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ऋषि पंचमी क्‍यों मनाई जाती है? पूजा विधि और व्रत कथा

Rishi Panchami Kyo Manai Jati Hai: हम कई त्योंहार धूम-धाम से मानते हैं। यह त्यौहार हमें हमारी संस्कृति और इतिहास की कुछ जलख भी दिखाते हैं। भारतीय त्योहारों में एक अलग ही अपनापन होता हैं। त्यौहार चाहे किसी भी धर्म और समुदाय से हो, देशवासियों को कही न कही एकता के सूत्र में भी बाँधने का काम करते हैं। ऐसे ही त्योहारों में से एक त्यौहार जिसे हम हमारी संस्कृति में ऋषि पंचमी के नाम से जानते हैं।

Rishi Panchami Kyo Manai Jati Hai
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ऋषि पंचमी क्‍यों मनाई जाती है? पूजा विधि और व्रत कथा | Rishi Panchami Kyo Manai Jati Hai

ऋषि पंचमी का इतिहास

धार्मिक मान्यताओं की माने तो कहा जाता है कि एक सदाचारी ब्राह्मण था। उस ब्राह्मण की पत्नी पवित्र मानी जाती थी। उसकी पत्नी का नाम सुशीला था और उसके 1 पुत्र व 1 पुत्री थी। उसकी पुत्री विवाह योग्य होने के बाद उसकी पुत्री का विवाह कुलशील वर के साथ कर दिया। उसके कुछ समय बाद वह विधवा हो गई।

इसके बाद उसके शरीर में कीड़े पड़ जाते हैं। उसने यह बात उसकी माँ को बताई। इसके बाद कुछ ज्ञानी क्रियाओं से इस घटना का पता लगाया गया तब पता चला कि वो पिछले जन्म में एक ब्राह्मणी थी और उसने रजस्वला होते ही बर्तन छु लिए थे। इस जन्म में भी इनसे ऋषि का व्रत नहीं किया, इसलिए उसके शरीर में कीड़े पड़े। उसके बाद से ही इस व्रत का महत्त्व बढ़ा।

ऋषि पंचमी का महत्त्व

इस त्यौहार का हिन्दू धर्म में काफी महत्त्व दिया जाता हैं। इसके अनुसार अगर कोई महिला इस व्रत को करती हैं तो उसके पिछले जन्म के पाप धुल जाते हैं। पिछले जन्म में हुए पापों को भुलाने के लिए इस जन्म में इस व्रत को करना अच्छा माना जाता हैं। सुहागिनी महिला अगर इस व्रत को करती हैं तो उससे उसके पाप तो धुलते ही हैं साथ ही उसकी मनोकामनाएं भी पूरी हो जाती हैं।

ऋषि पंचमी का त्यौहार कब मनाया जाता हैं?

देश में ऋषि पंचमी का त्यौहार हर साल हिंदू पंचांग के अनुसार, ऋषि पंचमी का हिंदू त्यौहार भद्रपद महीने में शुक्ल पक्ष के पांचवें दिन (पंचमी तीथी) पर मनाया जाता है। इस साल यह त्यौहार 11 सितम्बर को मनाई जायेगी। ऋषि पंचमी को हिन्दू धर्म में काफी मान्यता दी जाती है। इस त्यौहार को मानाने से माना जाता हैं कि हमारे पिछले पाप धुल जाते हैं।

हर साल की भांति इस साल भी इस त्यौहार को मनाया जाएगा। इस साल यह त्यौहार 11 सितम्बर को पड़ रहा हैं। इस पंचमी का व्रत करने से मन की हर मनोकामनाए पूरी होती हैं।

ऋषि पंचमी पूजा विधि

ऋषि पंचमी की पूजा किस तरह से की जाती हैं। इसके बारे में भी जानना जरुरी हैं। किसी भी त्यौहार और व्रत में उसकी विधि सबसे ज्यादा जरुरी होती है।

इस दिन महिलाएं सुबह सबसे पहले अपने घर की साफ़-सफाई करती हैं और स्नान कर साफ़ कपडे पहनती हैं। उसके बाद महिलाएं पूरे विधि विधान के साथ ऋषि और अरुंधती की स्थापना करती हैं। इस सप्त ऋषि की पूजा में हल्दी, चन्दन, रोली, अबीर, गुलाल, मेहंदी, अक्षत, वस्त्र फूलों इत्यादि से की जाती हैं। 

इस व्रत में महिलाएं महावरी के दोहरान अपने पुराने पापों को याद करती हुई ऋषियों से क्षमा मांगती हैं। पूजा के बाद सप्त ऋषि की कथाएं सुनती हैं। इस दिवस पर महिलाएं जमीन से उगे हुए अन्न को ग्रहण नहीं करती बल्कि पसाई धान से बने चावल खाती हैं। इस व्रत का उद्यापन माहवारी के समाप्त होने यानी वृद्धावस्था में किया जाता है।

ऋषि पंचमी पूजा की तैयारी कैसे करें?

इस दिवस के उपलक्ष में महिलाएं सुबह जल्दी उठती हैं और साफ़-सफाई के बाद खुद स्नान करती है। ऋषि पंचमी के दिन ऋषि पंचमी की पूजा के लिए एक छोटे से कुंड को तैयार करती हैं। इसके बाद कुछ जरुरी सामान जैसे हल्दी, चन्दन, रोली, अबीर, गुलाल इत्यादि को इकठ्ठा कर उस कुंड में और उसके आसपास सजाती हैं। इसके बाद ऋषि पंचमी की कथा के साथ इस कुंड की पूजा करती हैं और अपने पिछले कर्मों की माफ़ी मांगती हैं।

ऋषि पंचमी की कथा 

विदर्भ नामक देश में एक ब्राह्मण और उसकी पत्नी एक साथ रहते थे। उस ब्राह्मण की एक पुत्री और एक पुत्र था। वे चारों एक साथ रहते थे, उस ब्राह्मण का नाम उत्तक था। उस समय उस उत्तक ब्राह्मण की पुत्री शादी योग्य हो गई थी और उस ब्राह्मण ने अपने उस पुत्री का विवाह सुयोग्य वर के साथ कर दिया।

उस विवाह के बाद ब्राह्मण की पूत्री के पति की अकाल मृत्यु हो गई और उस ब्राह्मण की पुत्री विधवा हो गई। उसके बाद उस ब्राह्मण की पुत्री वापस अपने मायके अपने माता-पिता के पास लौट जाती हैं। कुछ समय बाद की बात हैं वो ब्राह्मण की पुत्री एक रात अकेले सो रही थी। तब उसकी माँ ने देखा कि उसक शरीर में कीड़े पड़ गये हैं।

ब्राह्मण की पत्नी अपनी पुत्री की व्यथा देख कर अपनी पुत्री को अपने प्राणनाथ के पास ले गई और उनसे पूछा, हे प्राणनाथ, मेरी पुत्री की यह क्या व्यथा हो गई। उस ब्राह्मण ने ध्यान लगा कर देखा तो उसको पता चला कि यह इसके पिछले जन्म में भी एक ब्राह्मण की ही पुत्री थी। लेकिन राजस्वला के दौरान ब्राह्मण की पुत्री ने पूजा के बर्तन छू लिए और इस पाप से मुक्ति के लिए ऋषि पंचमी का व्रत भी नहीं किया, जिसकी वजह से इस जन्म में कीड़े पड़े।

यह भी पढ़े: ऋषि पंचमी व्रत कथा

निष्कर्ष

हमारे देश में धार्मिक मान्यताओं के साथ कई त्यौहार मनाये जाते हैं। उन सभी त्योहारों में यह त्यौहार भी शामिल हैं। हमारे देश में ऋषि पंचमी का भी काफी ज्यादा महत्त्व हैं। इस त्यौहार को भी हमारे देश काफी धूम धाम से मनाया जाता हैं।

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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