रैदास के दोहे अर्थ सहित (Ravidas ke Dohe in Hindi): जैसा कि हम जानते ही हैं कि भारत में कई बड़े संत और महात्मा हुए हैं। इन महान संतों में रविदास जी का भी एक विशेष महत्वपूर्ण स्थान पर रहा है। संत रविदास जी ने हमेशा लोगों को जातिवाद को छोड़कर प्यार से रहने की सलाह दी है।
संत रविदास जी ने हमेशा अपने दोहों और रचनाओं के माध्यम से समाज में फैली बुराइयों और कुरीतियों को दूर किया है। संत रविदास जी ने सभी को भगवान की भक्ति करके सचाई की राह पर चलने की प्रेरणा दी है। इन्होंने सभी लोगों को एकता के सूत्र में चलने का भी विशेष प्रयास किया है।
संत रविदास जी और भी अपने कई नामों से से जाने जाते हैं जैसे कि गुरू रविदास, रूहिदास, रोहिदास मुख्य है। आपको बता दें कि संत रविदास जी अपनी काव्य-रचनाओं में सरल और व्यवहारिक ब्रिज भाषा का प्रयोग किया है।
अपनी काव्य-रचनाओं में खड़ी-बोली, राजस्थानी, अवधी और उर्दू-फारसी जैसी भाषाओं के शब्दों का प्रयोग किया है। जो भी संत रविदास जी के दोहे (Ravidas ke Dohe in Hindi) पढ़ता है तो वह उन दोहों से बड़ी सिख लेता है। इनकी रचनाएं हास्यस्पर्शी होती हैं।
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आज हम आपको इस इस पोस्ट में संत रविदास जी के दोहों (Ravidas ke Dohe in Hindi) को सार सहित बताने जा रहे हैं। तो आइए जानते है इनके दोहे
रैदास के दोहे अर्थ सहित | Ravidas ke Dohe in Hindi
संत रविदास के दोहे अर्थ सहित (Raidas ke Dohe in Hindi)
रैदास कहै जाकै हदै, रहे रैन दिन राम।
सो भगता भगवंत सम, क्रोध न व्यापै काम।।
संत रविदास जी इस दोहे के माध्यम से भक्ति में ही शक्ति होती है इसका वर्णन कर रहे हैं। रविदास जी कहते है कि जिस हृदय में दिन-रात राम के नाम का ही वास होता है। वह हृदय स्वयं राम के समान होता है। वे कहते है कि राम के नाम में ही इतनी शक्ति होती है कि व्यक्ति को कभी क्रोध नहीं आता और कभी भी कामभावना का शिकार नहीं होता हैं।
रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच।
नर कूँ नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच।।
इस दोहे के माध्यम से संत रविदास जी कहना चाहते है कि कोई भी इन्सान जन्म लेने से ऊँच नीच नहीं होता है। इन्सान के कर्म ही होते हैं जो उसे नीच बना देते हैं। अर्थात् इन्सान के कर्म ही उसे नीच बनाते हैं।
रैदास के दोहे अर्थ सहित (Ravidas ke Dohe in Hindi)
एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अगाय।।
संत रविदास जी कहते हैं कि सभी कामों को यदि हम एक साथ शुरू करते हैं तो हमें कभी उनमें सफलता नहीं मिलती है। ठीक उसी प्रकार यदि किसी पेड़ की एक एक टहनी और पति को सींचा जाये और उसकी जड़ को सुखा छोड़ दिया जाये तो वह पेड़ कभी फ़ल नहीं दे पायेगा।
करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस।
कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास।।
रविदास जी का कहना है कि मनुष्य को हमेशा अच्छे कर्म करना रहना चाहिए, उससे मिलने वाले फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए। क्योंकि कर्म करना मनुष्य का धर्म है तो उसका फल मिलाना भी हमारा सौभाग्य।
Ravidas Dohe in Hindi
जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात।
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।
इस दोहे में संत रविदास जी कहते हैं कि केले के तने को छिला जाये तो पते के निचे पता और पते के नीचे पता मिलता है और अंत में कुछ भी नहीं मिलता है। ठीक उसी प्रकार इन्सान भी जातियों में बंट गया है। उनका कहना है कि इन जातियों ने इन्सान को बांट दिया है। अंत में इन्सान भी खत्म हो जाता है। पर जातियां खत्म नहीं होती है। संत रविदास जी कहते हैं कि जब तक जातियां खत्म नहीं होगी तब तक इन्सान एक नहीं हो सकता है।
जा देखे घिन उपजै, नरक कुंड मेँ बास।
प्रेम भगति सों ऊधरे, प्रगटत जन रविदास।।
रविदास जी कहते है की जिस रविदास को देखने से लोगो को घृणा आती थी, जिनका निवास नर्क कुंद के समान था। ऐसे रविदास का ईश्वर की भक्ति में लीन हो जाना सच में फिर से उनकी मनुष्य के रूप में उत्पत्ति हो गयी है।
रैदास के दोहे अर्थ सहित (Ravidas ke Dohe in Hindi)
मन ही पूजा मन ही धूप।
मन ही सेऊं सहज स्वरूप।।
इस दोहे में रविदास जी कहते है कि भगवान हमेशा एक स्वच्छ और निर्मल मन में निवास करते हैं। यदि आपके मन में किसी प्रकार का बेर, लालच या द्वेष नहीं है तो आपका मन भगवान का मंदिर, दीपक और धूप के समान है। इस प्रकार के लोगों में ही भगवान हमेशा निवास करते हैं।
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कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा।
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा।।
संत रविदास जी कहते हैं कि भगवान एक ही है। उनके राम, कृष्ण, हरी, इश्वर, करीम और राघव अलग-अलग नाम है। सभी वेद, कुरान और पुराण जैसे सभी ग्रंथों में एक ही इश्वर का गुणगान किया हुआ है और ये सभी ग्रन्थ इश्वर की भक्ति का पाठ सिखाते हैं।
रविदास जी के दोहे अर्थ सहित (Sant Ravidas ke Dohe With Meaning)
रहिमन निज संपति बिना, कोउ न बिपति सहाय।
बिनु पानी ज्यों जलज को, नहिं रवि सकै बचाय।।
संत रविदास जी कहते हैं कि मुश्किल परिस्थिति व्यक्ति की सहायता कोई नहीं करता है। उस समय उसके द्वारा कमाई गई दौलत या सम्पति ही उसके लिए सबसे मददगार होती है। ठीक उसी प्रकार सूर्य भी तालाब का पानी सूख जाने पर पर कमल को सूखने से नहीं बचा सकता है।
हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस ।
ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास।।
इस दोहे में संत रविदास जी कहते हैं कि जो लोग हीरे जैसे बहुमूल्य हरी को छोडकर दूसरी चीज़ों की आशा रखते हैं। उन लोगों अवश्य ही नर्क में जाना पड़ता है। अर्थात् इश्वर की भक्ति को छोडकर इधर उधर भटकना बिल्कुल व्यर्थ है।
रैदास के दोहे अर्थ सहित (Ravidas ke Dohe in Hindi)
कह रविदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै।
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै।।
संत रविदास जी कहते हैं कि इश्वर की भक्ति व्यक्ति को अपने भाग्य से प्राप्त होती है। यदि मनुष्य में थोड़ा सा भी घमण्ड नहीं है तो वह जरूर ही अपने जीवन में सफल होता है। ठीक इसी प्रकार जिस प्रकार एक विशालकाय हाथी शक्कर के दानों को बिन नहीं सकता है और एक छोटी सी दिखने वाली चींटी शक्कर के दानों को आसानी से बिन पाती है। इसी प्रकार मनुष्य को भी अपने जीवन में बड़पन का भाव त्यागकर इश्वर की भक्ति में लीन रहना चाहिए।
ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन।
पूजिए चरण चंडाल के जो होवे गुण प्रवीन।।
इस दोहे में संत रविदास जी कहना चाहते हैं कि किसी को सिर्फ़ इसलिए नहीं पूजना चाहिए कि वह किसी पूजनीय पद पर है। यदि उस व्यक्ति में उस पद के अनुसार पूजनीय गुण नहीं है तो उसे नहीं पूजना चाहिए। यदि कोई ऐसा व्यक्ति है जो किसी पूजनीय पद पर तो नहीं है, पर उसमें पूजनीय गुण है तो उसे अवश्य ही पूजना चाहिए।
Ravidas ji ke Dohe
मन चंगा तो कठौती में गंगा।।
इस दोहे में रविदास जी कहना चाहते है कि जिसका मन पवित्र होता है, उसके बुलाने पर मां गंगा भी एक कठौती में भी आ जाती हैं। यहां पर कठौती से मतलब चमड़ा भिगोने के लिए पानी से भरे पात्र से है।
रैदास के पद के अर्थ | Raidas ke Pad Arth Sahit
रैदास के पद / पदावली रैदास
प्रभु जी तुम चंदन हम पानी। जाकी अंग-अंग बास समानी।।
प्रभु जी तुम घन बन हम मोरा। जैसे चितवत चंद चकोरा।।
प्रभु जी तुम दीपक हम बाती। जाकी जोति बरै दिन राती।।
प्रभु जी तुम मोती हम धागा। जैसे सोनहिं मिलत सोहागा।।
प्रभु जी तुम स्वामी हम दासा। ऐसी भक्ति करै रैदासा।।
अब मैं हार्यौ रे भाई – रैदास
थकित भयौ सब हाल चाल थैं, लोग न बेद बड़ाई।। टेक।।
थकित भयौ गाइण अरु नाचण, थाकी सेवा पूजा।
काम क्रोध थैं देह थकित भई, कहूँ कहाँ लूँ दूजा।।1।।
रांम जन होउ न भगत कहाँऊँ, चरन पखालूँ न देवा।
जोई-जोई करौ उलटि मोहि बाधै, ताथैं निकटि न भेवा।।2।।
पहली ग्यांन का कीया चांदिणां, पीछैं दीया बुझाई।
सुनि सहज मैं दोऊ त्यागे, राम कहूँ न खुदाई।।3।।
दूरि बसै षट क्रम सकल अरु, दूरिब कीन्हे सेऊ।
ग्यान ध्यानं दोऊ दूरि कीन्हे, दूरिब छाड़े तेऊ।।4।।
पंचू थकित भये जहाँ-तहाँ, जहाँ-तहाँ थिति पाई।
जा करनि मैं दौर्यौ फिरतौ, सो अब घट मैं पाई।।5।।
पंचू मेरी सखी सहेली, तिनि निधि दई दिखाई।
अब मन फूलि भयौ जग महियां, उलटि आप मैं समाई।।6।।
चलत चलत मेरौ निज मन थाक्यौ, अब मोपैं चल्यौ न जाई।
सांई सहजि मिल्यौ सोई सनमुख, कहै रैदास बताई।।7।।
तेरा जन काहे कौं बोलै – रैदास
तेरा जन काहे कौं बोलै।
बोलि बोलि अपनीं भगति क्यों खोलै।। टेक।।
बोल बोलतां बढ़ै बियाधि, बोल अबोलैं जाई।
बोलै बोल अबोल कौं पकरैं, बोल बोलै कूँ खाई।।1।।
बोलै बोल मांनि परि बोलैं, बोलै बेद बड़ाई।
उर में धरि धरि जब ही बोलै, तब हीं मूल गँवाई।।2।।
बोलि बोलि औरहि समझावै, तब लग समझि नहीं रे भाई।
बोलि बोलि समझि जब बूझी, तब काल सहित सब खाई।।3।।
बोलै गुर अरु बोलै चेला, बोल्या बोल की परमिति जाई।
कहै रैदास थकित भयौ जब, तब हीं परंमनिधि पाई।।4।।
राम जन हूँ उंन भगत कहाऊँ – रैदास
राम जन हूँ उंन भगत कहाऊँ, सेवा करौं न दासा।
गुनी जोग जग्य कछू न जांनूं, ताथैं रहूँ उदासा।। टेक।।
भगत हूँ वाँ तौ चढ़ै बड़ाई। जोग करौं जग मांनैं।
गुणी हूँ वांथैं गुणीं जन कहैं, गुणी आप कूँ जांनैं।।1।।
ना मैं ममिता मोह न महियाँ, ए सब जांहि बिलाई।
दोजग भिस्त दोऊ समि करि जांनूँ, दहु वां थैं तरक है भाई।।2।।
मै तैं ममिता देखि सकल जग, मैं तैं मूल गँवाई।
जब मन ममिता एक एक मन, तब हीं एक है भाई।।3।।
कृश्न करीम रांम हरि राधौ, जब लग एक एक नहीं पेख्या।
बेद कतेब कुरांन पुरांननि, सहजि एक नहीं देख्या।।4।।
जोई जोई करि पूजिये, सोई सोई काची, सहजि भाव सति होई।
कहै रैदास मैं ताही कूँ पूजौं, जाकै गाँव न ठाँव न नांम नहीं कोई।।5।।
।। राग रामकली।।
संत रविदास जी ने अपने दोहों से समाज में फैली बुराइयों को दूर करने का प्रयत्न किया है और अपने दोहों (Ravidas ke Dohe in Hindi) से लोगों में सकरात्मक ऊर्जा का विस्तार किया है। इसके साथ ही लोगों को सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी दी है।
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