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होली पर निबंध संस्कृत में

Essay on Holi in Sanskrit: नमस्कार दोस्तों, आज हमने यहां पर विद्यार्थियों की सहायता के लिए होली पर्व पर संस्कृत में निबंध शेयर किये है। यह होलिकोत्सव: निबन्ध सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए मददगार साबित होंगे।

Essay on Holi in Sanskrit
होली पर निबंध संस्कृत में (essay on holi in sanskrit)

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होली पर निबंध संस्कृत में 10 लाइन (10 Lines on Holi in Sanskrit)

  1. होलिकोत्सव: अस्माकं देशे अनेका उत्सवा: भवन्ति।
  2. तेषु होलिकोत्सव: उत्शाहवधर्क: भवन्ति।
  3. होलिका वासनाप्रतिमूर्ति: हिरन्येशिपो: भगिनी आसीत्।
  4. अस्याम एवं रात्रौ तस्या: दाह भवन्ति।
  5. तस्य एवं प्रितये अस्लिलशब्यूतानि गितानी गियन्ते।
  6. छात्रकृश्ना – प्रतिपदाया एष: वत्संतोत्सव: भवति।
  7. अस्मिन दिवस गृहे–गृहे शुष्कंली– , पूप पैसादिभोजन पाच्यते।
  8. विविध्रागम्यनी जलांनि जनेषु निक्षप्यन्ते।
  9. क्रदमानी एपीआई केचन जना: क्षपन्ति।
  10. जना: सायनकाले भुविधम गीतं गायन्ते।
  11. जना: सायंकाले भुविधम गीतं गायन्ति जना: गृहं गायन्ति।
  12. जना: गृह, गृह गत्वा अविरालेपनं कुर्वन्ति स्वागतं च प्राप्नुवन्ति।
holi par sanskrit mein nibandh
Image: holi par sanskrit mein nibandh

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होली पर संस्कृत में निबंध (Essay on Holi in Sanskrit)

होलिकोत्सव: भारतवर्षस्य सर्वजनानानं कृते प्रिय: उत्सव:अस्ति। अयम उत्सव: फल्गुन शुक्ल पक्षस्य पुर्णिमायां तिथौ संघटते। अयमुत्सव: भारतवर्षस्य प्रसिद्ध: उत्सव आस्ति।

एतस्योत्स्वस्य सम्बन्धिनी एका सुप्रसिद्धा कथा प्रस्तूयतेडत्र हिरण्यकशिपोः भगिनी होलिकास्वभृआतू संतोषाय स्वकीयं भृतृजं प्रच्छादम अन्गके निधाय सगर्व वद्धौ प्रविष्टा, यत: वरदान प्रभावद् व्रद्दि: तां दगर्धु न पृभवतस्मि किंतु अद्य भगवत: कृपया होलिका भस्म्साज्जता। बालक: प्रहलाद: ईश्वरस्य प्रसादेन पृतापेन च सुरक्षित: आसीत्।

बालक: प्रहलाद: प्रदीप्ताड् रेषु क्रीडान् मोदमानमनस: तत्र आसीत्। हिरण्यकषिपु स्वपुत्रं प्रहलादं मरयितुम अनेकाएक षडयन्त्रम् अकुर्बन। दृढ़पृतिज्ञ प्रहलादः स्वकीये सत्यागृहे सफलोजातः। अंते च भगवान नृसिंह: हिरण्यकषिपुम् अभारयत। तदारभ्य होलिकदहनम् उदिश्य होलिकोत्सव प्रारभत। प्रह्लादस्य चरित्रेण एषा शिक्षा प्राप्ता भवति यद्-

निन्दन्तु नीतिनिपुणा,यदि वा स्तुवन्तु
लक्ष्मी: समाविषतु गच्छ्तु वा यथेष्ठम्।
अदैव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा,
न्ययातपथ: पृविचलंति पदं न धीरा:।।

नीतिनिपुणा: श्लाघन्ताम उत निन्दतू सम्पति प्राप्यताम अथवा नष्टा भवतु, अद्य मरणम् वा युगान्ते भवतु- किन्तु धीरा: कदापि विचलिता: ना भवन्ति। कठिन सन्दर्भेपि न्यययं मार्ग न परित्यजंती।

अस्मिन पर्वणि पुरा यगिकैयन्ज्ञा अनुश्ठीयते स्मा तटस्थाने साम्पृतं केवलं वृक्षलता-गुल्म-काण्ठानि हरितानि शुष्काणी वा ‌इत‌स्तत: स‌ंहृत्य शुठकोपलै: सह दाहयन्ति जना: एतत् तस्य सर्वथा विकृंत स्वरूपम। फाल्गुन शुक्ल पक्षस्य पूर्णिमायां तिथौ होलिकादाह: कर्त‌व्य इति एस शाष्त्रीयो विधी‌:।

तदनु प्रतिपति्यौ प्रात: रागक्रीडार्थाय बालिका: युतान: वृद्धास्य स्ववयस्यै: सह आयन्ति, परस्परं स्नेहेन मिलन्ति होलिकारांग गायन्ति, क्रीडन्ती, कूर्दर्न्ती, नृत्यन्ती, समुच्छलन्ति च।

मध्याहकालं यावद् इदं क्रीडा प्रचलति। तदनन्तरं स्नानादिकं विधायक पूर्वरागद्वेषादिकं नीचोच्चभावना: च परित्यज्य सर्वे परस्परं मिलन्त: सन्त: अबीरादिलेपनं मिष्ठान्न्दिकस्य अपि वितरणं परस्परं विदधति।

स्पृश्याडस्पृश्यस्य, नीचोच्चभावनायाश्च‌ समापनाय एवं अयमुत्सव: आविष्कृत इति मन्ये। साम्प्रतिके मुंडे एवा स्पृश्यास्पृश्य भावना राष्ट्रीय प्रगति परे बाधारूपेण पुर: पतति, इत्येव सामाजिकानां मत‌म्। तस्माद् अस्य गालियां प्रभृतिभि: कुकृत्यै: दुरूपयोगो न कर्तव्य: अयमुत्सवो जनरत्जनाय मनोत्जनाय च समुद्भूतम् इति सर्वसम्मतं मतम्।

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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