भारत में नदियों का बहुत ही महत्व है। हालांकि नदियों का महत्व तो हर एक देश में है, लेकिन भारत ही ऐसी एकमात्र देश है, जहां पर लोग नदियों की भी पूजा करते हैं और नदियों को पवित्र समझकर समस्त पाप से मुक्ति पाने के लिए स्नान करते हैं।
भारत में ज्यादातर मंदिर विभिन्न नदियों के संगम पर बने हुए हैं। तालकावेरी, नासिक, उज्जैन, वाराणसी, हरिद्वार, ऋषिकेश, पटना, ओमकारेश्वर, महेश्वर जैसे कुछ धार्मिक स्थान भी पवित्र नदियों के किनारे स्थित हैं।
वैसे भारत में बहुत सारी नदियां हैं, जिनमें कुछ नदियां लोगों के जीवन यापन के लिए मुख्य स्त्रोत हैं तो कुछ नदियां रिवर राफ्टिंग जैसे एक्टिविटीज का एक केंद्र है।
वहीं कुछ नदिया धार्मिक स्थलों के रूप में लोक प्रसिद्ध है, जहां पर लोग मोक्ष प्राप्ति करने के लिए स्नान करने के लिए आते हैं। इन नदियों पर हर सुबह शाम आरती होती है।
तो चलिए इस लेख के माध्यम से हम भारत की पवित्र नदियों (Holy Rivers of India in Hindi) के बारे में जानते हैं, जिनके बारे में पौराणिक ग्रंथों में भी उल्लेख किया गया है।
7 भारत की सबसे पवित्र नदियां और इनकी पौराणिक कहानी (Holy Rivers of India in Hindi)
गंगा नदी
गंगा नदी भारत की सबसे पवित्र नदी है, जिसका उल्लेख हर एक पौराणिक ग्रंथों में मिलता है।
गंगा नदी का उद्गम स्थान हिमालय के गोमुख से होता है और वहां से निकलते हुए उत्तराखंड, वाराणसी, प्रयाग और हरिद्वार से होकर बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।
गंगा नदी को राष्ट्रीय नदी भी घोषित किया गया है और गंगा में मौजूद डॉल्फिन को भारत का राष्ट्रीय जलचर प्राणी घोषित किया है।
गंगा नदी की कुल लंबाई 2525 किलोमीटर है। यह भारत की सबसे लंबी नदी है। गंगा नदी के किनारे इलाहाबाद, वाराणसी, पटना, इलाहाबाद, कोलकाता, कन्नौज, मुर्शिदाबाद जैसे कई प्रमुख शहर बसे हुए हैं।
चंबल, यमुना, बेतवा, कोसी इत्यादि नदिया गंगा नदी की सहायक नदियां हैं। गंगा नदी बांग्लादेश में प्रवेश करते ही पदमा के नाम से जानी जाती हैं, जहां कुछ दूर तक वह आने के बाद ब्रह्मपुत्र नदी के साथ मिल जाती हैं।
गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी मिलने के बाद यह मेघना के नाम से बहती हुई सुंदरवन डेल्टा बनाते हुए अंत में बंगाल की खाड़ी में जाकर गिरती है।
गंगा नदी की औसत गहराई 16 मीटर और अधिकतम गहराई 30 मीटर है। उत्तरी भारत में कृषि अर्थव्यवस्था के लिए गंगा नदी एक महत्वपूर्ण नदी है।
टिहरी बांध, फरक्का बांध और भीमगोडा बाँध गंगा नदी पर बने प्रमुख बांध है।
गंगा नदी से जुड़ी पौराणिक कथा
भारत में पवित्र नदियों के उद्गम को लेकर कई पौराणिक कथाएं भी है। गंगा नदी भारत की पवित्र नदी है और सदियों से यह नदी भारत के संस्कृति की पहचान बनी हुई है।
गंगा नदी के उद्गम को लेकर एक प्रचलित पौराणिक कथा यह है कि इस नदी को धरती पर भागीरथ लेकर आए थे।
कहा जाता है गंगा नदी का निर्माण भगवान ब्रह्मा ने भगवान विष्णु के पैर के पसीने की बूंदों से किया था, जिसे उन्होंने अपने कमंडल में रख लिया था।
उसके बाद सगर नाम के एक राजा हुए, जिन्होंने देव लोक पर विजय प्राप्त करने के लिए अश्वमेध यज्ञ आयोजित किया। लेकिन देवों के राजा इंद्र देव ने घोड़े को चुरा लिया।
बिना घोड़े के अश्वमेध यज्ञ का होना संभव नहीं था, जिसके बाद राजा ने अपने पुत्रों को घोड़े को खोजने के लिए भेजा।
उनके पुत्र घोड़े को खोजते खोजते पाताललोक पहुंच गए, जहां पर घोड़ा ऋषि कपिल मुनि के समीप बंधा हुआ था।
राजा सगर के पुत्रों को लगा कि कपिल मुनि ने ही अश्वमेघ घोड़े को चुराया है और क्रोध में आकर उन्होंने उनका खूब अपमान किया।
वर्षों तपस्या के बाद कपिल मुनि ने अपने आंख खोले और ज्यों ही उन्होंने आंख खोले, वे राजा के 60000 पुत्र जलकर भस्म हो गए।
लेकिन अंतिम संस्कार ना होने के कारण राजा के पुत्रों की आत्मा पाताल लोक में भटकते ही रह गई। जिसके बाद उनके आगे के वंशज भगीरथ ने अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए उनका अंतिम संस्कार करने का निर्णय लिया।
उन्हें पाताल लोक में अपने पूर्वजों के राख को गंगाजल में प्रवाहित करना था, जिसके लिए उन्होंने भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न किया ताकि वे गंगा नदी को धरती पर प्रवाहित करें।
लेकिन गंगा नदी का वेग इतना तेज था कि अगर वह पृथ्वी पर सीधे प्रवाहित होती तो पृथ्वी का विनाश हो जाता।
जिसके कारण भगीरथ ने भगवान शिव की प्रार्थना की और उन्हें गंगा को अपनी जटाओं में रोककर सिर्फ एक लट पृथ्वी की ओर खोलने के लिए कहा।
भगवान शिव भगीरथ से प्रसन्न हुए और उन्होंने अपनी एक लट खोलकर गंगा नदी को धरती पर प्रवाहित किया।
फिर गंगा नदी भगीरथ के पीछे-पीछे पाताल लोक तक प्रवाहित हुई और इस तरीके से पाताल लोक में भटक रही भगीरथ के पूर्वजों की आत्मा को शांति मिल गई।
यमुना नदी
भगवान श्री कृष्ण का संबंध यमुना नदी से होने के कारण इस नदी को भगवान श्री कृष्ण की संगनी नदी कहा जाता है।
इसी कारण भारत में यमुना नदी का महत्व काफी ज्यादा है। इसलिए यमुना नदी को मां का दर्जा दिया जाता है।
यमुना नदी, गंगा नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है। यमुना नदी हिमालय के 62000 मीटर ऊंची हिमाच्छादित श्रंग बंदरपुच्छ से 7 से 8 मील उत्तर-पश्चिम में स्थित कालिंद पर्वत है, के यमुनोत्री नामक जगह से निकलती है।
यमुनोत्री से निकलकर यह नदी अनेक पहाड़ी, घाटी एवं दराओं से प्रवाहित होती है, जहां पर आगे वदियर, कमलाद, वदरी अस्लौर जैसी कई छोटी नदियां इसमें मिलती है।
यमुनोत्री से 95 मील दूर उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के फैजाबाद ग्राम के समीप यह नदी मैदानी भाग में प्रवेश करती हैं।
दिल्ली, आगरा, इटावा, हमीरपुर, प्रयाग यमुना नदी के किनारे बसे कुछ प्रमुख शहर है। यमुना नदी की कुल लंबाई 1376 किलोमीटर है।
यमुना नदी को कालिंदी के नाम से भी जाना जाता है। चंबल, टोंस, गिरी इत्यादि नदियां यमुना नदी की सहायक नदियां हैं।
उत्तर प्रदेश के आगरा शहर में स्थित लोक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल ताजमहल यमुना नदी के तट पर स्थित है।
यमुना नदी की पौराणिक कथा
यमुना नदी के बारे में कई पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है। भगवान श्री कृष्ण के जीवन से यमुना नदी का गहरा नाता है।
यमुना नदी को ही पार करके भगवान श्री कृष्ण के पिता वासुदेव ने उनके नवजात रुप को एक टोकरी में रखकर मथुरा से गोकुल तक पिता नंदराज तक पहुंचाया था।
उस समय गंगा जमुना नदी का पानी जहरीला हुआ करता था। क्योंकि इस नदी में कालिया नामक एक जहरीला सांप रहा करता था, जिसे भगवान श्री कृष्ण ने मारकर इस नदी को कालिया सांप से मुक्त किया था। उसके बाद यह नदी का पानी पीने योग्य बना।
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार यमुना नदी को यमराज की बहन भी कहा जाता है। क्योंकि भगवान यमराज और यमुना दोनों तेजस्वी सूर्य देव के संतान थे।
लेकिन यमुना और यमराज दोनों का ही स्वरूप काला था। क्योंकि इनकी माता छाया दिखने में श्यामल थी। इसीलिए यह दोनों भी श्याम वर्ण के पैदा हुए थे।
लेकिन यमराज ने यमुना को वरदान दिया था कि जो भी इनके जल में स्नान करेगा, उसे व्यक्ति कभी भी यमलोक नहीं आना पड़ेगा। यही कारण है कि हिंदू धर्म में यमुना नदी का बहुत धार्मिक महत्व है।
सुर्य देव की पत्नी “संज्ञा देवी” सूर्य देव के उद्दीप्त किरणों को नहीं सह पा रही थी, जिसके कारण वह उत्तरी ध्रुव प्रदेश में छाया बनकर रहने लगी थी।
उधर छाया देवी ने ताप्ती नदी और सनीचर को जन्म दिया था, जिसके कारण इधर यम और यमुना से उनका विमाता सा व्यवहार होने लगा।
जिससे खिन्न होकर भगवान यम ने यमपुरी नामक अपनी एक नया नगर बसा लिया था, जहां पर वे पापियों को दंड देने का कार्य करते थे। इसे देख मां यमुना गोलोक चली गई।
नर्मदा नदी
नर्मदा नदी भारत में पूर्व से पश्चिम दिशा में बहने वाली एक प्रमुख नदी है। धार्मिक दृष्टि से हिंदू धर्म में नर्मदा नदी का बहुत महत्व है।
नर्मदा नदी मध्य प्रदेश के अमरकंटक में मेकला पर्वतमाला से निकलती है। वहां पर विंध्य और सतपुड़ा पर्वतमाला के बीच दक्षिण पश्चिम दिशा में बात हुई गुजरात में प्रवेश करती है और वहां अंत में खंभात की खाड़ी में जाकर गिरती है।
नर्मदा नदी को मध्य प्रदेश की जीवन रेखा भी कहा जाता है। क्योंकि मध्यप्रदेश की एक तिहाई से भी ज्यादा आबादी इस नदी के जल पर आश्रित है।
नर्मदा नदी को गंगा नदी के जैसा ही समान दर्जा दिया गया है, जिसके कारण श्रद्धालु अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए नर्मदा नदी में स्नान करने के लिए आते हैं।
यह भारत की सबसे प्राचीन नदी है। इस नदी पर कपिलधारा, धुआंधार जैसे कई प्रमुख जलप्रपात बने हुए हैं।
ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग, बेड़ाघाट, होशंगाबाद का सेठानी घाट, अमरकंटक और महेश्वर जैसे कई मुख्य धार्मिक स्थल नर्मदा नदी के तट पर स्थित है।
नर्मदा नदी को “माँ रेवा” के नाम से भी जाना जाता है। नर्मदा नदी की कुल लंबाई 1312 किलोमीटर है।
नर्मदा नदी की पौराणिक कथा
भारत के अन्य पवित्र नदियों की तरह ही नर्मदा नदी का भी उल्लेख कई पौराणिक ग्रंथों में मिलता है और उन ग्रंथों में नर्मदा नदी से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं मिलती है।
नर्मदा नदी के उत्पत्ति को लेकर प्रचलित पौराणिक कथा इस प्रकार है कि एक बार भगवान शिव अमरकंटक के सरोवर के पास में बैठकर तपस्या कर रहे थे।
उस समय उनके पसीने से एक नदी का निर्माण हुआ, जो नर्मदा नदी थी और यह भगवान शिव को ठंडक प्रदान करती थी।
जब तक भगवान शिव ने तपस्या की तब तक इस नदी ने भगवान शिव को ठंडक प्रदान की। भगवान शिव की तपस्या पूर्ण होने के बाद माता नर्मदा ने भगवान शिव एवं पार्वती माता को अपनी चमत्कारी लीलाओं के बारे में बताया।
जिसे सुनकर भगवान शिव बहुत ज्यादा हर्षित हुए और उन्होंने कहा कि यह नदी हमेशा नर्मदा के नाम से जानी जाएगी क्योंकि नर्मदा का अर्थ सुख देने वाली होता है।
नर्मदा नदी का इतिहास और कहानी विस्तार से जानने के लिए यहां क्लिक करें।
कावेरी नदी
कावेरी भारत के पवित्र नदियों में से एक है। यह दक्षिण भारत की प्रमुख नदी है। कावेरी को दक्षिण भारत की गंगा भी कहा जाता है।
कावेरी नदी ब्रह्मगिरि पर्वत से निकलती हुई कर्नाटक और तमिलनाडु राज्य में प्रवेश करती है और अंत में जाकर बंगाल की खाड़ी में मिल जाती हैं।
कावेरी नदी तमिलनाडु के कुड्डालोर के दक्षिण में बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले विभिन्न शाखाओं में टूटकर एक विस्तृत डेल्टा का निर्माण करती है, जिसे “दक्षिण भारत का उद्यान” के नाम से जाना जाता है।
कावेरी नदी की कुल लंबाई 800 किलोमीटर है। भारत का एक प्रमुख तीर्थ स्थान तिरुचिरापल्ली कावेरी नदी के तट पर स्थित है।
कावेरी नदी पर स्थित शिवसमुद्रम जलप्रपात देश के सबसे बड़े झरणों में से एक है। इसके अतिरिक्त मैटूर बांध भी कावेरी नदी पर बना हुआ है।
कावेरी नदी को तमिल भाषा में पोन्नी नदी के नाम से जाना जाता है। तमिलनाडु में यह पूमपट्टिनम के नाम से प्रसिद्ध है। कावेरी नदी दक्षिण भारत की चौथी सबसे बड़ी नदी है।
इसका बेसिन तमिलनाडु में 43856 वर्ग किलोमीटर, कर्नाटक में 34273 वर्ग किलोमीटर, केरल में 2866 वर्ग किलोमीटर और केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में 81155 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है।
होन्नुहोल नदी, लक्ष्मण तीर्थ नदी, काबिनी नदी, शिमशा नदी, हेमवती नदी, अर्कावती नदी, भवानी नदी, लोकपावनी नदी और अमरावती नदी कावेरी नदी की प्रमुख सहायक नदियां हैं।
कावेरी नदी से जुड़ी पौराणिक कथा
भारत के अन्य पवित्र नदियों की तरह ही कावेरी नदी की उत्पत्ति को लेकर कई पौराणिक कथाएं हैं।
पौराणिक ग्रंथों में उल्लेखित कावेरी नदी से जुड़ी लोक प्रसिद्ध पौराणिक कथा इस प्रकार है कि प्राचीन समय में इस क्षेत्र में भीषण सूखा पड़ गया था। जिसके कारण दक्षिण भारत का इस क्षेत्र की स्थिति बहुत ही बदतर हो रही थी।
इसे देख ऋषि अगस्त्य को बहुत दुख हुआ और उन्होंने भगवान ब्रह्मा को मानव जाति को इस अकाल स्थिति से बाहर निकालने की प्रार्थना की।
तब भगवान ब्रह्मा ने अगस्त्य ऋषि को कहा कि आप ऐसे स्थान पर जाए, जहां पर भगवान शिव रहते हैं और वहां से आप कुछ बर्फ के पानी को इकट्ठा करें, जो कभी ख़त्म ना हो, उस पानी से आप एक नदी प्रवाहित कर सकते हैं, जो कभी नहीं सुखेगा।
भगवान ब्रह्मा के कहने पर ऋषि अगस्त्य कैलाश पर्वत पर जाते हैं और वहां पर अपने कमंडल में बर्फ के पानी को भरते हैं और उसके बाद पहाड़ी कुर्ग क्षेत्र में नदी शुरू करने के लिए अच्छी जगह की तलाश शुरू कर देते हैं।
लेकिन उन्हें अच्छी जगह नहीं मिल पाती है। थक हार कर वे अपने कमंडल को एक छोटे से बालक को सौंप देते हैं, जो वहां खेल रहा होता है।
असल में वह छोटा बालक भगवान गणेश होते हैं। भगवान गणेश सही जगह का चुनाव करते हैं और वहां पर कमंडल के पानी को गिरा देते हैं, जिससे कावेरी नदी प्रवाहित होने लगती है।
शिप्रा नदी
मध्यप्रदेश की शिप्रा नदी जिसके किनारे भारत का पवित्र नगरी उज्जैन होने के कारण हिंदुओं के लिए यह नदी एक पवित्र नदी के समान है।
इसी नदी के किनारे भारत के 12 प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर धाम स्थित है।
महाकाल की नगरी उज्जैन में हर 12 साल में कुंभ मेले का आयोजन होता है, उस वक्त लाखों की संख्या में श्रद्धालु पवित्र नदी शिप्रा में मोक्ष प्राप्ति करने के लिए स्नान करते हैं।
मध्यप्रदेश के इंदौर के उज्जैनी मुंडवा गांव की ककड़ी बड़ली नामक स्थान से शिप्रा नदी निकलते हुए 196 किलोमीटर तक प्रवाहित होती है और अंत में मंदसौर में चंबल नदी में जाकर मिल जाती हैं। खान और गंभीर नदियां इसकी प्रमुख सहायक नदियां हैं।
शिप्रा नदी की पौराणिक कथा
शिप्रा नदी के उल्लेख कई पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। ब्रह्म पुराण, स्कंद पुराण में भी शिप्रा नदी का उल्लेख किया गया है।
महाकवि कालिदास जी ने भी अपने काव्य ग्रंथ में शिप्रा नदी को अवंती राज्य की प्रधान नदी बताया है। महाकाल की पवित्र नगरी उज्जैन भी शिप्रा के तट पर स्थित है।
स्कंद पुराण में शिप्रा नदी के उद्गम को लेकर एक पौराणिक कथा इस प्रकार है कि इस नदी का उद्गम भगवान विष्णु के खून से हुआ था।
क्योंकि एक बार महाकालेश्वर को भूख लगी थी और अपने भूख को शांत करने के लिए उन्होंने भिक्षा मांगने का निर्णय लिया।
लेकिन बहुत दिनों तक भिक्षा नहीं मिली तब वे भगवान विष्णु के पास भिक्षा मांगने के लिए गए। भगवान विष्णु ने तब अपनी तर्जनी दिखा दी।
भगवान शंकर इस बात से बहुत ही क्रोधित हो उठे और क्रोध में आकर उन्होंने भगवान विष्णु के तर्जनी को अपने त्रिशूल से भेद डाला। जिससे रक्त प्रवाहित होने लगा, जिसके नीचे भगवान शिव ने कपाल रख दिया।
कपाल के भर जाने के बाद जब खून नीचे जमीन पर प्रवाहित होने लगा, तो उसी से शिप्रा नदी का जन्म हुआ।
शिप्रा नदी के उद्गम को लेकर एक और प्रचलित पौराणिक कथा इस प्रकार है कि उज्जैन में अत्रि ऋषि 3000 साल तक अपने दोनों हाथों को ऊपर उठा रख कठोर तपस्या की थी।
जब उनकी तपस्या पूर्ण हो गयी और उन्होंने अपनी आंख खोली तब उन्होंने देखा कि उनके शरीर से प्रकाश के दो स्त्रोत प्रवाहित हो रहे थे।
जिनमें से पहला आकाश की ओर गया, जिससे चंद्रमा का निर्माण हुआ और दूसरा जमीन पर पड़ा, जिससे शिप्रा नदी का निर्माण हुआ।
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गोदावरी नदी
महाराष्ट्र के नासिक त्रयंबक गांव की पृष्ठवर्ती पहाड़ियों में स्थित बडे जलागार से निकलने वाली गोदावरी नदी पश्चिम से पूर्वी घाट की ओर प्रवाहित होती हैं।
यह नदी धार्मिक दृष्टि से हिंदू धर्म के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। गंगा नदी के समान ही इस नदी के प्रति लोगों के विश्वास और श्रद्धा भाव है, जिसके कारण यहां पर लोग हर दिन लोग गोदावरी नदी के पवित्र जल में स्नान करने के लिए आते हैं।
गोदावरी नदी भारत की दूसरी सबसे लंबी नदी है और इसे दक्षिण भारत की सबसे बड़ी नदी कहा जाता है।
इस नदी के किनारे सबसे पवित्र स्थल नासिक स्थित है, जहां पर हर 12 साल में कुंभ के मेले का आयोजन होता है।
गोदावरी नदी की कुल लंबाई लगभग 1440 किलोमीटर है। इस नदी का मुख्य रूप से बहाव दक्षिण पूर्व की ओर है। ऊपरी हिस्से में इसकी चढ़ाई 1 से 2 मील तक होती है।
बंगाल की खाड़ी में मिलने से पहले यह नदी दौलेश्वरम् के पास डेल्टा बनाते हुए 7 धाराओं में विभाजित होती है।
गोदावरी नदी की प्रमुख सहायक नदियां प्रवर, पूर्णा, वेनगंगा और पेनगंगा है। यह नदी मुख्य रूप से महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश से होकर गुजरती है।
लेकिन इसका बेसिन कर्नाटक, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और मध्य प्रदेश के भी कुछ हिस्से को छूती है। महाराष्ट्र में औरंगाबाद जिले की पैठण तहसील में गोदावरी नदी पर जयकवाडी बांध बना हुआ है।
गोदावरी नदी से जुड़ी पौराणिक कथा
इतिहासकारों के अनुसार गोदावरी नदी का नाम तेलुगु शब्द से हुआ है, जिसका अर्थ मर्यादा होता है।
इसके अतिरिक्त इसकी एक पौराणिक कथा इस प्रकार भी है कि महर्षि गौतम ने यहां पर घोर तप किए थे, जिससे भगवान रुद्र प्रसन्न हुए और उन्होंने एक बाल के प्रभाव से गंगा को प्रवाहित किया था।
जिसके स्पर्श से एक मृत गाय पुनर्जीवित हो गई थी, जिसके कारण इसका नाम गोदावरी पड़ गया था।
इसका ऋषि गौतम से संबंध जोड़े जाने के कारण इस नदी को गौतमी के नाम से भी जाना जाता है।
इसके अतिरिक्त यह नदी 7 धाराएं कोशिकी, वशिष्ठ, वृद्ध, गौतमी, भारद्वाज, आत्रेयी और तुल्या अतीव के नाम से विभाजित होने के कारण इसे सप्त गोदावरी के नाम से भी जाना जाता है।
गंगा नदी के समान ही इसमें नहाने से सभी पाप धुल जाते हैं, जिसके कारण इस नदी को वृहद गंगा के नाम से भी जाना जाता है।
महानदी
महानदी पूर्व भारत की प्रमुख नदी है। यह अन्य सभी नदियों की तरह ही पूजनीय नदी है।
महानदी के तट पर राजीव लोचन और कुलेश्वर, गंधेश्वर, रूद्रेश्वर, भगवान नारायण, चंद्रचूड़ महादेव, महेश्वर महादेव,मल्हार पातालेश्वर, लक्ष्मणेश्वर, अन्नपूर्णा देवी, लक्ष्मीनारायण, श्रीरामलक्ष्मणजानकी और जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा का भव्य मंदिर होने के कारण इस मंदिर का गंगा के समान ही धार्मिक महत्व है।
जिसके कारण कई प्रमुख धार्मिक कार्य और त्योहारों का आयोजन इसके किनारे होता है।
छत्तीसगढ़ में महानदी को काशी और प्रयाग के समान ही पवित्र और मोक्षदायिनी माना जाता है। इसकी विशालता और महत्व के कारण ही इस नदी को महानदी की उपाधि दी गई है।
यह नदी छत्तीसगढ़ के रायपुर के समीप धमतरी जिले में सिहावा नामक पर्वत श्रेणी से निकलती है और दक्षिण से उत्तर की ओर बहती हुई नदी बंगाल की खाड़ी में गिर जाती है।
इस नदी की कुल प्रवाहित लंबाई 855 किलोमीटर है। राजिम, मल्हार, खरौद, सिरपुर, शिवरीनारायण, चंद्रपुर और संबलपुर इस नदी के किनारे बसे प्रमुख शहर है।
महानदी से जुड़ी पौराणिक कथा
महानदी का उल्लेख कई पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। पौराणिक ग्रंथों में इस नदी को चित्रोत्पला नदी और चित्रोत्पला-गंगा कहकर उल्लेख किया गया है।
इस नदी से जुड़ी एक पौराणिक कथा इस प्रकार है कि त्रेता युग में ऋषि श्रृंगी का आश्रम सिहावा की पहाड़ी में हुआ करता था।
वह एक बार राजा दशरथ के यहां अयोध्या में पुत्रेष्ठि यज्ञ करा कर लौट रहे थे। उनके कमंडल में यज्ञ में प्रयुक्त पवित्र गंगा का जल भरा हुआ था।
अपने समाधि से जैसे ही वे उठे उनके कमंडल से गंगा का जल गिर पड़ा और बहकर महानदी के उद्गम मिल गया। यही कारण है कि महानदी को गंगा के समान ही पवित्र माना जाता है।
FAQ
भारत के प्रमुख नदियों पर कई शहर बसे हुए हैं। यमुना नदी के किनारे आगरा शहर बसा हुआ है, तापी नदी के किनारे सूरत बसा हुआ है, साबरमती नदी के किनारे अहमदाबाद बसा हुआ है, शिप्रा नदी के किनारे उज्जैन बसा हुआ है, गोमती नदी के किनारे लखनऊ बसा हुआ है, गंगा नदी के किनारे हरिद्वार, वाराणसी शहर बसे हुए हैं।
वैसे तो भारत में 200 से भी ज्यादा छोटी-बड़ी नदियां प्रवाहित होती हैं। लेकिन इनमें गंगा, नर्मदा, यमुना, ताप्ती, गोदावरी, कावेरी, शिप्रा, ब्रह्मपुत्र, कृष्णा, महानदी इत्यादि को पवित्र नदियों के रूप में माना जाता है।
हुगली नदी के किनारे पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता शहर बसा हुआ है।
सिंधु, ब्रह्मपुत्र नदी भारत के बाहर चीन के तिब्बत के पठार से निकलकर भारत में गुजरती है।
भारत की पवित्र नदियों में से एक सरस्वती नदी एक प्राचीन नदी है, जिसका वेदों में भी वर्णन है। लेकिन वर्तमान में इस नदी का भौतिक अस्तित्व नहीं है। यह नदी शिवालिक पर्वतमाला हिमालय से निकलकर त्रिवेणी संगम में जाती थी।
ब्रह्मपुत्र नदी को भारत की सबसे चौड़ी नदी माना जाता है, जो मानसरोवर झील के पास कैलाश श्रेणी के चेमायुंगडुंग हिमनद से निकलती है और देहांग के नाम से बहती हुई अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करती है।
राजस्थान में बहने वाली अरवरी नदी जिसकी लंबाई 90 किलोमीटर है, इसे देश का सबसे छोटा नदी कहा जाता है।
निष्कर्ष
उपरोक्त लेख में आपने भारत की पवित्र नदियों (Holy Rivers of India in Hindi) के बारे में जाना। वैसे भारत के हर एक नदियों का महत्व है क्योंकि यह नदियां जीवन यापन करने के लिए हमें जल की आपूर्ति करती है।
लेकिन पौराणिक ग्रंथों एवं धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माने जाने वाली नदियों को ही भारत में पवित्र नदियां माना जाता है, जिनके बारे में आज के इस लेख में आपने विस्तृत पूर्वक जाना।
हमें उम्मीद है कि यह लेख आपके लिए जानकारी पूर्ण रहा होगा। इस लेख को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए अन्य लोगों के साथ भी जरूर शेयर करें ताकि भारत के पवित्र नदियों की जानकारी हर किसी को मिल सके।
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