Home > Essay > बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर निबंध

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर निबंध

Beti Bachao Beti Padhao Essay in Hindi: भारत धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से विश्व के सभी देशों में सर्वोपरि है। लेकिन भारतीय समाज में सदियों से महिलाओं की स्थिति अन्य देशों से हमेशा ही खराब रही है।

समाज भले ही बेटियों को चारदीवारी के अंदर रखें लेकिन भारतीय समाज जिस हिंदू धर्म शास्त्र को पड़ता है, उसे सम्मान देता है, उस धर्म शास्त्रों में भी स्त्रियों को देवी और सृष्टि का निर्माता बताया गया है।

आज हम देख सकते हैं कि खेल जगत से लेकर विज्ञान जगत तक, हर क्षेत्र में महिलाएं अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही है। कहीं ना कहीं यह चीज भारत सरकार द्वारा चलाई गई बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना के कारण ही संभव हो पाया है।

Essay on Beti Bachao Beti Padhao in Hindi
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ हिंदी निबंध (Essay on Beti Bachao Beti Padhao in Hindi)

इस योजना ने भारत के समाज में महिलाओं की स्थिति को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यहां पर हम बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर निबंध इन हिंदी (Beti Bachao Beti Padhao Essay in Hindi) लिखे हैं।

यह भी पढ़े: हिंदी के महत्वपूर्ण निबंध

विषय सूची

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ निबंध 100 शब्दों में

भारत में सदियों से ही महिलाओं को उनके अधिकार से वंचित रखा गया है। सदियों से ही महिलाएं पुरुषों का गुलाम बन कर रह रही है। जब भी महिलाओं के साथ कुछ गलत हुआ है तो समाज गलत करने वाले व्यक्ति पर उंगली नहीं उठाई बल्कि महिलाओं के रहन-सहन पर उंगली उठाई हैं।

ऐसी परिस्थिति में यदि महिला शिक्षित हो तो समाज को मुंह तोड़ कर जवाब दे सकती है। महिला शिक्षित होगी तो वह अपने साथ होने वाली बुराइयों के खिलाफ लड़ पाएगी। क्योंकि आज बहुत सी महिलाएं अपने साथ हुए अपराध को दबा कर रखती है ताकि समाज में उसे बेइज्जत ना होना पड़े।

यही चीज उसे अंदर ही अंदर परेशान करते रहती है, जिसके कारण अंत में समाज के तानों से बचने के लिए वह आत्महत्या को स्वीकार कर लेती है। समाज में महिलाओं के प्रति रूढ़िवादी सोच को खत्म करने के लिए सरकार ने साल 2015 को बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान की शुरुआत की।

इस अभियान के कारण आज भारत के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाएं अपनी प्रतिभा को दिखा पा रही हैं। इस अभियान के कारण आज हर कोई अपने बेटियों को शिक्षित करने के लिए जागरूक हो रहा है।

आज समाज में महिलाओं के सपनों को भी महत्व दिया जा रहा है। आज महिलाओं की स्थिति को बेहतर बनाना संभव हो पाया है, सिर्फ और सिर्फ बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के कारण।

beti bachao beti padhao nibandh
Image: beti bachao beti padhao nibandh

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर निबंध इन हिंदी 150 शब्दों में

जैसा कि हम जानते और समझते है कि भारत देश एक कृषि प्रधान देश होने के साथ-साथ पुरुष प्रधान देश भी है। शुरुआत से ही लड़कियों को दबाने की सोच ही विकसित हुई है, जो समय के साथ धीरे-धीरे कम भी हुई है। अब हर जगह महिलाओं को समान अधिकार दिये गए है।

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ एक अभियान नहीं अपितु लोगों के दिल में बसी इस ओछी सोच को मिटाना भी है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान की शुरुआत देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 22 जनवरी 2015 को पानीपत, हरियाणा में हुयी थी।

इस अभियान की शुरुआत करने से पहले नरेंद्र मोदी ने कहा था कि बेटियों के जन्म होने पर उसे वैसे ही धूमधाम से मनाएँ जिस तरह बेटों के जन्मोत्सव को मनाया जाता है।

इसके साथ ही जिनके घर बेटी पैदा होती है वो परिवार पाँच पेड़ लगाने का संकल्प लें। बेटों के बराबर बेटियों को अधिकार मिले इसलिए इस अभियान की शुरुआत हुई।

Beti Bachao Beti Padhao Essay in Hindi
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ निबंध (Beti Bachao Beti Padhao Essay in Hindi)

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर निबंध 300 शब्दों में

प्रस्तावना

कहते है माँ जैसा कोई नहीं होता है, वो अपना निवाला त्याग कर अपने बच्चों को खिला देती है और उसी माँ को इस देश में समान अधिकार नहीं मिलता है। यह भारत जैसे देश की सबसे बड़ी विडम्बना है।

कहने का मतलब यह है कि जहाँ इस देश में देशवासी देश को माँ का दर्ज़ा देते है, वही यहाँ के निवासी बेटियों को अधिकार देने में चूक जाते है। देशवासियों को यह याद दिलाना पड़ता है कि बेटे और बेटी में फर्क नहीं करना होता है, दोनों को समान अधिकार और सम्मान के साथ जीने की आजादी है।

इसी सोच को हटाने और कन्याओं का भविष्य बनाने के लिए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान की शुरुआत हुई।

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान क्या है?

देश में लगातार कन्या शिशु दर में गिरावट को संतुलित करने और उनका भविष्य सुरक्षित करने के लिए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना की शुरुआत की गयी थी। स्त्री और पुरुष जीवन के दो पहलू है, दोनों को एक साथ चलना होगा तभी जीवन का मार्ग सरलतापूर्वक निकलेगा।

देश का प्रत्येक दंपति केवल लड़का पाने की इच्छा रखता है और इसी इच्छा के कारण देश में लिंगानुपात में भारी गिरावट आई। उसी गिरावट को एक सही दिशा में उछाल लाने के लिए ऐसी योजना या अभियान की शुरुआत करनी पड़ी, जो देश के लिए शर्मनाक बात है।

वैसे देखा जाएं तो भारत के अलावा पूरे विश्व में स्त्रियों के साथ भेदभाव किया जाता है, पुरुषों से अधिक काबिल स्त्रियों को समान काम में पुरुषों के मुक़ाबले कम वेतन दिया जाता है।

निष्कर्ष

आदिकाल से जो लड़कियों के ऊपर अत्याचार हुये उनके पीछे का कारण अशिक्षा थी। अगर हमारे पूर्वज पढ़े-लिखे होते तो आज हमारी स्थिति कई गुना सुधरी हुई होती।

जब बेटियाँ पढ़ेगी-लिखेगी तो वो अपने अधिकारों के लिए खड़ी होगी, इसी आशा के साथ बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान की शुरुआत नरेंद्र मोदी ने 22 जनवरी 2015 को पानीपत में की।

Beti Bachao Beti Padhao Essay in Hindi
Beti Bachao Beti Padhao Essay in Hindi

यह भी पढ़े

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर निबंध 500 शब्दों में

भूमिका

पृथ्वी पर हर जीव जन्तु का अस्तित्व नर और मादा दोनों के समान भागीदारी के बिना संभव नहीं है। मानव जाति के लिए पुरुष और महिला का योगदान होता है। किसी भी देश के विकास के लिए पुरुष और महिला का समान रूप से योगदान रहना जरूरी है अन्यथा देश का विकास रुक जाता है।

मानव जाति का सबसे बड़ा दोष या अपराध कन्या भ्रूण हत्या है। देश के अधिकतर रहवासी अल्ट्रासाउंड के माध्यम से बच्चा होने से पहले ही लिंग परीक्षण करवा देते है, अगर लड़की निकलती है तो उसे पैदा होने से पहले ही गर्भ में मरवा देते है।

इन सब को रोकने के लिए ही देश के प्रधानमंत्री को बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का जागरूकता अभियान शुरू करना पड़ा।

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान क्या है?

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ एक ऐसा जागरूकता वाला अभियान है, जिसका मुख्य उद्देश्य कन्या शिशु को बचाना और उनको शिक्षित करना है। इस अभियान का शुभारम्भ भारतीय सरकार के द्वारा 22 जनवरी 2015 को हरियाणा राज्य के पानीपत शहर में किया गया।

इसके अंतर्गत कन्या शिशु के लिए जागरूकता का निर्माण करना और महिला कल्याण में सुधार लाना अभियान के प्रमुख बिन्दुओं में से एक है।

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान की आवश्यकता क्यों पड़ी?

भारत में 2001 की जनगणना में 0-6 वर्ष के बच्चों का लिंगानुपात का आँकड़ा 1000 लड़कों के अनुपात में लड़कियों की संख्या 927 थी, जो कि 2010 कि जनगणना में घटकर 1000 लड़कों के अनुपात में 918 लड़कियाँ हो गई।

सरकार के लिए यह एक गंभीर चिंता का विषय बन गया, इसलिए सरकार को बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना शुरू करने की आवश्यकता महसूस हुई।

यूनिसेफ़ (UNICEF) ने भारत को बाल लिंगानुपात में 195 देशों में से 41वां स्थान दिया, यानि की हमारा देश लिंगानुपात में 40 देशों से पीछे है। अपनी रैंक में सुधार करने और कन्या शिशु को बचाने के लिए सरकार द्वारा सख्ती से योजना का शुभारम्भ किया गया।

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान का उद्देश्य

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम का उद्देश्य बेटियों के अस्तित्व को सुरक्षा प्रदान करना है और बेटियों के जन्म दर में बढ़ोतरी करना है।

कन्या भ्रूण हत्या को रोकना है, इसलिए हर चिकित्सालय में बाहर कन्या भ्रूण हत्या कानूनन अपराध है यह वाक्य देखने को मिलता है। लड़कियों के प्रति शोषण का खत्मा करके उन्हें आत्मनिर्भर बनाना है।

उपसंहार

इस अभियान को जितना फैलाया जा सकता है उतना फैलाना होगा, जिससे हर गाँव, ढाणी और शहर में लड़कियों को हीन भावना से देखना बंद हो जाए। उन्हें पूरा सम्मान और पूरे अधिकार मिल सके।

एक बच्ची दुनिया में आकर सबसे पहले बेटी बनती है। वे अपने माता पिता के लिए विपत्ति के समय में ढाल बनकर खड़ी रहती है। बालिका बन कर भाई की मदद करती है। बाद में धर्मपत्नी बनकर अपने पति और ससुराल वालों का हर अच्छी बुरी परिस्थिति में साथ निभाती है।

स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा था कि “नारी का उत्थान स्वयं नारी ही कर सकती है। कोई और उन्हें उठा नहीं सकता है। वह स्वयं उठेगी। बस, उठने में उसे सहयोग की आवश्यकता है और जब वह उठ खड़ी होगी तो दुनिया की कोई ताकत उसे रोक नहीं सकती, वह उठेगी और समस्त विश्व को अपनी जादुई कुशलता से आश्चर्यचकित कर देगी।“

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर 800 शब्दों में निबंध

प्रस्तावना

किसी भी देश के विकास में महिला और पुरुष दोनों का ही योगदान होता है। अभी ही नहीं बल्कि सदियों से ही महिलाएं हर चीज में अपना योगदान देते आ रही है। फिर भी महिलाओं के योगदान को हमेशा ही नजरअंदाज किया गया है और पुरुषों को उत्तम बताया गया है, जिस कारण समाज में हमेशा ही महिलाओं की स्थिति खराब रह गई है।

भारत जैसे देश में लोगों की मनोवृति बेटियों के प्रति बहुत रूढ़ीवादी है। जिस कारण आज भी किसी धर्म एक से ज्यादा दे दिया होती है तो भेज जन्म से पहले ही लिंग की जांच करवा कर उसकी हत्या कर देते है।

लेकिन लोगों को समझने की जरूरत है कि महिला और पुरुष दोनों ही एक गाड़ी के पहिए की तरह है। बिना एक पहिए के गाड़ी चल नहीं सकती है। समाज के विकास में बेटियों का भी योगदान होता है।

यदि हम उनको थोड़ा और बढ़ावा दें और खुलकर जीवन जीने का अधिकार दे तो वे और भी ज्यादा योगदान दे सकती है। हालांकि भारतीय संविधान में महिलाओ को भी पुरुषों की तरह ही समान अधिकार दिए गए हैं।

लेकिन समाज बेटियों के अधिकार को लागू नहीं होने देता, जिस कारण निरंतर बेटियों की जनसंख्या घटते ही जा रही है। यदि समाज में महिलाओं की स्थिति को उत्तम बनाना है तो महिलाओं को भी सपनों की उड़ान भरने के लिए हौसला देना जरूरी है।

इसके लिए उन्हें शिक्षा की जरूरत है। क्योंकि एक महिला ही दूसरी महिलाओ के प्रति गलत सोचती है। भले ही लोग कहे कि समाज में बेटियों की स्थिति खराब है लेकिन इसका कहीं ना कहीं जिम्मेदार खुद महिलाएं भी हैं।

जब एक महिलाएं दूसरी महिला की समस्या को नहीं समझती है तो यह समाज उनकी समस्याओं को क्या समझेगा। इसीलिए जरूरी है कि हर महिलाएं शिक्षित बने ताकि वह अपनी बेटियों को भी शिक्षित करें और अपनी बेटियों को सपनों के पंख लगा सके।

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान क्या है?

समाज में निरंतर बेटियों की जनसंख्या में होने वाली कमी, उनकी खराब स्थिति को देखते हुए साल 2015 को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों तथा महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान की शुरुआत की गई।

शुरुआत से ही हरियाणा राज्य में महिलाओं की जनसंख्या भारत के अन्य राज्यों की तुलना में काफी कम थी, इसलिए इस अभियान की शुरुआत सबसे पहले हरियाणा में की गई लेकिन आज इस अभियान को भारत के अन्य प्रदेशों में भी चलाया जा रहा है।

सरकार ने इस योजना के तहत पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम 1994 को लागू किया, जिसके तहत यदी कोई भी डॉक्टर लिंग परीक्षण करते हुए पकड़ा गया तो उसका लाइसेंस रद्द हो जाएगा इसके साथ ही उसपर कानूनी कार्यवाही भी चलाई जाएगी।

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान की आवश्यकता

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे अभियान को चलाने की आवश्यकता पड़े यह एक देश के लिए काफी शर्म की बात है। लेकिन जब समाज में बेटियों की स्थिति खराब हो तो उनके उत्थान के लिए ऐसे अभियान की जरूरत पड़ती है।

भारत में अब तक जितनी जनगणना हुई उस रिपोर्ट में हमेशा ही महिलाओं की जनसंख्या घटते हुए नजर आई और इसका कारण है निरक्षरता। आज भी समाज में लड़कियों के प्रति लोगों की मनोवृति पहले की तरह है‌ भले आज का समय मॉडर्न हो चुका हूं लेकिन लोगों की सोच आज भी काफी हद तक रूढ़िवादी है।

आज भी समाज में दहेज प्रथा व्याप्त है और महिलाओं के निरक्षता के कारण ज्यादातर लोग अपनी बेटियों को पढ़ाना नहीं चाहते हैं। काफी लोगों की मनोवृति ऐसी होती है कि वे सोचते हैं कि बेटियों को पढ़ा कर क्या फायदा है? क्योंकि बेटी को तो 1 दिन पराए घर जाना है।

महिलाओं की घटती जनसंख्या का कारण दहेज प्रथा भी है। बेटियों के विवाह में ज्यादा दहेज ना देना पड़े इस कारण बहुत गरीब परिवार में बालिका की जन्म होने से पहले ही उसे मार दिया जाता है। समाज में से ऐसी बुराइयों को हटाने के लिए ही सरकार को बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान लाने की आवश्यकता पड़ी।

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान का उद्देश्य

  • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान का उद्देश्य समाज में महिलाओं की खराब स्थिति को अच्छा करना है।
  • देशभर में घट रही महिलाओं की जनसंख्या को संतुलित करना।
  • इस अभियान का उद्देश्य लोगों को जागरूक करना है, उन्हें अपनी बेटियों को पढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना है ताकि आगे चलकर महिलाएं खुद के ऊपर निर्भर रहे समाज उनका गलत फायदा ना उठाएं।
  • बेटियां पढेगी तब वह अपने खिलाफ हो रहे बुराइयों का जवाब दे पाएगी, उसका सामना कर पाएगी। इसीलिए इस अभियान का उद्देश्य है कि हर बालिका को उच्च से उच्च शिक्षा मिले और उसे सपनों के आसमान में उड़ने के लिए परर मिले।
  • समाज में बेटियों की खराब स्थिति को अच्छा किया जा सके और लोगों को अपनी बेटियों को पढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।
  • इस योजना का उद्देश्य महिलाओं को भी पुरुषों की तरह ही सामान अधिकार देना है ताकि वह भी पुरुषों की तरह हर एक क्षेत्र में अपनी भागीदारी दे सके और देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सके।
  • इस योजना का उद्देश्य समाज में महिलाओं के साथ हो रहे भेदभाव और सेक्स डिटरमिनेशन टेस्ट को रोकना है।
  • समाज में महिलाओं को एक सम्मानपूर्वक जीवन दिलाना ही इस योजना का उद्देश्य है।

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान का प्रभाव

सरकार के द्वारा लाई गई बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान का निश्चित ही सकारात्मक प्रभाव पड़ा। बेटियों के विकास और उनके शिक्षा के लिए सरकार निरंतर इस अभियान के तहत अन्य कई सारी योजनाएं लाते रहती है, जिसके कारण आज गरीब परिवारों की बेटियों को पढ़ने के लिए कई प्रकार की सुविधा सरकार के द्वारा दी जा रही हैं।

इस अभियान के कारण आज बेटियों की जनसंख्या समाज में संतुलित हो रही है और बेटियों की स्थिति भी पहले की तुलना में काफी हद तक सुधर चुकी है। आज बेटियां कई क्षेत्रों में पुरुषों की तरह अपनी प्रतिभा दिखा रही है।

इस अभियान के कारण समाज में सदियों से चली आ रही दहेज प्रथा पर भी काफी हद तक अंकुश लग रहा है। लोग जागरूक हो रहे हैं और लोगों की सोच भी बेटियों के प्रति सकारात्मक हो रही है।

निष्कर्ष

आज भारत के विभिन्न क्षेत्र सुई से लेकर जहाज निर्माण में, एक ग्रहणी से लेकर राष्ट्रपति के पद तक, चिकित्सा से लेकर देश की रक्षा तक महिलाएं पुरुषों के समान ही अपना परस्पर सहयोग दे रही है।

समाज में महिलाओं की स्थिति सुधर रही हैं, जिसका कारण सरकार है सरकार ने महिलाओं की स्थिति पर ध्यान देते हुए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को लागू किया, जिसके तहत आज हर व्यक्ति जागरूक हो रहा है।

अब लोगों को समझ आ रहा है कि बिना बेटियों के विकास के समाज का विकास नहीं हो सकता। एक शिक्षित महिला ना केवल अपने घर की जिम्मेदारियों को अच्छे से निभाती है बल्कि वह समाज के विकास में भी अपना योगदान देती है।

इस योजना के कारण आज बेटियों को भी विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिल पा रहा है। समाज में बेटियों की स्थिति सुधर रही है यही एक अच्छे और विकासशील देश की पहचान है।

यह भी पढ़े

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर निबंध 1000 शब्दों में

भूमिका

“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता”

इस श्लोक का अर्थ है, जहाँ नारी का सम्मान होता है वहाँ देवताओं का निवास होता है। वैदिक काल में जो भारत था, आज वो भारत नहीं रहा, वैदिक काल में लिखा गया यह श्लोक आज के युग में कहीं भी फिट नहीं बैठता।

आधुनिक भारत इतना आधुनिक हो गया है कि लड़कियों से उनके जीने का हक तक छिन लिया है। जन्म और मृत्यु तो उस ऊपरवाले की देन है, किन्तु कुछ डेढ़ होशियार लोगों ने खुद को भगवान समझ कर उन मासूम बच्चियों को मार दिया जो अभी पैदा भी नहीं हुई थी। कन्या भ्रूण हत्या के अगर आंकड़ें देख ले तो आँखों में से आँसू आ जाते है।

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान की आवश्यकता

1991 की जनगणना से यह बात सामने आई थी कि देश में लड़कियो की संख्या में भारी कमी देखी गई। तब इस ओर ध्यान दिया जाने लगा। बाद के वर्षो में, सन् 2001 की राष्ट्रीय जनगणना में यह स्थिति और भी भयावह होती गयी। महिलाओं की संख्या में गिरावट सन् 2011 तक लगातार जारी रहा।

सन् 2001 में भारत में लड़कियों और लड़कों का अनुपात 932/1000 था और 2011 तक आते-आते यह अनुपात 918/1000 तक घट गया था। इसका अर्थ यह है कि अगर समय रहते नहीं चेता गया तो यह आंकड़ा घटते-घटते एक दिन शून्यता की स्थिति में आ जायेगा।

‘बिल्डिंग डाइवर्सिटी इन एशिया पैसिफिक बोर्ड’ नामक संस्था की ताजा रिपोर्ट के अनुसार विगत चार वर्षों में भारतीय कम्पनियों के बोर्ड में महिलाओं की संख्या में लगभग 10% की बढ़ोत्तरी हुई है। यह बढ़ोत्तरी सबसे ज्यादा बिजनस और कॉरपोरेट वर्ल्ड में अंकित की गई है।

रिप्रेजेन्टेशन में महिलाओं की संख्या 2012 में 2.5% से बढ़कर 2015 में 12% तक हो गई। बोर्ड की सूचना को आधार माना जाय तो महिलाओं की बोर्ड में लगभग 18%, टेलीकॉम क्षेत्र में 12%, आई.टी. क्षेत्र में 9% वित्तीय जैसे क्षेत्रों में भागीदारी है।

देश में महिलाओं और पुरुषों की संख्या में पर्याप्त अंतर है। इसी अंतर को पाटने के लिए इस योजना की जरुरत पड़ी। केवल उनकी संख्या में वृद्धि करना ही नहीं, बल्कि उनके खिलाफ हो रहे अपराधों को रोकना भी इस अभियान का प्रमुख उद्देश्य है।

बड़ी अजीब बात है न, जितना देश और समाज विकसित होता जा रहा, उतना ही महिलाओं के खिलाफ क्राइम और हिंसा भी बढ़ती जा रही है। यह बात कुछ हज़म होने योग्य नहीं है।

जितना विज्ञान हमारे लिए वरदान है, कुछ मामलों में अभिशाप भी। मेडिकल और मेडिसीन मानव जाति के भलाई के लिए बनाये गये हैं। इसका सजीव उदाहरण सोनोग्राफी और अल्ट्रासाउण्ड मशीन है, जिससे गर्भ में पल रहे बच्चे का जेंडर पता कर सकते हैं। गलती विज्ञान या वैज्ञानिक अविष्कारों की नहीं, बल्कि उसके उपयोग की है।

इन्हीं सभी बातों को ध्यान में रख कर बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम की शुरुआत 22 जनवरी 2015 को पानीपत, हरियाणा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा की गई। इस कार्यक्रम की शुरुआत हरियाणा में करने के पीछे एक कारण भी है – हरियाणा में स्त्री-पुरुष लिंगानुपात में सर्वाधिक अंतर है।

इस अभियान की ज़िम्मेदारी तीन मंत्रालय को सौंपी गयी और वो तीन मंत्रालय – महिला और बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्रालय तथा मानव संसाधन मंत्रालय है।

इस अभियान के तहत देश में पूर्व गर्भाधान और प्रसव पौरव निदान तकनीक अधिनियम, 1994 को लागू किया गया। जिसके तहत यह भी कहा गया कि यदि कोई चिकित्सक भ्रूण लिंग परीक्षण करते हुये या भ्रूण हत्या का दोषी पाया गया तो उसका लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा और उस चिकित्सक को अधिनियम के तहत दंडित भी किया जाएगा। इसी वजह से हर क्लीनिक-हॉस्पिटल में ये साफ-साफ लिखा होता है कि भ्रूण लिंग परीक्षण कानूनन अपराध है।

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान का उद्देश्य

महिलाओं को सशक्त करने के बजाय अशक्त किया जा रहा है। महिलाओं को सशक्त बनाने और जन्म से ही अधिकार देने के लिये सरकार ने बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना की शुरुआत की।

महिलाओं के सशक्तिकरण से सभी जगह प्रगति होगी खासतौर से परिवार और समाज में। लड़कियों के लिये मानव की नकारात्मक पूर्वाग्रह को सकारात्मक बदलाव में परिवर्तित करने के लिये ये योजना एक रास्ता है।

ये संभव है कि इस योजना से लड़कों और लड़कियों के प्रति भेदभाव खत्म हो जाये तथा कन्या भ्रूण हत्या का अन्त करने में ये मुख्य कड़ी साबित हो। इस योजना की शुरुआत करते हुए पीएम मोदी ने चिकित्सक बिरादरी को ये याद दिलाया कि चिकित्सा पेशा लोगों को जीवन देने के लिये बना है ना कि उन्हें खत्म करने के लिये।

इस मिशन का मूल उद्देश्य समाज में पनपते लिंग असंतुलन को नियंत्रित करना है। इस अभियान के द्वारा कन्या भ्रूण हत्या के विरुद्ध आवाज उठाई गयी है। यह अभियान हमारे घर की बहु-बेटियों पर होने वाले अत्याचार के विरुद्ध एक संघर्ष है। इस अभियान के द्वारा समाज में लडकियों को समान अधिकार दिलाए जा सकते हैं।

लड़कियों के साथ शोषण होने के पीछे मुख्य कारण अशिक्षा भी है। अगर हम पढ़े-लिखे शिक्षित होते हैं तो हमें सही-गलत का ज्ञान होता है। जब बेटियां अपने पैर पर खड़ी होंगी तो कोई भी उन्हें बोझ नहीं समझेगा।

इसीलिए ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम’ के माध्यम से बेटियों को अधिक से अधिक शिक्षित बनाने पर जोर दिया जा रहा है। शिक्षित लोगों के साथ कुछ भी गलत करना आसान नहीं होता।

लड़की पढ़ी-लिखी होगी तो न अपने साथ कुछ गलत होने देगी और न ही किसी और के साथ होते देखेगी। इसीलिए लड़की का शिक्षित होना अत्यंत आवश्यक है। अब लोग अपनी लड़कियों के जन्म से खुश भी हो रहे हैं और उन्हें अच्छे से पढ़ा-लिखा कर काबिल भी बना रहे हैं।

उपसंहार

हर लडाई जीतकर दिखाऊंगी, मैं अग्नि में जल कर भी जी जाऊंगी।
चंद लोगों की पुकार सुन ली, मेरी पुकार न सुनी।
मैं बोझ नहीं भविष्य हूं, बेटा नहीं पर बेटी हूं।

भारत के प्रत्येक नागरिक को कन्या शिशु बचाओ के साथ-साथ इनका समाज में स्तर सुधारने के लिए प्रयास करना चाहिए। लडकियों को उनके माता-पिता द्वारा लडकों के समान समझा जाना चाहिए और उन्हें सभी कार्यक्षेत्रों में समान अवसर प्रदान करने चाहिए।

जब एक बालक को पढ़ाया जाता है तो केवल एक इंसान ही शिक्षित होता है जबकि एक बालिका को पढ़ाने से दो-दो परिवार साक्षर होता है। साक्षर माँ ही अपने बच्चे का चरित्र-निर्माण करती है। अतः वह जन्म-दाता ही नहीं, चरित्र निर्माता भी है, क्योंकि उसके अनेकों किरदार हैं।

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर निबंध pdf

हमने यहाँ पर आपकी सुविधा के लिए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ निबंध pdf के रूप में उपलब्ध किया है, जिसे आप आसानी से डाउनलोड कर सकते है और अपने प्रोजेक्ट आदि में उपयोग में ले सकते है।

अंतिम शब्द

हम उम्मीद करते हैं कि हमारे द्वारा शेयर किये गये यह बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर निबंध (Essay on Beti Bachao Beti Padhao in Hindi) आपको पसंद आये होंगे, इन्हें आगे शेयर जरूर करें। आपको यह निबंध कैसे लगे, हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

Related Posts

Leave a Comment