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श्रीकृष्ण के प्रसिद्ध संस्कृत श्लोक और मंत्र अर्थ सहित

श्री कृष्ण को उनके भक्त कई नामों से पुकारते हैं, जिनमें नंदलाल कन्हैया, माखनचोर, गोपाल आदि प्रमुख है। ऐसा कहा जाता है कि श्री कृष्ण का कलयुग में महात्म्य और बढ़ने वाला है।

उनके मुख से निकली गीता के सभी श्लोक हमें जीवन दर्शन का अनुभव कराते है। गीता को दुनिया में सबसे अधिक आध्यात्मिक और दार्शनिक ग्रंथ माना जाता है।

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Image: shree krishna sanskrit shlok with hindi meaning

यहां पर हम श्री कृष्ण श्लोक अर्थ सहित (krishna shlok) और krishna shlok शेयर करने जा रहे हैं। इन कृष्ण संस्कृत श्लोक (Krishna Sanskrit Shlok) को पढ़ने के बाद आप श्री कृष्ण को और अधिक समझ सकेंगे।

श्री कृष्ण मंत्र (Krishna Mantra in Sanskrit)

भगवान श्रीकृष्ण को हिन्दू मान्यताओं के अनुसार विष्णु का आठवां अवतार माना गया है। भगवान श्रीकृष्ण के भक्त भारत ही नहीं पूरे विश्व में फैले हुए है।

भगवान श्री कृष्ण ने अपने जीवनकाल में कई लीलाएं की, जिनसे आज हर कोई परिचित है, उन्होंने कई ऐसे कार्य किये, जिनसे भक्तों के लिए सन्देश का काम करते हैं।

भगवान कृष्ण मंत्र संस्कृत का सही उच्चारण करने से जीवन के कई कष्ट दूर होते हैं, जीवन खुशियों से भर जाता है। यहां पर हम श्री कृष्ण मंत्र इन संस्कृत (krishna mantra in sanskrit) के बारे में जानेंगे।

इन मंत्रों से जीवन में ऐश्वर्य, धन-सम्पति और ज्ञान की प्राप्ति होती है। चलिए श्री कृष्ण मंत्र अर्थ सहित जानते हैं:

ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नम:
इस मंत्र का जप करने से हर कार्य में सिद्धि प्राप्त होती है। अर्थात यह सिद्धि का महामंत्र है।

गोकुल नाथाय नमः
इस मंत्र में कुल 8 अक्षर है, जो भी इस मंत्र का सही उच्चारण करता है, उसका जीवन आनंदमय हो जाता है और उसकी सभी इच्छाएँ पूर्ण हो जाती है।

ऊं श्रीं नमः श्रीकृष्णाय परिपूर्णतमाय स्वाहा
यह एक असाधारण मंत्र है, जो भगवान श्री कृष्ण का सप्तदशाक्षर महामंत्र है। ऐसा माना जाता है कि इस महामंत्र का पांच लाख जाप करने से ही यह सिद्ध हो पाता है जबकि अन्य मंत्र 108 बार जाप करने से सिद्ध हो जाते हैं।

कृं कृष्णाय नमः
श्री कृष्ण के मूल मंत्रों में से यह एक मूल मंत्र है। इस मंत्र का सही और दैनिक उच्चारण करने से जीवन में अटके हुए धन की प्राप्ति होती है।

ओम क्लीम कृष्णाय नमः
यह मंत्र एक ऐसा मंत्र है, जिसे नियमों के अनुसार जपना होता है। इस मंत्र का उच्चारण करने से जीवन के सभी वैभव प्राप्त होते हैं और जीवन सफलता से भर जाता है। यदि आपके जीवन में अधिक समस्याएँ है तो इसके जाप करने से वह दूर हो जाती है।

कृष्ण सदा सहायते श्लोक

ॐ देविकानन्दनाय विधमहे वासुदेवाय धीमहि तन्नो कृष्ण:प्रचोदयात
इस मंत्र का जाप करने से जीवन में शांति बनी रहती है। जीवन के सभी दुःख दूर हो जाते हैं। हर समय ख़ुशी का माहौल बना रहता है।

ऊं गोवल्लभाय स्वाहा।
यह एक चमत्कारी मंत्र है। इसके जपने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। हर कार्य में सफलता मिलती है और वाणी में मधुरता आती है।

ऊं क्लीं ग्लौं क्लीं श्यामलांगाय नम:
इस मंत्र का जप करने से सभी आर्थिक संकट कट जाते हैं और जीवन सुखी हो जाता है।

श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे, हे नाथ नारायण वासुदेवा
श्री कृष्ण के भक्त इस मंत्र का उच्चारण जरुर करते हैं। इसका उच्चारण करने से भगवान श्री कृष्ण की कृपा बनी रहती है और जीवन सुखमय हो जाता है।

हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे राम, हरे राम, राम राम, हरे हरे
यह मंत्र भगवान श्री कृष्ण का सबसे प्रसिद्ध मंत्र है, जो 16 शब्दों का वैष्णव मंत्र है। यह एक दिव्य मंत्र है, जिसका कोई भी जाप करता है तो वह कृष्ण भक्ति में लीन हो जाता है।

श्री कृष्ण श्लोक अर्थ सहित (Krishna Shlok in Sanskrit)

वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्।
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्।।

भावार्थ:
मैं वासुदेवानंदन जगद्गुरु श्री कृष्ण चंद्र को नमन करता हूं,
जिन्होंने कंस और चानूर को मार डाला, देवकी का आशीर्वाद।

राधा कृष्ण मंत्र इन संस्कृत

वृन्दावनेश्वरी राधा कृष्णो वृन्दावनेश्वरः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम।।

भावार्थ:
श्रीराधारानी वृंदावन की स्वामिनी हैं और श्री कृष्ण वृन्दावन के स्वामी,
मेरे जीवन का-शोक श्रीराधा-कृष्ण के सहायक में हो।

krishna shlok

shri krishna shlok

अतः सत्यं यतो धर्मो मतो हीरार्जवं यतः।
ततो भवति गोविन्दो यतः कृष्णस्ततो जयः।।

भावार्थ:
जहां सत्य, धर्म, लज्जा और सरलता का वास है
वहां श्रीकृष्ण निवास करते हैं और जहां श्रीकृष्ण निवास करते हैं,
वहां विजय का वास होता है।

पृथिवीं चान्तरिक्षं च दिवं च पुरुषोत्तमः।
विचेष्टयति भूतात्मा क्रीडन्निव जनार्दनः।।

भावार्थ:
वे सर्वंतरीमी पुरुषोत्तम जनार्दन हैं, मानो वे खेल के माध्यम से पृथ्वी,
आकाश और स्वर्गीय दुनिया को प्रेरित कर रहे हैं।

krishna sloka in sanskrit

कालचक्रं जगच्चक्रं युगचक्रं च केशवः।
आत्मयोगेन भगवान् परिवर्तयतेऽनिशम्।।

भावार्थ:
यह श्रीकेशव ही है जो अपनी चिचचक्‍ति से हरणिश कालचक्र,
जगचक्र और युग-चक्र को घुमाता रहता है।

कालस्य च हि मृत्योश्च जङ्गमस्थावरस्य च।
ईष्टे हि भगवानेकः सत्यमेतद् ब्रवीमि ते।।

भावार्थ:
मैं सत्य कहता हूँ – वही काल, मृत्यु और समस्त चल-अचल जगत का स्वामी है
और अपनी माया से संसार को वश में रखता है।

krishna shlok

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sanskrit shlok on krishna

तेन वंचयते लोकान् मायायोगेन केशवः।
ये तमेव प्रपद्यन्ते न ते मुह्यन्ति मानवाः।।

भावार्थ:
जो केवल उसकी शरण लेते हैं,
वे प्रेम में नहीं पड़ते।

यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।
तत्र श्रीविजयो भूतिधुंवा नीतिर्मतिर्मम।।

भावार्थ:
जहां योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण हैं और जहां गांदिवंधरी अर्जुन हैं,
वहीं श्री, विजय, विभूति और निचल नीति है – यह मेरा मत है।

नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत।।

भावार्थ:
कहा गया है कि आत्मा को कोई हथियार नहीं काट सकता,
आग नहीं जल सकती, पानी सोख नहीं सकता, हवा उसे सुखा नहीं सकती।
श्री कृष्ण ने अरुण से कहा कि शरीर बदलता रहता है, कभी नहीं मरता।
किसी को नहीं मरना चाहिए।

krishna shlok in sanskrit

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।

भावार्थ:
इस श्लोक में श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, कर्म के फल पर तुम्हारा अधिकार नहीं है।
इसलिए कर्म के फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। इस श्लोक में कर्म का महत्व समझाया गया है।
हमें केवल कर्म पर ध्यान देना चाहिए। यानी अपना काम पूरी ईमानदारी से करें और गलत कामों से बचें। (श्लोक 47, द्वितीय अध्याय)

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।

भावार्थ:
श्री कृष्ण कहते हैं कि जब भी ब्रह्मांड में धर्म की हानि होती है, अर्थात अधर्म बढ़ता है,
तब मैं धर्म की स्थापना के लिए अवतार लेता हूं।
जो अधर्म करते हैं, भगवान उनका नाश करते हैं, इसलिए धर्म के अनुसार आचरण करना चाहिए।

krishna shlok

हे कौन्तेय (अर्जुन), और निश्चय करके युद्ध करो…
हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्।
तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:।।

भावार्थ:
भावार्थ: हे अर्जुन तुम युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो जाओगे तो तुम्हें स्वर्ग मिलेगा और युद्ध विजय कर लोगे तो धरती का सुख प्राप्त होगा।।
इसलिए उठो हे अर्जुन उठो और निश्चय रूप से युद्ध करो। (श्लोक 37, द्वितीय अध्याय)

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कृष्ण प्रेम श्लोक संस्कृत

क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।।

भावार्थ:
क्रोध करने से व्यक्ति की बुद्धि मर जाती है अर्थात मूढ़ हो जाती है। इस कारण उसकी स्मृति भ्रमित होती है।
इससे पूर्ण बुद्धि समाप्त हो जाती है। बुद्धि नष्ट होने से व्यक्ति खुद का ही नाश कर देता है। (श्लोक 63, द्वितीय अध्याय)

अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरं।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्।।

भावार्थ:
उनके होठ मधुर है, मुख मधुर है, नेत्र मधुर है, मुस्कान मधुर है, हृदय मधुर है, चाल मधुर है, उनकी सभी वस्तुएं मधुर है, यह मधुरता के सम्राट है।

कृष्णप्रेममयी राधा राधाप्रेममयो हरिः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम।।

भावार्थ:
श्री राधारी श्रीकृष्ण में हैं और श्रीकृष्ण श्री राधारा में रमन हैं,
मेरे जीवन का दर्शन श्री राधा-कृष्ण के रूप में है।

कृष्णस्य द्रविणं राधा राधायाः द्रविणं हरिः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम।।

भावार्थ:
भगवान श्रीकृष्ण की पूरी संपत्ति श्री राधारानी है और श्री राधारानी की पूरी संपत्ति श्रीकृष्ण हैं,
इसलिए मेरे जीवन का हर पल श्री राधा-कृष्ण की शरण में बिताना चाहिए।

कृष्णप्राणमयी राधा राधाप्राणमयो हरिः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम।।

भावार्थ:
भगवान श्रीकृष्ण का जीवन श्री राधारानी के हृदय में और श्री राधारानी का जीवन भगवान श्रीकृष्ण के हृदय में निवास करता है,
इसलिए मेरे जीवन का प्रत्येक क्षण श्री राधा-कृष्ण की शरण में व्यतीत करना चाहिए।

krishna shlok in hindi

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:।।

भावार्थ:
हे अर्जुन! तुम हर आश्रय को त्याग कर अर्थात सभी धर्मों को त्याग कर केवल मेरी शरण में आ जाओ।
मैं (श्री कृष्ण) तुम्हे सभी प्रकार के पापों से मुक्ति दिला दूंगा, इसलिए शोक मत करो। (श्लोक 66, अठारहवां अध्याय)

कृष्णद्रवामयी राधा राधाद्रवामयो हरिः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम।।

भावार्थ:
श्री राधारानी श्रीकृष्ण के नाम से प्रसन्न होती हैं और श्री राधारानी के नाम से जुड़ी होती हैं,
मानो मेरा जीवन श्री राधा-कृष्ण के रूप में शोकग्रस्त हो गया।

कृष्ण श्लोक संस्कृत

कृष्ण गेहे स्थिता राधा राधा गेहे स्थितो हरिः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम।।

भावार्थ:
श्री राधारानी भगवान श्रीकृष्ण के शरीर में और भगवान श्रीकृष्ण श्री राधारानी के शरीर में निवास करते हैं,
इसलिए मेरे जीवन का हर क्षण श्री राधा-कृष्ण की शरण में व्यतीत होना चाहिए।

कृष्णचित्तस्थिता राधा राधाचित्स्थितो हरिः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम।।

भावार्थ:
श्री राधारानी के मन में भगवान श्रीकृष्ण निवास करते हैं और श्री राधारानी भगवान श्रीकृष्ण के मन में निवास करते हैं,
इसलिए मेरे जीवन का प्रत्येक क्षण श्री राधा-कृष्ण की शरण में व्यतीत करना चाहिए।

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कृष्णा श्लोक

नीलाम्बरा धरा राधा पीताम्बरो धरो हरिः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम।।

भावार्थ:
श्री राधारानी नीलावर्ण का वस्त्र वर्ण और श्री कृष्णवर्ण का वस्त्र निगम श्रीराधा-कृष्ण वस्त्र,
श्रीराधा-कृष्ण के वस्त्र क्षेत्र के क्षेत्र में हैं।

वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्।
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम।।

भावार्थ:
मैं देवकी के आनंदवर्धन, वासुदेवानंदन जगद्गुरु श्री कृष्ण चंद्र की पूजा करता हूं,
जिन्होंने कंस और चानूर का वध किया था।

श्रद्धावान्ल्लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय:।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति।।

भावार्थ:
अपनी इन्द्रियों पर संयम रखने वाले व्यक्ति, श्रद्धा रखने वाले व्यक्ति, साधन पारायण हो अपनी तत्परता से ज्ञान प्राप्त करते हैं।
फिर जब ज्ञान की प्राप्ती हो जाती है तो जल्दी ही परम शांति को प्राप्त हो जाते हैं। (श्लोक 39, चतुर्थ अध्याय)

krishna shloka in sanskrit

महामायाजालं विमलवनमालं मलहरं,
सुभालं गोपालं निहतशिशुपालं शशिमुखम।
कलातीतं कालं गतिहतमरालं मुररिपुं।।

भावार्थ:
जिसके पास राजसी जाल है, जिसने शुद्ध वनमाला धारण की है, कौन मलका का अपहरण करता है, जिसके पास सुन्दर ढाल है,
कौन गोपाल है, जो बाल-हत्यारा है, जिसका मुख चन्द्रमा जैसा है, वह कौन है? सर्वथा कालातीत काल है,
जो अपनी सुन्दर गति से हंस भी है। वह विजेता है, मूर दानव का शत्रु है, हे उस परमानंद गोविंद की सदा पूजा करो।

कृष्ण गोविंद हे राम नारायण,
श्रीपते वासुदेवाजित श्रीनिधे।
अच्युतानन्त हे माधवाधोक्षज,
द्वारकानायक द्रौपदीरक्षक।।

भावार्थ:
हे कृष्ण, हे गोविंदा, हे राम, हे नारायण, हे रामनाथ, हे वासुदेव, हे अजेय, हे वैभव, हे अच्युत, हे अनंत,
हे माधव, हे अधोक्षजा (उत्कृष्ट), हे द्वारकानाथ, हे द्रौपदी के रक्षक, दया करो मुझे पर।

श्री कृष्ण वंदना श्लोक

वन्दे नव घनश्यामं पीत कौशेयवससम।
सानंदम सुंदरम शुद्धं श्रीकृष्णं प्रकृते परम।।

श्री कृष्ण स्तुति इन संस्कृत

परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे।।

भावार्थ:
जो पुरुष सीधे साधे होते उन के लिए कल्याण के लिए और जो पापी होते हैं, उनके विनाश के लिए,
धर्म की स्थापना के लिए, मैं (भगवान श्री कृष्ण) युगों-युगों से प्रत्येक युग में जन्म लेता आया हूं। (श्लोक 8, चतुर्थ अध्याय)

कस्तुरी तिलकम ललाट पटले,
वक्षस्थले कौस्तुभम।
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले,
वेणु करे कंकणम।।
सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम,
कंठे च मुक्तावलि।
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते,
गोपाल चूडामणी।।
मूकं करोति वाचालं,
पंगुं लंघयते गिरिम्‌।
यत्कृपा तमहं,
वन्दे परमानन्द माधवम्‌।।

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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