विष्णु भगवान की व्रत की कथा | Vishnu Bhagwan Ki Vrat Katha
एक शहर में एक बहुत बड़ा साहूकार रहा करता था। साहूकार बहुत ही ईमानदार और दानवीर था। साहूकार जहाजों में अपने माल को दूसरे देश में बेचकर पैसे कमाता था और यही कर करके उस साहूकार ने बहुत सारा धन एकत्र कर लिया था और जितना उसने धन कमाया था, उसे थोड़ा धन दान में दिया करता था।
लेकिन साहूकार का विवाह जिस स्त्री से हुआ था, वह साहूकार से बहुत विपरीत थी। साहूकार को दान देना बहुत पसंद था लेकिन साहूकार की पत्नी बहुत ही कंजूस थी। वह एक रुपया भी किसी को नहीं दिया करती थी। कुछ समय पश्चात जब साहूकार अपने व्यापार के सिलसिले से दूसरे देश गया था तब साहूकार के घर पर बृहस्पति देव साधु का रूप लेकर भिक्षा मांगने के लिए साहूकार की पत्नी के पास गए।
साहूकार की पत्नी से भिक्षा मांगने लगे साहूकार की पत्नी ने बृहस्पति देव से कहा कि हे, ब्राह्मण में दान दे दे कर बहुत थक चुकी हूं और मुझसे अब यह नहीं किया जाता है।आप मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे मेरा सारा धन बर्बाद हो जाए और मैं खुशी-खुशी अपना जीवन व्यतीत कर सकूं।
बृहस्पति देव साहूकार की पत्नी की बात सुनकर साहूकार की पत्नी से बोले, तुम तो बहुत ही विचित्र कन्या हो। तुम्हारे पास तो इतना सारा धन है। उसके बाद भी तुम इस धन से दुखी हो। अगर तुम्हारे पास कुछ ज्यादा ही धन आ गया है तो, तुम उनको नेक कामों में लगाओ। तुम तुम कुंवारी कन्याओं का विवाह करवाओ। बच्चों के लिए विद्यालय खुलवाओ और बड़े-बड़े बाग बगीचे खुलवाओ, जिससे तुम्हें ऐसा करने से स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है।
लेकिन साहूकार की पत्नी तो निहायती कंजूस थी। उसने बृहस्पति देव की बात को अस्वीकार दिया और कहने लगी मैं अपना धन किसी को नहीं दूंगी।
बृहस्पति देव ने साहूकार की पत्नी से कहा कि अगर तुम्हारी यही मनोकामना है, तो तुम एक काम करना तुम साथ बृहस्पतिवार को अपने घर को गोबर से लीपना। अपने बालों को पीली मिट्टी से धोना और बाल धोते समय स्नान करना। साहूकार से अपनी हजामत करवाना और अपने घर में मांस का सेवन करना और अपने कपड़े धोना ऐसा करने से तुम्हारा सारा धन समाप्त हो जाएगा और तुम अपना जीवन खुशी खुशी व्यतीत कर पाओगी।
साहूकार की पत्नी ने बृहस्पति देव की बात मान कर सारे कार्य करने लगी जो जो बृहस्पति देव ने साहूकार की पत्नी से करने के लिए कहे थे। जैसे ही मात्र तीन गुरुवार ही हुए थे साहूकार के पास सारा धन समाप्त हो गया और तीन दिन में ही साहूकार की पत्नी मर गई। जब साहूकार दूसरे देश से वापस अपने घर आया तब उसने देखा कि उसके घर में तो सब कुछ बर्बाद हो चुका है। उसके पास एक भी रुपए नहीं बचे हैं और उसके बच्चे बहुत जोर से रो रहे हैं। उसकी पत्नी भी मर चुकी है।
तब साहूकार ने अपने बच्चों से कहा कि तुम चिंता मत करो। हम लोग दूसरे देश पर रहेंगे जाकर वहां अपना जीवन यापन करेंगे। साहूकार अपने बच्चों को लेकर एक दूसरे शहर चला गया।
वहां पर वह रोजाना लकड़ी काटकर बाजार में जाकर बेचता और उससे कुछ धन कमाकर घर लेकर आता और ऐसा करते-करते अपना जीवन व्यतीत करने लगा। एक दिन जब साहूकार लकड़ियां काटकर अपने घर गया तो, उसके बच्चों ने कहा कि पिताजी मुझे दही खाने का बहुत मन कर रहा है। आप मेरे लिए दही ले आइए लेकिन साहूकार के पास तो दही खरीदने के लिए भी पैसे नहीं थे।
लेकिन साहूकार ने अपने बच्चों से कहा कि तुम चिंता मत करो। मैं तुम्हारे लिए दही लाऊंगा और ऐसा कह कर वहां से चला गया। साहूकार थोड़ी दूर जाने के पश्चात एक पेड़ के नीचे बैठ गया और वहां पर जोर जोर से रोने लगा और अपनी दशा पर विचार करने लगा।
तभी वहां पर बृहस्पति देव एक साधु का वेश लेकर आए और साहूकार से कहने लगे तुम क्यों रो रहे हो? तब साहूकार ने कहा कि ब्राह्मण देव आप को तो सब पता है और ब्राह्मण को अपनी सारी कहानी बता दी।
जिसके बाद बृहस्पति देव ने साहूकार से कहा कि यह सब तुम्हारी पत्नी ने किया था। तुम्हारी पत्नी ने बृहस्पति देव का अपमान किया था, जिसके कारण तुम्हारा सारा धन नष्ट हो गया है और तुमको ऐसे कष्ट भोगने पड़ रहे हैं लेकिन तुम चिंता मत करो।
मैं तुमको एक उपाय बता रहा हूं जिसको करने से तुम्हारे जीवन फिर से सही हो जाएगा। तब साहूकार ने ब्राह्मण से कहा कि आप मुझे बताइए कि मुझे क्या करना है? ब्राह्मण ने बताया कि तुम गुरुवार के दिन बृहस्पति देव की पूजा पाठ कर दो। पैसों की गुड़ और चने लाकर और एक लोटे में जल भरकर उसमें शक्कर डालकर प्रसाद बना लो और उस प्रसाद को बृहस्पति देव का पाठ करने के बाद सभी में बांट दो और खुद भी उस प्रसाद को ग्रहण कर लो। ऐसा करने से तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे।
लेकिन तब साहूकार ने ब्राह्मण से कहा कि ब्राह्मण देव मेरे पास तो इतने रुपए भी नहीं है कि मैं अपने बच्चों को दही खिला सकूं, तो मैं यह पूजा की सामग्री कहां से लाऊंगा?तब ब्राह्मण ने कहा कि तुम चिंता मत करो। तुम अपनी लकड़ियां काटकर शहर में जाकर बेचो। जिससे तुम्हें पहले से कई गुना ज्यादा पैसे मिलेंगे। तुम उन पैसों से सब कुछ कर सकते हो।
जिसके बाद साहूकार ने ब्राह्मण देव की बात मानकर लकड़ियां काटने के लिए निकाला गया। लकड़ियां काटकर साहूकार बाजार में जाकर लकड़ियों को चौगुनी दामों पर भेज दिया और दही लेकर अपने घर चला गया। फिर साहूकार ने गुरुवार के दिन गुड़ और चना खरीद कर बृहस्पति देव की पूजा की और उनकी कथा सुनी तथा प्रसाद को सभी को बांटा लेकिन अगले ही गुरुवार को साहूकार बृहस्पति देव की पूजा पाठ करना भूल गया।
जिससे बृहस्पति देव साहूकार से बहुत नाराज हो गए। एक दिन शहर के राजा ने अपने महल में एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया था और उसके लिए शहर के सभी लोगों को भोजन पर आमंत्रित किया था। सभी लोग राजा के यहां भोजन करके समय से चले गए थे लेकिन साहूकार और उसकी बेटी राजा के घर देरी से पहुंचे तो राजा ने साहूकार और उसकी बेटी को अपने महल के अंदर ले जाकर भोजन ग्रहण करवाया।
उसी समय अचानक से रानी का हार कहीं खो गया था तो, रानी को पूरा शक साहूकार और उसकी बेटी पर हुआ जिसके लिए रानी ने राजा से कहा कि यह साहूकार और उसकी बेटी ने मेरा हर चुराया है।
राजा ने साहूकार और उसकी बेटी को जेल में बंद करवा दियाने साहूकार और उसकी बेटी जेल में बंद होकर बहुत रोने लगे और तभी साहूकार ने बृहस्पति देव का आवाहन कियाने बृहस्पति देव साहूकार के आवाहन करते वहां प्रकट हो गए और उन्होंने साहूकार को बताया कि तुमने यह गलती की थी जिसकी वजह से तुमको यह सब भोगना पड़ता है।
बृहस्पति देव ने कहा कि तुम्हें जेल के बाहर दरवाजे पर दो रुपए पड़े मिलेंगे, जिससे तुम किसी से भी गुड और मुनक्का मंगवा कर बृहस्पति देव की पूजा करना। जिसे सब कुछ ठीक हो जाएगा, ऐसा कहकर बृहस्पति देव वहां से अंतर्ध्यान हो गए।
और उनके कहे अनुसार साहूकार को दरवाजे पर दो रुपए पड़े मिले। जिससे उसने जेल के बाहर जा रही महिला से कहा कि तुम मेरे लिए और मुनक्का ला सकती हो। मुझे बृहस्पति देव की पूजा करनी है लेकिन उस महिला ने मना कर दिया और कहने लगी कि मैं अपनी बहू के लिए गहने लेने जा रही हूं। मेरे पास अभी समय नहीं है और ऐसा कहकर वह स्त्री वहां से चली गई, जिसके बाद एक दूसरी महिला वहां से जा रही थी ।
साहूकार ने उस महिला से कहा कि तुम मेरे लिए गुड़ और चना सकती हो। मुझे बृहस्पति देव की पूजा करनी है। उस महिला ने साहूकार से कहा कि मैं अपने पुत्र के लिए कफन लेने जा रही थी लेकिन मैं तुम्हारा यह काम अवश्य करूंगी।
जिसके बाद वह महिला साहूकार से पैसे लेकर साहूकार के लिए गुड़ और चना लेने के लिए बाजार चली गई। गुड़ चना लेकर जब वह महिला साहूकार के पास आई तो साहूकार ने बृहस्पति देव की पूजा करना शुरू कर दिया और कथा कहना शुरू कर दिया। उस महिला ने भी बृहस्पति देव की कथा सुनी और कथा समाप्त होने के बाद साहूकार ने सभी को प्रसाद दिया। प्रसाद ले करवाई महिला अपने मरे हुए बेटे के पास जाने लगी। वहां पर सभी लोग उसके बेटे को श्मशान ले जाने के लिए तैयार थे।
तभी उस महिला ने साहूकार के दिए हुए प्रसाद को अपने बेटे के मुंह में डाल दिया, जिसके बाद उस महिला का मरा हुआ बेटा पुनः जीवित हो गया और पहली महिला जिसने बृहस्पति देव का अपमान किया था और उसने पूजा के लिए सामग्री लाने से मना कर दिया था, उसका बेटा जब घोड़ी पर बैठकर जा रहा था। तब घोड़ी ने एकदम से उछाल मारी और बेटे को जमीन में गिरा दिया और वह जमीन में गिरते ही मर गया। जिसके बाद महिला जोर जोर से रोने लगी और उसको भी अपनी गलती का आभास हो गया।
उसने तुरंत जेल में वापस जाकर साहूकार के साथ बृहस्पति देव पूजा की और साहूकार ने पूजा के बाद उस महिला को प्रसाद दिया। उसने प्रसाद को अपने बेटे के मुंह पर डाल दिया तो प्रसाद को खाकर उसका बेटा तुरंत जीवित हो गया।
एक दिन बृहस्पति देव राजा के सपने में आए और कहने लगे तुमने जिन साहूकार और उसकी पुत्री को जेल में बंद किया है वह निर्दोष है। उनको तुरंत छोड़ दो जिसके बाद राजा ने साहूकार और उसकी पुत्री को जेल से रिहा कर दिया और बृहस्पति देव की पूजा करने से साहूकार की सारी कठिनाइयां दूर हो गई। वह दोबारा से अमीर हो गया और खुशी-खुशी अपना जीवन व्यतीत करने लगा।
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