Sanskrit Varnamala: किसी भी भाषा को लिखने व समझने के लिए उसकी वर्णमाला का ज्ञान होना बहुत ही जरूरी है। संस्कृत भाषा भारत की बहुत ही प्राचीन भाषा है और प्राचीन काल में संस्कृत भाषा का ही प्रयोग बोलचाल के रूप में होता था।
यहां तक कि जितने भी पौराणिक ग्रंथ है, वह भी संस्कृत भाषा में ही लिखे गये हैं। हालांकि धीरे धीरे इस भाषा का प्रचलन कम हो गया लेकिन आज भी साधु संतों के लिए संस्कृत भाषा का बहुत महत्व है और पूजा पाठ में भी संस्कृत श्लोक का ही इस्तेमाल होता है।
किसी भाषा को लिखने के लिए इसके अनुरूप एक लिपि होती है और संस्कृत भाषा को देवनागरी लिपि में लिखा जाता है। अन्य भाषाओं की तरह संस्कृत भाषा की भी अपनी वर्णमाला है और इसी को संस्कृत वर्णमाला कहते हैं।
इस लेख में Sanskrit Varnamala, संस्कृत में स्वर और व्यंजन कितने होते हैं आदि के बारे में विस्तार से जानेंगे।
संस्कृत वर्णमाला
जिस तरह हिंदी वर्णमाला में कई वर्ण होते हैं, उसी तरह संस्कृत वर्णमाला भी वर्णों का एक समूह होता है और इन्हीं वर्णों की मदद से संस्कृत के शब्द बनाए जाते हैं।
संस्कृत वर्णमाला में कुल 50 वर्ण है, जिसमें से 33 व्यंजन है, 13 स्वर है और चार आयोगवाह होते हैं।
जिस तरह हिंदी वर्णमाला में स्वर और व्यंजन होते हैं, संस्कृत वर्णमाला में भी स्वर और व्यंजन होते हैं लेकिन संस्कृत में व्यंजन को ‘हल्’ और स्वर को ‘अच्’ कहा जाता है।
स्वर (13) | अ, आ, इ, ई, ऋ, ॠ, लृ, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ |
व्यंजन (33) | क्, ख्, ग्, घ्, ङ्, च्, छ्, ज्, झ्, ञ्, ट्, ठ्, ड्, ढ्, ण्, त्, थ्, द्, ध्, न्, प्, फ्, ब्, भ्, म्, य्, र्, ल्, व्, श्, ष्, स्, ह् |
आयोगवाह (4) | अनुस्वार, विसर्ग, जीव्हामूलीय, उपध्मानीय |
स्वर (‘अच्’) क्या है?
स्वर को संस्कृत में परिभाषित इस तरह किया गया है “स्वयं राजन्ते इती स्वर:” इसका अर्थ है कि ऐसे वर्ण जो स्वयं उच्चरित होते हैं।
संस्कृत वर्णमाला में स्वर स्वतंत्र ध्वनि होती है। यह स्वयं में पूर्ण होती है। इसके उच्चारण में किसी अन्य ध्वनि का प्रयोग नहीं होता है। यह लय सूचक होता है। संस्कृत वर्णमाला में स्वर की संख्या 13 है।
संस्कृत वर्णमाला में स्वर: अ, आ, इ, ई, ऋ, ॠ, लृ, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
मिश्र स्वर
मिश्र स्वर को संयुक्त स्वर भी कहा जाता है। Sanskrit Varnamala में ए, ऐ, ओ, औ यह चार संयुक्त स्वर होते हैं। यह शुद्ध स्वर नहीं होते हैं क्योंकि इनकी उत्पत्ति मूल स्वरों के योग से होता है।
जैसे
- अ / आ + इ / ई = ए
- ए + ई = ए
- ओ + ऊ = औ
अर्द्ध स्वर
संस्कृत वर्णमाला में अर्ध स्वर ऐसे स्वर होते हैं, जिनका उच्चारण क्रमशः ई, ऋ, लृ, ऊं में अ जोड़कर किया जाता है। संस्कृत वर्णमाला में ऐसे स्वरों की संख्या चार है य, र, ल, व।
- ई+अ= य
- ऊं+अ= व
शुद्ध स्वर:
वैसे संस्कृत वर्णमाला में कुल 13 स्वर है लेकिन इसमें से कुल पांच स्वर वर्ण ऐसे हैं, जो पूर्ण रूप से स्वतंत्र तरीके से उच्चारित होते हैं। इसके उच्चारण में किसी अन्य स्वर वर्णों का भी प्रयोग नहीं होता है।
वर्णों का उच्चारण करने के लिए मुख के अंदर स्थान स्थान पर हवा को दबाने से भिन्न-भिन्न उच्चारण होता है, जिन्हें उच्चारण स्थान कहा जाता है और मुख के अंदर ऐसे पांच विभाग है।
उन पांच विभागों में एक-एक स्वर उत्पन्न होते हैं। यही पांच वर्ण शुद्ध स्वर कहलाते हैं। जो अ, इ, उ, ऋ, लृ हैं। वैसे संस्कृत भाषा में रचना के आधार पर शुद्ध स्वरों की कुल संख्या 9 है। इन्हें मूल स्वर भी कहा जाता है।
स्वर का विभाजन
संस्कृत वर्णमाला के 13 स्वरों को तीन आधार पर विभाजित किया गया है।
ह्रस्व स्वर, दीर्ध स्वर, प्लुत स्वर के आधार पर
ह्रस्व स्वर: संस्कृत वर्णमाला के जिन स्वरों के उच्चारण में एक मात्र का ही समय लगता है, उन्हें ह्स्व स्वर कहा जाता है और संस्कृत वर्णमाला में इनकी कुल संख्या पांच है जैसे ”अ, इ, उ, ऋ, लृ”
दीर्घ स्वर: संस्कृत वर्णमाला के ऐसे वर्ण जिनके उच्चारण में दो मात्रा का समय लगता है, उन्हें दीर्घ स्वर कहा जाता है और संस्कृत वर्णमाला में ऐसे स्वरों की कुल संख्या 7 है “आ, ई, ऊ, ॠ, ए, ओ, औ” है।
प्लुत स्वर: संस्कृत वर्णमाला के ऐसे स्वर जिनके उच्चारण में हस्व स्वर और दीर्घ स्वर से ज्यादा समय लगता है, उसे प्लुत स्वर कहा जाता है। इनकी संख्या केवल एक है “३”। हिंदी का अंक 3 की तरह इसे सूचित किया जाता है।
उदाहरण: ओ३म्’ । इसमें ‘ओ’ प्लुत स्वर है।
संवृत और विवृत के आधार पर
संवृत और विवृत स्वर में Sanskrit Varnamala के स्वरों का उच्चारण करते समय मुख की जो स्थिति होती है, उसी के आधार पर विभाजित किया गया है और मुख के स्थिति के आधार पर स्वरों को चार भागों में बांटा गया है:
संवृत स्वर: संस्कृत वर्णमाला के ऐसे स्वर का उच्चारण करते समय मुख द्वार संकुचित होता है और संस्कृत वर्णमाला के 13 स्वरों में से कुल चार स्वर संवृत स्वर हैं जैसे “इ, ई, उ, ऊ”।
अर्द्ध संवृत स्वर: अर्ध संवृत स्वर संस्कृत वर्णमाला के ऐसे स्वर वर्ण है, जिनका उच्चारण करते समय मुख्य द्वार थोड़ा कम संकुचित होता है और ऐसे स्वरों की संख्या दो है “ए, ओ”
विवृत स्वर: संस्कृत वर्णमाला के ऐसे स्वर जिनका उच्चारण करते समय मुख पूर्ण रूप से खुली होती है, उन्हें विवृत स्वर कहते हैं और इस तरह के दो स्वर हैं “आ, आँ”।
अर्द्ध विवृत स्वर: संस्कृत वर्णमाला के ऐसे स्वर जिनका उच्चारण करते समय मुख अर्ध रूप से खुली रहती है, उन्हें अर्ध विवृत स्वर कहते हैं और इस तरह के स्वरों की संख्या कुल चार है। “अ, ऐ, औ, ऑ”।
संध्य और सामान स्वर के आधार पर
संध्य स्वर: जब दो असमान या विजातिय स्वर एक दूसरे से मिलकर नया स्वर बनाते हैं तो उसे संध्य स्वर कहा जाता है। संस्कृत वर्णमाला में ऐसे कुल चार संध्य स्वर है: ए, ऐ, ओ, औ।
सामान स्वर: संस्कृत वर्णमाला में जब दो सजातिय या दो समान स्वर के मिलने से नए स्वर का निर्माण होता है तो ऐसे स्वरों को सामान स्वर कहा जाता है और इनकी कुल संख्या 9 है। बाकी के 9 स्वर अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, अं, अः।
संस्कृत वर्णमाला में व्यंजन (हल)
संस्कृत में व्यंजन को इस तरह परिभाषित किया गया है “व्यज्यते वर्णान्तर-संयोगेन द्योत्यते ध्वनिविशेषशो येन तद् विज्ञानम्।’
व्यंजन संस्कृत वर्णमाला के ऐसे वर्ण होते हैं, जो स्वर की तरह स्वतंत्र रूप से उच्चारित नहीं होते हैं। इनके उच्चारण के लिए स्वर वर्ण की सहायता लेनी पड़ती है।
संस्कृत वर्णमाला में ऐसे व्यंजन की कुल संख्या 33 है। संस्कृत में व्यंजन वर्णों श्रृंगार सूचक होता है।
- क् + अ = क
संस्कृत वर्णमाला की 33 व्यंजनों में से 25 व्यंजन को वर्गीकरण कहा जाता है। क्योंकि इन्हें वर्ग के रूप में व्यवस्थित किया गया है और यह क्रम उनके उच्चारण में समानता के अनुसार किया गया है।
बाकी बच्चे आठ व्यंजन विशिष्ट व्यंजन है और यह किसी भी वर्ग व्यंजन में समाहित नहीं हो सकते हैं। क्योंकि इनके उच्चारण इनके जैसे एक समान नहीं है।
- ‘क’ वर्ग – क्, ख्, ग्, घ्, ङ्
- ‘च’ वर्ग – च्, छ्, ज्, झ्, ञ्
- ‘ट’ वर्ग – ट्, ठ्, ड्, ढ्, ण्
- ‘त’ वर्ग – त्, थ्, द्, ध्, न्
- ‘प’ वर्ग – प्, फ्, ब्, भ्, म्
विशिष्ट व्यंजन: य्, व्, र्, ल्, श्, ष्, स्, ह्।
व्यंजन का विभाजन
हिंदी वर्णमाला की तरह ही संस्कृत वर्णमाला में भी व्यंजन वर्णों के उच्चारण के समय मुख के किस भाग का इस्तेमाल होता है, उसके आधार पर उच्चारण स्थान के रूप में विभाजित किया गया है।
संस्कृत वर्णमाला में व्यंजन वर्णों को पांच तरह के उच्चारण स्थान के आधार पर विभाजित किया गया है।
- कंठव्य
- तालव्य
- मूर्धन्य
- दंतव्य
- ओष्ठव्य
कंठव्य: संस्कृत वर्णमाला के जिन वर्णों के उच्चारण करते समय ध्वनि कंठ से निकलती है, उसे कंठव्य वर्ण कहते है। जैसे क, ख, ग, घ, ङ
तालव्य: संस्कृत वर्णमाला के जिन वर्णों का उच्चारण करते समय मुख के ऊपरी भाग यानी कि तालु की मदद लेनी पड़ती है, उसे तालव्य वर्ण कहते हैं। जैसे च्, छ्, ज्, झ्, ञ्।
मूर्धन्य: संस्कृत वर्णमाला के जिन वर्णों का उच्चारण करते समय ध्वनि कंठ के थोड़ा ऊपर मुर्धा से निकलती है, उसे मूर्धन्य वर्ण कहते है। जैसे ट, ठ, ड, ढ, ण।
दंतव्य: संस्कृत वर्णमाला के जिन वर्णों का उच्चारण करते समय दांतों की मदद लेनी पड़ती है, उसे दंतव्य वर्ण कहते है। जैसे त्, थ्, द्, ध्, ण।
ओष्ठव्य: संस्कृत वर्णमाला के जिन वर्णों का उच्चारण करते समय ओठों की सहायता लेनी पड़ती है, उसे ओष्ठव्य वर्ण कहते है। जैसे प, फ, ब, भ, म।
हलन्त् और अजन्त व्यंजन
Sanskrit Varnamala के व्यंजन को उच्चारण करने के लिए स्वर वर्णों की सहायता लेनी पड़ती है लेकिन जब व्यंजन वर्ण को बिना स्वर की सहायता से लिखा जाता है तो उसे हलन्त कहा जाता है। जैसे कि क्, ख्, ग्आ दि।
संस्कृत वर्णमाला चार्ट
संयुक्त वर्ण
Sanskrit Varnamala के 50 वर्णों को छोड़कर कुछ ऐसे भी वर्ण शब्दों के निर्माण में प्रयुक्त होते हैं, जिनकी उत्पत्ति दो व्यंजन के मेल से होता है, इसीलिए इनका अलग से अस्तित्व नहीं है। इन्हें संयुक्त वर्ण भी कहा जाता है और यह वर्ण है क्ष, त्र, ज्ञ, श्र”
- ज्ञ = ज्+ञ
- श्र=श्+र
FAQ
संस्कृत वर्णमाला में 33 व्यंजन और 9 स्वर को मिलाकर 46 वर्ण होते हैं। लेकिन इसमें चार आयोगवाह भी होते हैं, जिसे मिलाकर कुल 50 वर्ण हो जाते हैं।
जिन व्यंजन वर्णों की उत्पत्ति दो व्यंजन वर्णों से होती है, उसे संयुक्त वर्ण कहते है।
संस्कृत वर्णमाला के जिन वर्णों के उच्चारण करते समय ध्वनि कंठ से निकलती है, उसी को कंठव्य वर्ण कहते हैं। जैसे कि क, ख, ग।
निष्कर्ष
उपरोक्त लेख में संस्कृत वर्णमाला (varnamala in sanskrit) के बारे में जाना। हमें उम्मीद है कि उपरोक्त लेख में संस्कृत वर्णमाला के बारे में पूरी जानकारी आपको मिल गई होगी। यह लेख संस्कृत भाषा को सिखने में आपकी सहायता करेगा।
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