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जया एकादशी का महत्व और व्रत कथा

Jaya Ekadashi Mahatva Vrat Katha

jaya ekadashi kab hai
Jaya Ekadashi Mahatva Vrat Katha

जया एकादशी कब है?

Jaya Ekadashi 2021 Date: हिन्दू कैलेंडर में एकादशी का विशेष महत्व होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार एक महीने में कुल दो एकादशी आती है और पूरे साल में कुल 24 होती है। इन सभी में 12 शुक्ल पक्ष की और 12 कृष्ण पक्ष की एकादशी होती है। हिन्दू महीनों में माघ महीने में आने वाली शुक्ल पक्ष की एकादशी जया एकादशी के नाम से जाना जाता है। जया एकादशी इस साल में 23 फ़रवरी (मंगलवार) को आ रही है।

इस एकादशी को बहुत ही पुण्यदायी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो लोग जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और व्रत रखते हैं, उनमें भूत-पिशाच का डर से मुक्त हो जाता है। जया एकादशी को इसलिए श्रेष्ठ माना गया है क्योंकि राजा हरिश्‍चंद्र ने जया एकादशी के दिन व्रत रखकर अपने जीवन से सभी कठिनाइयों को समाप्त किया था। तो आइये जानते है जया एकादशी का महत्व, व्रत विधि और व्रत कथा।

जया एकादशी व्रत का महत्व

पौराणिक कथाओं और शास्त्रों के अनुसार दिन को बहुत ही पुण्यदायी माना गया है। जया एकादशी के दिन व्रत रखने पर व्यक्ति नीच योनि जैसे भूत-प्रेत, पिशाच की योनि से मुक्त होता है और व्रत करने से सभी तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है।

जया एकादशी व्रत विधि

प्रातः काल में

जया एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नानादि से निवर्त होकर भगवान विष्णु की आराधना करें और भगवान के सामने व्रत का संकल्प लें। घी में हल्दी मिलाकर भगवान विष्णु का दीपक करें और उनके आगे पीले रंग के पुष्प अर्पित करें। प्रसाद के रूप में केसर से बनी मिठाई और दूध को पीपल के पते पर रखकर प्रसाद चढाएं।

सायं काल में

भगवान विष्णु को केले चढाने के साथ ही गरीबों को भी केले बांटे और भोजन करवाएं। शाम के समय तुलसी के पौधे की पूजा करें और उसके समने एक घी का दीपक प्रज्वलित करें। भगवान विष्णु की पूजा के साथ मां लक्ष्मी की पूजा करें।

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जया एकादशी व्रत से जुड़े नियम

  • जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।
  • इस दिन किसी प्रकार का द्वेष, छल-कपट, काम और वासना की भावना से दूर रहना चाहिए।
  • जया एकादशी के दिन विष्णु सहस्रनाम और नारायण स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
  • इस दिन जरूरतमंद लोगों की सहायता करें और गरीबों में भोजन वितरण करें।
  • जो इस दिन व्रत नहीं रख पाते हैं वो विष्णुसहस्रनाम का पाठ अवश्य करें।

जया एकादशी व्रत कथा

जया एकादशी की एक पौराणिक कथा के अनुसार इंद्र की एक सभा चल रही थी। उस सभा में गंधर्व गीत गा रहा था। गीत गाते समय उस गंधर्व का मन वहां पर नहीं था, उसका मन उसकी प्रिया याद कर रहा था। गीत गाने में मन नहीं होने के कारण गीत के गाने की लय बिगड़ गई। इस बात से इंद्र बहुत क्रोधित हुए और गंधर्व की और उसकी प्रिया को पिशाच योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया। पिशाच योनि में जन्म लेकर दोनों पति और पत्नी बहुत ही दुःख भोग रहे थे।

इसके चलते माघ महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी को एक संयोग हो गया। संयोग ये हुआ कि इतना दुःख होने के कारण गंधर्व और उसकी प्रिया ने खाने में कुछ नहीं खाया और रात में ठण्ड होने के कारण दोनों सो भी नहीं पाये थे। इसकी वजह से उनका अनजाने में दोनों से जया एकादशी का व्रत हो गया।

व्रत रखने से व्रत का प्रभाव पड़ा और दोनों ही श्राप मुक्त हो गये और पुनः वापस वास्तविक स्वरूप में लौटकर स्वर्ग पहुंच गये। इन्द्र जब गंधर्व और उसकी प्रिया को उनके वास्तविक स्वरुप में देखते हैं तो हैरान हो जाते हैं।

भगवान इंद्र को गंधर्व और उसकी प्रिया ने बताया कि उनसे अनजाने में जया एकादशी का व्रत हो गया। जया एकादशी के व्रत के पुण्य से ही उन्हें पिशाच योनि से मुक्ति मिली है।

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