भारत की संस्कृति बहुत ही अनूठी है। इस देश में अनेकों त्यौहार मनाए जाते हैं और दीपावली प्रमुख त्योहारों में से एक है। दीपावली 5 दिनों का त्यौहार है, जिसमें से दूसरा दिन नरक चतुर्दशी का होता है।
यह त्यौहार दीपावली के 1 दिन पहले मनाया जाता है और इस पर्व को मनाने का मुख्य कारण नरक से मुक्ति पाने के लिए है। नरक चतुर्दशी को काली चौदस एवं छोटी दिवाली के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण, यमराज एवं बजरंगबली की विधि पूर्वक पूजा करने से उनकी विशेष कृपा बनी रहती है।
तो चलिए आगे इस लेख में बढ़ते हैं और नरक चतुर्दशी क्यों मनाते हैं, नरक चतुर्दशी का महत्व, पूजा की विधि एवं नरक चतुर्दशी से जुड़ी कुछ प्रचलित कथाओं के बारे में जानते हैं।
नरक चतुर्दशी कब मनाया जाता है?
नरक चतुर्दशी को कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। यह दिवाली से एक दिन पहले मनाया जाता है। इस दिन को नर्का पूजा एवं रूप चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है।
नरक चतुर्दशी को मुक्ति पाने वाला पर्व भी कहा जाता है। इस दिन जो यमराज की पूजा पाठ करता है, उसे यम लोक का दर्शन नहीं करना पड़ता है अर्थात उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती। इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था, इसलिए इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करना विशेष महत्व रखता है।
नरक चतुर्दशी के दिन पूजा की विधि
- नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना चाहिए। इस दिन एवं तेल से नहाना चाहिए। शरीर पर उबटन लगाकर पानी में नीम के पत्ते को मिलाकर नहाने से सौंदर्य रूप प्राप्त होता है।
- नरक चतुर्दशी के दिन सर्वप्रथम नहाने के बाद साफ वस्त्र धारण करने चाहिए। उसके बाद माथे पर तिलक लगाकर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके पूजा करनी चाहिए।
- पूजा करने से पहले सूर्य देव, मां दुर्गा, भगवान शिव, भगवान विष्णु एवं गणेश जी इन पंच देवों की स्थापना करनी है।
- उसके बाद भगवान के प्रतिमा या तस्वीर के सामने धूप जलाना है और फिर उनके मस्तिष्क पर हल्दी या चंदन का तिलक लगाना है।
- बारी बारी से भगवान के मंत्र का जाप करें, उसके बाद अंत में भोग लगाएं।
- शाम के समय घर में 5 दिए जला कर अलग-अलग जगहों पर रखने चाहिए। एक दिया घर के आंगन में अवश्य रूप से रखने चाहिए।
नरक चतुर्दशी क्यों मनाते हैं?
नरक चतुर्दशी मनाने के पीछे कई कथाएं और मान्यताएं प्रचलित है, जिनमें से कुछ निम्न है:
प्रथम कथा
नरक चतुर्दशी से जुड़ी एक पौराणिक कथा विष्णु एवं श्रीमद् भागवत गीता पुराण में लिखा गया है। जिसमें बताया गया है कि पुरातन काल में एक राक्षस था, जिसका नाम नरकासुर था। वह बहुत ही शक्तिशाली था।
उसने अपनी शक्तियों के बलबूते पर सभी देवता एवं साधु को परेशान कर रखा था और सभी पर अत्याचार करने लगा था। यहां तक कि नरकासुर ने सभी देवता एवं संतों की 16000 स्त्रियों को बंधक बनाकर रखा था।
ऐसे में सभी देवता एवं संतगण भगवान श्री कृष्ण के शरण में मदद के लिए जाते हैं तब भगवान श्रीकृष्ण मदद करने का आश्वासन देते हैं। नरकासुर को वरदान था कि उसे कोई भी पुरुष नहीं मार सकता, वह स्त्रियों के हाथों ही मर सकता है। इसीलिए भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर का वध करने के लिए अपनी पत्नी सत्यभामा का सहयोग लिया।
सत्यभामा की मदद से श्री कृष्ण भगवान नरकासुर का वध करने में सक्षम हुए और उसके कैद से 16000 स्त्रियों को आजाद करवाई। उन 16000 स्त्रियों ने भगवान श्रीकृष्ण से उनका सम्मान वापस दिलाने के लिए मदद मांगी। क्योंकि नरकासुर के केद से छूटने के बाद समाज में उन्हें फिर से वह सम्मान नहीं मिल पाता।
इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने उन 16000 स्त्रियों से विवाह कर लिया। भगवान श्री कृष्ण ने जिस दिन नरकासुर का वध किया था, वह दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी थी। इसीलिए इस उपलक्ष में भी नरक चतुर्दशी मनाया जाता है।
दूसरी कथा
नरक चौदस से जुड़ी एक और कथा है कि प्राचीन काल में रतिदेव नाम का एक प्रतापी राजा हुआ करता था। यह राजा स्वभाव से बहुत ही नरम दिल का एवं पुण्य आत्मा का था। इसने गलती से भी कभी किसी का अहित नहीं सोचा। हमेशा हर किसी का भला ही करता था।
लेकिन जब इसकी मौत की घड़ी आ गई तब यमराज इसकी आत्मा को लेने आए। तब यमराज से इसको पता चला कि इसे मोक्ष नहीं नर्क की प्राप्ति हुई है। यमराज की बातों से दंग रह गया। इसने यमराज से पूछा कि मैंने जिंदगी भर सबका भला किया है। भूल कर भी किसी के बारे में अहित नहीं सोचा तो फिर मुझे नरक क्यों मिल रहा है?
तब यमराज ने कहा कि एक बार अज्ञात वश तुम्हारे कारण एक ब्राह्मण तुम्हारे घर से भूखा चला गया था। इसीलिए तुम्हें मोक्ष नहीं नर्क की प्राप्ति हो रही है।
तब रतिदेव ने यमराज से निवेदन किया कि आप मुझे कुछ समय और जिंदा रहने के लिए दे दीजिए ताकि मैं अपनी गलतियों का सुधार कर सकूं। वह अच्छे स्वभाव और अच्छे आचरण का राजा था। इसीलिए यमराज ने उसे कुछ और दिन का मौका दे दिया।
उसके बाद रतिदेव अपने गुरु के पास गया और अपने गुरु से सुझाव मांगा कि अब मैं क्या करूं? ऐसी ऐसी बात है। तब गुरु ने कहा कि तुम एक हजार ब्राह्मण को भोजन कराओ और उनसे क्षमा मांगो।
रतिदेव ने अपने गुरु के सलाह पर एक हजार ब्राह्मण को भोजन कराया और उनसे क्षमा मांगी। जिससे वे सभी ब्राह्मण रतिदेव से बहुत प्रसन्न हुए। इस तरह उसके इस पुण्य काम के कारण उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई। यह दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष का चौदस था। इसीलिए इस दिन को नरक निवारण चतुर्दशी के रूप में जाना जाता है।
तीसरी कथा
नरक चतुर्दशी के दिन दक्षिण भारत में वामन पूजा भी होती है। वामन भगवान विष्णु का अवतार था, जो उन्होंने राजा बलि से संपूर्ण सृष्टि को मुक्त कराने के लिए लिया था। दरअसल प्राचीन काल में एक राजा बलि नाम का बहुत ही शक्तिशाली राजा था, जिसने अपने सत्य के दम पर पूरी पृथ्वी और ब्रह्मांड को अपने कब्जे में कर लिया था।
ऐसे में सभी देव ने भगवान विष्णु से मदद के लिए गुहार की। तब भगवान विष्णु ने वामन का अवतार लिया। महाबली एक दिन यज्ञ करा रहे थे, उस यज्ञ स्थल पर पहुंचे। भगवान विष्णु वामन अवतार में पहुंचे। राजा बलि ने प्रण लिया था कि उनके यहां आए किसी भी व्यक्ति को खाली हाथ नहीं जाने देंगे।
ऐसे में वामन अवतार में भगवान विष्णु ने राजा बलि से तीन पग भूमि दान मांगी। तब राजा बलि ने उन्हें यह दान देने की हामी भर दी।
तब भगवान विष्णु ने विराट रूप धारण करके एक पग में पूरी पृथ्वी, दूसरे पग में अंतरिक्ष और तीसरे पग में जब कोई स्थल नहीं मिला तब बली ने स्वयं अपने सिर को भगवान विष्णु के चरण में रख दिया।
इस तरह भगवान विष्णु ने राजा बली से पृथ्वी एवं संपूर्ण अंतरिक्ष को मुक्त कराया। इसके साथ ही उन्होंने बलि को हर साल उनके यहां वामन अवतार में पहुंचने का आशीर्वाद भी दिया था। भगवान विष्णु ने तीन पग भूमि के नापने की शुरुआत कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से लेकर अमावस्य की अवधि में संपूर्ण की थी।
इस दौरान राजा बलि ने भगवान विष्णु से वरदान मांगा था कि हे भगवान यह 3 दिन जो भी व्यक्ति मेरे राज्य में चतुर्दशी के दिन यमराज के सामने दीपदान करेगा, उसे यम यातना नहीं होनी चाहिए।
जिसके बाद वामन अवतार में भगवान विष्णु ने तथास्तु बोल दिया। इस तरह हर साल कार्तिक माह के कृष्ण चतुर्दशी को यमराज के निमित्त व्रत, पूजन एवं दीपदान का प्रचलन आरंभ हुआ, जिससे यम यातना से बचा जा सके।
नरक चौदस को रूप चतुर्दशी क्यूँ कहा जाता हैं?
नरक चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है और इसके पीछे एक पौराणिक कथा भी है कि प्राचीन काल में एक हिरण्यगर्भ नाम का एक राजा हुआ करता था।
उसने राजपाट छोड़कर तप करने का निर्णय किया और कई वर्षों तक जंगल में अपना जीवन व्यतीत करते हुए ध्यान साधना किया। लेकिन इन सालों में उसके शरीर पर कीड़े लगने शुरू हो गए और फिर उसका शरीर सड़ने लगा।
हिरण्यगर्भ को इस बात से बहुत दुखी हुआ क्योंकि वह भगवान की साधना आराधना में मग्न था। लेकिन उसके शरीर का यह हाल हो जाएगा उसने कभी नहीं सोचा था। तब उसने नारद मुनि से इसके बारे में पूछा नारद मुनि ने कहा कि तुम योग साधना के दौरान शरीर की स्थिति सही नहीं रखा करते थे। इसी का परिणाम है कि तुम्हारे शरीर का यह हालत हो गया है।
तब इसका उपाय पूछने पर नारद मुनि ने कहा कि तुम कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन शरीर पर हल्दी चंदन का लेप लगाकर सूर्योदय से पहले स्नान करो और इसके साथ ही भगवान श्री कृष्ण जिन्हें रूप के देवता भी कहा जाता है। उनकी पूजा आराधना करो, जिससे तुम्हारी सौंदर्य रूप तुम्हें पुनः प्राप्त हो जाएगी।
हिरण्यगर्भ ने बिल्कुल वैसे ही किया और उसे दोबारा सुंदर रूप प्राप्त हो गया। इस कारण हर नरक चौदस के दिन कई लोग सौंदर्य रूप प्राप्त करने के लिए सूर्योदय से पहले शरीर पर लेप लगाकर स्नान करते हैं और भगवान श्री कृष्ण की पूजा अर्चना करते हैं।
नरक चतुर्दशी को हनुमान जयंती
पूरे देश में दो बार हनुमान जयंती मनाई जाती है। एक बार चैत्र की पूर्णिमा और दूसरी बार कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चौदस के दिन। इसीलिए नरक चतुर्दशी को हनुमान जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। इसी दिन हनुमान जी ने माता अंजना के गर्भ से जन्म लिया था, जिसके बारे में वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में उल्लेख है।
इस दिन जो भी भक्तगण भगवान हनुमान की पूजा अर्चना श्रद्धा भाव से करता है, हनुमान चालीसा एवं हनुमान अष्टक का पाठ करता है तो उन्हें भगवान हनुमान जी की विशेष कृपा मिलती है।
नरक चतुर्दशी के दिन क्या करना चाहिए?
- नरक चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन शरीर में तिल्ली का तेल लगा कर एवं जल ना उस दिन मिलाकर स्नान करने से सौंदर्य रूप प्रदान होता है। इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार भी करती हैं।
- इस दिन शरीर में उबटन भी लगाना चाहिए। उबटन लगाकर पानी में नीम के पत्ते डालकर भी स्नान करने से सुंदर एवं निरोगी काया बनती है।
- नरक चतुर्दशी के दिन भगवान शिव एवं पार्वती को पंचामृत अर्पित करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं।
- नरक चतुर्दशी को काली चौदस के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन कई जगहों पर काली माता की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। इसीलिए इस दिन मां काली की पूजा अर्चना करना शुभ माना जाता है। इससे मां काली भक्तों को सभी प्रकार के कष्टों से दूर करती है और अपनी विशेष कृपा प्रदान करते हैं।
- नरक चतुर्दशी के दिन नीला अथवा पीले रंग के वस्त्र को धारण करना शुभ माना जाता है।
- नरक चतुर्दशी के दिन संध्याकाल में चार बत्ती वाला मिट्टी के दीपक को घर के पूर्व दिशा में बाहर मुख्य द्वार पर रखने से भगवान की विशेष कृपा होती है और यमराज की यातना से बचा जा सकता है।
नरक चतुर्दशी पर दीपक जलाने का महत्व
- नरक चतुर्दशी को छोटी दीवाली के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन 5 दिए घर में जलाने चाहिए और इन पांचों दियो को घर में रसोई, पूजा स्थल, पीपल के पेड़, पानी रखने के स्थान एवं घर के मुख्य द्वार पर रखना चाहिए। कई लोग और कई जगहों पर इस दिन 14 दिए भी जलाए जाते हैं। दिए जलाने से घर में सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है।
- नरक चतुर्दशी के दिन एक दिया घर के आंगन में तुलसी के पौधे के पास रखा जाता है और यह दिया शुद्ध गाय के घी से प्रज्वलित किया जाता है। इसके साथ ही एक दिया आस-पास मौजूद पीपल के पेड़ के नीचे भी रखा जाता है।
- कर्ज मुक्ति एवं बाधाओं को दूर करने के लिए भी नरक चतुर्दशी के दिन एक दिया सुनसान जगह पर रखा जाता है।
- नरक चतुर्दशी के दिन एक दिया घर के मुख्य दरवाजे पर अवश्य रखना चाहिए एवं मां लक्ष्मी की प्रतिमा के सामने भी घर में दिया प्रज्वलित करना चाहिए।
- नरक चतुर्दशी के दिन 14 दिनों में से एक दिया रात के समय घर के मंदिर में भी रखना चाहिए। एक दिया उस स्थान पर भी रखना चाहिए जहां पानी की निकासी होती है।
- घर में दक्षिण दिशा में भी इस दिन सरसों के तेल से दिया प्रज्वलित करके रखा जाता है। घर में जहां पर पानी रखा जाता है उस स्थान पर भी तेल से दिया प्रज्वलित करके रखा जाता है। एक दिया सीढ़ियों के पास भी रखना चाहिए और एक दिया घर के मुख्य दरवाजे के पास बनी खिड़की के पास रखना चाहिए ।
- इसके अतिरिक्त रसोई घर में चूल्हे के पास भी एक दिया अवश्य रूप से रखना चाहिए और एक दिया घर की छत के कोने में भी प्रज्वलित करना चाहिए। इतना ही नहीं एक दिया घर का कचरा जहां पर हैं वहां भी रखा जाता है। इस तरह 14 दिए घर के विभिन्न स्थानों पर रखे जाते हैं।
नरक चतुर्दशी के दिन क्या सावधानियां रखें?
नरक चतुर्दशी के दिन कई ऐसे कार्य हैं, जिन्हें करने से बचना चाहिए। यदि उन कार्यों को अनजाने में भी किया जाता है तो उसका गलत परिणाम व्यक्ति के जीवन में पड़ता है।
- नरक चतुर्दशी के दिन घर में किसी भी तरह का कूड़ा कचरा नहीं रखना चाहिए। टूटे-फूटे सामान नर्क का प्रतीक माना जाता है। इससे नकारात्मक ऊर्जा घर में फैलती है। इसीलिए शास्त्रों के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन घर की साफ सफाई करनी चाहिए, जहां पर सफाई होती है। वहीं पर मां लक्ष्मी का वास होता है।
- नरक चतुर्दशी के दिन यम देव की पूजा की जाती है। इसलिए इस दिन भूलकर भी किसी जीव को नहीं मारना चाहिए। यदि अनजाने में भी किसी जीव की हत्या हो जाती है तो यमराज क्रोधित हो जाते हैं।
- नरक चतुर्दशी के दिन भूलकर भी दक्षिण दिशा में गंदगी नहीं फेलानी चाहिए। ऐसा करने से पितर नाराज हो सकते हैं।
- नरक चतुर्दशी के दिन महालक्ष्मी की पूजा की जाती है, इसीलिए नरक चतुर्दशी के दिन तिल के तेल का दान नहीं करना चाहिए। इससे मां लक्ष्मी नाराज हो जाती है। इसके साथ ही झाड़ू को भी भूल से पैर नहीं लगाना चाहिए और ना ही झाड़ू को खड़े करके रखना चाहिए।
- नरक चतुर्दशी के दिन मांसाहारी खानपान करने से बचना चाहिए। ना हीं मदिरा का सेवन करना चाहिए। इससे स्वास्थ्य पर बुरा असर हो सकता है और भगवान नाराज हो सकते हैं और नर्क की यातना भोगनी पड़ सकती है।
निष्कर्ष
नरक चतुर्दशी के दिन पूजा का बहुत ही महत्व है। इस दिन विधि विधान पूर्वक पूजा करना चाहिए तभी भगवान की विशेष कृपा बनी रहती है और नरक की यातना से मुक्ति मिलती है।
इस लेख में आपको नरक चतुर्दशी कब और क्यों मनाया जाता है?( Narak Chaturdashi Kyo Manai Jati Hai) से जुड़ी तमाम जानकारी बताई। हमें उम्मीद है कि इस लेख के जरिये आपको नरक चतुर्दशी के बारे में संपूर्ण जानकारी मिल गई होगी।
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