भारतीय इतिहास में अनेक युद्ध हुए है, उनका ब्यौरा भी हमें कहीं न कही जरुर मिल ही जाता है। ऐसा ही युद्ध राजस्थान की धरती पर महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बीच हुआ था। राजस्थान के मेवाड़ की धरती पर 9 मई 1540 को महाराणा प्रताप ने जन्म लिया था। महाराणा प्रताप ने अपने जीवन में अनेक युद्ध लड़े लेकिन अकबर की सेना से हुआ हल्दीघाटी युद्ध (Haldighati ka Yuddh) उनके जीवन का सबसे अहम युद्ध रहा।
इतिहासकारों के अनुसार प्रताप हमेशा दो तलवार रखा करते थे क्योंकि वह कभी निहते पर वार नहीं करते थे। हल्दीघाटी के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप जंगल में जाकर रहने लगे थे और कहते हैं कि उन दिनों में प्रताप ने जंगल में घास की रोटीयां खाई थी। उनके साथ भील जाति के लोग थे और उन्होंने प्रताप की जिंदगी बचाने में अहम भूमिका निभाई थी। इसी युद्ध में महाराणा प्रताप का घोड़ा ‘चेतक’ शहीद हुआ था।
हल्दीघाटी युद्ध का इतिहास (Haldighati ka Yuddh)
युद्ध का नाम | हल्दीघाटी युद्ध |
युद्ध कब हुआ | 18 जून 1576 |
किसके बीच में हुआ | महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के मध्य |
इस युद्ध में जीत किसकी हुई | इस युद्ध का कोई परिणाम नहीं निकला |
अकबर की सेना की संख्या | 7000 से 10000 सैनिक |
महाराणा प्रताप की सेना की संख्या | 1600 सैनिक |
युद्ध कितने समय के लिए हुआ | 3 घंटे तक |
युद्ध कहाँ हुआ | हल्दीघाटी |
हल्दीघाटी का युद्ध कब हुआ था? (Haldighati ka Yuddh Kab Hua Tha)
हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून 1576 को हुआ था। इस दिन महाराणा प्रताप और उनकी 1600 पुरुषों की सेना ने अकबर की 10000 संख्या वाले सैनिको के साथ युद्ध किया था। इस युद्ध में अकबर की सेना की मदद करने वाले जयपुर के राजा मानसिंह थे। चूँकि मानसिंह ने अकबर की गुलामी को स्वीकार कर ली थी।
महाराणा प्रताप का जीवन परिचय
हल्दीघाटी का युद्ध महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हुआ था। महाराणा प्रताप उदय सिंह के सबसे बड़े बेटे थे। इनका जन्म चित्तौड़ के कुंभलगढ़ किले 6 मई 1540 को हुआ था। इनकी माता का नाम जैवंताबाई था लेकिन महाराणा प्रताप के जन्म के बाद जैवंता बाई और उदय सिंह एक दूसरे से विमुख हो गए।
महाराणा प्रताप के पिता उदयसिंह अपनी छोटी रानी धीरबाई भटियानी को ज्यादा पसंद करते थे, जिस कारण आगे चलकर उन्होंने धीरबाई के बेटे जगमाल सिंह को राज्य का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। जबकि परंपरा के हिसाब से राजगद्दी महाराणा प्रताप को मिलनी चाहिए थी क्योंकि महाराणा प्रताप बड़े बेटे थे।
हालांकि उदय सिंह के इस फैसले को सुनकर ज्यादातर सिसोदिया सुल्तान काफी उदास हुए थे। क्योंकि महाराणा प्रताप के कौशल को देखते हुए उन्हीं को राजगद्दी देने की उनकी सलाह थी। उसके बाद 28 फरवरी 1572 को उदय सिंह का निधन हो गया। उनके राजवंशों में परंपरा थी कि राजा का बड़ा बेटा सुरक्षा के कारण पिता के अंतिम संस्कार में भाग नहीं ले सकता है, जिस कारण महाराणा प्रताप भी अपने पिता के अंतिम संस्कार में भाग नहीं ले सके थे।
उसके बाद जगमाल सिंह के राज्जभिषेक की तैयारी चलने लगी। इसका पता जब ग्वालियर के राम सिंह और महाराणा प्रताप के नाना अखेराज सोनगरा को चला तो वे राजमहल पहुंचे और जगमाल को गद्दी से हटा दिया और महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक कराया।
हल्दीघाटी का युद्ध क्यों हुआ था?
हल्दीघाटी के युद्ध की शुरुआत तो उसी वक्त हो गई थी जब अकबर अपने शासन क्षेत्र को बढ़ाने के लिए राजपूत क्षेत्रों पर नियंत्रण हासिल करने की योजना बना रहा था। अकबर काफी शक्तिशाली शासक बन कर उभर रहा था, जिस कारण राजस्थान में लगभग सभी प्रमुख राजाओं ने मुगल वंश को स्वीकार कर लिया था।
लेकिन महाराणा प्रताप के पिता उदय सिंह को मुगल वंश स्वीकार करना बिल्कुल भी मंजूर नहीं था। मेवाड़ के राजघरानों ने मुगलों के सामने घुटने नहीं टेके, जिसके बाद अकबर ने अपने राज्य विस्तार के लिए 1567 में चित्तौड़गढ़ की घेराबंदी करवा दी।
उस समय मुगलों ने राजपूतों को चारों तरफ से घेर लिया, जिसके बाद उदय सिंह को पद छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। लेकिन वे रक्षा की जिम्मेदारी मेड़ता के राजा जयमल को दे दी और अरावली के जंगलों में रहने चले गए। महाराणा प्रताप बड़े हो गए और उनके पिता उदयसिंह की मृत्यु हो गई तो महाराणा प्रताप ने मेवाड़ की कमान संभाली।
इस दौरान अकबर लगभग कई सालों तक महाराणा प्रताप को मुगल वंश स्वीकार करने के लिए पत्र भेजता रहा, लेकिन महाराणा प्रताप ने युद्ध का फैसला किया। लेकिन मुगल वंश को स्वीकार करना उन्हें बिल्कुल भी मंजूर नहीं हुआ। जिसके बाद जब महाराणा प्रताप का राजतिलक हुआ तो अकबर ने अपने दूतों को भेजकर महाराणा को अपना गुलाम बनने के लिए कहा।
हालाँकि अकबर ने कहा कि वह अन्य राजपूत राजाओं की तरह उनके गुलाम बनकर जागीरदार के रूप में उनके लिए कार्य करें। लेकिन महाराणा को गुलामी पसंद नहीं थी और वह नहीं चाहते थे कि मेवाड़ किसी मुग़ल के हाथ लगे, उन्होंने अकबर के दूतों को साफ़ मना कर दिया। 1972 के बाद 4 साल तक अकबर प्रताप के पास दूतों को भेजता कि वह गुलामी स्वीकार कर लें लेकिन प्रताप ने नहीं की।
महाराणा प्रताप ने जब गुलाम ना बनकर अपने राज्य की सेवा करनी चाही तो अकबर ने अपने अधीन राजाओं को प्रताप पर हमला करने के लिए कहा। इतिहासकारों के अनुसार उस समय अनेक राजपूत राजाओं ने प्रताप का साथ ना देकर अकबर का साथ दिया। क्योंकि अकबर के पास बहुत बड़ी और ताकतवर सेना थी। ऐसे ही आमेर के राजा मानसिंह भी अकबर के गुलाम थे, उन्होंने अकबर की बात मानते हुए प्रताप से युद्ध करने का फैसला किया।
अकबर की विशाल सेना और भील धनुर्धारी का युद्ध
उस समय किसी ने सोचा भी नहीं था कि अकबर की इतनी विशाल सेना को भील जो धनुर्धर थे, वो हरा देंगे लेकिन यह हुआ। अपने समाज, अपने धर्म और अपनी स्त्रियों की रक्षा के लिए प्रताप और उनकी सेना ने अकबर की सेना का खूब लोहा लिया। हल्दीघाटी के इस युद्ध में प्रताप ने गुरिल पद्दति से युद्ध किया और यह युद्ध करने में वह सफल भी हुए। चार घंटे चले इस युद्ध में करीब प्रताप की सेना ने ढाई घंटे तक अकबर की सेना को खदेड़ कर रख दिया।
लेकिन अचानक प्रताप आमेर के राजा मानसिंह की तरफ बढ़े, उस समय प्रताप अपने घोड़े चेतक पर बैठे थे और मान सिंह अपने हाथी पर। लेकिन अचानक चेतक पर हमला होता है और चेतक जख्मी हो जाता है। उसी समय प्रताप का वार जो मानसिंह पर किया गया था, वह महावत को जाकर लगता है और महावत मर जाता है। अकबर की सेना को लगता है कि मानसिंह मर गया है, लेकिन वह जिन्दा था।
हल्दीघाटी के युद्ध का परिणाम
इस युद्ध का परिणाम कुछ नहीं रहा। चार घंटे चलने वाले इस युद्ध में जब प्रताप बुरी तरह से जख्मी हो गये और उनका घोड़ा चेतक भी अपनी अंतिम सांस लेने लगा तो प्रताप ने वहां से जंगल की और जाना सही समझा। उनकी सेना ने उनका साथ दिया और एक बहुत बड़ी नदी को चेतक ने एक छलांग में पार कर लिया।
जंगल में एक स्थान पर जाकर चेतक भी शहीद हो गया। उस समय कुछ लोगों का कहना है कि अकबर की सेना जीत गई थी, लेकिन इतिहास में कुछ ऐसी चीजें आज भी मिलती है, जिससे यह साफ़ होता है कि अकबर की सेना उस समय जीत पाई थी।
हालाँकि अकबर की सेना ने 6 महीने तक अपने हक़ में आई जगह पर लोगों की आवाजाही की पाबंदी लगा दी थी। उन्हें लगा कि वह प्रताप को पकड़ लेंगे, लेकिन प्रताप उनके आगे झुकने वाले नहीं थे।
इस युद्ध का परिणाम हम यह कह सकते हैं ‘प्रताप का हौंसला जीत गया था, अकबर से और अकबर की सेना जीत गई थी प्रताप से…’ क्योंकि अकबर जो चाहता था, वो कभी नहीं हो पाया। प्रताप ने अंतिम सांस तक अकबर की गुलामी मंजूर नहीं की थी।
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महाराणा प्रताप का वनवास
हल्दीघाटी के युद्ध (Haldighati ka Yuddh) के बाद महाराणा प्रताप चित्तौड़गढ़ छोड़कर जंगलों में रहने लगे थे। वहां पर वह केवल अकेले ही नहीं थे बल्कि अपनी महारानी और छोटे-छोटे सुकुमार राजकुमार और राजकुमारी के साथ रह रहे थे। वहां पर वह घास की रोटियां और जंगल के पोखरी के जल को पीकर जीवन व्यतीत कर रहे थे। अरावली की गुफाओं में ही उनका निवास था और वहां की शिला इनकी शैया थी।
हालांकि महाराणा प्रताप को अपने बच्चों का यह दुख भरा जीवन व्यतीत करते देख अच्छा तो नहीं लग रहा था। लेकिन वह मुगल धर्म स्वीकार करना बिल्कुल नहीं चाहते थे। हालांकि मुगल महाराणा प्रताप को दिन ए इलाही धर्म स्वीकार करने के लिए बहुत मजबूर किए, उन्हें अक्सर प्रलोभन संदेश भेजते रहते थे। लेकिन, महाराणा प्रताप अपने निर्णय पर अडिग रहें।
उन्हें अपने धर्म और देश के लिए अपने सम्मान के लिए जंगल में दुख भरा जीवन व्यतीत करना मंजूर था लेकिन कायरों की तरह मुगलों के सामने घुटने टेक देना उन्हें बिल्कुल भी मंजूर नहीं था। जंगलों में निवास करने के दौरान कई छोटे राजाओं ने महाराणा प्रताप को अपने राज्य में रहने की गुजारिश भी की, लेकिन महाराणा प्रताप मेवाड़ की भूमि को मुगल आधिपत्य से बचाना चाहते थे।
इसलिए उन्होंने प्रतिज्ञा ली थी कि जब तक मेवाड़ आजाद नहीं होगा, वे मेवाड़ को छोड़कर जंगल में ही निवास करेंगे और स्वादिष्ट भोजन और सभी ठाट बाट को छोड़कर फल कंदमूल से ही पेट भरेंगे। लेकिन अकबर के आधिपत्य को कभी स्वीकार नहीं करेंगे। जंगलों में महाराणा प्रताप ने काफी समय भील जनजाति के साथ गुजारा था। उन्होंने भीलों की शक्ति को पहचाना और छापामार युद्ध पद्धति से कई बार मुगल सेना को भी मात दी।
अंत में मेवाड़ के गौरव भामाशाह ने अपनी 20 लाख अशर्फियां और 25 लाख रुपए महाराणा प्रताप को भेट प्रदान किए। जिसके बाद महाराणा प्रताप इन संपत्तियों से पुनः सैन्य संगठित करने में लग गए। इस तरह इस अनुपम सहायता से महाराणा प्रताप ने अपने सैन्य बल का पुनर्गठन किया।
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हल्दीघाटी का युद्ध कहां हुआ था? (Haldighati ka Yuddh Kahan Hua Tha)
राजस्थान में राजसमन्द जिले के अरावली पर्वत श्रृंखला में खमनेर एवं बलीचा गाँव के मध्य एक दर्रा है, इसे हल्दीघाटी कहा जाता है। चूँकि यहाँ की मिट्टी हल्दी की भाँती है, इसलिए इसे हल्दीघाटी कहा जाता है। आज यह एक दर्शनीय स्थल बन गया है। यही से कुछ दूर एक नदी है, उसी नदी को प्रताप पार करके जंगल में गये थे। यहीं पर चेतक की समाधि भी मौजूद है।
हल्दीघाटी युद्ध से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
- हल्दीघाटी का युद्ध राजस्थान के इतिहास के साथ हिंदुस्तान के इतिहास का महत्वपूर्ण युद्ध था, जिसमें मेवाड़ राजा महाराणा प्रताप ने मेवाड़ की आन बचाने के लिए अकबर के विशाल सेना की सामना की।
- इतिहासकारों के अनुसार प्रताप को एक मुसलमान को पनाह देने के कारण अकबर ने युद्ध के लिए ललकारा था।
- हल्दीघाटी की जिस जगह पर युद्ध हुआ, वहां की मिट्टी लाल हो गई थी।
- जेम्स टॉड जिन्होंने राजस्थान का इतिहास पुस्तक लिखी है, जिसमें उन्होंने हल्दीघाटी युद्ध के बारे में भी बताया है और इसमें इन्होंने बताया है कि महाराणा प्रताप की सेना में 20000 सैनिक थे जबकि अकबर की सेना में 80000 सैनिक थे।
- अकबर की सेना का नेतृत्व खुद अकबर नहीं कर रहा था बल्कि उसने राजपूत राजा मानसिंह को सेनापति बनाकर महाराणा प्रताप से लड़ने को भेजा था। जिस कारण यह अजब संयोग बन गया था कि राजपूत राजपूत से लड़ रहा था।
- डॉक्टर चन्द्रशेखर शर्मा की रिसर्च के अनुसार हल्दीघाटी का युद्ध महाराणा प्रताप ने जीता था। इसका सबूत भी उन्होंने पेश किया है। युद्ध के बाद भी महाराणा प्रताप ने जमींन के पट्टे ताम्रपत्र पर जारी किये थे और उनके हस्ताक्षर भी मौजूद है।
- हल्दीघाटी का युद्ध कई दिनों या कई महीनों तक नहीं चला था। यह युद्ध मात्र 1 दिन और वह भी केवल 4 घंटे ही चला था।
- अकबर ने इस युद्ध के बाद मान सिंह को 6 महीने तक दरबार में आने के लिए बैन कर दिया था।
- अकबर कभी भी प्रताप को हरा नहीं पाया था और ना ही अपना गुलाम बना पाया।
- जब प्रताप जंगल में थे तो उन्होंने घास की रोटी बनाकर खाई थी।
सरकार ने क्यों हटा दिया शिलालेख
राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित स्मारक से उन शिलालेख को हटा दिया गया, जिस पर हल्दीघाटी के युद्ध को लेकर गलत तथ्य लिखे गए थे। उन शिलालेख पर महाराणा प्रताप के सेना को मुगल सेना के सामने कमजोर बताया गया था और उसमें यह भी लिखा गया था कि हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप पीछे हट गए थे।
यहां तक कि हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून 1576 को हुआ था, लेकिन उसमें 21 जून 1576 लिखा गया है। हालांकि राजपूत व लोक संगठन लंबे समय से इस शिलालेख को हटाने की मांग कर रहे थे। अब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के द्वारा युद्ध से जुड़े ऐसे गलत तथ्य लिखे गए शिलालेख को हटा दिए गए हैं, जिसके बाद अब एसएसआई हल्दीघाटी के युद्ध पर नया इतिहास लिख कर नया शिलालेख उस जगह पर लगाएगी।
FAQ
हल्दीघाटी में 18 जून 1576 को मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बीच युद्ध हुआ था।
हल्दीघाटी का युद्ध राजस्थान के राजसमन्द जिले के अरावली पर्वत श्रृंखला में खमनेर एवं बलीचा गाँव के मध्य एक दर्रा है, जिसे हल्दीघाटी कहते हैं यहीं पर हुआ था। इस स्थान की मिट्टी हल्दी रंग की है, जिस कारण इस जगह को हल्दीघाटी कहते हैं।
हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून 1576 को महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बीच हुआ था।
हल्दीघाटी का युद्ध महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बीच हुआ था, जिसमें अकबर की सेना का नेतृत्त्व राजपूत राजा मान सिंह कर रहा था।
मुगल शासक अकबर अपने शासन क्षेत्र को विस्तार दे रहा था और वह कई राजपूत राजाओं को मुगल वंश स्वीकार करने के लिए बाध्य कर चुका था और कई राजवंशों ने तो उनके धर्म को स्वीकार कर लिया था। परंतु महाराणा प्रताप मुगल के आधिपत्य को स्वीकार नहीं करना चाहते थे, इसीलिए अंत में युद्ध का फैसला लिया गया और हल्दीघाटी का युद्ध हुआ।
हल्दीघाटी के युद्ध में कौन विजय हुआ इसे लेकर काफी ज्यादा विवाद है। हालांकि ज्यादातर इतिहासकार का यही मानना है कि हल्दीघाटी की युद्ध में महाराणा प्रताप की सेना कभी पीछे नहीं हटी थी, जिसका अर्थ यही है कि इस युद्ध में महाराणा प्रताप की जीत हुई थी।
महाराणा प्रताप के घोड़े का नाम चेतक था। हल्दीघाटी के युद्ध में मुगल सेना के सामने चेतक ने डटकर सामना किया था। महाराणा प्रताप की जान की रक्षा करने के लिए चेतक 25 फीट के दरिया से भी कूद गया था। हल्दीघाटी में महाराणा प्रताप पूरी तरीके से घायल हो गए थे, जिस कारण उन्हें रणभूमि छोड़नी पड़ी थी। अंत में इसी हल्दीघाटी में चेतक भी घायल होकर मर गया।
महाराणा प्रताप के हाथी का नाम रामप्रसाद था और वहां भी बहुत ज्यादा ताकतवर और इसके साथ ही समझदार भी था। हल्दीघाटी के युद्ध में इस हाथी ने अकेले ही अकबर के 13 हाथियों को मार गिराया था। रामप्रसाद हाथी को बंदी बनाने के लिए 7 बड़े हाथियों का चक्रव्यू बनाना पड़ा था और उन पर चौदह हमवत को बैठाना पड़ा था।
निष्कर्ष
हमने इस आर्टिकल में हल्दीघाटी के युद्ध (Haldighati ka Yuddh) के बारें में बताया है। अगर आप भी महाराणा प्रताप की वीर गाथाओं को पढ़ते है तो आपको गर्व होगा कि एक हिन्दू ने अपनी जान तक अपने धर्म और अपने समाज और अपनी प्रजा के लिए न्योछावर कर दी थी।
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