आज हम आपके बीच लेकर आए है श्री कृष्ण और गोवर्धन पर्वत की कहानी (Shri Krishna Aur Govardhan Parvat ki kahani)। आप में से बहुत से लोग इस कहानी से अवगत होंगे। इस कहानी में श्री कृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया गया है। कृपया इस कहानी को अंत तक पढ़िएगा।
श्री कृष्ण और गोवर्धन पर्वत की कहानी | Shri Krishna Aur Govardhan Parvat ki kahani
यह कहानी मथुरा के उस बृजवासी की है, जिसको आज हम लोग श्री कृष्ण के नाम से जानते हैं। एक दिन भगवान श्री कृष्ण अपनी सारी गौ माताओं को चराने के लिए गए थे। जब भगवान श्री कृष्ण अपनी सारी गौ माताओं को चराकर वापस आ आए तो, उन्होंने देखा कि उनके पिता नंद बाबाजी और वृंदावन के सभी बृजवासी लोग बहुत ही जोर शोर से किसी पूजा की तैयारी करने में लगे हुए है।
बहुत सारे स्वादिष्ट व्यंजन बहुत सारी तरह-तरह की मिठाईयां चारों तरफ बनाई जा रही है, जिसको देखकर भगवान श्री कृष्ण ने अपने पिताजी नंद बाबा से कहा कि, “बाबा यह आप लोग क्या कर रहे हैं?” भगवान श्री कृष्ण की बात सुनकर नंद बाबा ने कहा कि, “हम लोग अपने भगवान इंद्र की पूजा की तैयारी कर रहे हैं, जो हम लोगों को वर्षा प्रदान करते हैं, जिस कारण हम सभी लोग हर साल भगवान इंद्र की पूजा करते हैं।”

तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपने पिताजी नंद बाबा से कहा कि बाबा वह तो बादल का काम है। हम लोगों को भगवान इंद्र की पूजा की जगह गोवर्धन पर्वत और गौ माता और बाकी जानवरों की पूजा करनी चाहिए। गौमाता से हम लोगों को दूध प्राप्त होता है। गोवर्धन पर्वत हम लोगों को छांव प्रदान करता है। गोवर्धन पर्वत और बाकी जानवरों की पूजा करनी चाहिए।
भगवान श्री कृष्ण की बात सुनकर नंद बाबा ने कहा कि, “तुम ठीक कह रहे हो” और सभी गोकुल वासी भी भगवान श्रीकृष्ण की बात से सहमत हो गए लेकिन तब उन्होंने भगवान श्री कृष्ण से कहा कि, “हम सब ने जो इतनी सारी मिठाईयां और स्वादिष्ट व्यंजन बनाए हैं उनका क्या होगा?, यह तो पूरी तरीके से बर्बाद हो जाएंगे। गोवर्धन पर्वत इतना सारा भोजन नहीं खा पाएगा क्योंकि वह तो सिर्फ पर्वत है।
तो भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि आप सभी लोग गोवर्धन पर्वत के पास चलिए और उनको प्रेम से भोजन ग्रहण करने के लिए कहिए। प्रेम से कई हुई बात हर कोई मान लेता है। जिसके बाद सभी गोकुल के निवासी और नंद बाबा सभी लोग गोवर्धन पर्वत की तरफ चल दिए। वहां पहुंचकर उन्होंने गोवर्धन पर्वत का आवाहन किया और उनकी पूजा करना शुरू कर दिया।
जिससे बात थोड़ी ही देर में भगवान गोवर्धन पर्वत प्रकट हो गए और फिर सभी गोकुल वासियों ने भगवान गोवर्धन जी को सारा बनाया हुआ। स्वादिष्ट भोजन और मिठाईयां ग्रहण करने के लिए कहा। जिसके बाद गोवर्धन जी ने सभी स्वादिष्ट व्यंजन को खा लिया। जिसके बाद सभी गोकुल वासी और नंद बाबा भगवान इंद्र की पूजा करना बंद कर दिए। यह देख कर भगवान इंद्र को बहुत क्रोध आया और कहने लगे की उस कृष्ण की बात मानकर सभी लोग मेरा अपमान कर रहे हैं।
इन गोकुल वासियों की इतनी हिम्मत मेरी पूजा छोड़कर इस गोवर्धन पर्वत की पूजा कर रहे हैं। जिसके बाद भगवान इंद्र ने बदला लेने के लिए उन्होंने अपने समवर्धक मेघों का आवाहन किया और उनसे कहा कि इन गोकुल वासियों ने मेरा अपमान किया है, तुम जाओ इन गोकुल वासियों पर इतनी वर्षा करो की पूरी गोकुल नगरी पानी में डूब जाए। तब मैं देखता हूं यह लोग किसके पास जाते हैं और कैसे मेरे क्रोध को सहन करते हैं।
भगवान इंद्र की आज्ञा का पालन करते हुए समवर्धक मेघों बारिश करना शुरू कर दिया और देखते ही देखते बारिश ने अपना विकराल रूप धारण कर लिया, जिससे पूरे गोकुल में चारों तरफ त्राहि-त्राहि मच में लगी और सभी लोग इधर उधर भाग कर अपनी जान बचाने के लिए तुरंत भगवान श्री कृष्ण के पास पहुंचे। तुमने कहा था की गोवर्धन पर्वत की पूजा करो, भगवान इंद्र की नहीं। अब देखो भगवान इंद्र हम लोगों से क्रोधित हो गए हैं और वह हम से बदला ले रहे हैं। अब हम लोगों को उनके को से कोई नहीं बचा सकता है।
जिसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि, “तुम लोग बिल्कुल भी चिंता मत करो और सभी लोगों को लेकर और अपनी अपनी गौ माताओं को सभी जानवरों को लेकर मेरे पीछे पीछे आओ। जिसके बाद भगवान श्री कृष्ण सभी लोगों को लेकर गोवर्धन पर्वत के पास जाते हैं और उनको अपने बाएं हाथ की कनिष्का उंगली में उठा लेते हैं और कहते हैं कि सभी लोग इस पर्वत के नीचे आ जाओ।
जिसके बाद सभी गोकुल वासी गोवर्धन पर्वत के नीचे आ जाते हैं और देखते ही देखते दो-तीन दिन गुजर जाते हैं। लेकिन भगवान इंद्र का गुस्सा शांत नहीं होता है और वह बारिश को और विकराल रूप पर कर देते हैं लेकिन इधर भगवान श्री कृष्ण को गोवर्धन पर्वत को अपनी बाएं हाथ की कनिष्का उंगली में उठाया हुए तीन दिन हो जाते हैं।
जिसको देखकर भगवान श्री कृष्ण की मां यशोदा गोकुल वासियों से कहती है कि, “मेरे लल्ला ने पिछले तीन दिनों से इस गोवर्धन पर्वत को अपने हाथ में उठाया हुआ है। मेरा बेटा थक गया होगा। अब तुम लोग भी इसकी मदद करो। इसके बाद सभी गोकुल वासी अपनी अपनी लाठी गोवर्धन पर्वत से टिका देते हैं और कहने लगते हैं देखो कृष्ण हम तुम्हारी मदद कर रहे हैं।
अब तुम ये मत कहना की हम लोगों ने तुम्हारी मदद नहीं की लेकिन तुम हमको यह बताओ कि तुमने इस गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर कैसे उठा लिया है, जिसको सुनकर भगवान श्री कृष्ण मुस्कुराने लगते हैं और कहते हैं यह तो मेरे माखन खाने का नतीजा है जिससे मुझे ताकत मिलती है। यह सुनकर सभी गोकुल वासी भी मुस्कुराने लगते हैं। इधर भगवान इंद्र अपनी पूरी कोशिश कर लेते हैं लेकिन भगवान श्री कृष्ण और गोकुल वासियों को कोई हानि नहीं पहुंचा पाते।
जिसके बाद उनको यह समझ में आ जाता है की कृष्ण कोई साधारण बालक नहीं है और वह तुरंत भगवान श्री कृष्ण की शरण में आ जाते हैं और माफी मांगने लगते है। भगवान श्री कृष्ण भगवान इंद्र को माफ कर देते हैं और कहते हैं आज के बाद तुम कभी भी गोकुल वासियों को परेशान नहीं करोगे, जिसके बाद भगवान इंद्र वहां से चले जाते हैं। बारिश के बंद होने के बाद भगवान श्री कृष्ण सभी को गोवर्धन पर्वत से बाहर निकाल कर पर्वत को वापस अपनी जगह रख देते हैं और वापस गोकुल में जाने लगते हैं।
लेकिन जब गोकुल पहुंचकर सभी गोकुल वासी गोकुल की तरफ देखते है, तो बहुत आश्चर्य चकित हो जाते हैं और और भगवान श्री कृष्ण से कहते हैं कि इंद्र ने तो इतनी वर्षा की थी लेकिन यहां पर पानी की एक बूंद भी नजर नहीं आ रही है, यह कैसे हो गया? तब भगवान कृष्ण मुस्कुराकर सभी गोकुल वासियों से कहते हैं कि तुमने गोवर्धन पर्वत को स्वादिष्ट व्यंजन खिलाए थे, तुमने उनको पानी नहीं पिलाया था।
इसके बाद सभी गोकुल वासी कहते हैं,” नहीं, हम लोग तो भूल ही गए थे”। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं,” इतना सारा भोजन करने के बाद जाहिर सी बात है की प्यास तो लगेगी ही, जिसके लिए गोवर्धन पर्वत सारा पानी पी लिया और सभी लोग वापस जाकर अपने घरों में आनंद से रहने लगते हैं।
भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र भगवान का अहंकार तोड़ा था, जिसके कारण इंद्र भगवान ने भगवान श्री कृष्ण को एक नए नाम से नवाजा था, जो गोविंद था। जिसके बाद पूरे संसार में भगवान कृष्ण का यह नाम प्रसिद्ध हो गया।
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