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भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति पर निबंध

मानव जीवन का अस्तित्व बिना इस स्त्री के नहीं हो सकता क्योंकि स्त्री और पुरुष दोनों गाड़ी के पहिए की तरह है। केवल एक पहिए की मदद से जीवन का सफर तय नहीं किया जा सकता। नर और नारी के सहयोग और सद्भावना से ही यह जीवन का सफर अविराम गति से बढ़ सकता है।

Bhartiya Samaj Me Striyon Ki Sthiti Par Nibandh

एक समाज और एक देश के विकास में हमेशा से ही नारी का योगदान रहा है। भले ही कुछ लोगों ने उनके योगदान को नजरअंदाज किया हो।तो आज के इस लेख में भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति पर 250 और 800 शब्दों में निबंध लेकर आए हैं। इस लेख के माध्यम से आप विभिन्न युग में भारतीय  समाज में स्त्रियों की स्थिति से अवगत हो पाएंगे।

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भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति पर निबंध

भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति पर निबंध (250 शब्द)

भारतीय संस्कृति में स्त्रियों का महत्व प्राचीन काल से ही है। सतयुग से ही स्त्रियों को सम्मान दिया जा रहा है। रामायण में जाना है किस तरीके से बिना माता सीता के अश्वमेध यज्ञ कराना असंभव था, जिस कारण माता सीता की धातु की प्रतिमा को बिठाकर इस यज्ञ को कराया गया था। लेकिन इसी रामायण में माता सीता पर लोगों के द्वारा लांछन लगाए गए थे, बुरे शब्दों का प्रयोग किया गया था। इससे यह भी समझ में आता है कि उस समय भी स्त्रियों को कहीं ना कहीं पूरी तरीके से स्वतंत्रता प्राप्त नहीं थी।

भारतीय संस्कृति में अनेकों ग्रंथ लिखे गए हैं। कुछ ग्रंथों में स्त्रियों को देवी का स्वरूप बताया गया है। उन्हें लक्ष्मी का रूप माना गया है। इस तरीके से स्त्रियों को पूजनीय बताया गया है। ग्रंथों में यह भी कहा गया है कि जहां पर स्त्रियों का सम्मान होता है, जहां पर स्त्रियों को देवी का स्वरूप माना जाता है, वहां देवता निवास करते हैं।

वैदिक काल को स्त्रियों के उन्नति का काल माना जाता है क्योंकि इस दौरान स्त्रियों की स्थिति समाज में काफी अच्छी थी। स्त्रियां सभी प्रकार के यज्ञ, पूजा-पाठ में हिस्सा लिया करती थी। पुरुषों की तरह शिक्षा प्राप्त करने का पूरा अधिकार था। यहां तक कि स्त्रियों को व्यक्तित्व और सामाजिक विकास में महान योगदान था।

हर क्षेत्र में इन्हें सामान आदर और प्रतिष्ठा मिल रही थी। इसी काल में रचित मैत्रयीसंहिता में  स्त्री को झूठ का अवतार कहा गया है। यहां तक कि ऋग्वेद में स्त्रियों पर कटाक्ष करते हुए कहा गया है कि स्त्रियों का हृदय भेड़ियों के हृदय के भाती है। स्त्रियों से मित्रता नहीं करनी चाहिए। ग्रंथों में स्त्री के प्रति लिखे गए इस प्रकार के कथन से साबित होता है कि कहीं ना कहीं वैदिक काल में भी कुछ हद तक स्त्रियों के प्रति नीची दृष्टि थी।

समय के साथ स्त्रियों की स्थिति में बदलाव आते गया। प्राचीन काल में स्त्रियों की स्थिति थोड़ी बहुत ठीक थी, मध्यकालीन भारत में स्त्रियों की स्थिति काफी दयनीय हो गई और आधुनिक काल में स्त्रियों की स्थिति विकासशील है क्योंकि आज के समय में स्त्रियों को पुरुषों के समान ही पूरी तरीके से समान अधिकार प्राप्त है। भारत के संविधान में सबको समान अधिकार दिया गया है। यही कारण है कि आज हर क्षेत्र में महिलाएं अपनी प्रतिभा दिखा रही हैं।

भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति पर निबंध (850 शब्द)

प्रस्तावना

भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति को सुधारने में से सबसे बड़ा कोई हथियार है तो वह है शिक्षा क्योंकि शिक्षा के बलबूते ही व्यक्ति अपने अधिकार के बारे में जान पाता है। शिक्षा के कारण ही व्यक्ति उसके अधिकार के खिलाफ खड़े होने वाले लोगों से लड़ पाता है। मध्यकालीन भारतीय और प्राचीन काल में जब स्त्रियों के ऊपर बहुत सारे अत्याचार होते थे, उन्हें बहुत से कुप्रथा से गुजरना पड़ता था, तब स्त्रियां पढ़ी-लिखी नहीं हुआ करती थी।

उन्हें बचपन से यही समझाया जाता था कि उनका जन्म पुरूषो की सेवा करने के लिए हुआ है। अपने पति को परमेश्वर समझ कर जिंदगी भर उनकी सेवा करना है, भले ही वे कुछ भी अत्याचार करें उसका विरोध नहीं करना है। स्त्रियों को जो बताया जाता था वह वही मानती थी और पूरा जीवन वह अपने पति की सेवा और पर्दा प्रथा तले बिता देती थी। उसके जिंदगी का तो कोई महत्व ही नहीं होता था।

हालांकि आधुनिक काल में शिक्षा के कारण नारियों की स्थिति में काफी सुधार हुआ है लेकिन इससे भी पहले सबसे बड़ा योगदान समाज सुधारको का है। समय-समय पर समाज में अनेक समाज सुधारक उत्पन्न हुए जिन्होंने नारियों की कुप्रथा का विरोध किया। कुछ पुरुषों ने जो हमेशा से नारियों को अपनी जूती समझा तो वहीं कुछ पुरुषों ने नारियों को समान अधिकार देने के लिए समाज के खिलाफ हो गए।

इतिहास में ऐसा ही एक नाम राजा राममोहन राय का है, जिन्होंने स्त्रियों की स्थिति को समाज में सुधारने का सबसे बड़ा योगदान माना जाता है। उन्होंने सती प्रथा जैसे भयानक कुप्रथा को बंद करवाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। ब्रिटिश शासन भी स्त्रियों की स्थिति को सुधारने में जिम्मेदार हैं क्योंकि ब्रिटिश शासन के दौरान स्त्रियों को भी शिक्षा प्राप्त करने के लिए और कुप्रथा को दूर करने के लिए कई सारे एक्ट पारित हुए।

स्त्रियों की स्थिति को सुधारने में सरकार का योगदान

समाज में स्त्रियों की स्थिति को सुधारने में निश्चित ही सरकार भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। आज हर कोई जानता है कि बिना शिक्षा के स्त्रियों का विकास नहीं हो सकता और समाज में पहले से ही स्त्रियों को शिक्षा पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। माता-पिता बेटियों को पराया धन समझते थे, जिसके कारण वह अपने बेटों को शिक्षा दिलाते थे परंतु बेटियों को शिक्षा नहीं दिलाते थे। लेकिन सरकार ने कई सारी योजनाओं को लागू करके बेटियों को शिक्षा दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

आर्थिक रूप से कमजोर परिवार की बेटियां उच्च से उच्च शिक्षा प्राप्त कर सके इसीलिए सरकार बहुत सी योजनाओं के जरिए उन्हें स्कॉलरशिप ,यूनिफॉर्म जैसे कई प्रकार की सुविधा दे रही है। राज्यों में कई प्रकार के संस्था स्थापित की गई है, जो समाज में नारियों की स्थिति का विश्लेषण करती है। समाज में नारियों के खिलाफ बुराई फैलाने वाले लोगों पर कार्रवाई करती है।

दहेज प्रथा जो समाज के लिए अभिशाप है जिसके कारण ना जाने कितने ही बेटियां और उनके माता-पिता का शोषण किया जाता है। गरीब बेटियों के विवाह कराने के पश्चात उनके ससुराल वाले उन पर अत्याचार करके उनके माता-पिता से दहेज की मांग करते हैं और अंतः उन्हें बहुत बार आत्महत्या कर लेना पड़ता है।

समाज दहेज प्रथा जैसे अभिशाप को हटाने के लिए और नारियों की स्थिति को सुधारने के लिए सरकार ने दहेज प्रथा के खिलाफ कार्यवाही करना शुरू कर दिया है। जो भी व्यक्ति दहेज लेने और दहेज देने में पकड़ा जाता है उसके ऊपर सख्त कार्यवाही की जाती है। समाज में स्त्रियों पर किसी भी प्रकार का अत्याचार ना हो इसलिए सरकार स्त्रियों की रक्षा के लिए हेल्पलाइन नंबर भी जारी की है।

यदि कोई भी महिला घरेलू उत्पीड़न का शिकार होती है तो, वह अपने राज्य सरकार द्वारा जारी किए गए हेल्पलाइन नंबर के जरिए शिकायत दर्ज कर सकती है जिसके बाद उनके परिवार वालों पर सख्त कार्यवाही की जाएगी। हर एक सरकारी पदों पर स्त्रियों के लिए आरक्षण की सुविधा है।

यहां तक की सांसद मे भी कुछ सीटें स्त्रियों के लिए आरक्षित रखी गई है। यही कारण है कि आज स्त्रियां मुख्यमंत्री ,प्रधानमंत्री ,विधायक सांसद जैसे विभिन्न राजनीतिक पदों पर कार्यरत है। इससे समझ में आता है कि स्त्रीयां ना केवल अपने घर और बच्चों को संभालने में सक्षम है अपितु वह पूरे देश को भी संभाल सकती हैं।

आज की नारी पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव

कोई शक नहीं है कि आज कि ज्यादातर नारी पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित हो चुकी है। हमारी देश की संस्कृति में नारियों को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। उन्हें देवी का रूप बताया गया है। हमारे देश की नारियां ममता पवित्रता की मूरत है।

आज के इस आधुनिक समय में नारी पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित होकर और आडंबर को जीवन का सार समझ कर भविष्य की ओर अग्रसर हो रही है। भारतीय संस्कृति में नारियां त्याग समर्पण स्नेहा सरलता आदि गुणों से परिपूर्ण माना गया है लेकिन आज पाश्चात्य संस्कृति के कारण भारत की महिलाएं इन गुणों को भूल रही है।

निष्कर्ष

नारी केवल एक मानव नहीं है बल्कि यह मानवता का विभिन्न रूप है। नारी को जीवन में पग-पग पर बलिदान देना पड़ता है। वह ब्याह कर अपने माता पिता के घर को त्याग देती हैं और अपना पूरा जीवन अपने पति और अपने परिवार के लिए न्योछावर कर देती है।

हालांकि जब बहुत से लोग नारी के रहन-सहन पर प्रश्न उठाते हैं तो उनके बातों को गलत मतलब निकालते हुए कहा जाता है कि यदि पुरुष को पूरी तरीके से किसी भी तरह से रहन-सहन की स्वतंत्रता है तो फिर नारी को क्यों नहीं? नारी को चाहे कितनी भी स्वतंत्रता मिले. परंतु उसे अपनी गरिमा की हमेशा रक्षा करनी चाहिए। स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं कि नारी भारतीय संस्कृति को भूल जाए। सदियों से नारी भारतीय संस्कृति को अपनाते आई है। इसलिए आज की नारी को पाश्चात्य संस्कृति के कारण भारतीय संस्कृति को नहीं भूलना चाहिए।

अंतिम शब्द

नारी की रक्षा करना और उसका सम्मान करना ही भारत की प्राचीन संस्कृति है। नारी मां, पत्नी, बेटी, बहन, विभिन्न रूपों में अपने दायित्व को निभाते आ रही है। हमें उम्मीद है कि आज के इस लेख में 250 और 800 शब्दों में भारत के समाज में स्त्रियों की स्थिति पर लिखा गया निबंध पसंद आया होगा। इसे अपनी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए अन्य लोगों को शेयर करना ना भूलें।

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