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वसुधैव कुटुम्बकम पर निबंध

आज विश्व को ग्लोवल विलेज कहा जाने लगा है क्योंकि दूरियाँ मिट रही है। वसुधैव कुटुम्बकम का तात्पर्य है कि पूरा विश्व एक परिवार है। हम यहां पर वसुधैव कुटुम्बकम पर निबंध (Vasudhaiva Kutumbakam Essay In Hindi) शेयर कर रहे है।

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इस वसुधैव कुटुम्बकम पर निबंध (Vasudhaiva Kutumbakam in Hindi) के संदर्भित सभी माहिति को आपके साथ शेअर किया गया है। यह निबंध सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए मददगार है।

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वसुधैव कुटुम्बकम पर निबंध (Vasudhaiva Kutumbakam Essay In Hindi)

यहां पर हम वसुधैव कुटुंबकम पर निबंध शेयर कर रहे हैं, जिसमें वसुधैव कुटुम्बकम का अर्थ, वसुधैव कुटुंबकम का सिद्धांत, वसुदेव कुटुंबकम अवधारणा की आवश्यकता आदि के बारे में बताया है। यह निबन्ध 250, 500 और 1100 शब्दों में लिखा है, जिससे आपको सहायता मिलेगी।

वसुधैव कुटुम्बकम पर निबंध (250 शब्द)

यह एक सामाजिक दर्शन है, जो एक आध्यात्मिक सोच से निकली है। वसुधैव कुटुम्बकम सोचने का एक तरीका है, जो एक बताता है कि पूरी दुनिया एक परिवार है। जो इस सोच को प्रोत्साहित करने का प्रयास करता है कि संपूर्ण मानव जाति एक परिवार है।

जिसमें कहा गया है कि पूरी मानव जाति एक जीवन ऊर्जा से बनी है। यदि परमात्मा एक है तो हम कैसे अलग-अलग हो सकते हैं? यदि समुद्र एक है तो उसकी बून्दे अलग-अलग कैसे हो सकती है।

हम सबको बनाने वाला परमात्मा ही है और वह एक है। इस तरह हम सब भी एक ही परिवार के सदस्य है फिर चाहे हम भारतीय हो या अफगानी। चाहे एशिया से हो या यूरोप से।

वसुधैव कुटुम्बकम एक संस्कृत अभिव्यक्ति है, जिसका अर्थ है कि पूरी पृथ्वी एक परिवार है। प्राथमिक शब्द संस्कृत के तीन शब्दों – वसुधा, ईवा और कुटुम्बकम से मिलकर बना है।

वसुधा का अर्थ है पृथ्वी, ईवा का अर्थ है जुड़े हुए और कुटुम्बकम का अर्थ है एक परिवार। इसका तात्पर्य है कि पूरी पृथ्वी केवल एक परिवार है। वसुधैव कुटुम्बकम का विचार हितोपदेश से शुरू होता है।

हितोपदेश रचना और छंद में संस्कृत कथाओं का एक वर्गीकरण है। हितोपदेश के निर्माता, नारायण के अनुसार, हितोपदेश बनाने के पीछे प्राथमिक प्रेरणा युवा व्यक्तित्वों को जीवन के बारे में सोचने के तरीके को सरल तरीके से प्रशिक्षित करना है ताकि वे जागरूक हो सके। यह व्यावहारिक रूप से पंचतंत्र की तरह है। वसुधैव कुटुम्बकम का संपूर्ण चिंतन हिंदू दर्शन का एक अभिन्न अंश है।

Vasudhaiva Kutumbakam Essay In Hindi

वसुधैव कुटुम्बकम पर निबंध (500 शब्द)

प्रस्तावना

धरती पे हर एक जीव चाहे मनुष्य हो, प्राणी हो या जंतु हो, सभी जीवों के लिए परिवार उनकी प्राथमिकता होती है। सभी जीव अपने परिवार से प्यार करते है, उनके सुख-दुख का साथी होते हैं।

हालांकि ऐसा नहीं है कि परिवार में लड़ाई झगड़े नहीं होते, वैचारिक मतभेद नहीं होते। लेकिन, यह मत भेद कुछ क्षणों के लिए होते हैं। भले ही कभी उनके बीच तनाव हो लेकिन वह कभी भी एक दूसरे को दुख पहुंचा कर विकास करने का नहीं सोचते।

यही भावना एक इंसान पूरी दुनिया के अन्य इंसानों एवं जीवों के प्रति सोचता है जब वह “वसुदेव कुटुंबकम की अवधारणा को अपना लेता है”।

वसुधैव कुटुंबकम का अर्थ

वसुदेव कुटुंबकम की अवधारणा का संयुक्त अर्थ समझने से पहले इसके प्रत्येक शब्दों का अर्थ समझते हैं। “वसुदेव” का अर्थ होता है पृथ्वी और कुटुंब का अर्थ है परिवार। इस तरह वसुदेव कुटुंबकम का संयुक्त अर्थ होता है “पृथ्वी एक परिवार है।”

जिस तरह कोई भी इंसान अपने परिवार को नुकसान पहुंचाने के बारे में सोच नहीं सकता, वह अपने परिवार के प्रति दुश्मनी की भावना नहीं रखता। ठीक उसी तरह वसुदेव कुटुंबकम की अवधारणा को अपना लेने सभी मानव बेर भूलकर आपसी परिवार की तरह रहने लगता हैं।

“वसुदेव कुटुंबकम” यह वाक्य इस विश्वास का प्रतिनिधित्व करता है कि विश्व के सभी प्राणियों को एक दूसरे के प्रति दया, करुणा का भाव रखना चाहिए, एक दूसरे से सम्मान के साथ व्यवहार करना चाहिए। उन्हें शांति एवं सद्भाव के साथ रहने का प्रयास करना चाहिए।

वसुधैव कुटुंबकम का महत्व

वसुदेव कुटुंबकम की अवधारणा की संकल्पना भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों के द्वारा ही दी गई थी। इस संकल्पना का उनका उद्देश्य धरती के सभी जीवों के बीच शांति स्थापित करना था, मानव को एक-दूसरे के प्रति सहायक बनाना था ताकि मानवता फलती फूलती रहे।

भारत में वसुदेव कुटुंबकम की भावना प्राचीन काल से ही सभी लोगों में ओत-प्रोत थी। इसलिए तो भारत ने हर जाति और धर्म के लोगों को शरण दी। लेकिन भारत में 16वीं और 17वीं शताब्दी के बीच यूरोपीय देशों ने इसे अपना उपनिवेश बनाना शुरू किया और देश के लोगों के बीच में फूट डालने की कोशिश की, जिससे धीरे-धीरे वसुदेव कुटुंबकम की भावना का ह्रास होने लगा।

भारत में प्राचीन काल से ही रंग, धर्म, जाति, पाती के नाम पर कई भेदभाव होते थे। लोग एक दूसरे के प्रति घृणा की भावना रखते थे। लेकिन समय-समय पर समाज में ऐसे कई महान लोगों ने जन्म लिया, जिन्होंने लोगों को वसुदेव कुटुंबकम की अवधारणा को अपनाने के लिए प्रेरित किया ताकि लोगों के बीच शांति स्थापित हो सके और मानवता का विकास हो सके।

वसुदेव कुटुंबकम की अवधारणा ने ना जाने कितने ही लोगों के बीच भेदभाव को खत्म कर उनके बीच शांति स्थापित की हैं। जब तक वसुदेव कुटुंबकम की अवधारणा लोगों में व्याप्त रहेगी, धरती पर सुख शांति बनी रहेगी।

वसुधैव कुटुंबकम का सिद्धांत

वसुदेव कुटुंबकम का सिद्धांत बेहतर भविष्य का निर्माण करना है। पूरे पृथ्वी को परिवार मानकर एक नई विश्व व्यवस्था का निर्माण करने के लिए वसुदेव कुटुंबकम के इन सात सिद्धांतों का पालन हर किसी को करना चाहिए।

  • पृथ्वी के हर एक जीवों को समझने की जरूरत है कि हर जीव एक दूसरे पर निर्भर हैं। सभी का अस्तित्व एक दूसरे के कारण ही संभव है, इसलिए एक दूसरे के प्रति सम्मान की भावना रखनी चाहिए।
  • सहयोग और सम्मान वसुदेव कुटुंबकम का दूसरा सिद्धांत है।
  • वसुदेव कुटुंबकम का तीसरा सिद्धांत स्वीकृति और सहिष्णुता हैं, जो मानव को एक दूसरे को अपनाकर शांति स्थापित करना सिखाता है।
  • वसुदेव कुटुंबकम का चौथा सिद्धांत आपसी प्रेम है। एक दूसरे के प्रति प्यार और करुणा लोगों को एकजुट करता है, उनमें एकता स्थापित करता है।
  • एक दूसरे की भावना की समझ वसुदेव कुटुंबकम का पांचवा सिद्धांत है। समाज के हर एक धर्म और संप्रदाय के लोगों को अपनी समझ विकसित करने की जरूरत है ताकि वह दूसरे के प्रति सहानुभूति दिखाएं।
  • अहिंसा वसुदेव कुटुंबकम का छठा सिद्धांत है।
  • दिशानिर्देश प्रवचन वसुदेव कुटुंबकम का चौथा सिद्धांत है। संवाद के माध्यम से मानव एक दूसरे के बीच सद्भावना हासिल कर सकता है।

वसुदेव कुटुंबकम अवधारणा की आवश्यकता

एक देश शक्तिशाली बनने के लिए दूसरे देश के साथ युद्ध करता है। दुनिया के कई देश आपस में लड़ते हैं, झगड़ते हैं, धरती के कुछ टुकड़ों के लिए मर मिटने को तैयार हो जाते हैं। लेकिन वे एक दूसरे के जीवन के महत्व को नहीं समझते।

आज भले ही पूरा विश्व अलग-अलग समूह में बटा हुआ है, सैकड़ों देश है। लेकिन इस पूरे धरती पर रहने वाले सभी जीव तो एक ही समान है। इंसान भले ही अपने आप को रंग-धर्म के अनुसार बांट लिया हो लेकिन उनका निर्माण करने वाला केवल एक ही परम पिता परमेश्वर है।

आज सभी देश अपने अधिकारों एवं उद्देश्य के प्रति सजग है लेकिन उन सभी का उद्देश्य तो एक ही है विकास करना। ऐसे में सभी को बैर भाव बुलाकर “वसुदेव कुटुंबकम” की अवधारणा को अपनाने की आवश्यकता है। क्योंकि सभी के साथ ही सबका विकास होता है।

यदि व्यक्ति दुश्मनी और बैर की भावना रखेगा, अपने धर्म, मजहब के नाम पर मारकाट करेगा तो एक समय ऐसा आएगा जब इस धरती पर कोई इंसान नहीं बचेगी। ऐसे में जरूरी है कि हर एक व्यक्ति वसुदेव कुटुंबकम की अवधारणा को अपनाकर शांति पूर्वक अपना जीवन जीए।

निष्कर्ष

वसुदेव कुटुंबकम की अवधारणा हर एक व्यक्ति को आपसी बैर भुलाकर एक साथ शांति से रहना सिखाता है। इस अवधारणा का आभास हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों को पहले ही हो गया था।

तभी तो कई ऋषि-मुनियों एवं कई महान सामाजिक कर्ताओं ने समय-समय पर समाज में व देश में धर्म, जाति, संप्रदाय के नाम पर लड़ने झगड़ने वाले लोगों को समझाने का काम किया। सब मिलजुल कर रहेंगे तभी बड़ी से बड़ी समस्या का सामना कर सकते हैं।

कोविड-19 महामारी के समय जब पूरा विश्व तनावग्रस्त और अशांत था तब वे वसुदेव कुटुंबकम की अवधारणा को अपनाते हुए एक-दूसरे का सहारा बने। तब जाकर इस महामारी पर विजय प्राप्त हो सका।

इसलिए यदि “वसुदेव कुटुंबकम” की अवधारणा रहेगी तभी विश्व का विकास होगा और विश्व के समस्त जीव शांति से रह पाएंगे।

वसुधैव कुटुम्बकम पर निबंध (1100 शब्द)

प्रस्तावना

वसुधैव कुटुम्बकम एक भाव है, जिसमें पूरे समाज को यह बताया गया है कि पूरा विश्व एक परिवार है फिर चाहे हम भौतिक दृष्टि से देखे या आध्यात्मिक दृष्टि से देखे।

दोनों में ही यह स्पष्ट है कि दुनियां के सभी इंसानों में कोई भेद नहीं है। जिस तरह से एक परिवार के सभी सदस्य एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं, ठीक इसी तरह हम भी एक दूसरे पर निर्भर है।

वर्तमान परिदृश्य और विश्व संकट

वर्तमान में हम आधुनिकीकरण और वैश्वीकरण में जी रहे विभिन्न धर्म, जाति, संस्कृति जैसे मिश्रित आबादी वाले समाज में रह रहे हैं। अब तक हम अस्पष्टता के युग (कलियुग की आयु) में रह रहे हैं, जहाँ भय और असुरक्षा, अन्याय, चोरी, भुखमरी, गरीबी, अत्याचार, आतंकवाद धमकी जैसे कई बुरी परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं।

मानव जाति इस वक़्त विशाल सामाजिक और पारिस्थितिक कठिनाइयों का सामना कर रही है। इस वक़्त हम न सिर्फ अपने अस्तित्व और स्थूल लड़ाई लड़ रहे हैं, बल्कि साथ मे एक ऐसी लड़ाई भी चल रही है, जहाँ इंसान की पहचान मानवता भी दांव पर लगी है।

आज इंसान तमाम तरह के परेशानी झेल रहा है। रिश्तों का मूल्य कम हो गया है। पूरे विश्व को अपने परिवार की नजर से देखना तो दूर है, लोग अपने लोभ के कारण अपने ही परिवार का अहित करने से नहीं डरते।

लोगों में नैतिकता खत्म होती जा रही है, दिलों में संवेदना का स्तर अब कम हो गया है। लोग सिर्फ अपने फायदे के बारे में सोचते रहते है, भले ही उसके लिए किसी भी हद तक जाना पड़े, लोग जाने के लिए तैयार रहते हैं।

समय की पुकार वसुधैव कुटुम्बकम

दुनियां में शांति की पुनः स्थापना के लिए एक बार फिर वसुधैव कुटुम्बकम की आवश्कयता है ताकि लोग विभिन्न भिन्नताओं को मानते हुए भी एक होने का एहसास कर सके। सह अस्तित्व के लिए ऐसी भावना होना बहुत आवश्यक है, अन्यथा एक दिन मानव जाति समाप्ति की कगार पर पहुँच जाएगी।

यह सामाजिक प्रमुखों, युवा अग्रदूतों, धार्मिक अग्रदूतों और शिक्षाप्रद अग्रदूतों में से प्रत्येक के लिए वसुधैव कुटुम्बकम – एक परिवार के रूप में दुनिया के एक और दृष्टिकोण के लिए एक साथ सोचने का आदर्श अवसर है और सद्भाव के निर्माण के लिए इस दृष्टि को सही में बदलने के लिए मिलकर काम करना है।

पूर्वी और पश्चिमी दर्शन में अंतर

हमने एक आम जनता को इकट्ठा किया है, जो चालक और अस्थिर है। आज हम बहुत खतरनाक स्थिति में रह रहे हैं, जहां मानव अस्तित्व को चुनौती खुद मानव ही दे रहे हैं। परिस्थितियां हर पल बदल रही है। हमारी आम जनता परेशान है। विनाश की लक्षण लगातार जीवन शैली पर नियंत्रण ग्रहण कर रहे है।

जैविक आपातकाल, बढ़ती हुई गरीबी के साथ जनसंख्या वृद्धि, भूखमरी और क्रूरता, आर्थिक रूप से असमान दुनिया, हथियारों की दौड़ और लड़ाकू स्वाभाव मनुष्य को मानव जाति के विनाश के वास्तविक कारक आज मनुष्यों को सोचने पर विवश कर रहे है कि क्या वो खुद अपने विनाश को आमंत्रण दे रहे हैं?

  • वैश्वीकरण “विश्व एक बाजार है”

पश्चिमी दृष्टिकोण के अनुसार वैश्वीकरण का अर्थ है “विश्व एक बाजार है” लोगों का मतलब केवल लाभ तक है। यह वैश्वीकरण का वक़्त है, जिसका अर्थ है घटते मानवीय मूल्यों के कारण भ्रष्टाचार, संघर्ष और हिंसा, इंसानी मूल्यों से ज्यादा धन को महत्व देना।

  • “वसुधैव कुटुम्बकम उदाहरण के लिए “विश्व एक परिवार है”

पूर्वी दृष्टिकोण के अनुसार हम यह मानते हैं कि वसुधैव कुटुम्बकम का अर्थ है विश्व एक परिवार है। इसका अर्थ है कि संपूर्ण विश्व एक एकल परिवार है, जो प्राचीन ज्ञान के माध्यम से विश्वव्यापी नागरिकता और सद्भाव की संस्कृति को आगे बढ़ाता है।

  • वसुधैव कुटुम्बकम – ‘दुनिया फिर भी एक परिवार है’

भारत अतीत में भी सद्भाव का एक वाहक रहा है क्योंकि वह भारत ही था, जिसने “वसुधैव कुटुम्बकम” की सामान्य अवधारणा को बताया था, जिसका अर्थ है, ‘पूरी दुनिया एक परिवार है’।

आम जनता का पूरा धेय वसुधैव कुटुम्बकम की सोच को चरितार्थ करना है। जब-जब आम जनता एकता की भावना से निहित नही होगी तब-तब आम जनता में विश्वासघात और सद्भाव की गिरावट देखने को मिलेगी। सद्भाव से रहने के लिए सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए।

वसुधैव कुटुम्बकम के 7 सिद्धांत

एक नई विश्व व्यवस्था का निर्माण

वसुधैव कुटुम्बकम की भावना के साथ विश्व को एक परिवार के रूप में बनाने और एक नई विश्व व्यवस्था बनाने के लिए हमें इन 7 सिद्धांतों का पालन करना चाहिए। 

एकता का पहला सिद्धांत सभी व्यक्ति एक विशिष्ट तरह से एक दूसरे पर निर्भर है, संपूर्णता में पृथ्वी से जुड़े हुए हैं। सभी का अस्तित्व दूसरे के बिना संभव नही है, इसलिए हमें एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए।

स्वीकृति और सहिष्णुता का दूसरा सिद्धांत

सहिष्णुता व्यक्तियों के बीच और सामाजिक व्यवस्थाओं और देशों के बीच अंतर-धार्मिक सहमति और संबंध पर काम करती है।

सहयोग और सम्मान का तीसरा सिद्धांत

मानवीय एकजुटता एक दूसरे के भागीदारी और सम्मान पर टिकी है। “सभी धर्मों को स्वीकार करें और उनका सम्मान करें जैसा कि हम अपने धर्म को मानते हैं”।

प्रेम का चौथा सिद्धांत

“दूसरों के लिए प्यार और करुणा, व्यक्तियों की एकजुटता और धर्मों की एकजुटता के लिए प्रवेश द्वार खोलते हैं।”

समझ और करुणा का पाँचवाँ सिद्धांत

वसुधैव कुटुम्बकम का तीसरा दिशानिर्देश – दुनिया एक परिवार है, जिसका सार यह निकालकर आता है कि मैं कौन हूँ?, इसके अलावा, शांति से जीवन जीने के लिए आवश्यक है कि विभिन्न धर्मों और विभिन्न समाजों को के बारे में हम अपनी समझ विकसित करें। सभी परिस्थितियों में सभी जीवित चीजों के लिए सहानुभूति। सहानुभूति एकजुटता और विश्व सद्भाव की स्थापना है।

अहिंसा का छठा सिद्धांत (अहिंसक)

शांतिपूर्ण व्यक्ति के लिए, संपूर्ण विश्व एक परिवार है। वह न किसी से डरेगा, न दूसरे उससे डरेंगे।

विनिमय का सातवां सिद्धांत

चौथा दिशानिर्देश प्रवचन का सिद्धांत है। संवाद के माध्यम से सद्भाव हासिल किया जा सकता है। धर्मों के बीच संवाद, सामान्य संबंध और विश्वासों की अधिक गहन समझ पैदा करता है।

आस्थाओं और धर्मों की समझ, सद्भाव और सौहार्द की संस्कृति को आगे बढ़ाती है और ईश्वर के अधीन एक परिवार के रूप में रहने में हमारी सहायता करती है।

निष्कर्ष

हमारे देश के मनीषियों ने अपनी प्रखर मेधा से यह बहुत पहले ही समझ लिया था कि हम सब मे एक ही तत्व बिद्यमान है। हम एक दूसरे से भिन्न नहीं है, इसलिए देश, धर्म, जाति, सम्प्रदाय के आधार पर होने वाला अंतर व्यर्थ है। हम सब अंदर से एक ही है और बात का उद्घोष करता हुआ संस्कृत का श्लोक वसुधैव कुटुम्बकम है।

वसुधैव कुटुम्बकम पर निबंध पीडीऍफ़ (Vasudhaiva Kutumbakam Essay PDF)

यहां पर वसुधैव कुटुम्बकम पर निबंध पीडीऍफ़ के रूप में उपलब्ध कर रहे हैं, जिसे आप आसानी से डाउनलोड कर सकते हैं और अपने प्रोजेक्ट आदि के काम में ले सकते हैं।

अंतिम शब्द

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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