Essay on Dussehra in Hindi: भारत देश को त्योहारों का देश भी कहते है। इसके पीछे वजह यह है कि यहाँ हर एक दिन कोई ना कोई त्यौहार आते ही रहते है। यहाँ सारे तीज-त्योहार बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाये जाते है। सभी धर्मों के त्योहार को एक ही श्रद्धा भाव से मनाया जाता है।
चाहे वो ईद हो या महाराज अग्रसेन जयंती, चाहे वो झूलेलाल जयंती हो या महावीर जयंती, चाहे वो क्रिसमस हो या दीपावली, चाहे वो गुरु नानक जयंती हो या छत्रपति शिवाजी महाराज जयंती। सभी धर्मों के सारे त्योहार को पूरा देश एक जुट हो कर एक साथ मनाते है।
सनातन धर्म से जुड़ा एक बहुत बड़ा पर्व अक्टूबर महीने में आने वाला है, जिसके बारे में आप सभी पाठक आज के लेख में पढ़ेंगे। इस त्योहार का नाम दशहरा है।
यह दशहरा पर निबंध हिंदी में (Dussehra Par Nibandh) कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और उच्च शिक्षा के विधार्थियों के लिए बहुत मददगार साबित होगा।
दशहरा पर निबंध | Essay on Dussehra in Hindi
दशहरा पर निबंध 100 शब्द (100 Word Dussehra Essay in Hindi)
दशहरा बहुत ही प्रिय त्योहार है, जिसको लेकर के भारत का हर एक बच्चा, बूढ़ा और हर एक व्यापारी प्रसन्न होता है। क्योंकि आज के दिन मेले का आयोजन किया जाता है और लोग मेले में जाकर के अपना मनोरंजन करते हैं और इसके साथ-साथ लोगों को रामायण के विषय में भी अथाह जानकारियां प्राप्त होती हैं और उन्हें कुछ ना कुछ तो सीखने को जरूर मिलता है।
ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान श्री राम ने रावण का वध किया था और इसी के उपलक्ष में दशहरे का आयोजन किया जाता है। ऐसा दिखाया जाता है कि आज के दिन बुराई पर सच्चाई की जीत हुई है। आज के दिन लोग रावण की विशाल विशाल प्रतिमाएं बना करके उसका अध्ययन करते हैं और बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाते हैं।
दशहरा पर निबंध 150 शब्द (Dussehra Essay in Hindi)
भारत में कई जगह दशहरे की शुरुआत नवरात्रि के प्रथम दिन से ही शुरू हो जाती है। लोग नवरात्रि के प्रथम दिन से ही रामायण का पाठ करते हैं और कई जगहों पर रामायण के चलचित्र भी चलाए जाते हैं। कई जगहों पर रामायण को सुनाया भी जाता है और कई जगहों पर रामायण को लेकर उपदेश भी दिए जाते हैं। रामायण हमारे प्राचीन ग्रंथों में एक ऐसी ग्रंथ मानी जाती है, जिसे लोग अच्छाई का प्रतीक मानते हैं।
नवरात्रि के इन 9 दिनों में माता दुर्गा के नौ रूपों का आवाहन भी किया जाता है और प्रतिदिन प्रतिरोधों के अनुसार माता की पूजा-अर्चना भी की जाती है। नवरात्रि के अंतिम दिन अर्थात महानवमी और महा दशमी के दिन माता की मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है और पूरे भारतवर्ष में इस नवरात्रि और दशहरे के त्यौहार को बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है और लोगों को माता का आशीर्वाद और उनके दर्शन मिल सके इसलिए मूर्तियां पूरे शहर में घुमाई जाती हैं।
दशहरा पर निबंध 250 शब्द (Dashara Per Nibandh)
दशहरा दीपों के त्योहार दिवाली से मात्र कुछ हफ्ते अर्थात 3 हफ्ते पूर्व ही होता है। ऐसी मान्यता है कि नवरात्रि के 9 दिन रामायण का पाठ करने और पाटन सुनने से ह्रदय शांत होता है और एक अच्छा व्यक्ति बनने में भी सहायता मिलती हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि रामायण का जाप करने से आपके शरीर से सदैव सुख और बाधाएं दूर रहती हैं। रामायण पूर्ण रूप से एक धार्मिक ग्रंथ है।
दशहरा लोगों के जीवन में एक नई उमंग लाता है और लोगों को बुराई से लड़ने की ताकत भी देता है। दशहरे के त्यौहार को लेकर के लोग इतनी ज्यादा उत्सुक होते हैं कि वे प्रतिदिन जाकर के रामायण का आनंद उठाते हैं और लोगों को उसके विषय में बताते भी हैं, ताकि अन्य लोग भी ज्ञान के भागी बन सके।
हमारी सनातनी एवं हिंदुत्व मान्यता रामायण इतनी ज्यादा शक्तिशाली है कि यहां पर विदेशी भी आते हैं तो वे राम का नाम लेने से नहीं चूकते। राम नाम एक ऐसा शब्द है, जो लोगों के दिलों में और उनके हृदय में एक सकारात्मक भाव उत्पन्न करती हैं। राम नाम का जाप करने से आपका मन शांत और दिमाग शुद्ध हो जाता है। बहुत से लोग ऐसे हैं, जो इस बात को गलत ठहराते हैं। परंतु वैज्ञानिक रूप से भी कब तक कुछ नहीं पता चला है कि राम नाम के पीछे का आखिर सत्य क्या है।
हिंदुओं के लिए तो राम नाम शब्द एक अपार शक्ति है और केवल हिंदू ही नहीं बल्कि देश विदेश के और भी लोग राम नाम की महिमा से भलीभांति अवगत हैं। दशहरा भगवान श्री राम की जीत अर्थात् अच्छाई की जीत का एक त्यौहार है।
दशहरा पर निबंध 300 शब्द (Dussehra Par Nibandh)
प्रस्तावना
भारत में कई जगह दशहरे की शुरुआत नवरात्रि के प्रथम दिन से ही शुरू हो जाती है। लोग नवरात्रि के प्रथम दिन से ही रामायण का पाठ करते हैं और कई जगहों पर रामायण के चलचित्र भी चलाए जाते हैं।
ऐसा माना जाता है कि आज के दिन भगवान श्री राम ने रावण का वध किया था और इसी के उपलक्ष में दशहरे का आयोजन किया जाता है और ऐसा दिखाया जाता है कि आज के दिन बुराई पर सच्चाई की जीत हुई है।
दशहरा क्यों मनाया जाता है?
दशहरा मनाया जाने के पीछे का बहुत ही बड़ा इतिहास है और हिंदू धर्म के मुताबिक यह भारत का बहुत ही लोकप्रिय त्यौहार भी है। दशहरा इसीलिए मनाया जाता है क्योंकि आज के ही दिन पुरुषों में उत्तम भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था और बुराई पर अच्छाई की जीत हुई थी।
इसी के उपलक्ष में आज पूरे भारत भर में दशहरे का त्यौहार बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। दशहरे का त्यौहार लोगों के दिलों में एक नई उमंग को भर देता है और लोग पुनः 1 वर्ष खुद को बुराई से लड़ने के लिए तैयार कर लेते हैं।
दशहरे के दिन लोग क्या करते हैं?
दशहरे के दिन भारत के सभी लोग रामायण का पाठ और बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाते हैं। इसी जीत को दिखाने के लिए लोग प्रतिवर्ष मेले का आयोजन करते हैं और रावण की बहुत ही विशाल प्रतिमा बनाकर उसका अध्ययन करते हैं। रावण की विशाल प्रतिमा बनाने का अर्थ यह है कि बुराई कितनी भी विशाल क्यों ना हो परंतु अच्छाई के सामने घुटने टेक ही देती है।
हालांकि रामायण बहुत ही ज्ञानी था परंतु उसके अंदर के अहंकार ओं के कारण उसे मृत्युदंड दिया गया। भारत में दशहरे के दिन सभी लोग अपने अपने घरों को सजाते हैं और भगवान श्री राम का ध्यान करते हैं और रामायण का पाठ करवाते हैं।
दशहरा पर निबंध (500 शब्द)
प्रस्तावना
दशहरा को भारत के कई शहरों और प्रांतों में विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है। विजयादशमी का अर्थ है बुराई पर अच्छाई की जीत। विजयादशमी को लेकर लोगों के ह्रदय में बहुत ही ज्यादा उमंग देखने को मिलता है।
दशहरे का समय छात्रों के लिए बहुत ही अच्छा होता है और सभी छात्र दशहरे को खूब इंजॉय भी करते हैं। छात्र दशहरे के विषय में अच्छे तरीके से जानकारी प्राप्त कर सके और दशहरे का त्यौहार अच्छे तरीके से बना सके, इसलिए उन्हें स्कूल और कॉलेजों से लंबी छुट्टियां भी दी जाती हैं।
दशहरे की कहानी
भारतीय मान्यताओं के अनुसार दशहरा मनाए जाने का एक बहुत ही प्रमुख और प्राचीन इतिहास है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्री राम ने आज के ही दिन अहंकारी और दुराचारी रावण का वध किया था। भगवान श्री राम ने रावण का वध करके बुराई का नाश किया और अच्छाई को लोगों के दिलों में उजागर किया। आज इसी के उपलक्ष में दशहरे का त्यौहार मनाया जाता है। दशहरे का त्यौहार आज से नहीं बल्कि रावण के वध के बाद से प्रतिवर्ष मनाया जा रहा है।
दशहरा को ले करके दूसरी कहानी यह कही जाती है कि एक बार दुराचारी असुर राक्षस महिषासुर अपने आतंक को फैला कर पूरी सृष्टि को जीतना चाहता था। इसके लिए महिषासुर ने देवराज इंद्र को भी अपने वश में कर लिया और उन्हें हराकर इंद्रलोक का राजा बन गया। महिषासुर ने इस पूरे संसार में अपने शक्ति के घमंड में आकर तांडव मचाना शुरू कर दिया और उसका वध करने के लिए कोई भी सक्षम नहीं था।
उसके बढ़ते दुराचार को देखते हुए जगत जननी माता दुर्गा ने अपना विशाल रूप धारण किया और महिषासुर से युद्ध किया और युद्ध के दौरान माता ने महिषासुर का वध कर दिया। महिषासुर का वध इस संसार में बहुत ही अच्छा प्रभाव लाया और धीरे-धीरे करके इस सृष्टि का पुनर स्थापन भी हुआ। इसीलिए पूरी नवरात्रि माता का आह्वान किया जाता है और उनसे विश्व की रक्षा के लिए प्रार्थना की जाती है।
दशहरा का महत्व
दशहरा के पीछे का सबसे बड़ा महत्व यह है कि लोगों को यह बताया जा सके कि बुराई कितनी भी बड़ी क्यों ना हो, कितनी भी विशाल क्यों ना हो और वह कितनी भी शक्तिशाली क्यों ना हो, उसे अच्छाई के सामने हार ना ही पड़ता है। दशहरा मनाने का मुख्य उद्देश्य यह है कि लोग यह जान सके कि कैसे भगवान श्रीराम ने शक्ति के सागर रावण का वध किया था।
दशहरा पर निबंध (1200 शब्द)
प्रस्तावना
दशहरा का त्योहार भारत देश के बहुसंख्यक धर्म यानि हिन्दू धर्म का एक खास और महत्वपूर्ण पर्व है। इस त्योहार को विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है। यह त्योहार पुरातन काल से मनाया जा रहा है, जो आज तक उसी उमंग के साथ मनाया जाता है।
यह त्योहार हिन्दू पंचांग के अनुसार अश्विन शुक्ल दशमी को आता है और ग्रोगेरियन पंचांग के अनुसार सितंबर या अक्टूबर को आता है। इस बार 5 अक्टूबर 2022 को दशहरा पूरे भारत में मनाया जाएगा। इस त्योहार को मनाने के पीछे भारत के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग मान्यताऐं है।
इस दिन इतिहास में ऐसी घटना घटी थी, जिसमें बहुत बड़ी जीत मिली थी। इसे कई जगह आयुध-पूजा भी कहते है। इसे वीरता प्रकट करने वाला त्योहार भी कहते है।
दशहरा क्यों मनाया जाता है?
विजयादशमी या दशहरा का संबंध ‘शक्ति’ से है। जिस तरह ज्ञान के लिए सरस्वती माँ की उपासना करते है, उसी प्रकार शक्ति के लिए माँ दुर्गा की उपासना करी जाती है। दशहरा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है। दशहरा को अलग –अलग करेंगे तो हमें दश+हर शब्द मिलते है जिसका अर्थ होता है, दस बुराइयों से छुटकारा पाना।
एक मान्यता के अनुसार महिषासुर नामक राक्षक के अत्याचार से मुक्त करने के लिए माँ दुर्गा ने उसका संहार किया था। इसी वजह से दुर्गा माता को महिषासुर मर्दिनी भी कहते है। दुर्गा माँ ने महिषासुर के अलावा शुंभ-निशुंभ और चामुंडा माँ का रूप धारण कर चंड-मुंड राक्षसों का वध किया है।
दूसरी मान्यता के अनुसार श्रीराम जी ने रावण का वध करने से पहले माँ दुर्गा की पूजा की थी और उसके बाद उन्होंने इसी दिन ही रावण को मृत्यु के घाट उतारा था। इसी वजह से भारतवर्ष के कई प्रांतों में इस पर्व को दुर्गा पूजा के नाम से जाना जाता है, खासकर पश्चिम बंगाल और झारखण्ड में।
वो दो घटना जिसके तहत विजयादशमी पर्व को मनाया जाता है, कुछ इस प्रकार है:
माँ दुर्गा द्वारा महिषासुर का वध
हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार पुरातन काल में महिषासुर नाम का एक खूंखार राक्षस हुआ करता था, जिसने तीनों लोक में आतंक मचा रखा था। महिषासुर ने ऐसी-ऐसी दैवीय शक्तियां प्राप्त कर रखी थी, जिसके सामने देवता लोग भी टिक नहीं पाते थे।
फिर देवताओं ने मिलकर माँ दुर्गा से महिषासुर का नाश करने की विनती की। तब माँ दुर्गा ने अपना रौद्र रूप दिखा कर महिषासुर के साथ लगभग नौ दिनों तक युद्ध किया। फिर दसवें दिन महिषासुर का अंत कर दिया और उस दिन को हम सभी विजयादशमी के नाम से आजतक मानते आ रहे है।
भगवान राम द्वारा अहंकारी लंका नरेश रावण का वध
जब श्री राम अपने पिता दशरथ और माता कैकयी के द्वारा दिए गए 14 साल का वनवास अपने छोटे भाई लक्ष्मण और भार्या माता सीता काट रहे थे। तब बुद्धिजीवी अहंकारी लंका नरेश रावण अपनी बहन शूर्पणखा के अपमान का बदला लेने के लिए छलपूर्वक सीता का अपहरण कर अपने साथ लंका ले आता है। राम रावण को पहले चेतावनी देता है कि उनकी पत्नी सीता को सकुशल वापस लौट दे अन्यथा उन्हे बहुत बड़े परिणाम से भुगतना होगा।
लेकिन उनकी ये विनती रावण ने नहीं स्वीकारी जिसके फलस्वरूप युद्ध का आरंभ हुआ। श्री राम अपने भाई लक्ष्मण, सुग्रीव, श्रीराम भक्त हनुमान और वानर सेना के साथ लंका पर कूच करने निकल पड़े। लेकिन जैसे ही आधे रास्ते पहुँचे तो उनके सामने विशाल समुद्र स्वागत कर रहा था। उसके ऊपर पत्थरों का पुल बनाकर वो लंका तक पहुँचे। इस पुल के अवशेष आज भी भारत और श्रीलंका के बीच में देखे जा सकते है, इसे रामसेतु से जाना जाता है।
लंका पहुंचते ही उन दोनों के बीच घमासान युद्ध हुआ और अंत में राम जी ने रावण जी का वध करके सीता माता को छुड़वाकर अपने साथ अयोध्या ले गए। जिस दिन राम ने रावण को मारा, उस दिन को दशहरा से जाना जाता है और अभी के समय में भी इस दिन को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।
रावण के बारे में एक बात ये भी जान लीजिए कि उनसे बाद ज्ञानी और शक्तिशाली पूरी दुनिया में कोई नहीं था। लेकिन अहंकार ने उन्हें विनाश की ओर ले कर गया। इसलिए दशहरे को असत्य पर सत्य की विजय का पर्व भी कहते है।
ऐसा माना जाता है कि भगवान राम जीन 108 कमल से प्रार्थना कर रहे थे। उसमें से एक कमल कहीं खो गया, जिसके साथ वो प्रार्थना कर रहे थे। जब श्री राम अपनी प्रार्थनाओं के अंत तक पहुँचे और महसूस किया कि एक कमल गायब है तो उन्होंने अपनी आँखों को नोचना शुरू कर दिया और अपनी प्रार्थना पूरी करने लग गए। इसके पीछे वजह यह थी कि उनकी आँखें कमल का प्रतिनिधित्व करती थी, इसलिए उन्होंने अपनी आँखों को नोचा था।
दशहरा का त्योहार कैसे मनाया जाता है?
विजयादशमी का त्योहार पूरे दस दिन तक चलता है। अश्विन शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होकर अश्विन शुक्ल दशमी तक चलता है। प्रतिपदा के दिन माँ दुर्गा की स्थापना की जाती है जिसे घट स्थापना भी कहते है। गोबर से कलश सजाया जाता है। कलश के ऊपर जौ के दाने खोंसे जाते है और नौ दिनों तक नियमपूर्वक देवी की पूजा, कीर्तन और दुर्गा-पाठ किया जाता है।
नवमी वाले दिन पाँच या सात कन्याओं को जातक अपने हाथ से भोजन खिलाता है, उसके बाद देवी की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है। नौ दिन चलने वाले इस उत्सव को नवरात्र के नाम से भी जाना जाता है। दशमी के दिन दशहरा या विजयादशमी को हर प्रांत वाले अपने तरीके से मनाते है। इसको कुछ लोग कृषि प्रधान के रूप में मनाते है।
गाँवों में इस दिन लोग जौ के अंकुर तोड़कर अपनी पगड़ी में, कानों और टोपियों में लगाते है। उत्तर भारत में दस दिनों तक रामलीला का मंचन होता है। अंतिम दिन रावण का पुतला बना कर उसका दहन किया जाता है। राजस्थान में शक्ति पूजा की जाती है। बंगाल और झारखण्ड में दुर्गा पूजा खास तरह की होती है। गुजरात में गरबा और डांडिया द्वारा इस उत्सव को मनाया जाता है। क्षत्रिय इस दिन अपने अस्त्र-शस्त्र की पूजा अर्चना करते है।
दशहरा के मेले
दशहरा में मेले का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। ये पर्व पूरे परिवार के साथ मनाया जाता है। शाम के समय परिवार वाले मेला मैदान की ओर जाते है, वहाँ बच्चों के लिए झूले और बड़ों के लिए दुकानें सजी हुई होती है। बुजुर्गों का काम छोटे बच्चों पर नजर रखना और हाथ पकड़ कर रखना होता है। क्योंकि मेले में भीड़ बहुत ज्यादा होती है।
इसके साथ ही वहाँ रावण, मेघनाद और कुभकर्ण के पुतले खड़े होते है, जिनका दहन एक उचित समय पर श्री राम की भूमिका निभाने वाला अदाकार करता है। कही जगह समारोह में आये मुख्य अतिथि द्वारा पुतलों को जलाया जाता है। पुतला दहन के माध्यम से समाज को यह सीख दी जाती है कि हमेशा से ही बुराई पर अच्छाई की ही जीत हुई है, बहले ही देर से हुई हो लेकिन जीत हमेशा अच्छाई की ही होती है।
कुछ मेले विश्व प्रसिद्ध है उसमें से कोटा का दशहरा मेला, कोलकाता का और वाराणसी का मेला शामिल है। इस दिन सड़कों पर बहुत भीड़ होती है और आस-पास के गाँवों के लोग शहर का मेला देखने के लिए आते है। इतिहास के एक पन्ने के अनुसार दशहरा का जश्न महाराज दुर्जनशल सिंह हंडा के शासन काल में शुरू हुया था।
दशहरे के दिन होने वाले कार्यक्रम
इस दिन हर प्रांत में अलग-अलग कार्यक्रम होते है, जिसे लोग बड़े ही चाव और उमंग के साथ मनाते है। इस दिन लोग खूब नाचते और गाते है, मिठाइयाँ बाँटते है। जहाँ देखो वहाँ खुशियाँ ही खुशियाँ दिखती है। इस दिन होने वाले प्रमुख कार्यक्रम इस प्रकार है-
दुर्गा पूजा
इस त्योहार भारत के कई राज्यों जैसे बिहार, असम, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, गुजरात, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना आदि राज्यों में नौ दिनों तक माँ दुर्गा की पूजा की जाती है और इन नौ दिनों तक श्रद्धालु उपवास रखते है। नौ दिनों तक माँ दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है, क्योंकि हर रूप की अलग महत्ता है।
गली-मोहल्लों और मंदिरों में माँ दुर्गा की एक विशेष मूर्ति स्थापित की जाती है और उसकी हर दिन सुबह शाम पूजा की जाती है। यह दृश्य बड़ा ही रोचक और भक्तिमयी होता है। पूजा करने के बाद प्रसाद बांटा जाता है और श्रद्धालुओं द्वारा माँ का आशीर्वाद समझकर ग्रहण किया जाता है। नौ दिन अच्छे से पूजा पाठ करके दसवे दिन यानि विजयादशमी के दिन माँ दुर्गा की मूर्तियों की झाँकियाँ निकाल कर किसी तालाब/नाड़ी/नदी या समुद्र में विसर्जित कर दिया जाता है।
झाँकियाँ
दशहरा के इस पावन पर्व पर झांकी निकालने का विशेष आयोजन किया जाता है, जिसमें सभी स्थानों पर अलग-अलग प्रकार की झाँकियाँ निकाली जाती हैं। कही पर माँ दुर्गा की मूर्ति को लेकर नाच गानों के साथ पूरे गाँव और शहर में घुमाई जाती है और अंत में माँ दुर्गा की मूर्ति को जल में विसर्जित कर दिया जाता है। कुछ स्थानों पर रामलीला के सभी पात्रों की झाँकियाँ निकाली जाती हैं, जो खूब सारे ढोल नगाड़े बजने के साथ आतिशबाजी होते हुए निकली जाती है।
शस्त्र पूजन
इस दिन क्षत्रियों द्वारा अपने सारे अस्त्र-शस्त्र की पूजा करी जाती है। क्योंकि दशहरा त्योहार वर्षा ऋतु के खत्म होने के बाद आता है, इसलिए राजा महाराजा युद्ध करने के लिए और शिकार करने के लिए वर्षा ऋतु के बाद ही बाहर निकलते हैं, इसलिए वह पहले अपने अस्त्र शस्त्र की पूजा करते थे।
रामलीला मंचन
दशहरा का त्योहार राम और रावण से जुड़ा हुआ है तो भारत के एक विशिष्ट प्रांत यानि उत्तर भारत में दस दिनों तक रामलीला का मंचन किया जाता है। मंचन के अंदर अदाकार रामायण काल के सभी पात्रों के जीवन को दर्शाते है। मुख्य रूप से श्री राम के वनवास से लेकर रावण वध का मंचन होता है और यही महत्वपूर्ण दृश्य होता है।
रामलीला का मंचन सभी शहरों और गाँवों में होता है खासकर गाँवों में ज्यादा होता है, रामलीला का मंचन एक निश्चित और उपयुक्त जगह पर होता है, जहाँ शाम के समय सभी लोग इकट्ठा होकर रामलीला का आनंद उठा सके। रामलीला के द्वारा लोगों को जागरूक किया जाता है कि हमेशा अच्छाई की ही जीत होती है। जिनको रामायण के बारे में नहीं पता होता है, उनको पूरी रामायण उनके सामने बता दी जाती है।
पुतला दहन
इस दिन रावण के पुतले का दहन भी किया जाता है और रावण का पुतला लकड़ी और कागजों से बनाया जाता है, साथ में पटाखे भी भरे जाते है। आज कल रावण के पुतले के साथ-साथ कुंभकरण और मेघनाद के भी पुतले बना कर उनका दहन किया जाता है। पुतलों के घुटनों में तीर चलाकर आग लगाई जाती है फिर वो आग अपनी चपेट में पूरे पुतले को ले लेती है और पुतला धूँ-धूँ कर जलने लगता है।
दशहरा त्योहार का महत्व
भारत के इतिहास में दहशरा त्योहार का महत्व बहुत है। क्योंकि पुरातन काल में राजा दशहरे के दिन ही युद्ध पर निकलते थे या फिर किसी शुभ कार्य को करने के लिए इसी दिन को चुनते थे। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन कोई भी कार्य किया जाता है, वो अवश्य ही सफल होता है।
दशहरा का पर्व हर एक के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है। इस दिन लोग अपना मन बना ले तो अपने अंदर बसी बुराइयों को खत्म करके नये जीवन की शुरुआत कर सकता है, क्योंकि ये त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत की खुशी में मनाया जाता है। सबका जश्न अपने अनुसार अलग-अलग होता है, किसानों के लिए फसल को घर लाने का जश्न, बच्चों के लिए राम द्वारा रावण का वध का जश्न, बड़ों द्वारा बुराई पर अच्छाई का जश्न होता है।
लोगों का मानना है कि ये दिन बड़ा ही शुभ और पवित्र होता है, इस दिन शुरू किये गए कार्य में जरूर सफलता मिलती है। इसका एक महत्वपूर्ण उदाहरण यह है कि जब मराठा रत्न शिवाजी ने औरंगजेब से युद्ध किया था तो इसी दिन को चुना था और हिन्दू धर्म की रक्षा की थी।
दशहरा से जुड़ी बहुत पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई उनमें से खास भगवान राम का रावण पर विजय, पांडव का वनवास, माँ दुर्गा द्वारा महिषासुर का वध और देवी सती का अग्नि में सामना है।
दहशरे से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
- कहा जाता है कि अगर रावण का वध राम के द्वारा नहीं किया जाता तो सूरज हमेशा के लिए अस्त हो जाता।
- एक मान्यता के अनुसार श्री राम ने रावण के दसों सिर यानि दस बुराइयों को खत्म किया, जो हमारे अंदर पाप, काम, क्रोध, मोह, लाभ, घमंड, स्वार्थ, जलन, अहंकार, अमानवता और अन्याय के रूप में मौजूद है। हमें भी इन बुराइयों को नष्ट करना होगा।
- इस दिन माँ दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था।
- महिषासुर असुरों का राजा था, जो लोगों को चैन से बैठने नहीं देता। कोई ना कोई अत्याचार करता ही रहता था। उसके अत्याचार से छुटकारा दिलाने के लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने शक्ति यानि माँ दुर्गा का निर्माण किया और महिषासुर का वध करके उसके अत्याचारों से छुटकारा दिलवाया।
- ऐसी भी मान्यता है कि नवरात्र में देवी दुर्गा अपने मायके आती है और उनकी विदाई हेतु लोग नवरात्र के दसवे दिन उन्हें पानी में विसर्जित करते है।
- यह त्योहार भारत में ही नहीं बल्कि मलेशिया, बांग्लादेश और नेपाल में भी मनाया जाता है और मलेशिया में राष्ट्रीय अवकाश भी होता है।
- मैसूर के राजा के द्वारा सत्रहवी शताब्दी में मैसूर में दशहरा का जश्न मनाना शुरू हुआ।
- दशहरा श्री राम और माता दुर्गा दोनों का महत्व दर्शाता है, रावण को हराने के लिए श्री राम ने माँ दुर्गा की पूजा की थी और आशीर्वाद के रूप में माँ ने रावण को मारने का रहस्य बताया था।
निष्कर्ष
विजयादशमी मनाने के पीछे रामलीला का उत्सव पुरातन कथाओं को इशारा करता है। रामलीला सीता माता के अपहरण के पूरे इतिहास बताता है, लंका नरेश असुर राजा रावण, उनके बेटे मेघनाद और उनके मँझले भाई कुंभकर्ण की हार और राम जी की जीत दर्शाता है।
ये पर्व ऐसा है जिसमें लोगों के मन में नई ऊर्जा, बुराई पर अच्छाई की जीत और लोगों के मन में नई चाह और सात्विक ऊर्जा भी ले आता है। हिन्दू धर्मग्रंथ रामायण के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि देवी दुर्गा को प्रसन्न करने और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए श्री राम ने चंडी हवन करवाया था। दशहरा त्योहार खुशियों और हर्षोल्लास का उत्सव है, लेकिन इस त्योहार की जितनी पौराणिक मान्यताऐं हैं उतनी किसी और त्योहार की नहीं हैं।
इस त्योहार से हमें बहुत कुछ सीखने को भी मिलता है। सत्य की जीत हमेशा से होती आई है होती है और होती रहेगी। हमें माँ दुर्गा की तरह बुराइयों का अंत करने के लिए हमेशा प्रतिबद्ध रहना चाहिए कभी भी बुराइयों के आगे झुकना नहीं चाहिए और श्री राम के जीवन से हमें यह सीखने को मिलता है कि हमेशा शांत रह कर सत्य का मार्ग अपनाना चाहिए।
दशहरा पर 10 लाइन का निबंध (10 Lines on Dussehra in Hindi)
अंतिम शब्द
इन सभी बातों के साथ मैं आप सभी पाठकों से कुछ सवाल कर रहा हूँ, आप अपने स्वविवेक से अपने जवाब अपने मन को देना और अपना आँकलन करना।
- जब रावण सतयुग में मार दिया गया है तो हम अभी भी उनके पुतले को क्यों जला रहे है?
- पुतले से ज्यादा अगर हम अपने अंदर छुपी एक बुराई को खत्म को कर दे तो क्या जीवन सफल हो जायेगा?
- जहाँ देवी को नौ दिनों तक पूजा जाता है, वहाँ नारी को इतना सम्मान और उनके प्रति देखने की भावना में इतना अंतर क्यों है?
- मन में ऐसे विचारों का दमन करना आवश्यक है या केवल पुतलों को जलाना?
- अगर किसी के अत्याचार से पीड़ित होकर कोई नारी माँ दुर्गा जैसा रौद्र रूप धर कर उस अत्याचारी महिषासुर का वध कर दे तो इस समाज में वो उचित होगा?
- अगर कोई रावण के पद चिन्हों पर चले तो वो सार्थक होगा?
- अहंकारी मानव बनने से अच्छा क्या है?
- श्री राम ने रावण के अंतिम समय के दौरान लक्ष्मण को उनसे ज्ञान लेने के लिए भेजा था, उन्होंने ऐसा कृत्य किस कारण किया था?
- दस बुराइयों को अपने मन से जड़ सहित समाप्त करने के बाद आप क्या महसूस करेंगे?
ये नौ सवाल आप अपने आप से पूछिये और उनके जवाब एक पन्ने पर लिखे या अपने दिमाग में ही उत्तर दे दे। अगर सवालों में कुछ दम लगे तो ये सवाल अपने आस-पड़ोस से भी पूछिये। क्योंकि हम उस देश में जी रहे है, जहाँ एक ओर देवी को पूजा जाता है तो दूसरी ओर उसी देवी के रूप नारी के साथ जबरदस्ती की जाती है।
आखिर कब तक यह होता रहेगा, आखिर कब तक ये सब कुछ सहना पड़ेगा? इस लेख के माध्यम से मैं यह सुनिश्चित करना चाहता हूँ कि इस विजयदशमी को एक प्रण ले कि अपने अंदर छिपी एक बुराई को खत्म करूँगा/करूँगी और साथ में अपने परिवार वालों, रिश्तेदारों और दोस्तों से भी यही प्रण दिलवाऊँगा/दिलवाऊँगी।
क्योंकि एक बात तो साफ है जब तक पूरा देश इसके खिलाफ आवाज नहीं उठाएगा तब तक कुछ नहीं हो सकता। छोटी सी शुरुआत कर दी और आगे तक पहुँचाना आपके हाथ है, बात करने से ही बदलाव की उम्मीद है तो बात करिए और इस विजयादशमी को अच्छे से मनाए।
इस विजयादशमी को मुहिम छेड़ दीजिए, रावण के पुतले से पहले अपने अंदर छिपी बुराइयों को नाश करिए तभी सतयुग का रावण गर्व महसूस करेगा। इस दशहरे को एक यादगार दशहरा बनाइये।
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