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गुरु नानक देव जी का जीवन परिचय

सिख धर्म के संस्थापक और पहले गुरु गुरुनानक देव एक धार्मिक नवप्रवर्तक माने जाते हैं। उन्होंने दक्षिण एशिया और मध्य पूर्व में यात्रा करके अपने आध्यात्मिक ज्ञान और शिक्षाओं को फैलाया।

गुरु नानक ने मठवासी का विरोध करते हुए ईमानदार गृहस्थ जीवन बिताते हुए ईश्वर की आराधना करने के लिए अपने अनुयायियों को प्रेरित किया। सिख धर्म के पवित्र पाठ “गुरु ग्रंथ साहिब” में उनके शिक्षाओं को 974 भजनों के रूप में संग्रहित किया गया है।

Image: Biography of Guru Nanak in Hindi

हर साल कार्तिक माह के पूर्णिमा तिथि को गुरु नानक जयंती यानी कि गुरुपूरब मनाया जाता है। इस उपलक्ष में इस लेख में गुरु नानक जी का जीवन परिचय लेकर आए हैं ताकि आप उनके जीवन और आध्यात्मिक ज्ञान से परिचित हो सके।

गुरु नानक देव जी का जीवन परिचय (Guru Nanak ji ka Jivan Parichay)

नामगुरु नानक
जन्म और जन्मस्थान15 अप्रैल 1470, तलवंडी नामक गांव में
मातातृप्ता देवी
पितामेहता कालूम
पत्नीसुलक्खनी
बच्चेलक्ष्मी दास और श्री चंद
शिष्यलहना, मरदाना, बाला और रामदास
उत्तराधिकारीलहना (गुरु अंगद)
मृत्यु22 सितम्बर 1539, करतारपुर

गुरु नानक देव का प्रारंभिक जीवन

सिखों के प्रथम गुरु गुरुनानक देव का जन्म 15 अप्रैल 1470 को रावि नदी के किनारे तलवंडी नामक गांव में हुआ था, जो कि वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित है और इसे ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है।

गुरु नानक देव खत्री कुल के थे। इनके जन्म तिथि को हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन गुरुपुरब के तौर पर मनाया जाता है। गुरु नानक देव के पिताजी का नाम मेहता कालू और माता का नाम तृप्ता देवी था। इनकी एक बड़ी बहन भी थी, जिनका नाम नानकी था।

गुरुनानक देव की शिक्षा

5 वर्ष की अवस्था में गुरु नानक के पिताजी ने इन्हें हिंदी भाषा और वैदिक साहित्य का ज्ञान प्राप्त करने के लिए पंडित गोपाल दास पांडे के पास भेजा। गुरु नानक जी बचपन से ही चंचल कुशाग्र बुद्धि के थे, जिससे पंडित गोपाल दास जी बहुत प्रसन्न थे।

एक बार जब गुरु नानकदेव जी गोपाल दास पांडे से शिक्षा ग्रहण कर रहे थे तब गोपाल दास पांडे जी इन्हें “ओम” शब्द का उच्चारण करवा रहे थे। गुरु नानक जी ने उनसे “ओम” शब्द का अर्थ पूछा।

गोपाल दास जी ने कहा कि ओम सर्व रक्षक परमात्मा का नाम है तब गोपाल नानक जी ने कहा कि उनकी माता ने तो उन्हें परमात्मा का नाम “सत करतार” बताया है। तब पंडित जी ने बताया कि परमात्मा के अनेकों नाम है।

गोपाल दास पांडे से शिक्षा पूरी होने के बाद नानक जी के पिताजी ने इन्हें फारसी और उर्दू भाषा का ज्ञान प्राप्त करने के लिए कुतुबुद्दीन मौलवी के पास भेज दिया।

कुतुबुद्दीन मौलवी गुरु नानक जी के हाजीर जवाबी से काफी प्रसन्न थे, जिसके बाद उन्होंने इनके पिता से कहा कि तेरा बेटा खुदा का रूप है। मैं इसे क्या पढ़ाऊंगा, इसे तो पहले से ही सारी चीजों का ज्ञान है।

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गुरु नानक देव जी का विवाह

गुरु नानक देव जी का विवाह 1487 में गुरदासपुर जिले के अंतर्गत लाखौकी नामक स्थान के रहने वाले मूला की कन्या जिसका नाम सुलक्खनी था, उससे हुआ।

शादी के पश्चात 32 वर्ष की अवस्था में इन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसका नाम श्रीचंद था। 4 वर्ष के बाद उनके दूसरे पुत्र का जन्म हुआ, जिनका नाम लखमीदास था।

गुरु नानक ने जनेहू संस्कार का किया विरोध

हिंदू धर्म में जनेऊ धारण के कार्यक्रम का रिवाज है, जिसे यज्ञोपवीत संस्कार कहा जाता है। इसे लेकर गुरु नानक जी की एक बहुत ही रोचक कहानी है।

जब गुरु नानक जी का जनेहू करने का कार्यक्रम आयोजित हुआ तो उनके पिताजी ने गांव के कई लोग और रिश्तेदारों को बुलाया। जब पंडित जी उन्हें जनेहू पहनाने लगे तब गुरु नानक जी ने जनेऊ पहनने से साफ इनकार कर दिया।

गुरु नानक जी ने कहा कि जनेहू का धारण मन पवित्र करने के लिए किया जाता है लेकिन इस धागे को धारण करके मन पवित्र नहीं हो सकता। यह धागा तो एक समय के बाद कच्चा होकर टूट जाएगा।

इंसान का मन पवित्र अच्छे आचरण से होता है। केवल यही नहीं गुरु नानक देव जी ने हिंदू धर्म की अन्य कई प्रचलित कुर्तियों का भी विरोध किया।

गुरु नानक जी एक साधु बनकर, संन्यास लेकर भगवान का ध्यान लगाने में भरोसा नहीं करते थे। उनका मानना था कि इंसान एक ईमानदार गृहस्थ जीवन जी कर भी आध्यात्मिक जीवन को अपना सकता है।

गुरु नानक की मृत्यु

गुरु नानक जी अपने आध्यात्मिक ज्ञान के कारण हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के बीच बेहद लोकप्रिय हो गए थे। अपने जीवन के अंतिम समय में वे करतारपुर नामक नगर बसा कर वहां पर एक धर्मशाला बनाकर रहने लगे। वहां पर दोनों समुदाय के अनुआयी उनसे शिक्षा ग्रहण करते, ज्ञान प्राप्त करते।

इसी स्थान पर 22 सितम्बर 1539 के दिन इन्होंने अपना नश्वर शरीर त्याग दिया और इस तरह एक दिव्य ज्योति पृथ्वी ग्रह की यात्रा पूरी करके परम ज्योति में विलीन हो गया। आज भी सिख धर्म में गुरु नानक देव जी की मृत्यु को “ज्योति जोत” के रूप में वर्णित किया जाता है।

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गुरु नानक देव जी की समाधि और कब्र दोनों होने का कारण

गुरु नानक जी का मृत्यु स्थल करतारपुर गुरुद्वारा साहिब में उनकी समाधि और कब्र दोनों ही मौजूद है। ऐसा क्यों है इसके पीछे की कहानी यह है कि गुरु नानक देव जी की जब मृत्यु हो गई तब उनके पार्शिविक शरीर के अंतिम संस्कार को लेकर हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के बीच विवाद खड़ा हो गया।

हिंदू चाहते थे कि उनके शव का वैदिक रीति से अंतिम संस्कार हो, वहीं मुस्लिम लोग का मानना था कि गुरु नानक जी पहुंचे हुए फकीर थे। उनका शरीर मुसलमान रीति के हिसाब से दफनाया जाना चाहिए।

तब एक फकीर ने दोनों समुदायों के सामने एक तजवीज पेश कि एक समुदाय गुरु नानक जी के शव के दाएं ओर और दूसरा समुदाय उनके शव के बांई ओर फूल के गुच्छे रख दें।

दूसरे दिन जिनका फूल तरो ताजा रहेगा, उन्हें अपने धर्म के रीति के अनुसार उनके शव का अंतिम संस्कार कर सकता है। दोनों समुदायों ने ऐसा ही किया और फिर उनके शव को चादर से ढक दिया।

दूसरे दिन जब उनके शव से चादर उठाया गया तो गुरु नानक जी का शव गायब था और दोनों समुदायों के द्वारा रखे गए फूल के गुच्छे एक समान रूप से ताजे थे।

इसके बाद हिंदू समुदाय के अनुयायियों ने गुरु नानक देव जी पर चढ़ाए गए अपने फूलों को सनातन वैदिक रीति से मुखाग्नि कर दिए। वहीं मुस्लिम समुदाय के अनुयायियों ने उन पर चढ़ाए गए फूलों को दफना दिया। इस तरीके से करतारपुर में गुरु नानक जी की समाधि और कब्र दोनों का निर्माण हो गया।

गुरु नानक देव जी के शिष्य

गुरु नानक देव जी के चार प्रमुख शिष्य थे, जिनके साथ गुरु नानक जी ने अपने सभी उदासियों को पूरा किया था। वे हमेशा गुरु नानक देव की सेवा करते थे। उनकी साथ रहते हुए उनसे शिक्षा ग्रहण करते थे। उन चार शिष्यों का नाम था मरदाना, लहना , रामदास और बाला।

लहना गुरु नानक जी के प्रसिद्ध शिष्य थे। लहना माता रानी ज्वाला देवी की परम भक्त थे। लहना ने गुरु नानक देव जी के एक अनुवाई भाई से गुरु नानक देव जी के शबद सुने थे और उन शबद से वह इतना प्रभावित हुए कि गुरु नानक देव जी से मिलने आ पहुंचे।

उनके दर्शन पाकर धन्य हो गए और सदा के लिए उनके साथ रहने लगे। लहना ही गुरु नानक देव जी के मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी बने और आगे वे गुरु अंगद के नाम से जाने गए।

मरदाना एक मुस्लिम कवि थे। 1499 में गुरु नानक जी की मरदाना के साथ मित्रता हुई थी। उसके बाद मरदाना तलवंडी से आकर गुरु नानक जी के सेवक बन गए और अंत समय तक उनके साथ रहे। गुरु नानक जी के प्रमुख चार उदासियों में मरदाना ने उनके साथ यात्रा की थी।

गुरु जी के 28 साल में लगभग दो महाद्वीपों की यात्रा मरदाना ने उनके साथ की थी। तकरीबन 60 से भी ज्यादा प्रमुख शहरों का भ्रमण इन्होंने किया था।

यहां तक कि गुरु नानक जी ने जब मक्का की यात्रा की उस समय भी मरदाना उनके साथ थे। गुरु नानक देव जी जब अपने पद गाते थे तब मरदाना रवाब बजाय करते थे।

गुरु नानक देव जी का उत्तराधिकारी

गुरु नानक देव जी के दो पुत्र थे, उसके बावजूद उन्होंने अपने शिष्य लाना को अपना उत्तराधिकारी बनाया। इसका कारण है कि गुरु नानक देव जी समय-समय पर अपने चारों शिष्य और अपने दोनों बेटों का इम्तिहान लेते रहते थे। उनके लगभग सभी इम्तिहान में लाना सफल हुए, जिसके कारण लहना को उत्तराधिकारी बनाया।

कहते हैं एक बार गुरु नानक देव जी ने इन सबका इम्तिहान लेने के लिए अपने कटोरा को एक गंदे तालाब में जानबूझकर फेंक दिया और उन्हें कहा कि भूल से कटोरा तालाब में गिर गया है।

गुरु नानक देव जी ने अपने चारों शिष्य और दोनों पुत्रों को एक-एक करके उस कटोरा को लाने के लिए आवाह्न किया। लेकिन, एक-एक करके उनके सभी शिष्य और दोनों बेटो का जमात वहां से गायब हो गया। लेकिन केवल लहना ही वहां खड़े रहे, जो उस गंदे तालाब में उतर गए और कटोरा लेकर बाहर निकले।

ऐसा ही एक किस्सा था पेड़ से फल और मिठाई गिरने का। एक बार लंगर चल रहा था। लंगर खत्म होने के बाद कुछ और भक्त खाने के लिए आ पहुंचे। लेकिन, भोजन समाप्त हो चुका था।

तब गुरु नानक देव जी ने अपने सभी शिष्यों को सामने वाले पेड़ पर चढ़कर डाली हिलाने के लिए कहा, जिससे कुछ फल-मिठाई नीचे गिरेंगे। उसे एकत्रित करके इन भूखे भक्तों को खिला दें।

उनकी यह बात सुनकर उनके शिष्य हंसने लगे और वह वहां से चल गए। लेकिन केवल लहना ही थे, जो उस पेड़ पर चढ़े और अपने गुरु आज्ञा के अनुसार पेड़ की डाली को हिलाने लगे।

फिर वही हुआ गुरु नानक देव जी के कहे अनुसार उस पेड़ से फल और मिठाई दोनों ही गिरे, जिसे एकत्रित करके उन्होंने उन भूखे भक्तों को दे दिया।

इन दोनों ही इम्तिहानो से लहना ने साबित कर दिया कि गुरु आज्ञा से बढ़कर कुछ नहीं।

गुरु नानक के द्वारा लंगर की शुरुआत

आज हम जब भी किसी भी गुरुद्वारे में जाते हैं, वहां हर दिन श्रद्धालुओं को सैकड़ो लोगों को भोजन खिलाते हुए देखते हैं। इसे लंगर कहा जाता है और इस परंपरा की शुरुआत गुरु नानक देव जी ने ही की थी।

कहा जाता है कि गुरु नानक देव जी को एक बार इनके पिता ने कुछ पैसे दिए थे ताकि यह व्यापार कर सके, बाजार जाकर कुछ सौदा करके लाभ कमा सके। लेकिन रास्ते में इन्हें कुछ गरीब भूखे भिखारी दिखे।

गुरु नानक देव जी ने इन पैसों से उन भूखे भिखारी को खाना खिला दिया और कुछ कंबल भी बांटे। जब ये घर वापस आए तो इनके पिताजी इनकी हरकत से काफी गुस्सा हुए। तब गुरु नानक देव जी ने कहा कि असली लाभ तो गरीब दुखियों की सेवा करने में है।

इस तरह गुरु नानक देव जी ने लंगर की शुरुआत की, जिसके बाद बाकी के और भी 9 गुरुओं ने इस परंपरा को बनाए रखा। कहा जाता है कि बादशाह अकबर भी लंगर से काफी प्रभावित हुआ था। यहां तक एक बार वे खुद लंगर में खाने के लिए आ पहुंचा।

FAQ

गुरु नानक देव जी का असली नाम क्या था?

गुरु नानक का वास्तविक नाम नानक ही था और उनका उपनाम बाबा नानक था। उनके अनुआयी उन्हें कई नामो से सम्बोधित करते थे। जैसे नानक शाह, नानक देव जी, बाबा नानक आदि।

गुरु नानक कौन से धर्म के थे?

गुरु नानक देव जी ने अपने आध्यात्मिक ज्ञान से एक अलग धर्म की स्थापना की। ये सिख धर्म के प्रवर्तक थे।

गुरु नानक देव जी की भाषा क्या थी?

गुरु नानक देव जी ने देव भाषा संस्कृत को अस्वीकार करते हुए लोक भाषा पंजाबी में अपने शिक्षाओं को फैलाया।

गुरु नानक देव जी का नारा क्या था ?

गुरु नानक देव जी ने ओंकारा का नारा दिया था, जिसका अर्थ है ईश्वर एक है, इसी का नाम सच है, उन्होंने ही सबको बनाया है।

निष्कर्ष

इस लेख में आपने सिख धर्म के प्रवर्तक और प्रथम गुरु गुरु नानक देव का जीवन परिचय (Guru Nanak ji ka Jivan Parichay) के बारे में जाना।

गुरु नानक देव जी के द्वारा दी गई शिक्षा आज भी न केवल सिख धर्म के लोग बल्कि अन्य धर्म के लोगो को भी आध्यात्मिक जीवन के लिए प्रेरित करती है।

हमें उम्मीद है कि यह लेख आपके लिए जानकारी पूर्ण रहा होगा। इस लेख को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए अन्य लोगों के साथ भी जरूर शेयर करें।

Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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