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श्री कृष्ण और गोवर्धन पर्वत की कहानी

दिवाली 5 दिनों का त्यौहार होता है, जिसमें एक दिन गोवर्धन पूजा की परंपरा है। गोवर्धन पूजा कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। इस पूजा को अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है। क्योंकि इस दिन भगवान श्री कृष्ण को अन्नकूट का भोग भी लगाया जाता है।

Shri Krishna Aur Govardhan Parvat ki kahani
Shri Krishna Aur Govardhan Parvat ki kahani

इस दिन लोग अपने आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत और पशुधन की आकृति बनाते हैं और विधि विधान के साथ पूजा करते हैं। गोवर्धन पूजा विशेष तौर पर प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए ही मनाया जाता है। हर एक त्यौहार के पीछे इस पूजा के पीछे की भी एक कथा है, जो कि द्वापर युग से जुड़ी हुई है।

गोवर्धन पर्वत की कहानी (Govardhan Parvat ki Kahani)

गोवर्धन पूजा के पीछे की प्राचीन कथा इस प्रकार है कि एक बार भगवान इंद्रदेव अभिमानित हो जाते हैं। तब उनके अभियान को तोड़ने के लिए भगवान श्री कृष्णा एक लीला रचते हैं।

भगवान श्री कृष्णा देखते हैं कि एक दिन बृजवासी प्रातः काल उठकर पूजन की सामग्री को एकत्रित करने में व्यस्त होते हैं। वे तरह-तरह के पकवान बना रहे होते हैं, पूजा का मंडप सजा रहे होते हैं।

भगवान श्री कृष्ण को समझ नहीं आया कि बृजवासी यह सब क्यों कर रहे हैं। तब वे अपनी मां यशोदा के पास आते हैं और पूछते हैं “मईया” आज सभी लोग किसके पूजन की तैयारी कर रहे हैं?

मां यशोदा बताती है कि पुत्र हम सब बृजवासी इंद्रदेव के पूजन की तैयारी कर रहे हैं। भगवान श्री कृष्ण पूछते हैं आप सभी लोग उनकी पूजा क्यों कर रहे हैं? यशोदा मां कहती हैं कि भगवान इंद्रदेव वर्षा के देवता है, उन्हीं के कारण बारिश होती है और अन्न की पैदावारी होती है। अन्न की पैदावार अच्छी होने से हमारे गायों को भी चारा प्राप्त होता है। इस तरह इंद्रदेव के कारण ही हम सभी का जीवन अस्तित्व में है।

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तब भगवान श्री कृष्ण मां यशोदा को समझाते हैं कि मां वर्षा करना तो इंद्रदेव का कर्तव्य है। पूजा तो हमें गोवर्धन पर्वत की करनी चाहिए। क्योंकि गोवर्धन पर्वत पर ही साग-सब्जियां, फल-फूल होता है। वहीं पर हमारी गाय चरती हैं। सब कुछ तो हमें गोवर्धन पर्वत से प्राप्त होता है।

भगवान श्री कृष्णा यह बात हर एक बृजवासी को समझाते हैं, जिसके बाद बृजवासी इंद्रदेव के बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए सभी सामग्री इक्ट्ठा करने लगते हैं।

यह सब देख इंद्र देव को अपना अपमान लगने लगता है। उन्हें लगने लगता है कि भगवान श्री कृष्णा ने उनका अपमान किया है, बृजवासियों ने उनका अपमान किया है, जिसके कारण वह क्रोधित हो जाते हैं।

क्रोधवश इंद्रदेव बादलों को ब्रज में मूसलाधार बारिश करने का आदेश देते हैं। इंद्रदेव बादलों को आदेश देते हैं कि गोकुल नगरी में तब तक बरसते रहना है जब तक पूरा गोकुल नगरी डूब ना जाए। इंद्रदेव के आदेश पर पूरा गोकुल काले बादलों से ढक जाता है और भयंकर वर्षा होने लगती है।

गोकुल नगरी में आज तक कभी भी ऐसी बारिश नहीं पड़ी थी। चारों ओर पानी ही पानी नजर आने लगता है। सब कुछ पानी में डूबने लगता है।

तब गोकुल वासी घबराकर भगवान श्री कृष्ण के पास पहुंचते हैं और कहते हैं कि हमने तुम्हारे कहने पर ही गोवर्धन पर्वत की पूजा करना शुरू किया। देखो इंद्रदेव हमसे क्रोधित हो उठे हैं और इतनी मूसलाधार बारिश हो रही है। इस मूसलाधार बारिश में हम और हमारे पशु कैसे जीवित रहेंगे?

तब भगवान श्री कृष्णा सभी बृजवासियों को लेकर गोवर्धन पर्वत की ओर बढ़ते हैं। सभी बृजवासी भगवान श्री कृष्ण के पीछे-पीछे गोवर्धन पर्वत तक पहुंचते हैं। तब भगवान श्री कृष्णा अपनी कनिष्ठ उंगली से पूरे गोवर्धन पर्वत को उठा लेते हैं और सभी बृजवासी गोवर्धन पर्वत के नीचे आश्रय प्राप्त करते हैं।

इस तरीके से जब तक बारिश रुक नहीं गई तब तक भगवान श्री कृष्णा अपने छोटी उंगली पर ही पूरे गोवर्धन पर्वत को उठाकर रखे। यह सब देख भगवान इंद्रदेव का घमंड चूर-चूर हो गया।

भगवान श्री कृष्ण की यह लीला देखकर सभी बृजवासी को समझ में आ गया था कि भगवान श्री कृष्ण एक सामान्य बच्चे नहीं है, वे स्वयं भगवान विष्णु के अवतार हैं।

भगवान इंद्रदेव को भी अपनी गलती का एहसास हो गया, जिसके बाद वे अंत में भगवान श्री कृष्ण से क्षमा याचना मांगते हैं। इस तरह इसी घटना के बाद गोवर्धन पर्वत के पूजा की परंपरा आरंभ हुई।

Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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