भगवत गीता हिंदुओं का एक धार्मिक ग्रंथ है, जिसमें कुल 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं। भगवत गीता महाभारत का ही एक भाग है, जिसमें महाभारत के भीष्म पर्व खंड के कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन के बीच हुए संवाद का वर्णन किया गया है।
भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया था, वह उपदेश अर्जुन के लिए ही नहीं बल्कि हर एक मानव के लिए है। भगवत गीता में जीवन के हर एक समस्या का हल है। आखिर गीता में ऐसा क्या लिखा गया है, जिसके ध्यान पूर्वक पाठ से और उसके उपदेश को जीवन में लागू करके मानव मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है, उसे जीवन का महत्व समझ में आने लगता है।
यदि आप भी जानना चाहते हैं कि भगवत गीता में ऐसा क्या लिखा गया है तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें। क्योंकि आज के इस लेख में हम आपको भगवत गीता के रचयिता और भगवत गीता में लिखे गए उपदेश के बारे में जानने वाले हैं।
भगवत गीता किसने लिखी और इसमें क्या लिखा गया है?
भगवत गीता किसने लिखा है?
भारत का पवित्र ग्रंथ भगवत गीता को कृष्ण द्वैपायन वेद व्यास ने लिखा था। दरअसल वेदव्यास जी ने मात्र महाभारत के श्लोक बोले थे, इसे लिखने का कार्य गणेश जी ने किया था। भगवत गीता 700 श्लोकों का संकलन है, जो महाभारत में भीष्म पर्व नामक खंड में कौरव और पांडव के युद्ध के किए गए वर्णन में निहित है।
इस खंड में कुरुक्षेत्र के मैदान में युद्ध के दौरान जब अर्जुन कौरवों के दल में अपने गुरु, मित्र, बंधु, परिचित, संबंधियों को देखकर मोहग्रस्त हो जाता है और अपने कर्तव्य के प्रति विमूढ हो जाते हैं तब भगवान श्री कृष्ण उपदेश देकर उन्हें उनके धर्म, कर्म और कर्तव्य के सत्य ज्ञान को बताते हैं और उनके अपनों के प्रति मोह माया को नष्ट करते हैं, जिससे अर्जुन अपने कर्तव्य का पालन करते हुए अपने मित्र, परिचित, संबंधियों के साथ युद्ध लड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं।
भगवत गीता क्या है, उसमें क्या लिखा गया है?
गीता हिंदुओं का बहुत ही पवित्र ग्रंथ है। कहा जाता है कि गीता हिंदुओं के चार वेदों का सार है, इसीलिए इसे सर्वमान्य एकमात्र धर्म ग्रंथ माना जाता है। गीता में व्यक्ति के भक्ति, ज्ञान, कर्म के मार्ग की चर्चा की गई है। गीता के पाठ से मानव मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है।
गीता में सृष्टि की उत्पत्ति, सृष्टि का नाश, उसके विकास क्रम, मानव की उत्पत्ति, धर्म कर्म, भगवान, देवी-देवता, उनकी उपासना, प्रार्थना युद्ध, अंतरिक्ष, आकाश, धरती, संस्कार, कुल, नीति पूर्वजन्म, नर्क स्वर्ग, राष्ट्र निर्माण, आत्मा, कर्म, धर्म, त्रिगुण की संकल्पना आदि सभी की जानकारी दी गई है।
कहा जाता है गीता में जो उपदेश दिया गया है, उस उपदेश को भगवान श्री कृष्ण ने हरियाणा के कुरुक्षेत्र के मैदान में महाभारत के युद्ध के दौरान अर्जुन को सुनाया था। यह उपदेश भगवान श्री कृष्ण को उनके गुरू गैर अंगिरा ने दिया था और उसी उपदेश को भगवान श्री कृष्ण कुरुक्षेत्र के युद्ध के दौरान किंकर्तव्यविमूढ़ अर्जुन को अपने सगे संबंधियों के प्रति मोह छोड़कर अपने कर्तव्य का पालन करने के लिए सुनाया था।
कहा जाता है भगवान श्री कृष्ण ने 45 मिनट तक अर्जुन को उपदेश दिया था। कुरुक्षेत्र के युद्ध के दौरान अर्जुन और श्री कृष्ण के बीच हुआ यही संवाद गीता कहलाता है। गीता के पाठ से मानव को जीवन का रहस्य मालूम हो जाता है, जिससे वह हर प्रकार का मोह त्याग कर भगवान के चरणों में श्रेय पाने की मात्र इच्छा रखता है।
गीता के सभी अध्याय
पहला अध्याय
यह अध्याय अर्जुनविषादयोग नाम से है। इस अध्याय में 46 श्लोक के माध्यम से युद्ध भूमि में विपरित पक्ष में अपने सगे संबंधियों और गुरुओं को देख अर्जुन के मनो स्थिति का वर्णन किया गया है। इस अध्याय में दोनों सेनाओं के शूरवीरों की गणना, सामर्थ्य और शंख ध्वनि का कथन भी निहित है।
इस अध्याय में अपने सगे संबंधियों के मोह से व्याप्त अर्जुन की कायरता, उनके प्रति अर्जुन का स्नेह और शोक युक्त वचन को वर्णन किया गया है। युद्ध भूमि में कौरवों के दल में अपने गुरुओं और सगे संबंधियों को देख अर्जुन मोह में आ जाते हैं और युद्ध से पीछे हटने का मन बना लेते हैं। भगवान श्री कृष्ण को कहते हैं कि अपने बंधुओं को मारकर विजय प्राप्त कर लेने से मुझे कभी भी सुख की प्राप्ति नहीं होगी।
दूसरा अध्याय
भगवत गीता के अध्याय को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। क्योंकि इस अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को कर्मयोग ज्ञानयोग, बुद्धियोग सांख्य योग और आत्मज्ञान देते हैं। यह अध्याय सांख्ययोग नाम से है। इस अध्याय में कुल 72 श्लोक है और इसे भगवत गीता का संपूर्ण सारांश माना जाता है।
इसी अध्याय में भगवान श्री कृष्ण के उस उपदेश का वर्णन किया गया है, जिसके जरिए वे युद्ध से विमुख अर्जुन को युद्ध लड़ने के लिए प्रेरित करते हैं। अर्जुन हर तरह से युद्ध छोड़कर जाने की बात कहते हैं। लेकिन भगवान श्री कृष्ण उपदेश देते हैं कि तुम जिनके लिए मोह कर रहे हो, दरअसल वह पापी है और यदि तुम इस क्षण युद्ध से विमुख हो जाते हो तो यह तुम्हारी कायरता और नपुसंकता कहलाएंगी। यदि तुम उनका वध नहीं करते हो तो तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी।
भगवान श्री कृष्ण ने इसी अध्याय में अर्जुन को आत्मा का ज्ञान देते हुए कहा कि आत्मा का वध कभी नहीं किया जाता है। तुम जिनका युद्ध में वध करने से मना कर रहे हो, दरअसल वह उनका शरीर है और एक ना एक दिन उन्हें इस शरीर को त्याग करना ही है। इसीलिए इस क्षण तुम अपना लाभ-हानि, सुख-दुख, जय-पराजय को सामान समझ कर अपने कर्तव्य को समझते हुए युद्ध के लिए तैयार हो जाओ।
तीसरा अध्याय
भगवत गीता का यह अध्याय कर्मयोग से संबंधित है। इसीलिए इसे कर्मयोग नाम से जाना जाता है। भगवान श्री कृष्ण ने इस अध्याय में अर्जुन को उपदेश देते हुए कर्म करते रहने और फल की चिंता ना करने को कहते हैं। इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने कर्मों का गंभीर विवेचन किया है।
इसी अध्याय में हिंदू धर्म के कर्म के सिद्धांत का निचोड़ लिखा गया है। यह अध्याय हिंदू धर्म को कर्म वादी धर्म बताता है। इसी अध्याय में बताया गया है किस तरह भगवान श्रीकृष्ण ने अज्ञानी और ज्ञानवान के लक्षण, रोग और द्वेष से रहित होकर कर्म करने की प्रेरणा अर्जुन को दी है। इस अध्याय में कुल 43 श्लोक हैं।
चौथा अध्याय
भगवत गीता के इस चौथे अध्याय में ज्ञान, कर्म और सन्यास योग का वर्णन किया गया है, इसीलिए इस अध्याय को ज्ञानकर्मसंन्यासयोग नाम से जाना जाता है। इस अध्याय में कुल 42 श्लोक हैं।
इन्हीं 42 श्लोक के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को योगी महात्मा पुरुषों के आचरण, उनकी महिमा, कर्मयोग का विषय, शगुन भगवान का प्रभाव, फलसहित पृथक पृथक यज्ञों का कथन और ज्ञान की महिमा का उपदेश दिया है।
पांचवां अध्याय
गीता का पांचवा अध्याय कर्मसंन्यासयोग नाम से है, जिसमें कुल 29 श्लोक हैं। इसी अध्याय में वर्णित किया गया है कि अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण से पूछते हैं कि कर्म योग और ध्यान योग में से उत्तम कौन सा है तब भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि दोनों का ही लक्ष्य समान है परंतु कर्म योग बेहतर है। इस अध्याय में कर्म योग, सांख्य योग का निर्णय, उसके लक्षण, उसकी महिमा, भक्तों सहित ध्यान योग का वर्णन, ज्ञान योग का विषय का वर्णन किया गया है।
छठा अध्याय
भगवत गीता का छठा अध्याय आत्मसंयमयोग नाम से है। इसमें कुल 47 श्लोक हैं। इसस अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को अष्टांग योग के बारे में बताया है। इसी अध्याय में योगारूढ पुरुषों के लक्षण, कर्मयोग का विषय, आत्म-उद्धार के लिए प्रेरणा, ध्यान योग का वर्णन, उसकी महिमा, योगभ्रष्ट पुरुष की गति का विषय और मन के निग्रह का विषय का वर्णन किया गया है।
सातवां अध्याय
गीता के सातवें अध्याय में कुल 30 श्लोक हैं। इस अध्याय को ज्ञानविज्ञानयोग नाम जाना जाता है। इस अध्याय के जरिए भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को वास्तविकता, भ्रमित ऊर्जा और माया के बारे में बताया है। इस अध्याय में आसुरी स्वभाव वालों की निंदा और भक्तों की प्रशंसा, विज्ञान सहित ज्ञान का विषय, संपूर्ण पदार्थों में कारण रूप से ईश्वर की व्यापकता का कथन, भगवान के प्रभाव और स्वरूप पर ना जाने वालों की निंदा और जानने वालों की महिमा का वर्णन किया गया है।
आठवां अध्याय
गीता के आठवें अध्याय में स्वर्ग और नर्क का सिद्धांत शामिल है, यह अध्याय अक्षरब्रह्मयोग है। इसमें मृत्यु से पहले व्यक्ति की सोच, अध्यात्म और कर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और श्रीकृष्ण के द्वारा दिए गए उनके उत्तर है, नर्क और स्वर्ग जाने की राह, शुक्ला एवं कृष्ण मार्ग के रहस्य और भक्ति योग के बारे में वर्णन किया गया है। इस अध्याय में कुल 28 श्र्लोक हैं।
नौवां अध्याय
गीता के नौवें अध्याय में कुल 34 लोग हैं, यह राजविद्याराजगुह्ययोग नाम से है। इसमें प्रभावसहित ज्ञान का विषय है। इस अध्याय में बताया गया है कि भगवान श्री कृष्ण की आंतरिक ऊर्जा सृष्टि का सृजन करती है और ब्रह्मांड का नाश करती है। इसमें प्राकृतिक तत्वों की चर्चा और ईश्वर का जगत के साथ संबंध का वर्णन है।
इसमें देवी प्रकृति वालों की प्रशंसा और भगवान का तिरस्कार करने वाले आसुरी प्रकृति वालों की निंदा, सृष्टि की उत्पत्ति का विषय, सर्वात्म रूप से प्रभाव सहित भगवान के स्वरूप का वर्णन शामिल है।
दसवां अध्याय
भगवत गीता का दसवां अध्याय विभूतियोग नाम से है। इस अध्याय में कुल 42 श्र्लोक हैं। इस अध्याय में अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति तथा विभूति और योगशक्ति को कहने के लिए प्रार्थना, फल और प्रभाव सहित भक्तियोग का कथन और योग शक्ति का वर्णन शामिल है।
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ग्यारहवां अध्याय
गीता का 11वां अध्याय विश्वरूपदर्शनयोग नाम से है, जिसमें कुल 55 श्लोक हैं। इसी अध्याय में बताया गया है कि अर्जुन की प्रार्थना पर भगवान श्री कृष्ण विश्व रूप धारण करते हैं।
इसके अतिरिक्त भगवान श्री कृष्ण के विश्वरूप का अर्जुन द्वारा स्तुति, भगवान द्वारा अपने प्रभाव का वर्णन, भयभीत अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति और चतुर्भुज रूप का दर्शन कराने के लिए प्रार्थना, अर्जुन को युद्ध के लिए उत्साहित करना, बिना अनन्य भक्ति के चतुर्भुज रूप के दर्शन की दुर्लभता और फलसहित अनन्य भक्ति का वर्णन किया गया है।
बारहवां अध्याय
गीता का 12 वां अध्याय भक्तियोग नाम से है। इसमें साकार और निराकार के उपासकों की उत्तमता का निर्णय और भगवत्प्राप्ति के उपाय का वर्णन, भक्ति योग का वर्णन है। इसी अध्याय में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को भक्ति मार्ग की महिमा बताते हैं। इस अध्याय में कुल 20 श्र्लोक हैं।
तेरहवां अध्याय
गीता का यह अध्याय क्षेत्र-क्षेत्रज्ञविभागयोग नाम से है। इस अध्याय में ज्ञानसहित क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ के विषय का वर्णन है और ज्ञानसहित प्रकृति-पुरुष के विषय का विषद वर्णन किया गया है। इस अध्याय में कुल 35 श्लोक हैं। इसी अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को सत्व, रज और तम गुणों द्वारा अच्छी योनि में जन्म लेने का उपाय बताया है।
चौदहवां अध्याय
भगवत गीता के 14 अध्याय में कुल 27 श्लोक हैं। गीता का यह अध्याय गुणत्रयविभागयोग नाम से है। इस अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने सत्व, रज और तम गुणों सहित ज्ञान की महिमा और प्रकृति-पुरुष से जगत् की उत्पत्ति का वर्णन करते हैं। इस अध्याय में गुणातीत पुरुष के लक्षण बताए गए हैं।
पंद्रहवां अध्याय
गीता का यह अध्याय पुरुषोत्तमयोग के नाम से है। इस अध्याय में जीवात्मा के विषय का विषद विवेचन और प्रभाव सहित परमेश्वर के स्वरूप का वर्णन किया गया है।
इसी अध्याय में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि देवी प्रकृति वाले ज्ञानी पुरुष सर्व प्रकार से भगवान श्री कृष्ण का भजन करते हैं जबकि असुरी प्रकृति वाले अज्ञानी पुरुष उनका उपहास करते हैं। इसमें संसार को उल्टे वृक्ष की तरह बताकर भगवत्प्राप्ति के उपाय बताए गए हैं। इस अध्याय में कुल 20 श्लोक हैं।
सोलहवां अध्याय
भगवत गीता का 16 अध्याय दैवासुरसंपद्विभाग योग नाम से है। इस अध्याय में आसुरी संपदा वालों के लक्षण और उनकी अधोगति का विर्णन किया गया है।
इसके साथ ही ज्ञानी पुरुष और स्त्री प्रकृति वाले अज्ञानी पुरुषों के लक्षण के बारे में बताया गया है। इसके अलावा शास्त्रविपरीत आचरणों को त्यागने और शास्त्रानुकूल आचरणों के लिए प्रेरणा दी गई है। इसमें कुल 24 श्लोक हैं।
सत्रहवां अध्याय
श्रद्धात्रय विभाग योग गीता का सत्रहवां अध्याय है। इस अध्याय में आहार, यज्ञ, तप और दान के पृथक-पृथक भेद बताए गए हैं। इसी अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को शास्त्र विधि का ज्ञान ना होने पर भी जो यज्ञ पूजा आदि शुभ कर्मों को श्रद्धा पूर्वक करते हैं, उनकी स्थिति के बारे में बताया है। इसमें श्रद्धा का और शास्त्रविपरीत घोर तप करने वालों के विषय का वर्णन है। इस अध्याय में कुल 28 श्लोक हैं।
अठारहवां अध्याय
मोक्ष-संन्यास योग गीता का अठारहवां अध्याय है। इसमें कर्म, कर्ता, बुद्धि, धृति और सुख के पृथक-पृथक भेद, त्याग का विषद वर्णन, कर्मों के होने में सांख्यसिद्धांत का कथन और भक्ति सहित कर्मयोग का विवेचन किया गया है।
इस अध्याय में कुल 78 श्लोक हैं। इसी अध्याय में अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण से न्यास यानी ज्ञानयोग का और त्याग अर्थात फलासक्ति रहित कर्मयोग का तत्व जानने की इच्छा प्रकट करने का वर्णन किया गया है।
भगवत गीता को कब और कैसे पढ़ना चाहिए?
वैसे तो गीता का पाठ कभी भी किसी भी समय किया जा सकता है। क्योंकि गीता के पाठ के समय से ज्यादा गीता के उपदेश को, जीवन में लागू करना ही सबसे बड़ा कार्य होता है। फिर भी गीता एक पवित्र ग्रंथ है, जिसमें भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन का संवाद दिया हुआ है और इसके पाठ से मानव का अज्ञानता का अंधकार नष्ट हो जाता है और ज्ञान रूपी प्रकाश को ग्रहण करता है।
इसीलिए जिस तरह पूजा-पाठ का उचित समय सुबह का होता है, ठीक गीता का पाठ करने का भी समय सुबह सबसे उचित माना जाता है। गीता पवित्र ग्रंथ है, इसीलिए कभी भी गीता को बिना स्नान किए नहीं पढ़ना चाहिए। ना ही गंदे हाथों से इसे छूना चाहिए। गीता का सम्मान करना चाहिए। खाने पीने के बाद नहीं छूना चाहिए ना ही इसका पाठ करना चाहिए।
गीता में महाभारत के भीष्म पर्व नाम अखंड में श्री कृष्ण और अर्जुन के संवादों को संग्रहीत किया गया है और महाभारत के रचयिता गणेश जी को माना जाता है और गीता महाभारत का एक भाग है, इसीलिए गीता के पाठ से पहले भगवान श्री गणेश का ध्यान करना चाहिए।
गीता को हमेशा स्वच्छ लाल कपड़े पर रखकर पढ़ना चाहिए, उसे जमीन पर नहीं रखना चाहिए। साथ ही गीता पढ़ते वक्त पूर्ण ध्यान गीता में लिखे संवादो पर होना चाहिए। गीता के पढ़ने के दौरान बातचीत करना या मन में कुछ गलत चीज लाना गीता का अपमान करने के बराबर है।
गीता के हर एक श्लोक को पढ़ने के बाद उसके सार को भी पूर्णतः समझने का प्रयत्न करना चाहिए। गीता का पाठ उसी स्थान पर बैठकर करना चाहिए, जहां पर आपको आराम महसूस हो रहा हो और उस जगह पर शांति हो। गीता को पढ़ने से पहले और बाद में उसे माथे से लगाकर प्रणाम करना चाहिए।
ब्रेल लिपि में गीता
दुनिया में अब तक गीता के कई सारे संस्करण निकल चुके हैं, जो अलग-अलग भाषाओं में है। ये संस्करण दृष्टि युक्त व्यक्ति के लिए पढ़ना आसान है लेकिन एक दृष्टिहीन व्यक्ति मात्र गीता को सुनकर ही समझता है।
लेकिन ब्रेल लिपि के द्वारा वह गीता को पढ़ भी सकता है। इसीलिए दुनिया की बहुत सारी किताबें ब्रेल लिपि में लिखी गई है तो वहीं दृष्टिहीन व्यक्तियों को भी गीता पढ़ने का अवसर प्राप्त हो सके, इसलिए ब्रेल लिपि में भागवद गीता भी रचा गया है।
FAQ
भगवत गीता में श्री कृष्ण और अर्जुन के बिच का संवाद है, जो कुरुक्षेत्र के युद्ध के दौरान भगवान श्री कृष्ण ने किंकर्तव्यविमूढ़ हो गए अर्जुन को पथ प्रदर्शित करने के लिए अर्जुन को सुनाया है। इसमें ज्ञान योग, कर्म योग, भक्ति योग, राजयोग और एकेश्वरवाद की बहुत सुंदर ढंग से चर्चा की गई है। भगवत गीता के जरिए सृष्टि के प्रत्येक मानव को कर्म का महत्व समझाया गया है।
भगवत गीता में सुख और दुख के लक्षण बताते हुए इसे सर्दी और गर्मी के समान बताया गया है। सुख और दुख दोनों को ही सहने की क्षमता मानव में होनी चाहिए। भगवत गीता में कहा गया है कि यदि व्यक्ति बुरी इच्छा और लालच को छोड़ दे तो उसे बहुत सुख मिलता है, उसे शांति मिलती है। हालांकि इच्छाओं से मुक्त कोई भी नहीं हो सकता लेकिन अच्छी इच्छा से व्यक्ति को सुख मिलता है।
भगवत गीता में कर्म के बारे में कहा गया है कि वहीँ कर्म मानव को करना चाहिए, जिससे उसे खुशी मिलती हो। अपने अस्तित्व की जरूरत के अनुसार ही कर्म करना चाहिए और अपने कर्म के अनुसार ही व्यक्ति फल की प्राप्ति करता है, इसीलिए कर्म हमेशा अच्छा होना चाहिए ताकि मानव मोक्ष की प्राप्ति करें।
भगवत गीता में शिक्षा के बारे में लिखा गया है कि शिक्षा और ज्ञान उसी को मिलता है, जिसको जिज्ञासा होती है। सम्मान पूर्वक सवाल पूछने से व्यक्ति को ज्ञान मिलता है। शिक्षा के बारे में कहा गया है कि किताबों में लिखी या सुनी बातों पर तर्क करना चाहिए, इससे ज्ञान की वृद्धि होती है।
भगवत गीता में प्रेम के बारे में कहा गया है कि प्रेम ही जीवन का आधार है। जिस व्यक्ति के जीवन में प्रेम है, उसका जीवन शांति से भरा है। जो व्यक्ति प्रेम करता है वह संतुष्ट रहता है और जिस व्यक्ति के जीवन में प्रेम नहीं वह व्यक्ति अहंकार, ईर्ष्या और द्वेष से घिरा रहता है, जो दिमक के भाती उसको अंदर ही अंदर खोखला कर देता है।
निष्कर्ष
भगवत गीता ना केवल एक ग्रंथ है बल्कि जीवन की असली परिभाषा है। भगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण को अर्जुन के द्वारा पूछे जाने वाला हर एक प्रश्न हर एक मानव के जीवन से जुड़ा है, जिसे वह कभी ना कभी उसका उत्तर जानने की कोशिश करता है। भगवत गीता में जिवन के हर एक रहस्य का जवाब है।
मानव जीवन में तमाम दुःख है, दुखों से मुक्ति पाने के लिए भगवत गीता की एक माध्यम है। भगवत गीता के पाठ से ही मानव अपने जीवन में संतुष्ट हो सकता है, अपने जीवन का महत्व जान सकता है, इसलिए हर किसी को भगवत गीता पढ़नी चाहिए।
इस तरह आज के इस लेख के जरिए आपको भगवत गीता में क्या लिखा गया है और उसके रचयिता कौन है यह जानने को मिला। हमें उम्मीद है कि आज का यह लेख पढ़ने के बाद आप भी भगवत गीता के उपदेश को अपने जीवन में लागू करेंगे।
यह लेख बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पवित्र ग्रंथ भगवत गीता पर लिखा गया है। इसलिए इस लेख को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ताकि हर एक व्यक्ति भगवत गीता को पढ़ने के लिए प्रेरित होए।
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