अगर आपने भारत का इतिहास पढ़ा है तो आपने काला पानी की सजा के बारे में जरूर सुना होगा। काला पानी का अर्थ होता है मुश्किल सजा। यह खौफ का पर्याय है। ब्रिटिश काल में काला पानी की सजा बहुत ही प्रसिद्ध थी। ज्यादातर स्वतंत्रता सेनानियों को काला पानी की सजा दी जाती थी।
तो चलिए आज के इस लेख के माध्यम से जानते हैं कि आखिर काला पानी क्या होता है? काला पानी की सजा कब और क्यों दी जाती थी?
काला पानी की सजा क्या है?
अंडमान निकोबार दीप समूह पर स्थित सेल्यूलर जेल को ही काला पानी की सजा कहा जाता है। स्वाधीनता आंदोलन में हिस्सा लेने वाले कई क्रांतिकारियों को अंग्रेजों के द्वारा इस जेल में भेजा गया था, जिन्हे बहुत सारी यातनाएं दी गई।
बहुत सारे कष्ट पीड़ा और अत्याचार से उन्हें गुजरना पड़ा। यहां का माहौल उनके लिए नर्क से कम नहीं था। यह जेल चारों तरफ से अनंत समुद्र से घिरी होने के कारण यहां से कैदियों के लिए भाग पाना मुश्किल था।
काला पानी जेल कहां पर है?
सेल्युलर जेल अंडमान निकोबार द्वीप समूह में पोर्ट ब्लेयर शहर के मुख्य केंद्र से 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सेलुलर जेल बनाने का विचार अंग्रेजों को 1857 की क्रांति के बाद ही आया था जब 19वीं सदी में स्वतंत्रता संग्राम जोर पकड़ने लगा।
वे क्रांतिकारियों को ऐसी जगह भेजना चाहते थे, जहां पर उन्हें घोर यातनाएं दी जा सके और उन्हें कैद करके रखा जा सके। इसी उद्देश्य से अंग्रेजों ने इस जेल को बनाया था, जिसे बनाने में तकरीबन 10 साल का समय लगा था।
इस जेल के मुख्य भवन के निर्माण के लिए बर्मा जिसे वर्तमान में म्यांमार के नाम से जाना जाता है, वहां से लाल ईंटो को मंगाकर इस्तेमाल किया गया था।
इस जेल की सात ब्रांच थी, जिसके बीच में एक टावर बना हुआ था और इस टावर के निर्माण का उद्देश्य कैदियों पर आसानी से नजर रखने के लिए बनाये रखना था। टावर के ऊपर एक घंटा भी लगा हुआ था, जिसका इस्तेमाल संभावित खतरे का अंदेशा होने पर होता था। इस जेल को बनाने में उस वक्त लगभग 5,17000 रूपये की लागत आई थी।
काला पानी जेल के बारे में कहा जाता है कि यह ऐसी जगह थी, जहां चार दिवारी के बजाय समुद्री किनारा था और परिसर की बात की जाए तो तूफान मारता हुआ अदम्य समुद्र था।
यहां पर कैदी आजाद होने के बावजूद उनके फरार होने के सारे रास्ते बंद थे। यहां का वातावरण, जलवायु, यहां की हवाएं जहरीली थी, जहां पर हर दिन कैदियों को मर मर के जीना पड़ता था।
क्या काम कराया जाता था कैदियों से?
काले पानी की जेल में रहने वाले कैदियों को बहुत सारी यातनाएं दी जाती थी। उनसे बहुत सारे काम करवाए जाते थे। दिन भर वे हथकड़ी और बेड़ियों में बंध कर रहते थे। उनसे हर दिन 30 पाउंड नारियल और सरसों का तेल पेरने का काम करवाया जाता था। अगर कोई भी यह काम करने से मना करता तो उसे खूब पीटा जाता था।
कैसे नाम पड़ा सेल्यूलर जेल?
सेल्युलर जेल का नाम सेल्यूलर पड़ने का कारण है कि इस जेल में हर एक कैदियों के लिए अलग-अलग सेल था। उन्हें अलग-अलग रखा जाता था ताकि वह एक दूसरे से बात ना कर सके।
हर एक कैदी को यहां पर बिल्कुल अकेले रहना पड़ता था और उनका अकेलापन ही उनकी मौत से भी भयानक होता था। अंधेरी कोठरी में उन्हें अकेले पूरा जीवन यहां बिताना पड़ता था।
क्यों सेल्यूलर जेल को काला पानी कहा जाता था?
इस जेल में ब्रिटिश काल में भारत की आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को भेजा जाता था। यहां पर उन्हें बेड़ियों में जकड़कर रखा जाता था। इस जेल के चारों तरफ समुद्र का पानी होने के कारण कैदी यहां से भागने में कामयाब नहीं हो पाए थे।
यह पूरा क्षेत्र बंगाल की खाड़ी के तहत आता है। यहां पर कैदियों को आम लोगों से दूर रखा जाता था और उन्हे कड़ी यातनाएं दी जाती थी। जो भी यहां एक बार आ जाता था, वह वापस नहीं जा पता था। अंधेरी कोठरी में उन्हें पूरा जीवन बिताना पड़ता था। इसी कारण यहां पर दी जाने वाली सजा को काला पानी कहा जाता था।
इतना ही नहीं सेल्यूलर जेल कैदियों के लिए बीमारियों का भी घर था। यहां पर हर एक कोठरी में केवल दुख और भयंकर रोग भरे हुए थे। इस जेल में असीमित खुजली और दाद जैसे चर्म रोग जिसमें बदन की खाल फटने और छीलने लगती है जैसी बीमारी बहुत ही आम थी।
यहां पर अगर कोई भी कैदी किसी भी बीमारी से ग्रसित होता था तो उसका ना ही इलाज होता था, ना ही उसकी सेहत की देखभाल और घाव भरने का कोई उपाय किया जाता था। जिसके कारण अन्य कैदी भी उस बीमारी से ग्रसित हो जाते थे।
अगर कोई कैदी मर भी जाता था तो उसकी टांग पकड़ कर लाश को बाहर निकाला जाता था और कपड़े उतार कर रेत के ढेर में दबा दिया जाता था। उसके लिए ना ही कब्र खोदी जाती थी और ना ही नमाज ए जनाज पढ़ने का कोई प्रावधान था।
इस तरह सेल्यूलर जेल में रहने वाले कैदियों की पीड़ा दुनिया की कोई भी पीड़ा की बराबरी नहीं कर सकता था।
जेल में की गई थी भूख हड़ताल
सेल्युलर जेल में कैदियों को दी जाने वाली यातना से बचाने के लिए, उस अत्याचारों के खिलाफ लड़ने के लिए साल 1930 में इस जेल के एक कैदी महावीर सिंह ने भूख हड़ताल करने की सोची। लेकिन इस जेल में काम करने वाले कर्मचारियों ने उन्हें जबरदस्ती दूध पिला दिया, जिसके कारण उनकी मौत हो गई।
उन कर्मचारियों ने महावीर सिंह के शव को पत्थर से बांधकर समुद्र में फेंक दिया। इस भयावह मंजर को देखकर इस जेल के अन्य कैदियों ने भी भूख हड़ताल करने का फैसला किया, जिसके बाद रविंद्र नाथ टैगोर और महात्मा गांधी ने इस मामले में सरकार से बात भी की।
कालापानी जेल से अंग्रेजों का कब्जा हटा
1940 के दशक तक सेलुलर जेल पर अंग्रेजों का कब्जा था लेकिन 1942 में जापानी शासकों ने अंडमान पर कब्जा कर लिया। उसके बाद उन्होंने अंग्रेजों को वहां से मार भगाया। उन्होंने अंग्रेजों को सेल्यूलर जेल में बंद कर दिया।
7 में से 2 शाखों को जापानियों ने नष्ट भी कर दिया था। उस दौरान सुभाष चंद्र बोस ने भी सेल्यूलर जेल का दौरा किया था। द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने के बाद 1945 में अंग्रेजों का फिर से यहां पर कब्जा हो गया।
सन 1947 में देश को आजादी मिलने के बाद इस जेल से अंग्रेजों का पूरी तरीके से कब्जा खत्म हो गया और फिर इस जेल में बचे तीन शाखा और टावर को 1969 में राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया। इस जेल में गोविंद बल्लभ पंत अस्पताल भी है, जिसे 1963 में खोला गया था और इस अस्पताल में 500 बिस्तर लगे हुए हैं और 40 डॉक्टर वर्तमान में अपनी सेवा दे रहे हैं।
काला पानी जेल एक पर्यटन स्थल के रूप में
काला पानी के जेल वर्तमान में एक पर्यटन स्थल बन चुका है। यह सभी लोगों के लिए खुला है। यहां पर लोग आकर भारत के इतिहास से अवगत हो सकते हैं। इस जेल में एक संग्रहालय बना हुआ है, जहां पर पुराने अस्त्रों को संग्रहित करके रखा गया है। इसके साथ ही जेल के दीवारों पर भारत के वीर शहीदों के नाम भी लिखे गए हैं।
इस जेल की सैर करके भारत के उन स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जान सकते हैं, जिन्होंने अंग्रेजों की कड़ी यातनाओं को सहते हुए देश की आजादी में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस जेल में सुबह 9:00 बजे से शाम के 5:00 बजे तक पर्यटक घूमने के लिए आ सकते हैं।
मात्र ₹30 के प्रवेश शुल्क के साथ इस पूरी जेल को घूमा जा सकता है। वहीं यदि अपने साथ कैमरा ले जाना चाहते हैं तो आपको ₹200 का अतिरिक्त चार्ज देना पड़ेगा।
सेलुलर जेल में फिल्म की शूटिंग
सेल्युलर जेल में फिल्म की शूटिंग भी की जा सकती है, जिसके लिए पहले से ही इजाजत लेना जरूरी है। यहां पर वीडियो शूटिंग के लिए प्रतिदिन 10 हजार रुपए चार्ज लिए जाते हैं। इस जेल में सबसे पहले 1996 में मलयालम भाषा में काला पानी नाम की फिल्म की शूटिंग की गई थी।
क्या सेल्यूलर जेल से कभी कोई भाग सका था?
सेल्युलर जेल से कभी कोई नहीं भाग सका। हालांकि इस जेल से भागने की कई लोगों ने कोशिश की लेकिन कभी भी उनकी मंशा कामयाब नहीं हो सकी। एक बार तो इस जेल से 238 कैदियों ने भागने की कोशिश की थी लेकिन वे पकड़े गए, जिनमें से कुछ को फांसी की सजा दी गई और कुछ लोगों ने आत्महत्या कर ली।
कालापानी जेल में कौन कौन से स्वतंत्रता सेनानियों को कैद किया गया था?
देश की आजादी में भाग लेने वाले कई महत्वपूर्ण स्वतंत्रता सेनानियों को काला पानी की सजा सुना कर इस जेल में भेजा गया था, जिसमें कुछ प्रमुख नाम इस प्रकार थे:
मौलाना फजल-ए-हक खैराबादी, विनायक दामोदर सावरकर, एस चंद्र चटर्जी, डॉ. दीवान सिंह, बटुकेश्वर दत्त, योगेंद्र शुक्ला, वमन राव जोशी, गोपाल भाई परमानंद, बाबू राव सावरकर, सोहन सिंह, मौलाना अहमदउल्ला, मौवली अब्दुल रहीम सादिकपुरी आदि।
निष्कर्ष
इस लेख में आपने ब्रिटिश काल में प्रसिद्ध रहे जेल सेल्यूलर जेल के बारे में जाना, जिसे काला पानी जेल के नाम से भी जाना जाता है।
इस लेख में काला पानी की सजा क्या होती है? काला पानी की सजा कब और क्यों दी जाती थी? काला पानी का जेल कहां है और इस जेल के पूरे इतिहास के बारे में बताया।
हमें उम्मीद है कि इस लेख के जरिए आपको काफी कुछ जानने को मिला होगा। यदि यह लेख आपको पसंद आया हो तो इसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए अन्य लोगों के साथ भी जरूर शेयर करें।