Dhanteras Kyu Manaya Jata Hai: भारत त्योहारों का देश है। भारत में विभिन्न प्रकार के त्यौहार मनाए जाते हैं। भारत में त्यौहार न केवल संस्कृति का प्रतीक है बल्कि यह प्यार एवं एकता का भी प्रतीक है। क्योंकि त्योहारों के कारण हर कोई एक जुट होता है और आनंद और उमंग से त्योहारों को मनाते हुए उस पल का भरपूर आनंद लेते है।
भारत में दीपावली का त्यौहार प्रमुख त्योहारों में से एक है। दिवाली 5 दिनों का त्योहार है, उसके 2 दिन पहले धनतेरस का त्यौहार आता है। धनतेरस के दिन लोग धन-धान्य के साथ अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हैं। कहते हैं जीवन में स्वास्थ्य से बड़ा धन कुछ भी नहीं है। यदि व्यक्ति स्वस्थ है तो वह सबसे बड़ा सुखी है।

इसीलिए इस दिन लोग भगवान से स्वास्थ्य की कामना करते हैं। क्योंकि इस दिन देवताओं के चिकित्सक धन्वंतरि भगवान की पूजा की जाती है। अन्य त्योहारों की तरह धनतेरस से भी जुड़ी कई पौराणिक कथाएं, इसका महत्व एवं इसके पूजा की विधि विधान है, जिसके बारे में आज के इस लेख में हम विस्तारपूर्वक जानेंगे।
धनतेरस का त्यौहार कब और क्यों मनाया जाता है? (महत्व और पौराणिक कथा) | Dhanteras Kyu Manaya Jata Hai
धनतेरस कब मनाया जाता है?
धनतेरस का त्यौहार कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन मनाया जाता है और यह दिन दिवाली के 2 दिन पहले पड़ता है। इस दिन भगवान कुबेर, धन और समृद्धि के प्रतीक मां लक्ष्मी एवं देवों के चिकित्सक धनवंतरी भगवान की पूजा की जाती है।
धनतेरस का महत्व
दीवाली से 2 दिन पहले मनाया जाने वाला धनतेरस त्यौहार का काफी ज्यादा महत्व है। क्योंकि इसी दिन समुद्र मंथन के दौरान समुद्र से भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए थे। उनके हाथों में अमृत कलश भी था।
कहा जाता है कि संसार में चिकित्सा विज्ञान के विस्तार एवं प्रसार के लिए ही भगवान विष्णु ने धन्वंतरि का अवतार लिया था। इसीलिए धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है और अच्छे स्वास्थ्य की कामना की जाती है।
भगवान धन्वंतरि अपने हाथों में कलश लेकर समुद्र से प्रकट हुए थे, जिस कारण इस दिन बर्तनों की खरीदी शुभ मानी जाती है और बर्तन एवं सोने चांदी की सामग्री खरीदने से कई गुना वृद्धि होती हैं।
इस दिन धन एवं सुख समृद्धि की माता लक्ष्मी की भी पूजा अर्चना की जाती है। माना जाता है इस दिन मां लक्ष्मी गणेश जी की पूजा करने से घर में धन दौलत की वृद्धि होती है एवं सुख समृद्धि भी आता है।
धनतेरस के दिन घर के मुख्य द्वार एवं आंगन में दिए जलाने से अकाल मृत्यु से बचा जा सकता है। इसीलिए इस दिन भगवान यमराज की पूजा अर्चना की जाती है और कई लोग उनका व्रत भी रखते हैं।
धनतेरस से जुड़ी प्रथा
धनतेरस के दिन सोने चांदी के आभूषण खरीदने की प्रथा है। माना जाता है धनतेरस का दिन भगवान धन्वंतरि को समर्पित है और इसी दिन भगवान धन्वंतरि समुद्र मंथन से कलश लेकर प्रकट हुए थे। उनके हाथों कलश होने के कारण इस दिन बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है। हालांकि जैसी जिसकी क्षमता होती है वह उस अनुसार खरीदारी करता है।
जिसकी क्षमता बर्तन या गहने खरीदने की नहीं है तो वह इस दिन झाड़ू या धनिया का बीज भी खरीद कर अपने घर में रखता है और दीपावली के बाद इन बीज को अपने बाग बगीचे में या खेतों में रोपता है।
धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की प्रथा है। इस दिन कुछ लोग चांदी के गहने या फिर बर्तन खरीदते हैं। इस दिन लोग चांदी के गणेश जी एवं लक्ष्मी की प्रतिमा भी खरीदते हैं। माना जाता है कि चांदी चंद्रमा का प्रतीक होता है, जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष उत्पन्न होता है।
वैसे भी संतोष से बड़ा धन कुछ नहीं होता जो व्यक्ति संतुष्ट है, जीवन में सबसे बड़ा सुखी वही है। बहुत ज्यादा धन दौलत होने के बावजूद भी यदि व्यक्ति अंदर ही अंदर और भी ज्यादा पाने की लालसा रखता है तो वह कभी भी सुखी नहीं रह सकता। लेकिन यदि व्यक्ति गरीब रह कर भी संतुष्ट रहता है तो उससे बड़ा धनी कोई नहीं होता। इसीलिए इस दिन लोग चांदी की वस्तुएं भी खरीदते हैं।
धनतेरस के दिन घर के बाहर दीए जलाने का महत्व
धनतेरस के दिन भगवान कुबेर, भगवान धन्वंतरि एवं मां लक्ष्मी की पूजा करने के अतिरिक्त घर के मुख्य द्वार एवं आंगन में दीप जलाने की प्रथा महत्वपूर्ण है। इससे जुड़ी एक कथा है कि एक बार यमराज यमदूत से पूछते हैं कि जब तुम किसी भी प्राणियों के प्राण लेने जाते हो तो क्या तुम्हें दया नहीं आती है?
शुरुआत में तो यमदूतों को यम देवता से भय होता है, जिसके कारण वे कहते हैं कि हम तो अपना कर्तव्य निभाते हैं। भगवान और आपकी आज्ञा का पालन करते हैं। उसके बाद यमराज ने सभी यमदूतों के भय को दूर कर दिया, जिसके बाद एक यमदूत ने कहा कि महाराज एक बार तो हम राजा हेमा के पुत्र का प्राण लेते समय विचलित हो गए थे।
दरअसल राजा हेमा को भगवान की कृपा से पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी और जब उन्होंने ज्योतिषी से अपने बालक की कुंडली बनाई थी तो ज्योतिषी ने राजा को बताया कि इस बालक के विवाह के 4 दिन के बाद ही इसकी मृत्यु हो जाएगी।
इस बात को सुनकर राजा बहुत ही ज्यादा दुखी एवं भयभीत हो गए। इसलिए अपने पुत्र की जान बचाने के लिए उन्होंने अपने पुत्र को इस बात की जानकारी नहीं दी और अपने पुत्र को ऐसी जगह पर भेज दिया, जहां किसी स्त्री की परछाई उस पर ना पड़े।
लेकिन जो भाग्य में लिखा होता है वह तो होकर ही रहता है। इसीलिए एक दिन देवयोग से एक राजकुमारी उधर से गुजरी और जैसे ही राजा हेमा के पुत्र ने उस राजकुमारी को देखा तो दोनों ही एक दूसरे पर मोहित हो गए और फिर उन्होंने गंधर्व विवाह रचा लिया।
ज्योतिषी के द्वारा कही गई भविष्यवाणी सत्य हुई। विवाह के 4 दिन के पश्चात ही यमलोक से यमदूत राजकुमार के प्राण को लेने आ पहुंचे। जब राजकुमार का प्राण ले जा रहे थे कि उसी वक्त नवविवाहित उसकी पत्नी विलाप करने लगी जिसे सुन यमदूतों का दिल पिघल गया। लेकिन यमदूतों के पास कोई चारा नहीं था। इसीलिए उन्हें राजकुमार के प्राणों को ले जाना ही पड़ा।
जब यह कथा यमदूत यमराज को सुना रहे थे तो इसी बीच एक यमदूत ने यमराज से पूछा कि है महाराज क्या अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय नहीं है? यमराज ने कहा कि बिल्कुल एक उपाय है। यदि प्राणी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी रात को मेरे नाम पर दक्षिण दिशा में दीया जला कर रखता है तो, उसकी अकाल मृत्यु नहीं होगी।
इसी मान्यता के अनुसार हर साल धनतेरस के संध्याकाल को लोग अपने घर के मुख्य द्वार और आंगन में दीप प्रज्वलित करके रखते हैं। कुछ लोग यम देवता के नाम पर व्रत भी रखते हैं।
धनतेरस की पौराणिक एवं प्रामाणिक कथा
धनतेरस से जुड़ी एक पौराणिक कथा भगवान विष्णु के वामन अवतार से संबंधित है। माना जाता है भगवान विष्णु ने कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन ही वामन अवतार लिया था। दरअसल प्राचीन काल में एक राजा बलि नाम था, जिसने अपने शक्ति से पूरे पृथ्वी पर अधिकार स्थापित कर लिया था। यहां तक कि वह स्वर्गलोक को भी हड़प चूका था।
ऐसे में राजा बलि से देवताओं को बहुत ज्यादा भय था कि सभी देवता कहां जाएंगे? ऐसे में सभी देवताओं को राजा बलि के भय से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया। उस समय राजा बलि यज्ञ करवा रहे थे और वामन अवतार में भगवान विष्णु यज्ञ स्थल पर पहुंच गए।
वहां पर शुक्राचार्य नाम का असुरों का गुरु भी था, जो भगवान विष्णु को पहचान गया और उसने राजा बलि को सचेत कर दिया कि यदि यह कुछ भी मांगे तो मत देना। क्योंकि यह वामन अवतार में स्वयं भगवान विष्णु है, जो तुमसे सब कुछ छीन्न लेना चाहते हैं। लेकिन बलि ने शुक्राचार्य की बात नहीं मानी।
भगवान वामन ने राजा बलि से तीन पग भूमि दान करने को कहा। तब राजा बलि ने तीन पग भूमि दान करने के लिए कमंडल से जल लेकर संकल्प लेने लगा। लेकिन जब राजा बलि को रोकने के लिए कोई और उपाय नहीं मिला तब शुक्राचार्य स्वयं अपना सूक्ष्म रूप धारण करके कमंडल में प्रवेश कर गया, जिससे कमंडल से जल निकलने का मार्ग बंद हो गया।
भगवान विष्णु शुक्राचार्य के इस कारनामे को समझ गए थे। इसीलिए उन्होंने अपने हाथ में रखे हुए कुशा को इस तरह कमंडल में रखा कि शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई, जिससे वह छटपटा कर कमंडल से बाहर निकल आया। जिसके बाद राजा बलि ने कमंडल से जल निकाल कर भगवान को तीन पग भूमि देने का संकल्प ले लिया।
जिसमें भगवान वामन ने एक पैर से संपूर्ण पृथ्वी को नाप लिया और दूसरे पग से अंतरिक्ष को और तीसरे पग को रखने के लिए जब कोई स्थान नहीं मिला तो राजा बलि ने स्वयं अपना सिर उनके चरणों में रख दिया।
इस तरह वामन अवतार में भगवान विष्णु ने राजा बलि के द्वारा सभी पृथ्वी, अंतरिक्ष और स्वर्ग लोक को मुक्त कराया और राजा बलि द्वारा छीन्नी गई सभी धन-संपत्ति से कई गुना देवताओं को वापस दे दिया। इस उपलक्ष में भी धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता है। इसी कारण इस दिन लोग सोने चांदी की खरीदारी भी करते हैं क्योंकि माना जाता है, इन सब चीजों की खरीदारी करने से घर के धन दौलत बढ़ती है।
धनतेरस की पूजन विधि
- धनतेरस के दिन संध्याकाल में भगवान कुबेर, मां लक्ष्मी और धन्वंतरि भगवान की पूजा की जाती है। इसीलिए धनतेरस के दिन सुबह उठने के बाद स्नान करना चाहिए और शाम के समय जिस स्थान पर पूजा करना है, वहां साफ सफाई करनी चाहिए।
- अब सबसे पहले उस स्थान पर एक चौकी लगानी चाहिए, जिस पर भगवान धन्वंतरि माता, लक्ष्मी एवं कुबेर भगवान तीनों की ही प्रतिमा या फिर फोटो स्थापित करनी चाहिए।
- उसके बाद भगवान को दीपक, धूप, अगरबत्ती जलाकर फूल अर्पित करने चाहिए।
- धनतेरस के दिन जिनकी वस्तुओं की खरीदारी की है, उन सभी वस्तुओं को भगवान के समक्ष रख देना चाहिए।
- उसके बाद लक्ष्मी चालीसा लक्ष्मी स्त्रोत और कुबेर यंत्र का पाठ करना चाहिए। भगवान धन्वंतरी को अबीर गुलाल उस पर होली एवं अन्य सुगंधित चीजें चलानी चाहिए।
- भगवान के भोग के रूप में सफेद मिठाई एवं पीली मिठाई का प्रयोग करना चाहिए। क्योंकि भगवान कुबेर को सफेद मिठाई प्रिय है, वहीँ भगवान धन्वंतरि को पीली मिठाई प्रिय है।
- अंत में भगवान को भोग लगाने के बाद घर के बाहर के मुख्य द्वार एवं आंगन में दीप जलाने चाहिए।
धनतेरस के दिन रखें इन बातों की सावधानियां
धनतेरस के दिन मां लक्ष्मी भगवान, कुबेर एवं धनवंतरी की पूजा विधि विधान पूर्वक की जाती है। इस दिन लोग सोने चांदी की वस्तुएं खरीदते हैं, जो शुभ माना जाता है। परंतु इस दिन कई ऐसी चीजें हैं, जिन्हें करने से परहेज रखना चाहिए। आइए जानते हैं धनतेरस के दिन कौन सी सावधानी बरतनी चाहिए:
- धनतेरस के दिन मां लक्ष्मी, भगवान कुबेर और धनवंतरी की पूजा होती है ताकि वह घर पर प्रवेश करें और आशीर्वाद प्रदान करें। इसीलिए इस दिन घर के मुख्य द्वार को अच्छे से साफ सुथरा करके रखना चाहिए। घर के द्वार पर किसी भी प्रकार की गंदगी नहीं होनी चाहिए।
- धनतेरस के दिन भगवान कुबेर के साथ महालक्ष्मी एवं धन्वंतरी की भी पूजा करना आवश्यक है। भूल कर भी केवल भगवान कुबेर की पूजा ना करें। इन तीनों ही देवी देवता की मूर्ति स्थापित करके विधि पूर्वक पूजा जरूर करें।
- धनतेरस के दिन घर में किसी भी प्रकार का कूड़ा, कबाड़ा, कचरा नहीं होना चाहिए। इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा का विस्तार होता है। इसीलिए धनतेरस से पहले ही घर से सभी तरह की फालतू वस्तुओं को बाहर फेंक देना चाहिए।
- धनतेरस के दिन सोना, चांदी, धनिया, बर्तन, झाड़ू जैसी चीजों को खरीदना शुभ माना जाता है। लेकिन इन सबके अतिरिक्त आज के दिन दिये भी जलाने चाहिए क्योंकि धनतेरस के दिन दीए जलाने से परिवार की लौ हमेशा बनी रहती है।
- धनतेरस के दिन कभी भी शाम को नहीं सोना चाहिए। संध्याकाल सोने से घर में दरिद्रता आ सकती है।
- धनतेरस के दिन सोने, चांदी या मिट्टी की बनी प्रतिमा की ही पूजा करनी चाहिए। किसी नकली धातु से बनी प्रतिमा का पूजा करना अशुभ माना जाता है।
- धनतेरस के दिन लोग सोना, चांदी से लेकर बर्तन और झाड़ू जैसी चीजें खरीदते हैं, जो शुभ माना जाता है। परंतु इस दिन लोहे की चीज खरीदना अशुभ माना जाता है। इसके अतिरिक्त काली वस्तुओं को भी नहीं खरीदना चाहिए।
- धनतेरस के दिन जितना हो सके, उतना शांत माहौल रखना चाहिए। घर में किसी से भी कलह या मुंह से गलत अपशब्द नहीं निकालना चाहिए। इस दिन मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए घर की स्त्रियों का भी सम्मान करना चाहिए।
- धनतेरस के दिन भूलकर भी किसी को उधार देना नहीं चाहिए। इस दिन कर्जा या उधार से जुड़ा लेनदेन करने से बचना चाहिए।
FAQ
धनतेरस की पूजा में कई प्रकार की सामग्री की जरूरत पड़ती है, जिनमें गंगाजल, चावल, चंदन, लॉन्ग, नारियल, फूल, धूप, दहीशरीफा, तुलसी, सिक्के, काजल, कपूर, हल्दी, शहद, 21 कमल के बीज, पांच सुपारी, पांच प्रकार के मनी पत्थर, 10 ग्राम या उससे अधिक लक्ष्मी-गणेश के सिक्के, अगरबत्ती, चूडी, रोली इत्यादि शामिल हैं।
धनतेरस के दिन भगवान कुबेर और माता लक्ष्मी की पूजा होती है। भगवान कुबेर को सफेद मिठाई अत्यधिक प्रिय है। इसीलिए उन्हें इस दिन खिर या दूध से बनी मिठाई का भोग लगाया जाता है, वही मां लक्ष्मी को भी सफेद मिठाई अर्पित की जाती है।
धनतेरस के दिन घर के ईशान कोने में दीपक प्रज्वलित किया जाता है। ध्यान रहे दीपक को गाय के शुद्ध घी से ही प्रज्वलित करना चाहिए और बत्ती में रुई के स्थान पर लाल रंग के धागे का उपयोग करना चाहिए और दिए को सीधे ही धरती पर ना रखें। चावल की थोड़ी सी ढेर बनाकर उस पर रखना चाहिए।
वैसे तो धनतेरस के दिन सोना, चांदी जैसे धातुओं को खरीदना शुभ माना जाता है। लेकिन काले रंग की चीजे या कपड़े को खरीदना शुभ माना जाता है। इसके अतिरिक्त धातु में लोहे की सामग्री भी खरीदना इस दिन अशुभ माना जाता है।
धनतेरस के दिन मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है और माना जाता है मां लक्ष्मी को गुलाबी रंग बेहद ही प्रिय है। इसीलिए इस दिन गुलाबी वस्त्र धारण करने से मां लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
धनतेरस के दिन तेरह दियो को जलाया जाता है और इन दिनों का काफी महत्व होता है। इन दियो में से पहला दिया परिवार को अप्रत्याशित मौत से बचाने के लिए होता है।
निष्कर्ष
धनतेरस के दिन पूरे भारत में सोने चांदी की खरीदारी होती है और बड़े से बड़े व्यवसाई भी इस दिन मां लक्ष्मी और कुबेर की पूजा करते हैं ताकि उनके ऊपर इनकी कृपा बनी रहे।
हमें उम्मीद है कि आज के इस लेख के जरिए आपको धनतेरस क्यों मनाया जाता है? महत्व और पौराणिक कथा (Dhanteras Kyu Manaya Jata Hai) से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण प्रश्नों का उत्तर मिल गया होगा।
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