Biography of Maharishi Valmiki in Hindi: हमारा भारतवर्ष ऋषि-मुनियों संत महात्माओं एवं महान पुरुषों का देश है। हमारे इस भारत की भूमि पर अनेकों महावीर पराक्रमी एवं महान संतों ने जन्म लिया। इन सभी संतो ने भारत में जन्म लेकर भारत का नाम गौरवान्वित किया है और इन्हीं संत महात्माओं ने भारत को संपूर्ण विश्व भर में चिन्हित किया।
एक समय ऐसा था कि भारत को सोने की चिड़िया और विश्व गुरु इत्यादि नामों से जाना जाता था। अब आप सभी लोगों को भारत की विद्वता तो समझ में आ ही गई होगी तो आइए अब अपना कदम बढ़ाते हैं इस लेख की तरफ। भारत की विविधता के कारण है भारतीय शिक्षा, ज्ञान इत्यादि देश विदेशों में वर्णित है।
भारत में अनेक ऋषि-मुनियों ने जन्म लिया और उन्होंने अनेकों रचनाएं लिखिए परंतु उन सभी रचनाओं में से एक ऐसी रचना है, जो कि भारत के धार्मिक ग्रंथ के रूप में विकसित है।
आप आप सभी लोग समझ गए होंगे कि हम किस ग्रंथ की बात कर रहे हैं। जी हां! आप सभी लोगों ने बिल्कुल सही अनुमान लगाया, वह ग्रंथ कोई अन्य ग्रंथ नहीं बल्कि रामायण है। क्या आप सभी लोग जानते हैं रामायण की रचना किसने की? आप में से बहुत से लोग होंगे, जो इस सवाल का जवाब जानते होंगे, जो लोग नहीं जानते हम उन्हें बता देना चाहते हैं कि रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की है।

आज हम इस महत्वपूर्ण लेख के माध्यम से महर्षि वाल्मीकि के संपूर्ण जीवन परिचय के बारे में विस्तार से जानेंगे। इस लेख में आपको जानने को मिलेगा कि महर्षि वाल्मीकि कौन थे?, वाल्मीकि का जन्म कब और कहां हुआ, वाल्मीकि का जन्म स्थान, महर्षि वाल्मीकि के जीवन से जुड़ी प्रेरणादायक घटनाएं, महर्षि वाल्मीकि रामायण की संक्षिप्त जानकारी, महर्षि वाल्मीकि जयंती का क्या महत्व है? महर्षि वाल्मीकि जयंती कैसे बनाई जाती है? इत्यादि। आइए अब शुरू करते हैं अपना यह महत्वपूर्ण लेख और जानते हैं, महर्षि वाल्मीकि के जीवन परिचय के विषय में।
महर्षि वाल्मीकि का जीवन परिचय | Biography of Maharishi Valmiki in Hindi
महर्षि वाल्मीकि के विषय में संक्षिप्त जानकारी
नाम | महर्षि वाल्मीकि |
वास्तविक नाम | रत्नाकर |
जन्म | आश्विन पूर्णिमा |
पिता | प्रचेता |
माता | ज्ञात नहीं |
पत्नी | ज्ञात नहीं |
पेशा | महाकवि |
प्रसिद्ध रचना | रामायण |
महर्षि वाल्मीकि कौन थे?
महर्षि वाल्मीकि भारतीय इतिहास के ऋषि-मुनियों में सबसे प्रसिद्ध ऋषि हुआ करते थे। महर्षि वाल्मीकि का पालन पोषण भील नामक जाति में हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि महर्षि वाल्मीकि का पालन पोषण भले ही भील नामक जाति में हुआ था। परंतु महर्षि वाल्मीकि भील जाति से संबंध नहीं रखते थे, वास्तव में वाल्मीकि के पिता प्रचेता थे।
महर्षि वाल्मीकि के पिता प्रचेता ब्रह्मा जी के पुत्र थे, ऐसा पुराणों में व्याख्यान देखने को मिलता है। महर्षि वाल्मीकि के जन्म के बाद से उन्हें बचपन में ही एक भीलनी के द्वारा चुरा लिया गया था, जिसके कारण इनका पालन-पोषण भील समाज में ही हुआ और यही कारण है कि महर्षि वाल्मीकि अपनी वास्तविकता पहचानने से पहले एक डाकू हुआ करते थे।
महर्षि वाल्मीकि अपने ज्ञान के बोध होने से पहले तक एक डाकू थे और लोगों को मारना और उनके चीजों को लूट लेना इनका पेशा बन गया था। पुराणों के अनुसार महर्षि ब्रह्मा के आज्ञा अनुसार श्री हरि नारद मुनि ने उन्हें उनके ज्ञान को पहचानने को कहा। परंतु इन्हें कुछ भी याद नहीं आ रहा था, जिसके कारण नारद मुनि ने अपनी चतुराई से इन्हें मारने, पीटने जैसे शब्द से ही भगवान श्री राम का नाम लेने का सुझाव दिया।
नारद मुनि ने महर्षि वाल्मीकि को राम के नाम के स्थान पर मरा शब्द का उच्चारण बार-बार करने को कहा। नारद मुनि की आवाज सुनकर महर्षि वाल्मीकि ने घोर तपस्या करने की ठानी और मरा शब्द के उच्चारण से इन्होंने योग सिद्धि हासिल की।
महर्षि नारद ने इन्हें मरा शब्द का उच्चारण इसलिए करने को कहा क्योंकि मारा शब्द को बार-बार कहने पर राम का नाम सामने आता है। यही कारण है कि महर्षि वाल्मीकि ने अपनी घोर तपस्या को सफल किया और योग सिद्धि हासिल की।
महर्षि वाल्मीकि का जन्म
महर्षि वाल्मीकि बहुत ही पुराने समय में थे। अतः महर्षि वाल्मीकि के जन्म के विषय में जानकारी बताना किसी भी व्यक्ति के बस की बात नहीं थी। यही कारण है कि अब तक महर्षि वाल्मीकि के जन्म के विषय में कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है। हालांकि कुछ ग्रंथों के माध्यम से यह पता चलाता है कि महर्षि वाल्मीकि का जन्म अश्विन मास की पूर्णिमा को हुआ था।
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महर्षि वाल्मीकि के जीवन से जुड़ी प्रेरणादायक घटनाएं
महर्षि वाल्मीकि के बचपन का नाम रत्नाकर था और इनका पालन-पोषण जंगल में ही हुआ था। महर्षि वाल्मीकि ने अपने परिवार का पालन पोषण करने के लिए राहगीरों को अर्थात जंगल के रास्ते से आने जाने वाले लोगों को लूटते थे और यदि उनसे हाथापाई हो जाए तो यह उन्हें मार ही देते थे। महर्षि वाल्मीकि प्रतिदिन अपने इसी घटना को दोहराते हुए हैं और राहगीरों को लूटते थे। ऐसा करके उन्होंने अपने पाप का घड़ा लगभग भर ही लिया था।
कहां जाता है कि 1 दिन उसी जंगल से देवताओं के मुनि नारद गुजर रहे थे। तभी वहां पर रत्नाकर ने उन्हें देख लिया और तुरंत बंदी बना लिया। रत्नाकर ने जब नारद मुनि को बंदी बना लिया तब नारद मुनि ने रत्नाकर से पूछा कि यह पाप क्यों कर रहे हो?, वाल्मीकि ने अर्थात रत्नाकर ने हंसते हुए जवाब दिया “अपने और अपने परिवार के जीवन यापन के लिए मैं यह काम करता हूं।”
रत्नाकर की आवाज सुनने के बाद नारद मुनि ने पुनः पूछा कि क्या जिस परिवार के लिए तुम यह सभी पाप किए जा रहे हो, वह परिवार तुम्हारे पापों के फल को ही वहन करेगा? रत्नाकर ने महर्षि वाल्मीकि का जवाब सुनते हैं, तुरंत पूरे जोश में आ गया और कहा हां क्यों नहीं करेगा, मेरा परिवार मेरे पापों के फल को भी वहन करेगा। मेरा परिवार सदा मेरे साथ रहता है।
देवताओं के ऋषि नारद मुनि ने पुनः रत्नाकर से कहा कि तुम एक बार अपने परिवार वालों से भी तो पूछ लो। यदि वे तुम्हारे पापों के फल को भी वहन करने के लिए कहते हैं तो मैं तुम्हें हंसते-हंसते मेरा सारा धन दे दूंगा।
रत्नाकर तुरंत वहां से गुस्से से निकल गया और उसने अपने सभी परिवार वालों एवं मित्र जनों से यही सवाल पूछा। परंतु उसके किसी भी परिवार वालों ने या फिर उनके मित्रों ने इस बात के लिए हामी नहीं भरी। अपने परिवार वालों ने मित्रों की यह बात सुनकर रत्नाकर को बहुत ही बड़ा दुःख हुआ और वह वापस नारद मुनि के पास गए हैं। नारद मुनि ने पूछा कि क्या तुम्हारे किसी भी परिवार वालों ने इसकी हामी भरी। तो रत्नाकर बोलता है नहीं।
पुराणों के अनुसार महर्षि ब्रह्मा के आज्ञा अनुसार श्री हरि नारद मुनि ने उन्हें उनके ज्ञान को पहचानने को कहा। परंतु इन्हें कुछ भी याद नहीं आ रहा था, जिसके कारण नारद मुनि ने अपनी चतुराई से इन्हें मारने-पीटने जैसे शब्द से ही भगवान श्री राम का नाम लेने का सुझाव दिया। नारद मुनि ने महर्षि वाल्मीकि को राम के नाम के स्थान पर मरा शब्द का उच्चारण बार-बार करने को कहा।
नारद मुनि की आवाज सुनकर महर्षि वाल्मीकि ने घोर तपस्या करने की ठानी और मरा शब्द के उच्चारण से इन्होंने योग सिद्धि हासिल की। महर्षि नारद ने इन्हें मरा शब्द का उच्चारण इसलिए करने को कहा। क्योंकि मारा शब्द को बार बार कहने पर राम का नाम सामने आता है। यही कारण है कि महर्षि वाल्मीकि ने अपनी घोर तपस्या को सफल किया और योग सिद्धि हासिल की।
इसके बाद महर्षि वाल्मीकि ने अपनी तपस्या को पूरा किया और अपनी तपस्या के फलस्वरूप इन्होंने अपना नाम महर्षि वाल्मीकि एवं संस्कृत भाषा में भारत के सबसे सुसज्जित एवं पवित्र ग्रंथ महाभारत की रचना संस्कृत भाषा में पूरी की। इस प्रकार से महर्षि वाल्मीकि ने अपने डाकू जीवन को त्यागा और भारत के महान रचयिता महर्षि वाल्मीकि के रूप में बदल गए।
महर्षि वाल्मीकि को रामायण लिखने की प्रेरणा कैसे मिली थी?
जिस समय महर्षि वाल्मीकि अपने पुराने अवतार अर्थात डाकू के रूप में अपने पापों को आए दिन अंजाम देते जा रहे थे, उसी समय उन्होंने अपने इस जीवन को त्याग करके अपना एक नया रास्ता अपनाने की सोची। परंतु इस नए रास्ते के बारे में उन्हें कुछ भी ज्ञात नहीं था। इसके बाद महर्षि वाल्मीकि ने नारद जी की सहायता से राम नाम का जप करके विशेष प्रसिद्धि हासिल की।
महर्षि वाल्मीकि ने बड़े ही लंबे समय तक राम नाम का जप किया और राम नाम के जब मात्र से ही महर्षि वाल्मीकि ने अपनी अज्ञानता को दूर किया और विशेष सिद्धि हासिल की। ऐसा भी कहा जाता है कि जिस समय महर्षि वाल्मीकि अपनी तपस्या में लीन थे, उस समय इनका शरीर बहुत ही ज्यादा दुर्बल हो गया था और उनके पूरे शरीर पर चीटियां लग गई थी। पुराणों के अनुसार कहा गया है कि यही इनके जीवन में किए गए पापों का भोग था।
महर्षि वाल्मीकि ने अपने कठिन परिश्रम के बाद इनका नाम ब्रह्मदेव के द्वारा महर्षि वाल्मीकि रखा गया। महर्षि वाल्मीकि ने अपनी कठिन साधना के माध्यम से ब्रह्म देव को प्रसन्न कर लिया और ब्रह्मदेव से ज्ञान प्राप्त किए इसके बाद इन्होंने रामायण लिखने का अपना कार्य शुरू किया और बाद में महर्षि वाल्मीकि ने संपूर्ण रामायण (जो कि भारत का सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ है) की रचना की।
महर्षि वाल्मीकि के द्वारा लिखा गया सबसे पहला श्लोक
जिस समय महर्षि वाल्मीकि ने रामायण के रचना को शुरू किया था, उस समय महर्षि वाल्मीकि ने एक बार अपनी तपस्या करने के लिए गंगा नदी पर भी गए थे। जहां पर उन्होंने पास में ही पक्षियों के नर-नारी अर्थात नर पक्षी और मादा पक्षी को प्रेम करते हुए देखा था। तभी वहां पर एक शिकारी आता है और उसने पक्षी की तीन मार कर हत्या कर देता है।
महर्षि वाल्मीकि ने इस दृश्य को देखने के बाद इनके मुख से स्वयं ही एक श्लोक बाहर निकला जो निम्नवत् है:
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम शाश्वति समः।
यतक्रौंचमिथुनादेकम अवधी ही काममोहितम्।।
इस श्लोक का यह अर्थ है कि जिस किसी भी दुष्ट व्यक्ति ने यह आपराधिक कार्य किया है, उसे उसके जीवन में कभी भी सुख नहीं मिलेगा। उस दुष्ट व्यक्ति ने प्रेम में लिप्त पक्षी का वध किया है।
महर्षि वाल्मीकि के द्वारा लिखित रामायण की संक्षिप्त जानकारी
महर्षि वाल्मीकि ने उनके द्वारा रचित रामायण में प्रभु श्री राम और उनके सभी भाइयों के चरित्र चित्रण को दर्शाया है। महर्षि वाल्मीकि ने राम जी के द्वारा सीता माता को अयोध्या से निष्कासित कर देने के बाद उन्होंने अपने आश्रम में इन्हें रखा और उन्हें रक्षा प्रदान की और इसके बाद वाल्मीकि ने ही सीता माता के पुत्र एवं कुश को ज्ञान प्राप्त करवाया।
महर्षि वाल्मीकि ने अपने इस महाकाव्य रामायण की रचना संस्कृत भाषा में की है। इस रचना की प्रेरणा उन्हें भगवान ब्रह्मा जी के द्वारा दी गई थी। महर्षि वाल्मीकि ब्रह्मा जी के निर्देशानुसार श्री हरि विष्णु के अवतार श्री रामचंद्र जी के चरित्र का वर्णन किया है। महर्षि वाल्मीकि अपना में लगभग 23000 श्लोक लिखे है।
वाल्मीकि जयंती कब है 2023
2023 में 28 अक्टूबर वाल्मीकि जयंती मनाई जाएगी। जैसा कि हमने आपको ऊपर बताया महर्षि वाल्मीकि का जन्म आश्विन मास के पूर्णिमा को हुआ था और महर्षि वाल्मीकि ने ही इस संसार को संस्कृत भाषा का बोध कर आया। क्योंकि इन्होंने ही सर्वप्रथम संस्कृत भाषा में श्लोक लिखा था और महर्षि वाल्मीकि के जन्म तिथि को ही हिंदी धर्म के कैलेंडर के अनुसार बाल्मीकि जयंती कहा जाता है।
FAQ
प्रसिद्ध महाकाव्य रामायण के रचयिता थे।
कुछ ग्रंथों के माध्यम से यह पता चला है कि महर्षि वाल्मीकि का जन्म अश्विन मास की पूर्णिमा को हुआ था।
भारत में
डाकू रत्नाकर।
प्रचेता जो कि ब्रह्मा के पुत्र थे।
प्रत्येक वर्ष 31 अक्टूबर को महर्षि वाल्मीकि जयंती मनाई जाती है।
महर्षि वाल्मीकि जी का जन्म भारत में हुआ था।
निष्कर्ष
हम उम्मीद करते हैं कि आप सभी लोगों को हमारे द्वारा लिखा गया यह महत्वपूर्ण लेख वाल्मीकि का जीवन परिचय इन हिंदी (Biography of Maharishi Valmiki in Hindi) अवश्य ही पसंद आया होगा।
यदि आप सभी लोगों को हमारे द्वारा लिखा गया यह महत्वपूर्ण लेख वाकई में पसंद आया हो तो कृपया इसे अवश्य शेयर करें और यदि आपके मन में इस लेख को लेकर किसी भी प्रकार का कोई सवाल या फिर सुझाव है तो कमेंट बॉक्स में हमें अवश्य बताएं।
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