हमारे भारतवर्ष के इतिहास में बहुत से महिलाओं ने भी अपना बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यदि हम अपने भारतवर्ष देश का इतिहास देखें तो हमें इसमें स्त्री शक्ति का वर्चस्व भी भली-भांति देखने को मिल जाता है।
भारतीय इतिहास में हुए बड़े-बड़े एवं ऐतिहासिक युद्धों में भी हमारे देश की रानियों ने भी अपना सब कुछ न्योछावर कर के अपने आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वतंत्रता प्रदान की है।
आज हम आपको काकतीय राजवंश की महारानी रुद्रमादेवी के इतिहास (Rudramadevi History in Hindi) से रूबरू कराने वाले हैं। एक स्त्री होकर भी रुद्रमादेवी ने काकतीय राजवंश की कुशल रूप से स्थापना की थी। इन्होंने अपने शासनकाल में अपनी प्रजा के लिए बहुत से महत्वपूर्ण कार्यों को किया था।
रुद्रमादेवी का जन्म और उनके बारे में संक्षिप्त जानकारी
पूरा नाम | रुद्रमा देवी |
जन्म | 1259 |
मृत्यु | 27 नवंबर 1289 |
जन्म स्थान | चन्दुपटला |
संतान | मुमादमम्, रुय्याम्मा लोग |
पिता का नाम | गणपति देव |
पति का नाम | वीरभद्र |
वंश का नाम | काकतीय वंश |
अन्य जानकारी | जब रुद्रमा देवी ने शासन सम्भाला तब उसकी आयु मात्र 14 वर्ष थी। |
Rani Rudrama Devi Story in Hindi
महारानी रुद्रमादेवी का जन्म 1262 ईस्वी में हुआ था। इनके पिता गणपति देव काकतीय राजवंश के राजा थे। रुद्रमादेवी भारतीय इतिहास में काकतीय राजवंश की सबसे प्रमुख महिला शासकों में से एक थी।
रुद्रमादेवी ने 1262 से 1295 ईस्वी तक बहुत ही कुशलता से काकातीय राज्य वंश का शासन किया था। एक स्त्री होकर भी इन्होंने काकतीय राजवंश की रक्षा करने में कोई भी कसर नहीं छोड़ी थी। यही कारण है कि आज भी इन्हें एक देवी के रूप में लोग सम्मान प्रदान करते हैं।
रानी रूद्रमा देवी (रुद्रमबा) का प्रारंभिक जीवन (Rudramadevi Real Story Hindi)
रुद्रमादेवी के पिता गणपति देव को पुत्र नहीं था। उनको केवल दो पुत्रियाँ ही थी, जिनमें एक रुद्रमादेवी और दूसरी बेटी जनपमादेवी थी। इसके अतिरिक्त उन दिनों में दक्षिण भारत में केवल पुरुष शासकों का ही वर्चस्व हुआ करता था।
ऐसी परिस्थिति में गणपति देव को राज्य संकट का भी डर था क्योंकि उनको पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई थी। गणपति देव ने रानी रूद्रमा देवी को एक राजकुमार के भांति पालन पोषण किया और उन्हें युद्ध की सभी कलाओं के बारे में सिखाया।
रुद्रमादेवी ने मात्र अपनी 14 वर्ष की उम्र में ही रुद्रदेव के नाम से अपने पिता के साथ उनका सिंहासन उनके साथ संभालना शुरू कर दिया था। रानी रूद्रमा देवी ने अपनी छोटी सी उम्र में ही यह सीख लिया था कि राज प्रशासन को कैसे संभाला जाता है और लोगों के बीच में जाकर किस प्रकार से एक शासक अपनी प्रजा की समस्याओं को समझता है।
इन सभी चीजों के महत्त्व को समझकर इसका अनुभव उन्हें बचपन में ही भलीभांति हो गया था। महाराज गणपति देव की मृत्यु के बाद रुद्रमादेवी का पूरे रीति-रिवाजों के साथ राज्य अभिषेक किया गया और उन्हें काकतीय राजवंश का संपूर्ण रूप से शासक घोषित कर दिया गया।
उन्होंने रूद्रदेव के पुरुष शासक के रूप में अपना शासन करना शुरू किया था। यहां तक कि उन्होंने कलाकारों और श्रमिकों द्वारा बनाई गई शिलालेखों में अपने पुरुष नाम का उपयोग करने के लिए कहा। वह एक पुरुष शासक के भांती अपनी प्रजा के सार्वजनिक बैठकों में शामिल भी होने लगी थी।
रुद्रमादेवी का विवाह – Rudrama Devi Marriage
चालुक्य के राजकुमार वीरभद्र से राजकुमारी रुद्रमादेवी का विवाह संपन्न हुआ। रुद्रमा और वीरभद्र का विवाह एक क्षेत्रीय गठबंधन के लिए राजनीतिक विवाह के रूप में जाना जाता है।
वीरभद्र ने महारानी रुद्रमादेवी के शासनकाल को संभालने में उनका कोई भी सहयोग नहीं किया था। रुद्रमादेवी के लिए वीरभद्र अनुपयुक्त व्यक्ति था। वीरभद्र और रुद्रमादेवी की दो बेटियां भी हुई थी।
कुछ विद्वानों का कहना है कि उनकी एक बेटी का नाम रूयम्मा और दूसरी बेटी का नाम मुम्मदंबा था। आगे चलकर मुम्मदंबा का विवाह महादेव से हुआ था। वहीं कुछ विद्वानों का मानना है कि इनकी दूसरी बेटी रूयम्मा को रुद्रमादेवी ने गोद लिया था।
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काकतीय साम्राज पर हमला और रुद्रमादेवी का योगदान – Attack on Kakatiya Empire
काकतीय साम्राज्य पर एक वक्त ऐसा आया जब महारानी रुद्रमादेवी के शासनकाल पर कई छोटे शासकों और रहीस विद्रोहियों ने उनका विरोध करना शुरू कर दिया और इस विरोध में इनके कुछ संबंधियों का भी सहयोग था।
काकतीय साम्राज्य के सभी दुश्मनों ने योजना बनाकर एक बार रुद्रमादेवी के साम्राज्य को घेरना शुरू कर दिया था। मगर इस विषम परिस्थिति में भी रुद्रमादेवी ने अपनी साहस और बुद्धिमता का भली-भांति परिचय दिया।
अपने सभी दुश्मनों का उन्होंने पूरी शक्ति से सामना किया और एक रानी के रूप में उन्होंने अपने सिंहासन को अपने लायक साबित किया।
एक बार फिर रुद्रमादेवी के शासनकाल में देवगिरी और यादव शासकों ने दंपति साम्राज्य को जीतने का प्रयास किया। परंतु रुद्रमादेवी ने अपने दृढ़ संकल्प से उनके प्रयासों को विफल कर दिया।
रुद्रमादेवी ने अच्छे प्रशासन, अच्छी न्याय व्यवस्था, प्रशासकों में समानता और शांति का प्रसार करते हुए अपने शासनकाल को चार दशकों तक सफलतापूर्वक सुचारु रखा था। यही कारण है कि उनके शासनकाल के दौरान इतिहासकारों ने आंध्र के इतिहास में इसे स्वर्णिम काल का रूप बताया था।
रुद्रमादेवी के जीवन में हुईं कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं – Rudramadevi Real Story
- काकतीय साम्राज्य के शासनकाल में उनके कई मित्र राष्ट्रों ने महारानी रुद्रमादेवी को अपने रानी के रूप में स्वीकार नहीं किया था। इसके अतिरिक्त उनका विद्रोह भी किया लेकिन रानी रूद्रमा देवी ने अपनी ओर उठ रहे विद्रोह को दबा दिया और काकतीय साम्राज्य की ढाल बनकर खड़ी रही।
- वीरभद्र से विवाह के बाद उनका वैवाहिक जीवन बस कुछ ही क्षणों के लिए खुशहाल रहा। वीरभद्र की मृत्यु के बाद रानी रूद्रमा देवी का जीवन सुखमय हो गया था।
- रानी रूद्रमा देवी ने अपने पोते प्रतापरूद्रदेव को 1280 में काकातीय साम्राज्य का युवराज बनाया।
- 1285 में यादवों, चोलों और होयसलों ने काकतीय साम्राज्य पर हमला करना चाहा और काकतीय राज्य को अपने अधीन करने के लिए युद्ध नीति तैयार करने लगे। मगर प्रताप रुद्रदेव और रुद्रमादेवी ने मिलकर इन सभी विषम परिस्थितियों का सफलतापूर्वक सामना किया।
- महारानी रुद्रमादेवी ने ओरुगलु किले का निर्माण करवाया था। मगर कुछ इतिहासकारों का मानना है कि गोलकुंडा के किले का निर्माण महारानी रुद्रमादेवी के हाथों से ही शुरू किया गया था।
रुद्रमादेवी के जीवन से प्रेरित होकर बनी फिल्म ‘रुद्रमादेवी’ – Movie On Rudramadevi
तेलुगु फिल्म निर्देशक गुनासेखर ने तेलुगु ऐतिहासिक फिल्म रुद्रमादेवी का निर्देशन किया। गुनासेखर ने रुद्रमादेवी फिल्म को तेलुगु के इतिहास में हुई सच्ची घटनाओं से प्रेरित होकर बनाया था।
यह फिल्म भारतीय सिनेमाघरों में 9 अक्टूबर 2015 को रिलीज की गई थी। इस फिल्म में तेलुगू इंडस्ट्री की कलाकार अनुष्का शेट्टी रुद्रमादेवी के प्रमुख किरदार में नजर आई थी।
महारानी रुद्रमा देवी के पति का किरदार राणा दग्गुबाटि ने किया था। इसके अतिरिक्त फिल्म में अल्लू अर्जुन भी गोना गन्ना रेड्डी का किरदार करते हुए नजर आए। इस फिल्म की कमाई ₹900000000 हुई थी। इस ऐतिहासिक फिल्म को भारतीय दर्शकों ने खूब पसंद किया था।
रानी रुद्रमादेवी पर बनी फिल्म का हिंदी ट्रेलर का यूट्यूब लिंक नीचे दे रहे हैं, जिसे आप देख सकते हैं।
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रानी रूद्रमा देवी के शिलालेख
कुछ साल पहले तेलंगाना राज्य के वारंगल जिले के बोलीकुंटा गांव में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग में रानी रूद्रमा देवी की ग्रेनाइट से बनी 2 मुर्तियों को खोज निकाला था।
हालांकि यह मूर्तियां काफी क्षतिग्रस्त अवस्था में पाई गई थी। लेकिन ऐतिहासिक दृष्टि से यह काफी महत्वपूर्ण है। क्योंकि इस मूर्तियों के कारण विशेष समय काल में घटित घटनाओं और उस दौरान की संस्कृति, लोगों के रहन-सहन और शासन से संबंधित कई जानकारियां प्राप्त होगी।
- रानी के इन दोनों शिलालेखों में से एक शिलालेख पर रानी को घोड़े पर सवार चित्रित किया गया है। जिसमें रानी को योद्धा की भांति वस्त्र धारण किए हुए दिखाया गया है, जिसमें कमर पर बेल्ट बंधी हुई है और दाहिना पैर उनका पेडड पर लटका हुआ है। उनके दाहिने हाथ में तलवार हैं और बाएं हाथ की तलवार नीचे लटकी हुई हैं।
- रानी के ऊपर एक राजसी प्रतीक को भी चिन्हित किया गया है। घोड़े के शरीर के आसपास भी सजा हुआ एक पट्टा बंधा हुआ है।
- इस तरह इस पहले शिलालेख में रानी रूद्रमा देवी के शाही व्यक्तित्व को चित्रित किया गया है।
- वहीं दूसरे शिलालेख में रानी रूद्रमा देवी को थका हुआ चित्रित किया गया है, जिसमें उनके दाएं हाथ में तलवार है और बाएं हाथ के जरिए वह घोड़े पर लगाम रखी हुई हैं।
- पहले शिलालेख की तरह दूसरे शिलालेख में महारानी के ऊपर शाही प्रतीक का चिन्ह स्थित नहीं है।
- शिलालेख पर एक भैंस जिसे यम यानी की मौत के भगवान का वाहन कहा जाता है, उसे दक्षिण दिशा की ओर रुख किए हुए दर्शाया गया है।
महारानी रुद्रमादेवी की मृत्यु (Rudramadevi Death)
साहसी महारानी रुद्रमादेवी की मृत्यु अंबादेव से लड़ते हुए संभवत 1289 में हुई थी। मगर कुछ लोगों का कहना है कि इनकी मृत्यु 1295 ईस्वी में हुई थी। महारानी रुद्रमादेवी ने अपने दो पुत्रियों में से एक पुत्री के बेटे को काकतीय साम्राज्य का कुमार बनाया था।
FAQ
रानी रूद्रमा देवी एक निर्भय और बहादुर महिला शासक थी। न्याय के प्रति प्रेम, शांति के प्रसार में योगदान, राज्य के लोग और अधिकारियों के बीच समानता तथा सटीक प्रकार का शासन उनके प्रमुख गुण है।
रानी रूद्रमा देवी काकतीय वंश की महिला शासक थी।
रूद्रमा देवी पर तेलुगू फिल्म “रुद्रमादेवी” बनाई गई है।
रुद्रमादेवी के पिता का नाम गणपतीदेव था।
रुद्रमादेवी का कोई भी भाई नहीं था, जिस कारण राज्य पर संकट आने के खतरे को नजर में रखते हुए इनके पिता ने इन्हें पुरुषों के समान पाला पोसा और एक बहादुर राजकुमारी बनाया, जो आगे चलकर काकतीय वंश की शासक बनी।
निष्कर्ष
हमारे देश में बहुत सी महारानीओं ने अपने साम्राज्य की स्वतंत्रता के लिए बलिदानी दी हुई है। उन सभी साहसी स्त्रियों की बलिदानी को हमें सदैव याद रखना चाहिए।
महारानी रुद्रमादेवी भी अपने कर्तव्यों से कभी भी पीछे नहीं हटी और अपने साम्राज्य के लिए वह सभी कार्य किए, जो एक प्रकार से पुरुष शासक करता है। आज के जमाने की भी स्त्रियां अपने अपने कार्य क्षेत्रों में अपनी दक्षता का भलीभांति से परिचय देती हुई नजर आती है।
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