Home > Featured > स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

Biography of Swami Vivekananda in Hindi: भारत सदियों से ही महापुरुषों और विद्वानों की जन्मभूमि और कर्मभूमि रहा है। भारत की इस भूमि पर कई ऐसे संत महात्मा पैदा हुए है, जिन्होंने अपने तप, दर्शन और चिन्तन से भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया का कल्याण हुआ है। जिन्होंने सम्पूर्ण विश्व को भारतीय संस्कृति की, धर्म के नैतिक मूल्य और मूल आधारों का परिचय दिया।

स्वामी विवेकानंद दर्शन, इतिहास, साहित्य और वेद की विद्या के प्रकाण्ड विव्दान थे। इन्होने विश्व में आध्यात्मिक ज्ञान का प्रचार-प्रसार किया। स्वामीजी ने पूरे विश्व में वेदों और उपनिषदों की ताकत को दिखा दिया और यह अहसास भी करवाया की भारत विश्वगुरु है।

स्वामी विवेकानंद का पूरी दुनिया अनुसरण करती है। नरेंद्र मोदी, सुभाष चंद्र बोस, महात्मा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री, वैज्ञानिक निकोला टेस्ला जैसे कई महान लोग इनको अपनी प्रेरणा मानते है।

Biography of Swami Vivekananda in Hindi
Image: Biography of Swami Vivekananda in Hindi

इस लेख में हम अपने तप, चिन्तन और दर्शन से पूरी दुनिया को नतमस्तक करवाने वाले महान महात्मा, युवा संन्यासी, विव्दान स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय जानने वाले है। स्वामी विवेकानंद ने भारतीय संस्कृति की सुगंध पुरे विश्व में इस तरह फैलाई है कि सम्पूर्ण विश्व में आज भी भारत की विशेष पहचान बनी हुई है। स्वामी विवेकानंद को भारतीय वैदिक सनातन संस्कृति की जीवंत प्रतिमूर्ति के रूप में देखा जाता है।

विषय सूची

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय | Biography of Swami Vivekananda in Hindi

वास्तविक नामनरेंद्र दास दत्त
उपनामनरेंद्र
प्रसिद्ध नामस्वामी विवेकानंद
जन्म12 जनवरी 1863
जन्म स्थानकोलकाता
माता का नामभुवनेश्वरी देवी
पिता का नामविश्वनाथ दत्त
गुरु का नामरामकृष्ण परमहंस
प्रसिद्धि का कारणअमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप में हिंदू धर्म की अटूट सिद्धांत का प्रसार
मृत्यु4 जुलाई 1902
मृत्यु स्थानबेलूर मठ, बंगाल
पेशाआध्यात्मिक गुरु

स्वामी विवेकानंद कौन थे?

स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त तथा सन्यास लेने के पश्चात इनका नाम स्वामी विवेकानंद पड़ा। स्वामी विवेकानंद भारत के इतिहास में सबसे प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरुओं में से एक माने जाते हैं। स्वामी विवेकानंद बचपन से ही परमात्मा को पाने की इच्छा करते रहे, जिसके लिए पहले उन्होंने ब्रह्म समाज में हिस्सा लिया, परंतु वहां भी उनके मन को संतोष नहीं मिला।

उनका चरित्र बहुत ही महान था तथा स्वामी विवेकानंद हमारे भारत के 1 मठ में रहने वाले संत थे। उन्होंने अपने छोटे से जीवन काल के कम उम्र में वेद एवं दर्शनशास्त्र का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। स्वामी विवेकानंद बहुत दयालु थे। वह अतिथियों का बहुत ही पालन करते थे, वह उन्हें भोजन करा कर खुद भूखे बाहर ठंड में सो जाया करते थे।

स्वामी विवेकानंद को भारत में नहीं बल्कि पूरे दुनिया में ज्ञान के प्रवर्तक के रूप में माना जाता है। क्योंकि पहले से हमारे भारतवर्ष को दास और अज्ञानी लोगों को रहने वाला देश माना जाता था।

परंतु आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद ने भारत एवं संपूर्ण विश्व को हमारे भारतीय धर्म के अध्यात्मिकता और हिंदू धर्म से परिपूर्ण वेदों के दिव्य दर्शन करवाएं और पूरे विश्व में भारत को लेकर एक मिसाल कायम कर दी। स्वामी विवेकानंद को ना केवल भारत में नहीं बल्कि पूरे विश्व में उनके इस आध्यात्मिकता और हिंदू धर्म, मंतव्य को लोहा बना दिया।

स्वामी विवेकानंद का जन्म कब और कहां हुआ था?

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को एक उच्च कुलीन परिवार में हुआ था। स्वामी विवेकानंद ने भारत के अटूट प्रगति देने वाले गुरुओं के शहर कोलकाता में जन्म लिया था। भारतीय इतिहास में ज्यादातर मठाधीश कोलकाता शहर से ही आए थे।

वर्ष 1884 में स्वामी विवेकानंद के पिता की मृत्यु हो गई, जिसके कारण से परिवार का पूरा भार उनके कंधों पर आ गया। जिसके बाद से इनकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई थी।

स्वामी विवेकानंद के माता-पिता का नाम

स्वामी विवेकानंद की माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था, जो एक गृहणी थी तथा स्वामी विवेकानंद के पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था, जो कि पेशे से एक हाईकोर्ट में वकील थे। माता-पिता दोनों से स्वामी विवेकानंद को बहुत प्रेम मिला। इनके पिता की मृत्यु वर्ष 1884 तथा माता की मृत्यु वर्ष 1911 में हुई थी।

Biography of Swami Vivekananda in Hindi
Image: Biography of Swami Vivekananda in Hindi

स्वामी विवेकानंद का प्रारंभिक जीवन

स्वामी विवेकानंद जब बहुत ही कम उम्र के थे, उस समय यह बहुत ही शरारती हुआ करते थे। स्वामी विवेकानंद पढ़ाई लिखाई में तो अच्छे थे ही, इसके साथ-साथ खेलकूद में भी काफी अच्छे थे। स्वामी विवेकानंद ने वाद्य यंत्रों की को बचाने और संगीत में शिक्षा भी प्राप्त की थी।

अपने छोटी ही उम्र में इन सभी कार्यों के उपरांत ध्यान (मेडिटेशन) भी किया करते थे। स्वामी विवेकानंद अपने बाल्यकाल से ही ईश्वर के अस्तित्व (वास्तव में ईश्वर है या नहीं) के संबंध में और अनेकों प्रकार के रीति-रिवाजों जातिवाद इत्यादि के विषय में सदैव किसी ना किसी ज्ञानी व्यक्ति से प्रश्न भी किया करते थे और उनके प्रश्नों का सही उत्तर जानने के लिए जिज्ञासु थे।

स्वामी विवेकानंद अपने बाल्यकाल में सन्यासियों के प्रति काफी श्रद्धा प्रकट करते थे। जब कभी भी स्वामी विवेकानंद के पास कोई ऐसी चीज होती थी, जो कि किसी भी व्यक्ति के लिए जरूरी हो और वह व्यक्ति जब उनसे उस चीज की मांग करता था तो वह बिना किसी प्रश्न के अपनी वह चीज उस व्यक्ति को दे दिया करते थे। स्वामी विवेकानंद ने सन्यासी और फकीरों के द्वारा मांगे जाने पर कई बार अपनी सबसे सबसे अधिक लगाव वाली चीजों को भी दान कर दिया था।

इसके साथ-साथ स्वामी विवेकानंद जितने ज्यादा भोले स्वभाव के थे, उतने ही ज्यादा शरारती स्वभाव के भी थे। एक बार स्वामी विवेकानंद की माता ने उनके बारे में एक बात कही थी कि “हे भगवान शिव मैंने आपसे सदैव एक बालक देने की प्रार्थना करती रहती थी और आपने उसे पूरा भी किया, परंतु उसकी जगह एक भूत को ही भेज दिया।” आप इससे यह अंदाजा लगा सकते हैं कि स्वामी विवेकानंद कितने ज्यादा शरारती रहे होंगे।

स्वामी विवेकानंद के गुरु कौन थे?

हमने ऊपर आपको बताया था कि स्वामी विवेकानंद परमात्मा की खोज में ब्रह्म समाज से भी जुड़े थे। उसके बाद वहां उन्हें देवेंद्र नाथ टैगोर से मिलने का मौका मिला और देवेंद्र नाथ टैगोर से मिलने के बाद स्वामी विवेकानंद ने उनसे एक प्रश्न किया “क्या आपने कभी इश्वर को देखा है।”

तो इस प्रश्न को सुनकर देवेंद्र नाथ टैगोर ने मुस्कुराते हुए स्वामी विवेकानंद को एक उत्तर दिया कि “बेटा तुम्हारी नजर एक योगी है।” लेकिन स्वामी विवेकानंद को इस उत्तर को पाकर भी संतुष्टि नहीं मिली, जिसके बाद भी उन्होंने परमात्मा की खोज को जारी रखा।

इसके पश्चात स्वामी विवेकानंद अध्ययन के दौरान वर्ष 1801 काशी में दक्षिणेश्वर में चले गए थे। यहां पर स्वामी विवेकानंद की भेंट दक्षिणेश्वर में रहने वाले रामकृष्ण परमहंस से हुई। स्वामी विवेकानंद ने वही प्रश्न रामकृष्ण परमहंस से किया, जो प्रश्न व सभी से किया करते थे कि “क्या आपने कभी ईश्वर को देखा है?”

इसने प्रश्न को सुनने के बाद रामकृष्ण परमहंस ने स्वामी विवेकानंद को बड़े ही प्रेम भाव से एक उत्तर दिया कि “हां पुत्र मैंने ईश्वर को देखा है, मैंने ईश्वर को उसी प्रकार देखा है जैसा कि मैं तुम्हें स्पष्ट रूप से देख सकता हूं। बस फर्क इतना है कि मैं जितनी गहराई से देख सकता हूं, उस गहराई से तुम भी देखोगे तो तुम्हें भी ईश्वर दिख जाएंगे।”

इस उत्तर को सुनकर स्वामी विवेकानंद बहुत प्रसन्न हुए। रामकृष्ण परमहंस ही थे, जिन्होंने स्वामी विवेकानंद के इस प्रश्न का उत्तर दिया। स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के इस उत्तर को सुनकर न केवल अपने प्रश्न का उत्तर प्राप्त किया बल्कि साथ ही साथ इस उत्तर से सच्चाई को भी महसूस कर रहे थे।

रामकृष्ण परमहंस वही प्रथम व्यक्ति थे, जिनसे स्वामी विवेकानंद प्रभावित हुए थे। उसके बाद से स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण परमहंस के साथ बहुत मुकाबले किये है। मुकाबलों का अर्थ यह है कि उन्होंने रामकृष्ण परमहंस से बहुत से प्रश्न का उत्तर पूछा और रामकृष्ण परमहंस उन सभी प्रश्नों के उत्तर सही-सही दे देते थे, जिसको सुनकर स्वामी विवेकानंद अपने आप को बहुत शांत महसूस करते थे। जिसके बाद से स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण परमहंस को अपना गुरु बना लिया।

रामकृष्ण परमहंस कौन थे?

रामकृष्ण परमहंस एक विद्वान और देवी देवताओं में विश्वास करने वाले व्यक्ति थे। रामकृष्ण परमहंस दक्षिण उत्तर में स्थित माता काली के मंदिर में पुजारी हुआ करते थे। रामकृष्ण परमहंस बहुत बड़े विद्वान तो नहीं थे, परंतु काली माता के परम भक्त थे। रामकृष्ण परमहंस अपने सटीक उत्तर और दयापूर्ण बातों से सबका मन मोहित कर लेते थे।

स्वामी विवेकानंद को प्राप्त शिक्षा

जिसमें स्वामी विवेकानंद मात्र 8 वर्ष के थे, उसी समय उन्होंने ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपॉलिटन इंस्टीट्यूशन में अपना एडमिशन करा लिया। स्वामी विवेकानंद ने अपनी पढ़ाई को 1877 में पूर्ण कर लिया था। स्वामी विवेकानंद 1877 से लेकर 1879 तक रायपुर में अपने संपूर्ण परिवार के साथ निवास किया। इसके बाद इन्होंने पुनः कोलकाता लौटने की ठानी और 1879 में ही कोलकाता लौट गए।

Biography of Swami Vivekananda in Hindi
Image: Biography of Swami Vivekananda in Hindi

स्वामी विवेकानंद कोलकाता प्रेसिडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया। मात्र 1 वर्ष बाद उन्होंने कोलकाता के स्कॉटिश चर्च कॉलेज में दाखिला लिया और फिर फिलॉसफी पढ़ने की ठानी। स्कॉटिश चर्च कॉलेज में इन्होंने पश्चिमी फिलॉसफी, यूरोपियन देशों के इतिहास और पश्चिमी तर्क वितर्क के बारे में ज्ञान हासिल किया।

इन सभी के अलावा स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस से धर्म ग्रंथ, वेद, उपनिषद, महाभारत, भगवत गीता, पुराण और रामायण जैसे महान ग्रंथों का भी अध्ययन किया।

स्वामी विवेकानंद का मठवाड़ी बनने का निर्णय

जैसा कि हम सभी जानते हैं, स्वामी विवेकानंद उनकी रूचि बचपन से ही मठवाडी और सन्यासियों की तरफ ज्यादा थी। इसके बाद वह गुरु रामकृष्ण परमहंस से मठवाड़ी बनने की शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। गुरु रामकृष्ण परमहंस को गले का कैंसर था, जिसके कारण वर्ष 1886 में रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु हो गई। रामकृष्ण परमहंस मृत्यु को प्राप्त करने से पहले अपने उत्तराधिकारी के रूप में स्वामी विवेकानंद को चुना।

स्वामी विवेकानंद ने एक अच्छे पुत्र की तरह रामकृष्ण परमहंस के शव का अंतिम संस्कार भी किया। संपूर्ण प्रक्रिया के पश्चात रामकृष्ण परमहंस के द्वारा चयनित किए गए उत्तराधिकारी के रूप में स्वामी विवेकानंद को उनके अन्य शिष्यों के द्वारा कुछ त्याग इत्यादि करके मठाधीश बनने की शपथ दिलाई गई।

स्वामी विवेकानंद को मठाधीश जबरदस्ती नहीं बल्कि उनके मन से बनाया गया। शपथ ग्रहण करने के बाद स्वामी विवेकानंद और उनके शिष्य सभी लोग बरणगौर में निवास करने लगे।

Read Also

स्वामी विवेकानंद के द्वारा किया गया विश्व धर्म सम्मेलन

जैसा कि आप सभी जानते हैं, स्वामी विवेकानंद ने कई विश्व सम्मेलनों में हिस्सा लिया और भारतीय संस्कृति को बढ़ावा दिया। इसी तरह सन 18 से 93 ईसवी में स्वामी विवेकानंद अमेरिका में स्थित शिकागो शहर पहुंच गए। अमेरिका के शिकागो शहर में संपूर्ण विश्व के धर्मो का सम्मेलन आयोजित किया गया था। स्वामी विवेकानंद ने इस सम्मेलन में अपने स्थान पर विराजमान हो गए।

इस विश्व धर्म सम्मेलन में सभी धर्मों की पुस्तके रखी गई थी, जहां पर हमारे भारतवर्ष की एक पुस्तक रखी गई थी, यह पुस्तक श्रीमद्भगवद्गीता थी। हमारी भारतीय पुस्तक श्रीमद्भगवद्गीता का कुछ लोग मजाक बना रहे थे। ये लोग काफी समय से हमारी भारतीय संस्कृति का मजाक बना रहे थे, स्वामी विवेकानंद काफी क्रोधित है, परंतु शांत स्वभाव धारण करने के कारण वे चुप थे।

सभी लोगों के पश्चात जब स्वामी विवेकानंद की बारी आई तो इन्होंने अपने भाषण की शुरुआत में एक ऐसा वाक्य कहा, जिससे कि पूरा का पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। आइए जानते हैं कि स्वामी विवेकानंद ने शुरुआत में ऐसा क्या कहा था?

स्वामी विवेकानंद ने अपने भाषण की शुरुआत में कहा था कि “मेरे सभी अमेरिकी भाइयों एवं बहनों”। हमें एक धर्म लोगों की सम्मान और दूसरे धर्मों का सम्मान करना सिखाती है, ऐसा स्वामी विवेकानंद ने मात्र इन्हीं कुछ शब्दों के माध्यम से व्यक्त कर दिया। स्वामी विवेकानंद ने हमारे धार्मिक पुस्तक श्रीमद्भगवद्गीता को सभी लोगों के मध्य एक लौह बना दिया, जिसे हटाना अब किसी के बस में नहीं है।

विवेकानंद का शिकागो में दिया गया विश्व प्रसिद्ध भाषण

स्वामी विवेकानंद के द्वारा कहे गए कुछ अनमोल वचन

  • स्वामी विवेकानंद का सबसे अनमोल वचन यह है कि उठो, जागो और तब तक रुको नहीं जब तक तुम अपने ध्येय की प्राप्ति ना कर लो।
  • स्वामी विवेकानंद ने कवि सम्मेलन में ऐसा कहा था कि खुद को समझाएं, दूसरों को समझाएं सोई हुई आत्मा को जगाए और देखिए यह कैसे जागृत होती हैं। जब सोई हुई आत्मा जागृत हो जाती है, तो देखिए किस प्रकार की ताकत, उन्नति, अच्छाई का बोध आता है।
  • यदि किसी भी व्यक्ति को हिंदू धर्म के 33 करोड़ देवी देवताओं पर विश्वास है, परंतु खुद पर विश्वास है ही नहीं तो आप मुक्ति नहीं प्राप्त कर सकते हैं। मुक्ति प्राप्त करने के लिए खुद पर भरोसा रखें, हमें खुद के भरोसे की ही आवश्यकता है।
  • सफलता के तीन आवश्यक अंग होते हैं शुद्धता, दृढ़ता और धैर्य परंतु इन सभी धर्मों से बढ़कर जो सबसे बड़ा सत्य है वह प्रेम है।
  • हम अपने बल के कारण अपने संपूर्ण जीवन काल में ज्यादा से ज्यादा प्राप्त करने की चेष्टा करते हैं, परंतु यही हमारा सबसे बड़ा पाप होता है और हमेशा करके स्वयं के दुख को आमंत्रित कर लेते हैं।

स्वामी विवेकानंद ने इन सभी वाक्यों के अलावा भी हजारों लाखों वाक्य कहे थे, परंतु उन सभी में से ऊपर कुछ महत्वपूर्ण और प्रेरणादाई वाक्यों को हमने प्रस्तुत किया है। यदि आप इन बातों पर अमल करते हैं तो आप भी प्रसिद्धि का मार्ग बड़ी ही आसानी से खोज सकते हैं।

स्वामी विवेकानंद के प्रेरणादायक सुविचार पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु कब हुई थी?

4 जुलाई 1920 को वह घर में ही जल्दी उठ गए और वहां से बेलूर मठ चले गए, अपने अंतिम घड़ियों में भी स्वामी विवेकानंद ने अपने ध्यान लगाने की प्रक्रिया को नहीं बदला। उन्होंने बेलूर जाकर बेलूर मठ में भी लगभग 3 घंटों तक एकांतर ध्यान किया और ध्यान करने के पश्चात स्वामी विवेकानंद ने यजुर्वेद और संस्कृत व्याकरण एवं योग का व्याख्या अपने शिष्यों के सामने किया ताकि उनको भी यजुर्वेद संस्कृत व्याकरण और योग का ज्ञान हो जाए।

जब उन्होंने अपने शिष्यों को यजुर्वेद संस्कृत व्याकरण और योग का ज्ञान करा दिया तो वह उसके बाद गंगा जी तट पर स्नान करने के लिए गए और स्नान करने के पश्चात शाम को 7:00 बजे अपने कक्ष में विश्राम करने के लिए चले गए और स्वामी विवेकानंद अपने कक्ष में एकांतर में ध्यान करने लगे और ध्यान करने के पश्चात लगभग 9:10 पर महान आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद ने अपने प्राणों को अपने शरीर से त्याग दिया।

स्वामी विवेकानंद के शिष्यों के कहने के अनुसार उन्होंने महासमाधि धारण की। महासमाधि एक ऐसी समाधि होती है, जिसने आत्मा अपने शरीर को त्याग कर ध्यान में लुप्त रहती है। ऐसी समाधि लेना हर किसी के बस की बात नहीं होती है। ऐसा केवल वही कर सकते हैं, जो ध्यान लगाने में बिल्कुल लीन रहते हो और स्वामी विवेकानंद का अंतिम संस्कार गंगा नदी के तट पर उनके शिष्यों ने किया था।

स्वामी विवेकानंद से संबंधित प्रश्न उत्तर

स्वामी विवेकानंद कौन थे?

स्वामी विवेकानंद दर्शन, इतिहास, साहित्य और वेद की विद्या के प्रकाण्ड विव्दान थे। इन्होने विश्व में आध्यात्मिक ज्ञान का प्रचार-प्रसार किया।

स्वामी विवेकानंद के माता पिता का नाम क्या है?

भुवनेश्वरी देवी और विश्वनाथ दत्त।

स्वामी विवेकानंद के गुरु कौन थे?

रामकृष्ण परमहंस।

स्वामी विवेकानंद का जन्म कहां हुआ?

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में एक उच्च कुलीन परिवार में हुआ था।

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु कब हुई थी?

4 जुलाई 1902

स्वामी विवेकानंद का अंतिम संस्कार कहां किया गया था?

गंगा नदी के तट पर।

निष्कर्ष

हमें उम्मीद है कि आपको स्वामी विवेकानंद कि यह प्रेरणा दाई और ज्ञानवर्धक बायोग्राफी आपको अवश्य पसंद आई होगी। यदि आपको यह स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय (Biography of Swami Vivekananda in Hindi) पसंद आया हो तो कृपया इसे अपने मित्रों और सहपाठियों के साथ अवश्य साझा करें। यदि आपके मन में किसी भी प्रकार का सवाल या फिर सुझाव हो तो कमेंट बॉक्स में अवश्य बताएं।

Read Also

Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

Related Posts

Comment (1)

  1. लेखक महोदय … सबसे पहले तो इतने महान व्यक्तित्व का विस्तृत जीवन परिचय अपनी मातृभाषा हिंदी में अपने पाठको के सम्मुख रखने के लिए आप बधाई के पात्र है .. इसके साथ – साथ सबसे अच्छी और उपयोगी बात है , लेख के अंत में प्रश्न और उत्तरों की श्रृंखला .. निसंदेह आपके प्रयास सराहनीय और अनुकरणीय है .. आशा है की आगे भी आप इसी तरह से भारत के महान व्यक्तित्वों से अपने पाठकों का परिचय करवाते रहेंगे .. और नई पीढ़ी को एक सकारात्मक सन्देश देते रहेंगे ..
    भविष्य के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं ..
    धन्यवाद

    Reply

Leave a Comment