा किया था और उसके बाद 15वीं सदी में विजयनगर वंश के शासकों ने इस मंदिर को एक प्रसिद्ध मंदिर बनाने की पहल करी और सम्पूर्ण विश्व में इस मंदिर का नाम पहुँचाया।
उसके बाद मराठा सेनापति रघुजी भोसले ने वर्ष 1755 ईस्वी में इस मंदिर का दौरा किया और इस मंदिर में हमेशा पूजा के संचालन के लिए एक स्थाई प्रशासन को भी स्थापित किया। उसके बाद भारत में ब्रिटिश शासन के समय इस मंदिर का प्रबंधन ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों में चला गया। उसके बाद 1933 में टीटीडी अधिनियम लागू किया गया, जिसके बाद तिरुमला तिरुपति देवस्थानम का गठन हुआ और उसके बाद से यही संस्था इस मंदिर का रखरखाव करना शुरू कर दी।
उसके बाद 1966 में दोबारा इस मंदिर के संचालन का सारा अधिकार तिरुमला तिरुपति देवस्थानम अधिनियम से वापस ले लिया गया। जिसके बाद इस मंदिर के प्रशासन के लिए एक समिति का गठन किया गया, जिसमें कार्यकारी अधिकारी, अध्यक्ष और आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा नामित दो अन्य सदस्य को शामिल किया गया। तब से लेकर आज तक यही समिति इस मंदिर का संचालन करती है।
वेंकटेश्वर मंदिर (तिरुपति बालाजी मंदिर) की बनावट
तिरुपति बालाजी का मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला का एक अद्भुत नमूना है। इस मंदिर को द्रविड़ शैली में बनाया गया है। इस मंदिर के गर्भ गृह के ऊपर का गोपुरम पूरी तरीके से सोने की प्लेट से ढका हुआ है और मंदिर के तीनों परकोटो पर स्वर्ण कलश लगे हुए हैं। इस मंदिर का मुख्य भाग जिसे यानी आनंदा निलयम कहते हैं, यह देखने में बहुत ज्यादा आकर्षक लगता है। क्योंकि इसी भाग में भगवान श्री वेंकटेश्वर की 7 फुट की उचित प्रतिमा स्थापित है।
मंदिर के चारों तरफ परिक्रमा करने के लिए एक परिक्रमा पथ भी बनाया गया है, जहाँ प्रतिमा मंडपम, सलुवा नरसिम्हा मंडपम, तिरुमला राया मंडपम, ध्वजस्तंभ मंडपम, आइना महल समेत कई सुंदर मंडप बने हुए हैं। इस मंदिर के मुख्य द्वार को पड़ी कवाली महाद्वार कहा जाता है, जिसका एक आधार चतुर्भुज है।
तिरुपति बालाजी के गर्भ ग्रह में प्रवेश करते ही एक अद्भुत रहस्यमई अनुभव होता है। क्योंकि गर्भ ग्रह में स्थापित भगवान बालाजी की प्रतिमा गर्भ ग्रह के बिल्कुल मध्य में स्थित लगता है। भक्तगण गर्भ ग्रह में प्रतिमा के सामने नतमस्तक होकर जब बाहर निकलते हैं तब प्रतिमा दाहिनी ओर प्रतीत होता है।
यह अचंभित अनुभव ना केवल एक भक्तों को बल्कि यहां आने वाले सभी भक्तों को होता है। आज तक इसका पता चल नहीं पाया कि यह एक भ्रम है या भगवान की महिमा। तिरुपति बालाजी मंदिर की बनावट देखने के लिए लाखों करोड़ों लोग हर साल विदेश से आते हैं।
कहते हैं कि यहाँ की वास्तुकला को विदेश में भी लोकप्रियता हासिल है। इस मंदिर की बनावट के बारे में कुछ और जानकारी यहां पर लिखी गई है:
- तिरुपति बालाजी मंदिर समुन्द्र तट से 3200 फीट उंचा पहाड़ी पर बना हुआ है।
- मंदिर का मुख्य द्वार पर अनेक तरह की कलाकृति बनाई गई है।
- इसी मंदिर में अनेक देवी-देवताओं के मन्दिर भी है।
- भक्तों के दर्शन के लिए अलग से यहाँ पर रेलिंग बनाई गई है।
- यह मंदिर इतना बड़ा है कि यहाँ पर एक साथ 10 से 15 हजार लोग मंदिर परिसर में इकट्टा हो सकते हैं।
वेंकटेश्वर मंदिर को तिरुपति बालाजी क्यों कहा जाता है?
वेंकटेश्वर भगवान विष्णु जी के ही अवतार है लेकिन इन्हें अनेक नामों से जाना जाता है। इनके अनेक नामों से एक नाम बालाजी भी है। पुरे विश्व में यह मंदिर तिरुपति बालाजी के नाम से प्रसिद्ध है। वेंकटेश्वर भगवान का श्रींगार भी काफी अलग होता है। यहाँ पर मूर्ति को आधे पुरुष के कपड़े और आधे स्त्री के कपड़े पहनाये जाते हैं। धोती और साड़ी के साथ मुख पर चंदन का लेप लगाया जाता है।
भगवान बालाजी की पौराणिक कथा
तिरुपति बालाजी की एक बहुत ही रोचक पौराणिक कथा है। जिसमें बताया गया है कि जब सागर मंथन हो रहा था, उस समय सागर से लगभग 14 रत्न निकले थे और उन 14 रत्नों में से एक महालक्ष्मी थी। मां लक्ष्मी के भव्य और आकर्षक स्वरूप को देख सभी देवगन, राक्षस और मानव उनसे विवाह करना चाहते थे।
सभी ने उनके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा। मां लक्ष्मी ने सभी में कुछ ना कुछ कमी देखी। बाद में बगल में ही भगवान विष्णु शांत भाव से खड़े थे। मां लक्ष्मी को उनका स्वभाव बहुत पसंद आया और उनके गले में वरमाला डाल दिया। जिसके बाद भगवान विष्णु ने मां लक्ष्मी को अपने वक्ष में रहने के लिए स्थान दे दिया।
उसके कुछ समय के बाद विश्व कल्याण हेतु धरती पर एक यज्ञ कराया गया। लेकिन समस्या थी कि अज्ञ का फल ब्रह्मा, विष्णु और महेश में से किसे अर्पित किया जाए। इन तीनों देवताओं में से सबसे बड़े कौन है। देवताओं में से सर्वाधिक उपयुक्त देवता का चयन करने के लिए ऋषि भृगु को नियुक्त किया गया। ऋषि भृगु एक-एक करके भगवान ब्रह्मा, शिवजी और विष्णु के पास जाते हैं।
भगवान ब्रह्मा और शिव जी दोनों के ही निवास स्थल पर जाने के बाद उन दोनों ही देवताओं को अनुपयुक्त मानते हैं। जिसके बाद अंत में वे भगवान विष्णु के पास जाते हैं। विष्णु लोक में भगवान विष्णु नाग सैय्या में लेटे हुए थे। ऋषि भृगु विष्णु लोक में पहुंचे लेकिन उसके बावजूद भगवान विष्णु नहीं उठे क्योंकि उनका नजर ऋषि भृगु पर नहीं पड़ा। इस बात से ऋषि भृगु क्रोधित हो गए और क्रोध में आकर भगवान विष्णु के वक्ष को ठोकर मार दिए।
भगवान विष्णु इससे अनिद्रा में आ गए। उसके बाद उन्होंने बहुत ही शांत स्वभाव से ऋषि भृगु से माफी मांगी और कहा कि है मुनिवर आपको कहीं चोट तो नहीं लगी। भगवान विष्णु के इस विनम्र स्वभाव को देख श्रषि भृगु उनसे बहुत प्रसन्न हो गए और उन्हें यज्ञ फल के लिए सबसे उपयुक्त भगवान के रूप में घोषित किया।
लेकिन मां लक्ष्मी इस बात से बहुत क्रोधित हुई। क्योंकि भगवान विष्णु का वक्ष मां लक्ष्मी का निवास स्थल था। उन्हें बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा कि ऋषि भृगु ने उनके निवास स्थल को ठोकर मारा, उसके बावजूद भगवान विष्णु ने उन्हें दंड देने या क्रोध होने के बजाय उनसे माफी मांगी।
इस बात से क्रोधित होकर मां लक्ष्मी भगवान विष्णु को छोड़कर चली गई। जिसके बाद भगवान विष्णु ने मां लक्ष्मी को चारों तरफ ढूंढा लेकिन मां लक्ष्मी नहीं मिली। बाद में पता चला कि मां लक्ष्मी धरती पर पद्मावती के नाम से जन्म ली है।
उसके बाद भगवान विष्णु भी श्रीनिवास नाम से धरती पर जन्म लेते हैं और बाद में पद्मावती से विवाह का प्रस्ताव रखते हैं। पद्मावती उनके विवाह प्रस्ताव को स्वीकार कर लेती है लेकिन अभी भी समस्या थी कि विवाह के लिए धन की कमी थी। तब भगवान विष्णु जी के रूप श्रीनिवासने भगवान शिव और ब्रह्मा को साक्षी मानकर कुबेर जी से धन कर्ज पर लिया और उन्हें विश्वास दिलाया कि कलयुग के अंत तक वे ब्याज सहित उनके कर्ज को चुका देंगे।
इसीलिए माना जाता है कि अभी भी तिरुपति मंदिर में भगवान बालाजी पर धन चढ़ाकर भक्तगण उनके कर्ज को कम करते हैं, जिस कारण भगवान विष्णु अपने सभी भक्तजनों की मनोकामना को पूरी करते हैं। भगवान बालाजी और पद्मावती का विवाह होने के बाद भगवान तिरुमाला की पहाड़ियों पर ही रहने लगे थे।
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तिरुपति बालाजी के दर्शन की प्रक्रिया
यह मंदिर टीटीडी के संरक्षण में है, यह सरकार द्वारा नियुक्त की गई एक संस्था है, जो मंदिर की देख-रेख करती है। 1933 में मद्रास सरकार ने इस संस्था का निर्माण किया था, लेकिन आजादी के बाद यह मंदिर आंध्रप्रदेश सरकार के अधीन हो गया। अब इस मंदिर की देख रेख टीटीडी ही करती है लेकिन अब इसमें सरकार का हस्तक्षेप रहता है। वेंकटेश्वर भगवान के दर्शन के लिए यहाँ पर टिकेट लेना अनिवार्य है, अगर किसी के पास टिकेट या टोकन नहीं है तो उसे मंदिर में प्रवेश नहीं मिलता है।
टिकेट के लिए आप ऑनलाइन भी आवेदन कर सकते हैं या फिर तिरुपति जाकर अपना रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं। हिन्दू धर्म के लोगों के लिए किसी भी तरह के फॉर्म को भरने की जरूरत नहीं है। लेकिन अगर आप गैर हिन्दू है तो आपको एक फॉर्म भरना होगा, उसके बाद आपको टिकेट या टोकन दिया जाएगा। टोकन मिलने के बाद आपको अपनी बारी का इंतजार करना है और वहां पर बनी रेलिंग की मदद से आपको मंदिर में प्रवेश दिलाया जाता है।
तिरुपति बालाजी मंदिर में प्रत्येक सप्ताह आम जनता के लिए सामान्य दर्शन होते हैं और प्रत्येक दिन का समय अलग-अलग होता है। सामान्य दर्शन सोमवार, मंगलवार, शनिवार और रविवार को सुबह 7:00 बजे से लेकर शाम के 7:00 बजे तक का रहता है। वहीं बुधवार और शुक्रवार को यह समय सुबह 9:00 बजे से शाम के 7:00 बजे तक का होता है।
तिरुपति बालाजी मंदिर में वीआईपी दर्शन भी होता है, जिसके लिए टिकट खरीदना पड़ता है और प्रति व्यक्ति का टिकट लगभग ₹300 होता है। वीआईपी दर्शन हर दिन सुबह 9:00 बजे से दोपहर के 3:00 बजे तक का होता है। तिरुपति बालाजी मंदिर में वरिष्ठ नागरिकों के लिए भी विशेष दर्शन की व्यवस्था है। यहां पर वरिष्ठ नागरिकों सुबह 10:00 बजे से लेकर दोपहर 3:00 बजे तक के स्लॉट में दर्शन कर सकते हैं लेकिन अधिकारियों को उन्हें उम्र का प्रमाण भी दिखाना पड़ता है।
तिरुपति बालाजी मंदिर में बालों का दान
तिरुपति बालाजी मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में जो भी भक्तजन अपने बालों का दान देते हैं, भगवान उनकी मनोकामना को बहुत जल्द पूरी करते हैं। इसीलिए प्रतिदिन यहां पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु अपने बालों का दान करते हैं, जिसे “मोक्कू” कहा जाता है।
बालों का दान करने के लिए मंदिर प्रबंधन ने एक विशाल सुविधा का भी निर्माण किया है। हर रोज यहां लाखों टन बाल इकट्ठे करके मंदिर की ही संस्था द्वारा नीलामी की जाती है।
तिरुपति बालाजी के दर्शन के लिए लगी रहती है श्रधालुओं की भीड़
आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि तिरुपति बालाजी के दर्शन आप एक दिन में नहीं कर सकते है। इसके लिए आपको अग्रिम टिकेट लेना पड़ता है और जिस दिन आपकी बारी आएगी, उस दिन आपको सूचित किया जाता है।
क्योंकि तिरुपति बालाजी के दर्शन प्रत्येक दिन एक लाख से भी ज्यादा लोग करते है। ऐसे में आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वहां पर कितनी भीड़ होगी और आपका नंबर कब आएगा। लेकिन भक्ति और भगवान के दर्शन के लिए हमें इंतजार करना होगा।
तिरुपति बालाजी मंदिर में सुविधाएं
तिरुपति बालाजी मंदिर में तिरुपति बालाजी का दर्शन भक्तजन आराम से कर सके इसके लिए तिरुपति बालाजी मंदिर प्रबंधन ने बहुत ही विशाल और विस्तृत सुविधाओं का निर्माण किया है। तिरुपति बालाजी का मंदिर तिरुमलाई पर्वतमाला पर स्थित है और यह पर्वतमाला अनोखी प्राकृतिक सुंदरता से संपन्न है। यहां पर झरने है।
यहां की प्राकृतिक सुंदरता सभी भक्तजनों को आनंद से भर देती है। इस मंदिर में आवास भी है, बालों का दान करने के लिए भी एक अलग से स्थान है। यहां पर एक विशाल कतार भी बनाया गया है, जिसमें शामिल होकर भक्तजन भगवान का दर्शन बिना परेशानी के कर सकते हैं। इस मंदिर में मुक्त भोजन की सुविधा भी है।
तिरुपति बालाजी का प्रसाद भी है लोकप्रिय
आपको जानकार हैरानी होगी कि इस मंदिर का प्रसाद भी बहुत लोकप्रिय है। प्रसाद के लिए आपको लम्बी कतार में खड़ा रहना पड़ता है और जैसे ही आप भगवान का दर्शन करके मंदिर परिसर में आते है, आपको प्रसाद की कतार में लगना होता है। यहाँ के लड्डू काफी फेमस है और विदेश तक यहाँ के लड्डू भेजे जाते है। तिरुपति बालाजी के प्रसाद को आप ऑनलाइन भी खरीद सकते हैं।
तिरुपति बालाजी मंदिर में बनने वाले यह लड्डू शुद्ध घी से बनाए जाते हैं और प्रतिदिन 3 लाख लड्डू बनाए जाते हैं और इतने सारे लड्डू को बनाने के लिए यहां पर 300 साल पुरानी पारंपरिक विधि का प्रयोग किया जाता है। इससे जुड़ा एक और भी रोचक तथ्य है कि इन लड्डू को तिरुपति बालाजी मंदिर में गुप्त रसोईघर में बनाया जाता है और इस गुप्त रसोईघर को पोटू कहते हैं।
तिरुपति बालाजी से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
यहाँ की कुछ रोचक बातें इस तरह है:
- भगवान वेंकटेश्वर को गर्भगृह में जब भी देखा जाता है, वह दरवाजे के मध्य में नजर आते है। जबकि असल में वह दरवाजे के दायें तरफ है।
- तिरुपति बालाजी मंदिर को लेकर एक और रोचक तथ्य यह है कि इस मंदिर में एक दिया बिना घी और तेल के ही सदैव जलते रहता है। यहां तक कि आज तक यह भी ज्ञात नहीं हो पाया कि इस दिये को सबसे पहले किसने प्रज्वलित किया था।
- मुख्यद्वार के दायें बालाजी का बालरूप है। उनकी ठोड़ी से रक्त आया और वह निशान अभी तक है। उसी समय से बालाजी की ठोड़ी पर चंदन लगाने की प्रथा शुरू हुई थी।
- तिरुपति मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में स्थापित तिरुपति बालाजी के दिव्य काली मूर्ति निर्मित नहीं की गई है बल्कि यह मूर्ति स्वंयम जमीन से प्रकट हुई है।
- कहते है कि बालाजी के सर पर रेशमी बाल असली है एवं वह कभी उलझते नहीं है।
- तिरुपति बालाजी के मंदिर का वातावरण काफी ठंडा रखा जाता है, उसके बावजूद बालाजी को बहुत गर्मी लगती है और वह गर्मी पसीने के रूप में उनके शरीर पर दिखाई देती है। क्योंकि मूर्ति के आसपास पसीने की बूंदे दिखती है यहां तक कि उनकी पीठ भी काफी नम रहती है।
- माना जाता है कि जब भी प्रतिमा के पास जाकर कान लगाया जाता है तो प्रतिमा से नदियों की आवाज आती है।
- तिरुपति मंदिर में भगवान बालाजी की प्रतिमा पर पचाई कपूर लगाया जाता है। इस कपूर को लेकर यह कहा जाता है कि इस कपूर को किसी भी सामान्य पत्थर पर घिसा जाए तो उस पत्थर पर दरार पड़ जाती है लेकिन तिरुपति बालाजी की प्रतिमा पर इसका कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता।
- मंदिर के गर्भगृह में चढाई गई चीज को कभी वापस नहीं लाया जाता है, उन्हें वहीँ पर जलकुंड में विसर्जित किया जाता है।
- तिरुपति बालाजी का श्रृंगार बहुत ही अनोखे तरीके से होता है। माना जाता है कि तिरुपति बालाजी में मां लक्ष्मी का रूप भी समाहित है, इसीलिए तिरुपति बालाजी का श्रृंगार करते वक्त प्रतिदिन नीचे उन्हें धोती और ऊपर साड़ी से सजाया जाता है।
- मंदिर से करीब 23 किलोमीटर दूर बालाजी का एक ऐसा गाँव है, जहाँ उस गाँव के लोगों के आलावा किसी को प्रवेश नहीं मिलता है। यहाँ के लोग ही मंदिर के लिए फुल, घी, मखन इत्यादि लाते है। माना जाता है कि यहाँ की औरतें कभी ब्लाउज नहीं पहनती।
- बालाजी की पीठ पर हमेशा पसीना रहता है चाहे आप कितनी भी बार उसे साफ़ कर दो।
- गर्भगृह में जलने वाले दीपक भी पिछले हजारों सालों से जल ही रहे है।
- भगवान तिरुपति बालाजी की प्रतिमा एक विशेष प्रकार के चिकने पत्थर से निर्मित की गई है लेकिन यह प्रतिमा पूरी तरीके से जीवंत लगती है।
- वेंकटेश्वर भगवान को सप्तपहाड़ियों के स्वामी भी कहा जाता है।
- भगवान विष्णु को तुलसी के पत्ते बहुत प्रिय थे, इसीलिए तिरुपति मंदिर में तिरुपति बालाजी को रोज तुलसी की पत्तियां चढ़ाई जाती है। लेकिन उन तुलसी के पतियों को भक्तों को प्रसाद के रूप में ना देकर मंदिर के परिसर के कुएं में डाल दिया जाता है।
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तिरुपति बालाजी मंदिर का दर्शन करने कैसे जाएं?
तिरुपति मंदिर जाने के लिए भक्तगण सड़क मार्ग, रेलवे मार्ग और हवाई मार्ग में से किसी भी मार्ग का चयन कर सकते हैं। तिरुपति पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन तिरुपति है और यह रेलवे स्टेशन भारत के विभिन्न शहरों से जुड़ा हुआ है, जहां से रोजाना ट्रेन यहां के लिए आती है।
सड़क मार्ग के जरिए भी तिरुपति तमिलनाडु के कई अन्य शहरों एवं उसके आसपास के राज्यों के सड़कों से अच्छी तरीके से जुड़ा हुआ है। तिरुपति के लिए प्रतिदिन बसे उपलब्ध हो जाती हैं। बात करें तिरुपति पहुंचने के लिए हवाई मार्ग की तो यहां का सबसे निकटतम हवाई अड्डा तिरुपति ही है, जिसके लिए हैदराबाद, दिल्ली, मुंबई आदि शहरों से प्रतिदिन सीधे उड़ान उपलब्ध है।
तिरुपति बालाजी मंदिर के पास घूमने की जगहें
वेल्लोर
तमिलनाडु में तिरुपति बालाजी मंदिर के बाद बहुत अधिक मात्रा में घूमे जाने वाले पर्यटकों में से एक वेल्लोर है। यह शहर पलार नदी के किनारे स्थित है। यहां पर बड़ी संख्या में तीर्थ स्थल और ऐतिहासिक स्मारक स्थित है। इस शहर पर इतिहास में कई अलग-अलग शाही राजवंशों के द्वारा शासन किया जा चुका है।
चित्तूर
चित्तूर तिरुपति बालाजी मंदिर के पास स्थित झरने और प्राकृतिक सुंदरता से भरा एक सुंदर हिल स्टेशन है। शहर के भीड़-भाड़ भरी जिंदगी से परे कुछ पल शांति के प्रकृति के बीच बिताने के लिए यह बहुत ही लोकप्रिय जगह है। स्वादिष्ट और सुगंधित आमो की कई प्रजाति पाई जाने के कारण इस जगह को मैंगो सिटी के नाम से भी जाना जाता है।
वेदाद्री नरसिम्हा स्वामी मंदिर
तिरुपति से लगभग 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित वेदाद्री नरसिम्हा स्वामी मंदिर प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है, जिसका निर्माण कृष्ण देव राय ने करवाया था। माना जाता है इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने राक्षस सोमकाडो के साथ युद्ध कर जीत हासिल की थी।
कोयंबटूर
कोयंबटूर अपने खूबसूरत झरने, घाट और हरी-भरी पहाड़ियों के लिए लोकप्रिय स्थलों में से एक है। इस स्थान को कोवई के नाम से भी जाना जाता है।
तिरुपति बालाजी के स्थान की जानकारी
यदि आप तिरुपति बालाजी जाना चाहते है और उसका सही स्थान मालूम नहीं है तो यह इस तरह है। यह आंध्रप्रदेश के चितूर जिले में स्तिथ है। यहाँ पर तिरुमाला पहाड़ी के नाम से जाना जाता है। आप यहाँ आकर तिरुमाला पहाड़ी या वेंकटेश्वर भगवान का मंदिर देख सकते हैं।
FAQ
1843 से 1933 तक मंदिर का प्रबंधन हातीरामजी मठ के महंत ने संभाला था।
इस मंदिर की आमदनी हर महीने 200 से 220 करोड़ रूपए की होती है।
यह अभी तक साफ़ नहीं है लेकिन यह मंदिर आंध्रप्रदेश सरकार के अधीन है।
प्रति व्यक्ति प्रति दिन यहाँ 5 हजार रूपए खर्च हो सकते हैं।
आप रेल मार्ग, हवाई मार्ग और सड़क मार्ग से यहाँ आ सकते है।
नजदीकी रेलवे स्टेशन तिरुपति है।
यहाँ नजदीकी हवाई अड्डा रेनीगुटा है।
भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक तिरुपति बालाजी आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में तिरुमला पर्वत पर मौजूद है, जो पूरी तरह से भगवान विष्णु को समर्पित है। तिरुपति बालाजी का मूल नाम श्री वेंकटेश्वर स्वामी है, जो स्वयं भगवान विष्णु ही हैं।
निष्कर्ष
हमने इस आर्टिकल में भगवान वेंकटेश्वर मंदिर तिरुपति (तिरुमाला) यानि तिरुपति बालाजी मंदिर इतिहास (Tirupati Temple History in Hindi) के बारें में बताया है। आपको हमारा यह आर्टिकल कैसा लगा, हमें कमेंट में जरुर बताएं।
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