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विदुर नीति के अनमोल वचन

Vidur Neeti Quotes In Hindi

Vidur Neeti Quotes In Hindi
Vidur Neeti Quotes In Hindi

विदुर नीति के अनमोल वचन |Vidur Neeti Quotes In Hindi

“अपना और जगत का कल्याण अथवा
उन्नति चाहने वाले मनुष्य को तंद्रा, निद्रा, भय,
क्रोध, आलस्य और प्रमाद।
यह छह दोष हमेशा के लिए त्याग देने चाहिए।“
~ विदुर

सुखी जीवन के सूत्र : मित्रों से मेलजोल,
ज्यादा धन कमाना, पुत्र का आलिंगन,
मैथुन में प्रवृत्ति, सही समय पर
प्रिय वचन बोलना, अपने वर्ग के लोगों में उन्नति,
अभीष्ट वस्तु की प्राप्ति और समाज में सम्मान.

“किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले यह जरूरी है
कि आप पूरा मन बना लें।
अधूरे मन से किया कार्य भी अधूरा रहता है।
आपको किसी कार्य में पूरी तरह से सफलता
तभी मिलेगी जब आप पूरे से से उस कार्य को करेंगे।”

“क्षमा को दोष नहीं मानना चाहिए,
निश्चय ही क्षमा परम बल है।
क्षमा निर्बल मनुष्यों का गुण है
और बलवानों का क्षमा भूषण है।“~ विदुर

ऐसे लोग धर्म या निति नहीं जानते :
नशे में धूत व्यक्ति, असावधान व्यक्ति, पागल, थका हुआ व्यक्ति,
जो बात-बात पर क्रोध करता हो, जो व्यक्ति भूखा हो,
वह व्यक्ति जिसे जल्दबाजी की आदत हो,
लालची व्यक्ति, डरा हुआ व्यक्ति और कामी.

“जिस धन को कमाने में मन तथा शरीर का क्लेश हो,
धर्म को उलंघन करना पड़े तथा सर शत्रु के सामने
झुकना पड़ जाये। ऐसे धन को प्राप्त करने का
विचार त्यागना ही बेहतर होता है।”

*****

“काम, क्रोध और लोभ यह तीन प्रकार के नरक
यानी दुखों की ओर जाने के मार्ग है।
यह तीनों आत्मा का नाश करने वाले हैं,
इसलिए इनसे हमेशा दूर रहना चाहिए।“~ विदुर

Vidur Neeti Quotes In Hindi

6 प्रकार के मनुष्य हमेशा दुखी हीं रहते हैं:
दूसरों से ईर्ष्या करने वाला, नफरत करने वाला, असंतोषी,
बात-बात पर क्रोध करने वाला,
जिसे शक करने की आदत हो गई हो
और दूसरों के सहारे जीवन निर्वाह करने वाला.

“जो व्यक्ति अपने मन को काबू में नहीं रख पाता,
वह कभी सफलता प्राप्त नहीं कर पाता।”

“ईर्ष्या, दूसरों से घृणा करने वाला, असंतुष्ट,
क्रोध करने वाला, शंकालु और पराश्रित
(दूसरों पर आश्रित रहने वाले) इन छह प्रकार
के व्यक्ति सदा दुखी रहते हैं।“~ विदुर

ये 6 सुख हैं : नीरोग रहना, किसी का
कर्जदार न होना, परदेश में नहीं रहना,
अच्छे लोगों के साथ मेलजोल बनाये रखना,
अपनी वृत्ति से जीविका चलाना और निडर होकर रहना.

“प्रत्येक मनुष्य को माता, पिता, अग्नि,
आत्मा और गुरु इन पांचों की बड़े
यत्न से सेवा करनी चाहिए।”

ये 8 गुण ख्याति बढ़ाते हैं : बुद्धि, कुलीनता,
इन्द्रियनिग्रह, शास्त्रज्ञान, पराक्रम, अधिक न बोलना,
शक्ति के अनुसार दान देना और कृतज्ञता.

“आलसी व्यक्ति को कभी भी
धन नहीं सौपना चाहियें।
अपने आलस्य के कारण वह व्यक्ति
धन को शर्वनाश कर देगा।”

“जिस धन को अर्जित करने में मन तथा शरीर को क्लेश हो,
धर्म का उल्लंघन करना पड़े, शत्रु के सामने अपना
सिर झुकाने की बाध्यता उपस्थित हो, उसे प्राप्त
करने का विचार ही त्याग देना श्रेयस्कर है।“

हमें आसानी से पचने वाला
भोजन करना चाहिए.

“अपना धन किसी भी ऐसे व्यक्ति को नहीं देना चाहियें
जिसकी नियत में आपको संदेह हो। ऐसा व्यक्ति
आपके धन का दुरूपयोग तो करता ही है
बल्कि आपको मुश्किल में भी डाल सकता है।”

“जो विश्वास का पात्र नहीं है, उसका तो कभी
विश्वास किया ही नहीं जाना चाहिए। पर जो विश्वास
के योग्य है, उस पर भी अधिक विश्वास
नहीं किया जाना चाहिए। विश्वास से जो भय उत्पन्न होता है,
वह मूल उद्देश्य का भी नाश कर डालता है।“

बिना बुलाए किसी का यहाँ जाने वाला व्यक्ति
सम्मान नहीं पाता है. इसलिए हमें
बुलावा मिलने पर हीं जाना चाहिए.

“काम, क्रोध और लोभ यह तीनों आत्मा का
नाश करने वाले नरक के तीन दरवाजे हैं।
इसलिए इन तीनों का त्याग कर देना चाहियें।”

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“संसार के छह सुख प्रमुख है- धन प्राप्ति, हमेशा स्वस्थ रहना,
वश में रहने वाले पुत्र, प्रिय भार्या, प्रिय बोलने वाली भार्या
और मनोरथ पूर्ण कराने वाली विद्या अर्थात्
इन छह से संसार में सुख उपलब्ध होता है।“

द्वाविमौ ग्रसते भूमिः सर्पो बिलशयानिव .
राजानं चाविरोद्धारं ब्राह्मणं चाप्रवासिनम् ॥
– बिल में रहने वाले जीवों को जैसे सांप खा जाता है,
उसी तरह दुश्मन से डटकर मुकाबला
न करने वाले शासक और परदेश न जाने
वाले ब्राह्मण – इन दोनों को पृथ्वी खा जाती है.

****

“जो व्यक्ति शक्तिशाली होने पर भी क्षमा कर
सके और निर्धन होने पर भी दान दे सके,
स्वर्ग में ही स्थान पाता है।”

“जो व्यक्ति हमेशा बीमार रहता है। उसे अपने शरीर के
साथ साथ धन को भी नुकसान उतना पड़ता है।
इसलिए बीमारी से बचे रहना सबसे बड़ा सुख होता है।
कहने का अर्थ है की स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन और सुख है।”

“केवल धर्म ही परम कल्याणकारक है,
एकमात्र क्षमा ही शांति का सर्वश्रेष्ठ उपाय है।
एक विद्या ही परम संतोष देने वाली है
और एकमात्र अहिंसा ही सुख देने वाली है।”

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“जिस प्रकार समुद्र को पार करने में नाव
की जरूरत होती है उसी प्रकार इसी तरह
स्वर्ग के लिए सत्य ही एकमात्र सीढ़ी है।”

“अल्पमात्रा में धन होते हुए भी कीमती वस्तु
को पाने की कामना और शक्तिहीन होते हुए
भी क्रोध करना मनुष्य की देह के लिये
कष्टदायक और कांटों के समान है।“

“जो बहुत धन, विद्या तथा ऐश्वर्य को पाकर
भी इठलाता नहीं, वह पंडित कहलाता है।”

“जिस व्यक्ति को आदर सम्मान मिलने पर
भी वो खुशी से फूल नहीं उठता और अनादर
होने पर क्रोधित नहीं होता तथा जिसका मन
विपत्तियों में भी शांत रहता है।
वही ज्ञानी व्यक्ति होता है।”

“पर स्त्री का स्पर्श, पर धन का हरण,
मित्रों का त्याग रूप यह तीनों दोष क्रमशः
काम, लोभ, और क्रोध से उत्पन्न होते हैं।“

“जिस काम को करने के बाद पछताना पड़
जाये ऐसे कार्य को करने से क्या लाभ।”

“कटु वचन रूपी बाण से आहत
मनुष्य रात-दिन घुलता रहता है।“

द्वावेव न विराजेते विपरीतेन कर्मणा.
गृहस्थश्च निरारम्भः कार्यवांश्चैव भिक्षुकः
– जो अपने स्वभाव के विपरीत कार्य करते हैं
वह कभी नहीं शोभा पाते. गृहस्थ होकर अकर्मण्यता और
सन्यासी होते हुए विषयासक्ति का प्रदर्शन करना ठीक नहीं है.

“जो व्यक्ति अच्छे कर्म करता है ,
बुरे कर्मों से दूर रहता है, साथ ही जो ईश्वर
में विश्वास रखता है , जो परम श्रद्धालु है
उसके ये सद्गुण पंडित होने के लक्षण हैं।”

“किसी धनुर्धर वीर के द्वारा छोड़ा हुआ बाण संभव है,
किसी एक को भी मारे या न मारे। मगर बुद्धिमान
द्वारा प्रयुक्त की हुई बुद्धि राजा के साथ-साथ
सम्पूर्ण राष्ट्र का विनाश कर सकती है।“

राजा को निम्न सात दोषों को त्याग देना चाहिये-
स्त्रीविषयक आसक्ति, जुआ, शिकार, मद्यपान,
वचन की कठोरता, अत्यन्त कठोर दंड देना
और धन का दुरुपयोग करना.

“कठोर वचन बोलना
तन मन को जला देता है।
मधुर वचन अमृत वर्षा के समान है।”

“किसी प्रयोजन से किये गए कर्मों में पहले प्रयोजन
को समझ लेना चाहिए। खूब सोच-विचार कर
काम करना चाहिए, जल्दबाजी से किसी
काम का आरम्भ नहीं करना चाहिए।“

जो किसी दुर्बल का अपमान नहीं करता,
सदा सावधान रहकर शत्रु से बुद्धि पूर्वक व्यवहार करता है,
बलवानों के साथ युद्ध पसंद नहीं करता
तथा समय आने पर पराक्रम दिखाता है, वही धीर है.

“स्त्री का स्पर्श, धन का हरण,
मित्रों का त्याग यह तीनों दोष क्रमशः
काम, लोभ, और क्रोध से उत्पन्न होते हैं।”

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वह व्यक्ति जो दान, होम, देवपूजन, मांगलिक कार्य,
प्रायश्चित तथा अनेक प्रकार के लौकिक आचार-
इन कार्यो को नित्य करता है,
देवगण उसके अभ्युदय की सिद्धि करते हैं.

“वह मनुष्य अधर्मी होता है जो अच्छे कर्मों
और पुरुषों में विश्वास नहीं रखता, गुरुजनों में
भी स्वभाव से ही शंकित रहता है।
किसी का विश्वास नहीं करता और
मित्रों का परित्याग करता है।”

जो अपने बराबर वालों के साथ विवाह, मित्रता,
व्यवहार तथा बातचीत रखता है, हीन पुरूषों के साथ नहीं,
और गुणों में बढे़ पुरूषों को सदा आगे रखता है,
उस विद्धान की नीति श्रेष्ठ है ऐसा विदुर कहते हैं.

****

“जिस व्यकित के कर्मों में न ही सर्दी और न ही गर्मी,
न ही भय और न ही अनुराग, न ही संपत्ति और
न ही दरिद्रता विघ्न डाल पाते हैं
वही पण्डित कहलाता है।“

ऐसे पुरूषों को अनर्थ दूर से ही छोड़ देते हैं-
जो अपने आश्रित जनों को बांटकर खाता है,
बहुत अधिक काम करके भी थोड़ा सोता है
तथा मांगने पर जो मित्र नहीं है, उसे भी धन देता है.

जो धातु बिना गर्म किये मुड जाती है,
उसे आग में नहीं तपाते. जो काठ
स्वयं झुका होता है, उसे कोई
झुकाने का प्रयत्न नहीं करता,
अतः बुद्धिमान पुरुष को अधिक
बलवान के सामने झुक जाना चाहिये.

“जिस व्यक्ति के कर्तव्य, सलाह और पहले लिए गए
निर्णय को केवल काम संपन्न होने पर ही
दूसरे लोग जान पाते हैं,
वही व्यक्ति पंडित कहलाता है।”

“जो दुसरो के धन, सौन्दर्य, बल, कुल, सुख,
सौभाग्य व सम्मान से ईष्या करते हैं,
वे सदैव दुखी रहते हैं।“

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सत्य से धर्म की रक्षा होती है, योग से विद्या सुरक्षित होती
सफाई से सुन्दर रूप की रक्षा होती है और
सदाचार से कुल की रक्षा होती है,
तोलने से अनाज की रक्षा होती है, हाथ फेरने से घोड़े सुरक्षित रहते हैं,
बारम्बार देखभाल करने से गौओं की तथा मैले
वस्त्रों से स्त्रियों की रक्षा होती है, ऐसा विदुर निति का विचार है.

“संसार के 6 सुख प्रमुख है- धन प्राप्ति, हमेशा स्वस्थ रहना,
वश में रहने वाले पुत्र, प्रिय भार्या, प्रिय बोलने वाली भार्या
और मनोरथ पूर्ण कराने वाली विद्या-
अर्थात् इन छह से संसार में सुख उपलब्ध होता है।”

“बिल में रहने वाले जीवों को जैसे सांप खा जाता है,
उसी प्रकार शत्रु से डटकर मुकाबला न करने
वाले शासक और परदेश न जाने वाले ब्राह्मण
– इन दोनों को पृथ्वी खा जाती है।“

अच्छे कर्म करना और
बुरे कर्म से बचते रहना,
भगवान पर भरोसा और श्रद्धा रखना.

“जो व्यक्ति विश्वास का पात्र नहीं है,
उसका तो कभी विश्वास किया ही नहीं जाना चाहिए।
परन्तु जो व्यक्ति विश्वास के योग्य है,
उस पर भी अधिक विश्वास नहीं किया जाना चाहिए।
विश्वास से जो भय उत्पन्न होता है,
वह मूल उद्देश्य का भी नाश कर डालता है।”

“मन, वचन और कर्म से मनुष्य जिस
विषय का बार – बार ध्यान करता है,
वही उसे अपनी और आकर्षित कर लेता है,
अत: सदैव अच्छे कर्म ही करने चाहिए।

जो व्यक्ति निश्चय करके कार्ययोजना
बनाकर काम को शुरू करता है
और काम के बीच में कभी नहीं रुकता और
समय को नहीं गँवाता और
अपने मन को नियन्त्रण में किये रखता है.

“मनुष्य जैसे लोगों के बीच उठता-बैठता है,
जैसो की सेवा करता है तथा जैसा बनने
की कमाना करता है, वैसा ही बन जाता है।“

ज्ञानी व्यक्ति हमेशा अच्छे कर्मों में रूचि रखते हैं,
और उन्नति के लिए कार्य करते हैं और प्रयासरत रहते हैं.
तथा भलाई करनेवालों में अवगुण नहीं
निकालते हैं, ऐसा विदुर निति का विचार है.

जो आदर-सम्मान होने पर भी घमंड नहीं करता
और अपमान होने पर भी दुखी व विचलित नहीं होता तथा
गंगाजी के कुण्ड के समान जिसके मन को कोई दुख नहीं होता.

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“व्यक्ति चाहे अच्छे कुल में जन्मा हो अथवा निक्रष्ट कुल में –
जो मर्यादा का पालन करता है, धर्मानुसार कार्य करता है,
जिसका स्वभाव कोमल है, जो लज्जाशील है,
वह सैकड़ो कुलीनों से श्रेष्ठ है”

वह व्यक्ति जो प्रकृति के सभी पदार्थों का वास्तविक
ज्ञान रखता है,
सब कार्यों के करने का उचित तरीका जानता है
और मनुष्यों में सर्वश्रेष्ठ उपायों का जानकार है.

*****

“मुर्ख की यह प्रव्रत्ति है कि वह सदैव उन
लोगों का अपमान करता है जो विद्या,
शील, आयु. बुद्धि, धन और कुल
में श्रेष्ट हैं तथा माननीय हैं”

जो निर्भीक होकर बात करता है,
कई विषयों पर अच्छे से बात कर सकता है,
तर्क-वितर्क में कुशल है, प्रतिभाशाली है
और शास्त्रों में लिखे गए बातों को शीघ्रता से समझ सकता है.

जिस व्यक्ति की विद्या उसके बुद्धि का
अनुसरण करती है और बुद्धि उसके
ज्ञान का तथा जो भद्र पुरुषों की मर्यादा
का उल्लंघन नहीं करता.

“दो प्रकार के लोग दूसरों पर विश्वास करके चलते हैं,
इनकी अपनी कोई इच्छाशक्ति नहीं होती है।
दूसरी स्त्री द्वारा चाहे गए पुरुष की कामना करने वाली स्त्रियाँ,
दूसरों द्वारा पूजे गए व्यक्ति की पूजा करने वाले लोग।“

“अच्छे कर्मो को अपनाना और बुरे कर्मों से
दूर रहना, साथ ही परमात्मा में विश्वास रखना
और श्रद्धालु भी होना –
ऐसे सद्गुण बुद्धिमान और पंडित होने का लक्षण है।“

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“पिता, माता अग्नि, आत्मा और गुरु –
मनुष्य को इन पांच अग्नियों की
बड़े यत्न से सेवा करनी चाहिए।“

“मनुष्य को कभी भी सत्य, दान, कर्मण्यता,
अनसूया (गुणों में दोष दिखाने की प्रवृत्ति का अभाव ),
क्षमा तथा धैर्य – इन छः गुणों
का त्याग नहीं करना चाहिए।“

“मीठे शब्दों से कही गई बात अनेक तरह
से कल्याण करती है, लेकिन कटु शब्दों
में कही गई बात अनर्थ का कारण बन जाती है।“

“ये दो प्रकार के पुरुष सूर्यमंडल को भी
भेद कर सर्वोच्च गति को प्राप्त करते हैं :-
योगयुक्त सन्यासी, वीरगति को प्राप्त योद्धा।“

“ये लोग धर्म नहीं जानते : नशे में धूत, असावधान,
पागल, थका हुआ, क्रोधी, भूखा, जल्दबाज,
लालची, डरा हुआ व्यक्ति और कामी।“

“सही तरह से कमाए गए धन
के दो ही दुरुपयोग हो सकते हैं :-
अपात्र को दिया जाना, सत्पात्र को न दिया जाना।“

“ज्ञानी पुरुष हमेशा श्रेष्ठ कर्मों में रूचि रखते हैं,
और उन्न्नती के लिए कार्य करते व् प्रयासरत रहते हैं
तथा भलाई करनेवालों में अवगुण नहीं निकालते हैं।“

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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