भगवत गीता के उपदेश

भगवत गीता जोकि हर भारतीय घरों में पाया जाने वाला एक धार्मिक पुस्तक है और इसकी रचना आज से 5000 साल पहले की गई थी और इसमें लिखी गई बातें भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन के बीच हुई थी, जोकि एक उपदेश के समान है और यह उपदेश हर व्यक्ति को अपने जीवन में आगे बढ़ने में मदद करती है।

अपने मुसीबतों से परेशानियों से कैसे मुक्ति पाएं? यह भगवत गीता के उपदेश के द्वारा हम लोग जानते हैं। भगवत गीता का उपदेश हम सभी के जीवन में अंधकार को दूर करने का ज्ञान रूपी प्रकाश है, जो कि हम सभी के जीवन एक नई सुबह, एक नई तरक्की, एक नई सफलता लाती है।

Geeta Updesh in hindi

तो आज के पोस्ट में हम भगवत गीता के कुछ उपदेश की जानकारी जानेंगे, जो कि हमारे जीवन में सफल बनाएं रखने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। इन सारी बातों को हम आज के इस पोस्ट में जानेंगे।

भगवत गीता के उपदेश

  • भगवत गीता का पहला उपदेश है कि आप अपने ऊपर विश्वास कैसे करें? और उसकी ताकत को कैसे जाने? विश्वास एक छोटा सा शब्द है, लेकिन इसमें बहुत ही शक्तियां समाहित है। जब आप किसी चीज पर या किसी भी कार्य पर पूर्ण विश्वास करते हैं और उसके प्रति पूर्ण रूप से समर्पित हो जाते हैं अर्थात आपका मन और आपका कर्म पूर्ण रुप से विश्वास करके, किसी कार्य को करता है। तो उस कार्य में आपको सफलता बहुत ही जल्दी मिल जाती है और उस कार्य को करने में आपको एक अलग आनंद भी मिलता है। हम ही अपने विश्वास की उपज होते हैं। हम जैसा सोचते हैं हम वैसा ही बन जाते हैं। अगर हम खुद को कमजोर समझेंगे तो हम कमजोर बनेंगे और हम अगर खुद पर विश्वास करके अपने आप को मजबूत बनाएंगे, तो हम एक मजबूत और सफल इंसान बन पाएंगे। इसलिए भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि हमें खुद पर विश्वास करके अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहिए और इस विश्वास से आगे बढ़ना चाहिए कि हमें लक्ष्य की प्राप्ति जरूर होगी और हमें लक्ष्य की प्राप्ति हो जाती है।
  • भगवत गीता में बताया गया है कि हमें मृत्यु से भय नहीं करना चाहिए क्योंकि जो भी संसार में जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है। तो हमें इस बात को स्वीकार कर लेना चाहिए कि हमारा एक दिन मृत्यु निश्चित है और हमें भयमुक्त होकर अपने जीवन को जीना चाहिए। आपका भविष्य क्या है? यह आपको कोई भी नहीं बता सकता। अच्छे से अच्छे ज्योतिष भी आपको अनुमान लगा सकते हैं। तो जब हमें अपने आने वाले कल के बारे में पता नहीं है, तो फिर उसके बारे में सोच कर भयभीत क्यों होना? इसीलिए हमें अपने मृत्यु के भय से छुटकारा पाना चाहिए और अपने जीवन को खुल कर जीना चाहिए क्योंकि जीवन का असली आनंद अपने वर्तमान जीवन जीने में है।
  • भगवत गीता में श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया कि आपका कर्म सबसे ऊपर है। धरती पर जन्म ही अपने कर्म करने के लिए लेता है। कोई भी व्यक्ति बिना कर्म किए इस जीवन में रह ही नहीं सकता। चाहे वह कर्म मन से हो या फिर तन से वह कर्म करता ही रहेगा। बिना कर्म किए कोई भी व्यक्ति नहीं रह सकता और व्यक्ति को कर्म करना चाहिए लेकिन उसकी फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। जो व्यक्ति बिना फल की चिंता की एक कर्म करता है। उसकी सफलता निश्चित होती है और जो व्यक्ति फल की चिंता करता है ना तो वह अपने कर्म सही से कर पाता है और ना ही उसका कर्म फल ही उसे अच्छा से नहीं मिल पाता है। अगर हम किसी कार्य को करें और उसमें हमें सफलता नहीं मिली तो इसका मतलब है कि हमें और भी सीखने की जरूरत है। क्योंकि जब हम असफल होते हैं तब हम देखते हैं कि हमने उस कार्य को करने में कौन सी कमी छोड़ी है और हम और भी मेहनत करके, उस कार्य को सफल करने की कोशिश करते हैं। श्री कृष्ण कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति कर्म फल की चिंता किए बगैर कार्य करता है, वह व्यक्ति मानसिक शांति के साथ-साथ अपने कार्य में सफल भी होता है और कर्म फल की चिंता किए बगैर काम करने वाले व्यक्ति को आध्यात्मिक ज्ञान की भी प्राप्ति होती है।
  • भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि हमें स्वार्थी और अस्वार्थी नहीं होना चाहिए। हमें सब कुछ भगवान के ऊपर छोड़ देना चाहिए। स्वार्थ में भरकर अगर व्यक्ति कोई कार्य करता है, तो उसके कार्य को सफल होने में समय भी लगता है और वह व्यक्ति कर्म फल की चिंता में हमेशा उलझा रहता है और कार्य को भी सही से नहीं कर पाता है। इसीलिए हमें बिना स्वार्थ के कार्य करना चाहिए और कर्म फल की भी चिंता नहीं करनी चाहिए। हमें बस कर्म करना चाहिए और सब कुछ भगवान के ऊपर छोड़ देना चाहिए। तभी हम अपने मन को शांत रखकर, अपने काम को पूरे मन से कर पाते हैं और उसमे सफलता प्राप्त कर पाते हैं। इसीलिए हमें स्वार्थी नहीं होकर सब कुछ भगवान को समर्पित कर देना चाहिए, यहां तक कि कर्मफल भी। इस संसार में जो होता है, भगवान की मर्जी से ही होता है। तो हमारे सोचने ना सोचने से कुछ नहीं होने वाला है। तो हम क्यों खुद को परेशान करें, खुद को चिंता में डाले रखें। जो हो रहा है वह अच्छे के लिए हो रहा है और जो होगा वह भी अच्छे के लिए होगा। हमेशा यह सोचते हुए खुद को सकारात्मक रखें और अपने जीवन में बढ़ते रहें।
  • भगवत गीता में बताया गया है कि किसी भी व्यक्ति का क्रोध उसका सबसे बड़ा शत्रु होता है क्योंकि जब व्यक्ति क्रोध में होता है, तो वह विवेक हीन हो जाता है और वह सही फैसला नहीं ले पाता है। क्रोध करने से सबसे पहले व्यक्ति को जो नुकसान होता है, वह है उसकी मानसिक शांति। जब व्यक्ति का मानसिक शांति भंग होता है, तो व्यक्ति सही फैसला नहीं ले पाता है और क्रोध में भरकर बस गलत फैसला करता है। क्रोध की अग्नि किसी व्यक्ति के सोचने की और बुद्धि को नष्ट नहीं करता है, बल्कि वे उस व्यक्ति में नकारात्मकता को भर देता है, जिससे कि वह व्यक्ति बहुत ही अभिमानी हो जाता है और खुद को ही महान समझने लगता है और अपना ही नुकसान करने लगता है। जब व्यक्ति अपने अहंकार में भर जाता है, तो वह विनाश की राह पर चलने लगता है। इसीलिए भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि क्रोध से बढ़कर आपका दूसरा कोई शत्रु नहीं है क्योंकि क्रोध में भरकर व्यक्ति अपना ही नुकसान करता है और अपने को ही तकलीफ देता है।
  • भगवत गीता में बताया गया है कि मन पर कंट्रोल रखना बहुत ही जरूरी होता है। हमारा मन बहुत ही चंचल होता है और वह बहुत ही आसानी से इधर-उधर भटकते रहता है। यदि व्यक्ति अपने जीवन में सफलता चाहता है, तो उसे अपने मन को काबू में रखना चाहिए। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि मन को काबू में रखने के लिए आपको प्रयासरत रहना पड़ेगा क्योंकि धीरे-धीरे ही आप अपने मन को काबू में कर पाएंगे। जब मन आपके काबू में रहेगा तो आप किसी भी काम पर पूर्ण रूप से फोकस कर पाएंगे और आपका दिमाग शांत होकर, एकाग्र चित्त हो पाएगा और आप अपने जीवन में सफलता को प्राप्त कर सकेंगे। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति अगर अपने मन को काबू में नहीं रख पाता है, तो वही मन उसका सबसे बड़ा दुश्मन बन जाता है और वह अपना ही विनाश कर देता है।
  • भगवत गीता के उपदेश में बताया गया है कि भगवान की नजर में ना कोई व्यक्ति छोटा होता है, ना कोई व्यक्ति बड़ा होता है, ना कोई व्यक्ति अपंग होता है और ना कोई व्यक्ति स्वस्थ होता है। भगवान की नजर में सभी व्यक्ति एक समान होते हैं और भगवान सभी को एक समान दृष्टि से देखते हैं। भगवान किसी के साथ भेदभाव नहीं करते हैं। इसका सबसे अच्छा उदाहरण है, कि नदी चाहे कोई भी हो वह अंत में जाकर समुंदर में मिलती है। उसी प्रकार व्यक्ति चाहे वह किसी भी धर्म और संप्रदाय का हो, चाहे वह कैसे भी कार्य करें, अंत में उसे परमपिता परमेश्वर के चरण में ही जाना होगा और भगवान इस पृथ्वी के कन कन में समाहित है और भगवान की नजर से कोई भी व्यक्ति नहीं बच सकता और भगवान की नजर हर किसी पर एक समान रहती है और भगवान उसी के कर्म के हिसाब से उसे कर्म फल देते हैं।
  • भगवत गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कि किसी भी व्यक्ति का सबसे बड़ा धर्म उसको अपने कर्तव्य का पालन करना है। व्यक्ति को अपने कर्तव्य का पालन हर हाल में करना चाहिए। चाहे व्यक्ति किसी भी परेशानी में हो या दुख में हो। लेकिन उसे सबसे पहले अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए। व्यक्ति का सबसे बड़ा धर्म उसका कर्तव्य होता है और वह अगर अपने कर्तव्य का पालन नहीं करता है, तो वह अधर्म करता है। हमें किसी के भी कर्म से प्रभावित नहीं होना चाहिए क्योंकि हमें दूसरों के सफलता से या दूसरों के तरक्की से विचलित होकर अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटना चाहिए। जो व्यक्ति अपने कर्तव्य का पालन नहीं करता है, उसका मन अशांत रहता है और वह दुख को प्राप्त करता है। दूसरों से अपनी तुलना करके, अपने आपको उसकी तरह बनाने से अच्छा है, कि आप अपना कर्तव्य का पालन करें। कर्तव्य हमें सही राह पर चलना सिखाता है और कर्म ना करने से कहीं ज्यादा बेहतर है कि आप कुछ ना कुछ काम करें। कुछ व्यक्ति कर्तव्य में मेहनत देखकर या फिर कुछ व्यक्ति देखकर उस कर्तव्य को करने से पीछे हट जाते हैं। लेकिन किसी भी कर्तव्य कर्म में कुछ ना कुछ छोटा बड़ा दोष तो होता ही है। जिसका अच्छा उदाहरण है कि जब आप किसी आग को जलाते हैं तो उसके साथ धुआ भी उत्पन्न होता है। उसी प्रकार आप किसी कार्य को करेंगे तो हो सकता है, कि उस कार्य से आपको कुछ हानि भी हो। लेकिन आप ज्यादा सोच विचार नहीं करना चाहिए। कर्म करने के पहले हमें सोचना चाहिए यह बेहद जरूरी होता है, लेकिन अत्यधिक सोच हमें उस कर्म को करने से पीछे हटा देती है और ज्यादा सोचने पर हमारे अंदर उस कार्य को लेकर ज्यादा नकारात्मकता भर जाती है और हम उस कार्य को करने से पीछे हट जाते हैं इसीलिए हमें ज्यादा सोचना नहीं चाहिए और अपने कर्तव्य का हमेशा पालन करना चाहिए।
  • भगवत गीता के उपदेश में बताया गया है कि हमें रोज ध्यान करना चाहिए क्योंकि हम जब ध्यान करते हैं तो हम भगवान को प्राप्त करते हैं और आजकल तो मेडिटेशन का प्रचलन चला हुआ है। जिसमें व्यक्ति शांत होकर एकाग्र चित्त होकर ध्यान में मग्न रहता है। आज से 5000 वर्ष पूर्व ही भगवान श्री कृष्ण ने यह उपदेश दिया था कि हमें ध्यान करना चाहिए और ध्यान करने से हमारे मन को एक अलग शांति मिलती है। श्री कृष्ण कहते हैं कि जो भी व्यक्ति अपने मन को अपने ध्यान को, अपनी सभी इंद्रियों को शांत करके एकाग्र चित्त होकर, भगवान के ध्यान में मग्न होता है, तो उस व्यक्ति को भगवान के होने का ज्ञान प्राप्त होता है। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि जो व्यक्ति हर किसी में भगवान को देखता है, हर किसी के भला के बारे में सोचता है, उसके ऊपर भगवान की कृपा हमेशा रहती है। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि ज्ञान मार्ग हो या भक्ति मार्ग, जब तक आप पूर्ण विश्वास के साथ पूर्ण समर्पण नहीं करते हैं। तब तक आप भगवान की कृपा नहीं प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि भगवान की पूजा तो हर व्यक्ति करता है लेकिन उसे कुछ व्यक्ति को ही में से कुछ व्यक्ति को भी भगवान की कृपा प्राप्त होती है क्योंकि भगवान तो आपके मन में बसा है और भगवान को पता है कि आप किस मन से पूजा कर रहे हैं। जो भी सच्चे मन से भगवान की पूजा करता है, उसे भगवान की कृपा अवश्य ही मिलती है और उसके ऊपर भगवान की कृपा हमेशा बरसती रहती है।
  • भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि व्यक्ति को ज्यादा संदेह नहीं करना चाहिए क्योंकि जब व्यक्ति संदेह में पड़ता है, तो वह किसी पर भी विश्वास नहीं कर पाता है और अपने मन की शांति को भंग करता है और अपने परिजन और अपने रिश्तेदारों से संदेह करके अपने रिश्ते को तोड़ देता है और खुद को अकेला कर देता है। संदेह आपके मन में एक भ्रम पैदा करती है। संदेह करके व्यक्ति ना केवल इस लोक में बल्कि वह दूसरे लोक में भी शांति को प्राप्त नहीं कर सकता है क्योंकि ज्यादा संदेह करने वाला व्यक्ति हमेशा अपने मन में दुख रखता है जिस वजह से वह किसी पर विश्वास नहीं कर पाता है। यह सच है कि हमें किसी भी बात का या किसी भी चीज की जानकारी होनी चाहिए, जब हम किसी चीज की सच की जानकारी खोजते हैं तो आधी अधूरी जानकारी में हमें कोई निर्णय या फिर कोई निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिए। जब तक हम किसी बात की पूरी जानकारी प्राप्त ना कर ले, तब तक हमें किसी भी व्यक्ति या फिर किसी भी बात को लेकर संदेह में नहीं पड़ना चाहिए। हमें हर किसी बात की पूर्ण जानकारी लेनी चाहिए और किसी भी बात की अंत तक पहुंचने चाहिए। अगर कोई व्यक्ति आधी अधूरी बात में ही संदेह करके निष्कर्ष निकाल लेता है। तो उसको अंत में पश्चाताप दुख और अकेलापन भोगना पड़ता है।
  • भगवत गीता में बताया गया है कि हमें किसी भी चीज की अति हमें दुर्गति की ओर ले जाती है अर्थात हम किसी भी चीज को अगर हद से ज्यादा करें तो वह हमें हानि पहुंचाती है। इस जीवन में सुखी और सफल रहने का सबसे अच्छा उपाय संतुलन को बनाना है। जिस चीज में या जिस काम में संतुलन ना हो वह व्यक्ति सफल नहीं हो पाता है। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि अगर किसी व्यक्ति के जीवन में खुशी आती है, तो वह व्यक्ति खुशी में इतना पागल हो जाता है कि खुद पर अहंकार करने लगता है और यदि किसी व्यक्ति के जीवन में दुख आता है तो वह दुख में इस कदर डूब जाता है कि उसे हर और निराशा और दुख ही दिखता है जबकि यह दोनों ही स्थिति बहुत ही भयावह और गलत है। हमें दुख और सुख दोनों में संतुलन बना कर रखना चाहिए और जीवन का यही मूल मंत्र है। जो भी व्यक्ति अपने जीवन में संतुलन रखता है, उसका जीवन दुख और निराशा से भरा रहता है। इसलिए जो भी व्यक्ति अपने जीवन में संतुलन बनाकर रखता है। वह अपने जीवन में सुख शांति और संतुष्टि को प्राप्त करता है और जो व्यक्ति अपने जीवन में असंतुलन बनाकर रखता है। वह अपने जीवन में दुख अशांति और असंतुलन को प्राप्त करता है।
  • भगवत गीता के उपदेश में बताया गया है कि सही कर्म ही आपके मुक्ति का कारण है। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि मुक्ति को प्राप्त करने के लिए, आपको इस संसार से अलग होकर, किसी जंगल में जाकर तपस्या करने की आवश्यकता नहीं है। आप इस संसार में रहकर अपने गृहस्थ जीवन को जी कर भी सही मार्ग पर चल के कर्म करके कर्म फल से विरक्त होकर, अपने जीवन को जी कर उसे मुक्ति को प्राप्त कर सकते हैं। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि यदि व्यक्ति अच्छे विचार और अच्छे कर्म करेगा और कर्म फल की चिंता नहीं करेगा। तो वह चाहे जिस भी लोग में हो, उसे मुक्ति अवश्य मिलेगी और अच्छे कर्म और अच्छे विचार का फल आपको ना केवल पृथ्वी लोक पर बल्कि आपको परलोक में भी मिलती है।
  • भगवत गीता उपदेश में बताया गया है कि ज्ञान और कर्म एक ही है, लेकिन जो व्यक्ति अज्ञानी होता है वह ज्ञान और कर्म को अलग-अलग मानता है। लेकिन जो व्यक्ति ज्ञानी होता है उसे पता होता है कि ज्ञान और कर्म एक ही है। क्योंकि अगर आपको किसी भी चीज का ज्ञान है और आप किसी को ज्ञान देते हैं और उस ज्ञान को अपने ऊपर प्रयोग नहीं करते हैं, तो आपका ज्ञान अधूरा ही है। भगवत गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कि ज्ञान बिना अनुभव के प्राप्त नहीं किया जा सकता और अनुभव बिना कर्म के प्राप्त नहीं किया जा सकता इस प्रकार ज्ञान और कर्म दोनों एक ही है।
  • भगवत गीता में बताया गया है कि इच्छा आपके दुखों का कारण है। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि किसी भी व्यक्ति की इच्छा का कोई अंत नहीं है। अगर व्यक्ति की एक इच्छा पूरी होती है तो, उसके मन में दूसरी इच्छा उत्पन्न हो जाती है। व्यक्ति इस संसार में आकर सांसारिक मोह माया में फस जाता है और सांसारिक इच्छाओं को पूरा करने में अपना पूरा जीवन व्यतीत कर देता है। लेकिन हमें अपने मन को काबू में रखना चाहिए और अपनी इच्छाओं पर भी कंट्रोल करना चाहिए क्योंकि हम अपने सभी इच्छाओं को पूर्ण नहीं कर सकते हैं। अगर हम अपनी सभी इच्छाओं को पूर्ण करने लगे तो हम कुछ गलत और नकारात्मक काली भी करने लगेंगे। इसीलिए हमें अपने इच्छाओं पर कंट्रोल करना चाहिए और अपनी इच्छाओं से दूर होकर उस पर कंट्रोल करने की कोशिश करनी चाहिए। तभी जाकर धीरे-धीरे आपकी सभी इच्छाओं पर कंट्रोल हो पाएगा और आप अपने जीवन में सफल और सुख में जीवन प्राप्त कर पाएंगे क्योंकि इच्छाओं का कोई अंत नहीं है, इसे केवल हम अपनी इच्छाओं पर काबू पाकर ही खत्म कर सकते हैं।
  • भगवत गीता में बताया गया है कि श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि हमारा एकमात्र सहारा हमारा भगवान होता है। इस संसार में कोई आपके साथ हो चाहे ना हो, आप किसी भी कार्य को कर रहे हो और आप अकेले हो, तो भी आपके साथ एक शक्ति खड़ी रहती है और वह होती है भगवान की शक्ति। वही हमें आगे बढ़ने की ओर प्रेरित करती है। जिस वजह से हम अपने जीवन में सफल हो पाते हैं। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि हमें केवल भगवान के ऊपर विश्वास करके, अपने कर्म को करते जाना चाहिए और कर्म फल की चिंता किए बगैर, अपने जीवन में आगे बढ़ते रहना चाहिए। अगर हम इस प्रकार अपने जीवन को जीते हैं तो निश्चित ही हमारे जीवन में सुख शांति और सफलता रहेगी। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि जीवन का असली आनंद तो आपके वर्तमान में है। भूतकाल और भविष्य की चिंता में पड़कर व्यक्ति अपने वर्तमान को खत्म करता है। जबकि व्यक्ति को अपने भूतकाल और भविष्य की चिंता को छोड़कर केवल भगवान पर विश्वास करके अपने वर्तमान में जीना चाहिए और उस का आनंद लेना चाहिए। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि जो भी व्यक्ति पूर्ण समर्पण भगवान की चरणों में रहता है और अपने जीवन में अपने कर्म पथ पर चलते रहता है, उसके ऊपर परमपिता परमेश्वर की कृपा अवश्य ही बढ़ती है और मैं अपने जीवन में सफलता को प्राप्त करता है। उसका जीवन सुख शांति से भरा पूरा रहता है।

निष्कर्ष

इस धरती पर प्रत्येक व्यक्ति का जीवन संघर्षों से भरा हुआ है और व्यक्ति ना केवल बाहरी मुसीबत संकट से बल्कि उसके मन में चल रहे मानसिक मुसीबत यानी कि मानसिक परेशानी, मानसिक तनाव, चिंता से भी जूझ रहा है। तो इन सब से मुक्ति पाने के लिए भगवत गीता का उपदेश हमें सिखाता है कि हम कैसे अपने जीवन में संतुलन बनाए रखें?, कैसे अपने कर्म और अपनी सोच में संतुलन बनाए रखें?

हम किसी दुविधा में पड़ जाते हैं कियह करना सही है या गलत? इन सारी दुविधा से निकलने में भगवत गीता का उपदेश बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भगवत गीता के उपदेश से हमें मानसिक शांति मिलती है। भगवत गीता के उपदेश से हम धैर्य रखना, भगवान पर विश्वास करना अपने आत्मविश्वास को बढ़ाना सीखते हैं।

हमें पूरी उम्मीद है कि हमारे द्वारा दी गई यह जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित हुई होगी। यदि आपका इस जानकारी से संबंधित कोई भी प्रश्न है? तो आप कमेंट करके पूछ सकते हैं। हम पूरी कोशिश करेंगे कि आपके द्वारा पूछे गए प्रश्न का जल्द से जल्द उत्तर दे सकें। यदि आपको यहां आर्टिकल पसंद आया है? तो इसे आप अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें, ताकि उन्हें भी इस जानकारी के बारे में पता चल सकें।

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