Hanuman Jayanti Kyu Manaya Jata Hai: हनुमान जयंती हिंदुओं का एक पवित्र त्यौहार है, जिसे भगवान हनुमान के जन्म के अवसर पर मनाया जाता है। हनुमान जयंती को देशभर में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन बड़ी-बड़ी झांकियां भी निकाली जाती है, कुछ लोग हनुमान का व्रत भी रखते हैं।
यह साल में दो बार मनाई जाती है। हनुमान जयंती के दिन लोगों में काफी उत्साह और जोश देखने को मिलता है। हालांकि आज का यह लेख हम उन लोगों के लिए लेकर आए हैं, जिन्हें हनुमान जयंती के बारे में नहीं पता।

आज के लेख में हम आपको बताएंगे कि हनुमान जयंती क्यों मनाया जाता है, हनुमान जयंती का क्या महत्व है और भगवान हनुमान के जन्म की कथा के बारे में भी बताएंगे। तो लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।
हनुमान जयंती कब और क्यों मनायी जाती है? | Hanuman Jayanti Kyu Manaya Jata Hai
हनुमान जयंती कब और क्यों मनायी जाती है?
हनुमान जयंती भगवान हनुमान के जन्म दिवस के रूप में मनाई जाती है। हिंदू धर्म में यह धार्मिक त्योहार है, जिसे हिंदू धर्म के अनुयायियों द्वारा धूमधाम से मनाया जाता है। हनुमान जयंती साल में दो बार मनाई जाती है। हिंदी कैलेंडर के अनुसार पहली हनुमान जयंती चैत्र मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है, जो ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार मार्च या अप्रैल के महीने में पड़ता है।
वहीं दूसरी हनुमान जयंती कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मंगलवार के दिन मनाई जाती है। मंगलवार का दिन भगवान हनुमान को समर्पित है। माना जाता है इसी दिन स्वाति नक्षत्र और मेष लग्न के दिन भगवान हनुमान का जन्म हुआ था।
इस तरह यह तिथि भगवान हनुमान के जन्म दिवस के तौर पर मनाई जाती है। लेकिन दूसरी हनुमान जयंती विजय अभिनंदन महोत्सव के तौर पर मनाई जाती हैं।
दो हनुमान जयंती क्यों मनाई जाती है?
साल में दो बार हनुमान जयंती मनायी जाती है। पहला हनुमान जयंती भगवान हनुमान के जन्म दिवस के तौर पर मनाई जाती है जब उन्होंने माता अंजनी की कोख से जन्म लिया था। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन माता अंजना के कोख से जन्म लेने के बाद उन्हें बहुत तेज भूख लगती है, जिसके बाद सूर्य देव को आम्र फल समझकर वे सूर्य को निगल लेते हैं।
वहीं दूसरा हनुमान जयंती दीपावली के दिन मनाया जाता है। माना जाता है कि इस दिन माता सीता ने हनुमान जी के समर्पण और भक्ति भाव को देखकर उन्हें अमरता का वरदान दिया था, इसीलिए दीपावली के दिन हनुमान जयंती मनाई जाती है।
भगवान हनुमान को सिंदूर क्यों लगाया जाता है?
पौराणिक कथा के अनुसार कहा जाता है कि एक बार जब माता सीता सिंदूर लगा रही थी तब भगवान हनुमान मां सीता से प्रश्न करते हैं कि वह सिंदूर क्यों लगा रही हैं तब माता सीता ने कहा कि वह भगवान राम के लंबी उम्र, स्नेह प्राप्ति और भक्ति भाव में भगवान राम के नाम से अपने मांग में सिंदूर धारण करती हैं।
माता सीता का यह कथन सुनकर हनुमान भी अपने पूरे शरीर में सिंदूर लगा लेते हैं यह सोच कर कि उन्हें भगवान राम से खूब सारा स्नेह और प्रेम मिलेगा। सिंदूर लगाकर वह सभा में जाते हैं, जहां पर उन्हें सिंदूर से पूरे शरीर को रंगे हुए देख भगवान राम प्रश्न करते हैं कि तुमने यह सिंदूर पूरे शरीर में क्यो लगाया है?
तब भगवान हनुमान सारी कथा बताते हैं, जिसे सुन भगवान राम हनुमान से प्रसन्न होकर उन्हें गले लगा लेते हैं। इस तरीके से भगवान राम के असीम भक्त हनुमान को सिंदूर लगाया जाता है। बिना सिंदूर लगाए भगवान हनुमान के पूजा को अधूरा माना जाता है।
हनुमान जयंती किस तरह मनाई जाती है?
हनुमान जयंती के दिन लोग अलग-अलग तरीके से भगवान हनुमान को प्रसन्न करने के लिए उनकी पूजा पाठ करते हैं। दिन भर मंदिरों और घरों में हनुमान चालीसा का पाठ होता है और भजन कीर्तन होता है। भगवान श्री राम की भी पूजा पाठ की जाती है और सुंदरकांड पढ़ा जाता है। क्योंकि माना जाता है कि हनुमान भगवान राम के भक्त थे, इसीलिए श्री राम की पूजा करने से हनुमान भी प्रसन्न होते हैं।
कुछ लोग भगवान हनुमान के प्रति भक्ति भाव में व्रत भी रखते हैं। हनुमान जयंती के दिन लोग सुबह सुबह उठकर स्नान करने के पश्चात लाल या पीले कपड़ों में हनुमान चालीसा पढ़ते हुए भगवान हनुमान की पूजा करते हैं। भगवान हनुमान के पूरे शरीर में सिंदूर भी लगाया जाता है। क्योंकि सिंदूर उनका भगवान राम के प्रति भक्ति भाव का प्रतीक है। इसके अतिरिक्त हनुमान की मूर्ति पर जनेहू भी पहनाया जाता है।
हनुमान की पूजा आरती होने के बाद प्रसाद वितरित किया जाता है। इस दिन कई जगह पर भंडारे भी आयोजित किए जाते हैं। कहीं-कहीं तो मेले का आयोजन भी होता है और बहुत जगह पर भगवान हनुमान की बड़ी-बड़ी झांकियां भी निकाली जाती है।
क्या महिलाएं हनुमान जी की पूजा कर सकती है?
यूं तो भगवान का पूजा करने के लिए औरतों और मर्द के लिए कोई अलग नियम नहीं होता। परंतु भगवान हनुमान ब्रह्मचारी थे और इस पर से दूर रहते थे। यही कारण है कि भगवान हनुमान की पूजा करने के दौरान के ऊपर कई बातों का ध्यान देना पड़ता है।
कहा जाता है स्त्रियों को भगवान हनुमान को सिंदूर का लेप नहीं लगाना चाहिए ना ही उन्हें जनेऊ पहनाना चाहिए। कहा जाता है कि स्त्रियों को भगवान हनुमान के मूर्ति को स्पर्श नहीं करना चाहिए। बजरंग बाण का पाठ करने से भी मना किया जाता है।
हालांकि ऐसा नहीं है कि स्त्रियां भगवान हनुमान की पूजा नहीं कर सकती। वह भगवान हनुमान के चरणों में दीपक जलाकर प्रार्थना कर सकती हैं।
भगवान हनुमान की जन्म कथा
भगवान हनुमान का जन्म अंजना के गर्भ से हुआ था। इनके पिता केसरी भगवान राम के वानर सेना में भाग लेकर रावण के खिलाफ युद्ध में उनकी मदद किए थे। माना जाता है कि भगवान हनुमान की मां अंजना एक समय अप्सरा थी, जिन्हें श्राप के कारण वानर जाति में जन्म लेना पड़ा।
दरअसल इसके पीछे की कथा यह है कि एक बार भगवान इंद्र, ऋषि दुर्वासा द्वारा आयोजित स्वर्ग में एक औपचारिक बैठक में भाग ले रहे थे। बैठक में हर कोई गहन मंथन में डूबा था तब पूंजिकस्थली नाम की अप्सरा ने बैठक में आकर विघ्न पैदा कर दिया। ऋषि दुर्वासा ने अप्सरा को सचेत भी किया लेकिन वह ऋषि दुर्वासा के बातों को अनसुना कर देती है, जिसके बाद ऋषि दुर्वासा क्रोध में आकर उस अप्सरा को वानर जाति में जन्म होने का श्राप दे देते हैं।
इस श्राप से घबराकर वह अप्सरा ऋषि दुर्वासा से क्षमा मांगने लगती है, उसके बार बार और विनम्र विनती देख ऋषि दुर्वासा ने उन्हें श्राप से मुक्त होने का मार्ग बताया। उन्होंने कहा कि वानर जाति में जन्म लेने के पश्चात वो हनुमान नाम के एक पुत्र शक्तिशाली पुत्र को जन्म देगी, जिसके बाद वह श्राप मुक्त हो जाएंगे।
कालांतर में यही अप्सरा अंजना के रूप में वानर जाति में जन्म लेती है, जिनका विवाह केसरी नाम के वानर राज से होता है और इन्हीं दोनों से हनुमान का जन्म होता है।
हनुमान को पवन पुत्र क्यों कहा जाता है?
हनुमान को केसरी नंदन, अंजना पुत्र के अतिरिक्त पवन पुत्र भी कहा जाता है, जिसके पीछे की कथा काफी रोचक है। पौराणिक कथा के अनुसार माना जाता है कि जब अंजना और केसरी के विवाह के पश्चात कई वर्षों तक उन्हें पुत्र नहीं हो रहा था तब दोनों काफी परेशान थे और पुत्र प्राप्ति के लिए मंतग मुनि के पास जाते हैं और उनसे इसका मार्ग पूछते हैं।
तब मतंग मुनि उन्हें मार्ग बताते हुए कहते हैं कि वृषभाचल पर्वत पर भगवान वेंकटेश्वर की पूजा अर्चना और तपस्या करने के बाद गंगा तट पर स्नान करके वायु देव को प्रसन्न करो तो तुम्हें पुत्र की प्राप्ति निश्चित ही होगी। मतंग मुनि के सलाह पर अंजना पुत्र की कामना में पूर्ण श्रद्धा, विश्वास और धैर्य से वायु देव को प्रसन्न किया।
तब वायु देव ने हनुमान के जन्म का वरदान दिया। इस तरीके से वायु देव की कृपा से हनुमान का जन्म हुआ, जिसके कारण हनुमान को पवन पुत्र भी कहा जाता है।
दशरथ से जुड़ा है भक्त हनुमान के जन्म की कथा
हनुमान के जन्म को लेकर कई कहानियां हैं, उनमें से एक कथा यह भी है कि जब पुत्र चाह में दशरथ एक ऋषि मुनि के कहने पर यज्ञ करवाए थे तो यज्ञ के पश्चात उन्होंने अपनी तीनों पत्नियों को प्रसाद दिया था, जिसे खाकर तीनों रानियां गर्भवती हुई थी और भगवान राम, भरत, शत्रुघ्न और लक्ष्मण का जन्म हुआ था।
प्रसाद का एक भाग एक गरुड़ पंछी उठाकर ले भाग रहा था लेकिन रास्ते में वह प्रसाद नीचे गिर जाता है। प्रसाद उसी जगह पर गिरता है, जहां पर केसरी और अंजना पुत्र प्राप्ति के लिए अज्ञ कर रहे थे और प्रसाद अंजना के हाथों में गिरता है, जिसे वह भगवान का प्रसाद समझकर खा लेती है और फिर वह गर्भवती हो जाती है और फिर हनुमान का जन्म होता है।
विष्णु और नारद पुराण में भी हनुमान के जन्म की कथा उल्लेखित है
विष्णु और नारद पुराण के अनुसार बताया गया है कि एक बार नारद मुनि एक राजकुमारी पर मोहित हो गए, जिसे देखने के बाद वे तुरंत भगवान विष्णु के पास जाते हैं और भगवान विष्णु से प्रार्थना करते हैं कि हे भगवान आप मुझे आपकी तरह ही रूप दे दीजिए ताकि मैं स्वयंवर में भाग ले सकूं और वह राजकुमारी मुझे ही वर के रूप में चुने।
इस तरह नारद मुनि भगवान विष्णु को हरी रूप देने की प्रार्थना करते हैं। भगवान विष्णु उन्हें वानर का रूप दे देते हैं। नारद मुनि अपने रूप को बगैर देखें स्वयंवर में पहुंच जाते हैं, जहां पर उनके वानर रूप को देख सभा में उपस्थित सभी लोग हंसने लगते हैं। जब बाद में नारद मुनि को अपने वानर रूप होने का पता चलता है तो वह क्रोध में आकर भगवान विष्णु को श्राप दे देते हैं कि कालांतर में उन्हें वानर पर आधारित होना पड़ेगा।
बाद में भगवान विष्णु नारद मुनि को समझाते हैं कि उन्होंने जो भी किया उनके भलाई के लिए किया। क्योंकि बिना शक्तियों को कम किए नारद मुनि वैवाहिक जीवन में नहीं बंध सकते थे। इसके अतिरिक्त नारद मुनि ने हरी रूप पाने का वरदान मांगा था और संस्कृत में हरि का दूसरा अर्थ वानर ही होता है।
इस तथ्य से अवगत होने के बाद नारद मुनि अपने श्राप को वापस लेना चाहते थे। लेकिन भगवान विष्णु ने कहा कि तुम्हारा यही श्राप वर्तमान में मेरे लिए वरदान साबित होगा। कालांतर में हनुमान नाम के एक वानर का जन्म होगा, जो भगवान शिव का ही एक रूप होगा और उसी की सहायता से मैं रावण का वध करूंगा।
FAQ
हनुमान जयंती भगवान हनुमान के जन्म उत्सव के अवसर पर मनाया जाता हैं। हनुमान जयंती चेत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है।
जयंती और जन्मोत्सव दोनों ही जन्मदिन के अवसर को बयां करता है। लेकिन जयंती उन लोगों की मनाई जाती है, जिनका कभी जन्म हुआ था। लेकिन अब वे परमधाम में वास करते हैं लेकिन जन्मोत्सव उन लोगों का मनाया जाता है, जो अभी भी जीवित है।
यूं तो हनुमान जी के आध्यात्मिक गुरु भगवान सूर्य और नारद को बताया जाता है। लेकिन इसके अतिरिक्त मातंग ऋषि को भी इनका गुरु बताया जाता है। माना जाता है कि इन्हीं के आश्रम में हनुमान का जन्म हुआ था।
हनुमान जयंती के दिन हनुमान जी की कृपा प्राप्त करने और उन्हें प्रसन्न करने के लिए प्रात काल उठकर स्नान करने के पश्चात पीले या लाल रंग के वस्त्र को पहनकर शांत मन से पूजा करना चाहिए।
जब हनुमान ने सूर्य देव को फल समझकर निगल लिया था तब भगवान इंद्र ने हनुमान पर अपने व्रज से हमला किया था जिससे हनुमान का मुख तेज गरज से खुल जाता है और धरती पर वह जाकर गिर जाते हैं, इस तरह उनके मुख से सूर्य देवता मुक्त हो पाए थे।
निष्कर्ष
आज के लेख में हमने आपको हनुमान जयंती क्यों मनाया जाता है (Hanuman Jayanti Kyu Manaya Jata Hai), हनुमान जयंती कब मनाया जाता है और किस तरीके से हनुमान जयंती मनाई जाती है इत्यादि विषयों के बारे में बताया।
हमें उम्मीद है कि आज का यह लेख आपको पसंद आया होगा। लेख से संबंधित कोई भी प्रश्न या सुझाव हो तो कमेंट में लिखकर जरूर बताएं और लेख को अपने सोशल मीडिया अकाउंट के जरिए अपने दोस्तों में जरूर शेयर करें।
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