मत पूछ उसके मैखाने का पता ऐ साकी, उसके शहर का तो पानी भी नशा देता है.
कभी उलझ पड़े खुदा से कभी साक़ी से हंगामा, ना नमाज अदा हो सकी ना शराब पी सके।
हर बार सोचता हूँ छोड़ दूंगा मैं पीना अब से, मगर तेरी आड़ आती है और हम मयखाने को चल पड़ते हैं।
मिलावट है तेरे इश्क में इत्र और शराब की, कभी हम महक जाते हैं कभी हम बहक जाते हैं
नतीजा बेवजह महफिल से उठवाने का क्या होगा, न होंगे हम तो साकी तेरे मैखाने का क्या होगा।
तेरी आँखों के ये जो प्याले हैं, मेरी अंधेरी रातों के उजाले हैं, पीता हूँ जाम पर जाम तेरे नाम का, हम तो शराबी बे-शराब वाले हैं.
आए थे हँसते खेलते मय-ख़ाने में ‘फ़िराक़’ जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए
ग़ालिब छुटी शराब पर अब भी कभी कभी पीता हूँ रोज़-ए-अब्र-ओ-शब-ए-माहताब में
ये ना पूछ मैं शराबी क्यूँ हुआ, बस यूँ समझ ले, गमों के बोझ से, नशे की बोतल सस्ती लगी।
उन्हीं के हिस्से में आती है ये प्यास अक्सर, जो दूसरों को पिलाकर शराब पीते हैं.
तुम्हारी आँखों की तौहीन है, ज़रा सोचो तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है.
ग़म इस कदर बढ़े कि घबरा के पी गया, इस दिल की बेबसी पे तरस खा के पी गया, ठुकरा रहा था मुझे बड़ी देर से ज़माना, मैं आज सब जहान को ठुकरा के पी गया।
मुझ तक कब उनकी बज़्म में आता था दौर-ए-जाम साक़ी ने कुछ मिला न दिया हो शराब में.
तुम क्या जानो शराब कैसे पिलाई जाती है, खोलने से पहले बोतल हिलाई जाती है, फिर आवाज़ लगायी जाती है आ जाओ टूटे दिल वालों, यहाँ दर्द-ए-दिल की दवा पिलाई जाती है।
साबित हुआ है गर्दन-ए-मीना पे ख़ून-ए-ख़ल्क़, लरज़े है मौज-ए-मय तेरी रफ़्तार देख कर !
हम तो समझे थे के बरसात में बरसेगी शराब आई बरसात तो बरसात ने दिल तोड़ दिया.
कहीं सागर लबालब हैं कहीं खाली पियाले हैं, यह कैसा दौर है साकी यह क्या तकसीम है साकी।
शिकन न डाल माथे पर शराब देते हुए, ये मुस्कुराती हुई चीज़ मुस्कुरा के पिला।
उनकी आंखें यह कहती रहती हैं लोग नाहक शराब पीते हैं.
मेरी तबाही का इल्जाम अब शराब पर है, करता भी क्या और तुम पर जो आ रही थी बात।
बे पिए ही शराब से नफ़रत ये जहालत नही तो और क्या है? साहिर लुधियानवी
होकर ख़राब-ए-मय तेरे ग़म तो भुला दिये लेकिन ग़म-ए-हयात का दरमाँ न कर सके~साहिर
गज़लें अब तक शराब पीती थीं नीम का रस पिला रहे हैं हम.
मस्त करना है तो खुम मुँह से लगा दे साकी, तू पिलाएगा कहाँ तक मुझे पैमाने से।
उस शख्स पर शराब का पीना हराम है, जो रहके मैक़दे में भी इन्सां न हो सका.
लोग अच्छी ही चीजों को यहाँ ख़राब कहते हैं, दवा है हज़ार ग़मों की उसे शराब कहते हैं।
ज़ाहिद शराब पीने से , क़ाफ़िर हुआ मैं क्यों, क्या डेढ़ चुल्लू पानी में , ईमान बह गया?
आमाल मुझे अपने उस वक़्त नज़र आए जिस वक़्त मेरा बेटा घर पी के शराब आया.
ख़ुद अपनी मस्ती है जिस ने मचाई है हलचल नशा शराब में होता तो नाचती बोतल.
शराब के भी अनेक रंग हैं साक़ी, कोई पीता है आबाद होकर, तो कोई पीता है बर्बाद होकर
झूठ कहते हैं लोग कि, शराब ग़मों को हल्का कर देती है, मैंने अक्सर देखा है लोगों को नशे में रोते हुए
पहले तुझ से प्यार करते थे अब शराब से प्यार करते हैं.
लोग जिंदगी में आये और चले गए लेकिन शराब ने कभी धोखा नहीं दिया.
ज़बान कहने से रुक जाए वही दिल का है अफ़साना, ना पूछो मय-कशों से क्यों छलक जाता है पैमाना !
के आज तो शराब ने भी अपना रंग दिखा दिया, दो दुश्मनो को गले से लगवा, दोस्त बनवा दिया.
एक घूँट शराब की जो मैंने लबों से लगायी, तो आया समझ कि इससे भी कड़वी है तेरी सच्चाई
पहले सागर से तो छलके मय-ए-गुलफाम का रंग, सुबह के रंग में ढल जाएगा खुद शाम का रंग !
सोच था कुछ और, लेकिन हुआ कुछ और इसीलिए ये भुलाने के लिए चले गए शराब की ओर
हर जाम पी गया मैं, ऐ दर्दे-जिंदगानी, फिर भी बड़ा तरसा हूं, कुछ और शराब दे दो.
तौहीन न करना कभी कह कर कड़वा शराब को किसी ग़मजदा से पूछियेगा इसमें कितनी मिठास है।
Shayari on Sharab
अब क्या बताऊँ तुझको कि, तेरे जाने के बाद इस दिल पर क्या-क्या बीती है, अब तो हम शराब को और शराब हमको पीती है
हमने होश संभाला तो संभाला तुमको तुमने होश संभाला तो संभलने न दिया
हम तो बदनाम हुए कुछ इस कदर दोस्तों, की पानी भी पियें तो लोग शराब कहते हैं।
इश्क़-ऐ-बेवफ़ाई ने डाल दी है आदत बुरी, मैं भी शरीफ हुआ करता था इस ज़माने में, पहले दिन शुरू करता था मस्जिद में नमाज़ से, अब ढलती है शाम शराब के साथ मैखाने में..
मिले तो बिछड़े हुए मय-कदे के दर पे मिले, न आज चाँद ही डूबे न आज रात ढले !
पी है शराब हर गली हर दुकान से, एक दोस्ती सी हो गई है शराब के जाम से, गुज़रे हैं हम इश्क़ में कुछ ऐसे मुकाम से, की नफ़रत सी हो गई है मुहब्बत के नाम से.
मैं तोड़ लेता अगर तू गुलाब होती, मैं जवाब बनता अगर तू सवाल होती, सब जानते है मैं नशा नही करता, मगर मैं भी पी लेता अगर तू शराब होती.
जाम पे जाम पीने से क्या फायदा दोस्तों, रात को पी हुयी शराब सुबह उतर जाएगी, अरे पीना है तो दो बूंद बेवफा के पी के देख सारी उमर नशे में गुज़र जाएगी ..
हमने पूछा कैसे, वो चले गए हाथों मे जाम देकर
तुम्हारी आँख की तौहीन है जरा सोचो तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है!
नशा मोहब्बत का हो या शराब का होश दोनों में खो जाते है. फर्क सिर्फ इतना है की शराब सुला देती है और मोहब्बत रुला देती है
कुछ चेहरे लाजवाब लगते हैं, मोहब्बत के लम्हें शराब लगते हैं, दर्द इतने सहे मोहब्बत में मैंने, कि अब होश के पल खराब लगते हैं.
अब तो ज़ाहिद भी ये कहता है बड़ी चूक हुई, जाम में थी मय-ए-कौसर मुझे मालूम न था !
शराब के भी अपने ही रंग हैं साकी कोई आबाद होकर पीता है, तो कोई बर्बाद होकर पीता है।
टूटे हुए पैमाने बेकार सही लेकिन, मय-ख़ाने से ऐ साक़ी बाहर तो न फेंका कर !
कभी देखेंगे ऐ जाम तुझे होठों से लगाकर, तू मुझमें उतरता है कि मैं तुझमें उतरता हूँ।
जिगर की आग बुझे जिससे जल्द वो शय ला, लगा के बर्फ़ में साक़ी, सुराही-ए-मय ला।
किसी प्याले से पूछा है सुराही ने सबब मय का, जो खुद बेहोश हो वो क्या बताये होश कितना है !
पीते थे शराब हम उसने छुड़ाई अपनी कसम देकर, महफ़िल में आये तो यारों ने पिला दी उसकी कसम देकर।
थोड़ा गम मिला तो घबरा के पी गए, थोड़ी खुशी मिली तो मिला के पी गए, यूँ तो न थी हमें ये पीने की आदत, शराब को तन्हा देख तरस खा के पी गए।
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।