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रत्नावली का जीवन परिचय

Ratnavali Biography in Hindi: नमस्कार दोस्तों, आज हम आप सभी लोगों को एक ऐसी महिला के विषय में बताने वाले हैं, जिनके कहे गए शब्दों के बाद राम बोला अर्थात गोस्वामी तुलसीदास जी इतने बड़े कवि और ज्ञाता बने। गोस्वामी तुलसीदास जी के इतना बड़ा कभी बनने के पीछे जिस महिला का हाथ है, वह कोई और नहीं बल्कि उनकी ही पत्नी रत्नावली है। रत्नावली बहुत ही पढ़ी लिखी और समझदार महिला थी, परंतु इन्होंने बड़ी ही गुस्से में तुलसीदास जी को कुछ कटु शब्द कहे, जिसके कारण इन्होंने अपनी पत्नी का त्याग कर दिया।

Ratnavali Biography in Hindi
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आज आप सभी लोगों को हमारे द्वारा लिखे गए इस लेख में रत्नावली के जीवन परिचय से संबंधित विशेष जानकारियां बताई गई है। रत्नावली के जीवन परिचय से संबंधित जानकारियां प्राप्त करने के लिए आप सभी लोग बिल्कुल ही सही जगह पर आए हैं, क्योंकि आपको यहां पर रत्नावली कौन है?, रत्नावली का जन्म, पारिवारिक संबंध, पति और उनके विवाह से संबंधित जानकारियां बताएं जाएंगे। तो रत्नावली के विषय में जानने के लिए हमारा यह लेख अंत तक अवश्य पढ़ें।

रत्नावली का जीवन परिचय | Ratnavali Biography in Hindi

रत्नावली कौन है?

रत्नावली हिंदी पद साहित्य के महान कवि गोस्वामी तुलसीदास की पत्नी थी। रत्नावली बहुत ही ज्यादा रूपवान और आकर्षक थी। गोस्वामी तुलसीदास रत्नावली से बहुत ही ज्यादा प्रेम करते थे। रत्नावली इतनी ज्यादा रूपवान थी कि इन्हें देखने वाला हर व्यक्ति इन पर मोहित हो जाता था।

रत्नावली को देखने के बाद गोस्वामी तुलसीदास बहुत ही ज्यादा खुश हुए। क्योंकि गोस्वामी तुलसीदास का विवाह रत्नावली के साथ ही तय किया गया था। अब आप सभी लोगों के मन में यह सवाल उठ रहा होगा कि अगर रत्नावली इतनी रूपवती थी तो गोस्वामी तुलसीदास ने उनका त्याग क्यों किया? तो दोस्तों इस के विषय में जानकारी नीचे दी गई है, जिसे आप अवश्य पढ़ें।

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रत्नावली का जन्म

गोस्वामी तुलसीदास की पत्नी रत्नावली का जन्म वर्ष 1577 विक्रम संवत में हुआ था। रत्नावली का जन्म उत्तर प्रदेश के ही एटा जिले के बदरिया नामक गांव में हुआ था। गोस्वामी तुलसीदास अपनी पत्नी से मिलने के लिए पैदल ही उफनती हुई यमुना नदी को पार करके उनसे मिलने के लिए उनके मायके चले गए थे। आप इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि गोस्वामी तुलसीदास रत्नावली से कितना प्रेम करते रहे होंगे।

रत्नावली का पारिवारिक संबंध

इनके माता-पिता ने इनका विवाह करने से पहले इन्हें गोस्वामी तुलसीदास से मिलवाया था और आप इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि प्राचीन समय में ऐसी परंपरा ना थी, इसके बावजूद भी रत्नावली के माता-पिता ने इन्हें गोस्वामी तुलसीदास से मिलवाया था। तो इनके माता-पिता इन से कितना प्रेम करते रहे होंगे।

रत्नावली के पिता का नाम पंडित दीनबंधु पाठक था और इनकी माता का नाम दयावती था। इनकी माता का जैसा नाम था वैसा ही काम भी था अर्थात इनकी माता बहुत ही ज्यादा दयावान थी।

रत्नावली का विवाह

गोस्वामी तुलसीदास और रत्नावली का विवाह 1589 विक्रम संवत में संपन्न हुआ था, इन दोनों में काफी गहरा प्रेम था। गोस्वामी तुलसीदास 1604 विक्रम संवत में रत्नावली से अलग हो गए थे।

गोस्वामी तुलसीदास ने रत्नावली का त्याग क्यों किया?

जैसा हमने आपको ऊपर ही बताया कि गोस्वामी तुलसीदास अपनी पत्नी रत्नावली से बहुत ही ज्यादा प्रेम करते थे। जब गोस्वामी तुलसी की पत्नी कुछ दिनों के लिए अपने मायके में रहने के लिए चली गई थी तो इसी गहरे प्रेम के कारण गोस्वामी तुलसीदास से रहा नहीं गया और इन्होंने अपनी पत्नी से मिलने का निश्चय किया।

गोस्वामी तुलसीदास पैदल ही रात के समय अपने घर से निकल पड़े। रास्ते में उन्होंने कई बाधाओं का भी सामना करना पड़ा। इन्होंने अपनी पत्नी से मिलने की इस उत्साह में उफनती हुई यमुना नदी को भी पार कर गए। तुलसीदास जी इतने उत्साह में थे कि उन्हें नदी में एक नाव दिखी, उसका सहारा लेकर तुलसीदास जी ने नदी पार की। अत्यधिक उत्साह के कारण तुलसीदास जी को एक लाश तैरती नाव दिखी। जब तुलसीदास इन सभी के बाद अपनी पत्नी के घर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि सभी दरवाजे तो बंद है।

इसके बाद उन्होंने छत से लटकी हुई रस्सी को पकड़कर छत पर चल गए। वास्तव में वह रस्सी नहीं बल्कि एक सांप की पूंछ थी। जब वह अपनी पत्नी के पलंग के पास पहुंचे तो उनकी पत्नी जग गई और काफी गुस्से में उनसे बोली कि जितना प्रेम तुम मुझसे करते हो, यदि उतना प्रेम भगवान से करते तो तुम्हें अवश्य ही सिद्धि प्राप्ति हो जाती है।

तुलसीदास ने उन्हें समझाने का बहुत प्रयास किया परंतु वह ना मानी और ऐसे ही कटु शब्द कहती चली गई। गोस्वामी तुलसीदास को उनकी इस बातों का काफी बुरा लगा और गोस्वामी तुलसीदास उनसे ऐसा करके वहां से निकल पड़े कि “मैं भगवान की भक्ति के अलावा तुम्हारा चेहरा कभी भी नहीं देखूंगा” और ऐसा कह कर उसी सांप की पूंछ को पकड़कर वापस जमुना नदी को पार करके अपने घर पहुंचे और भगवान की भक्ति में लीन हो गए।

जब उनकी पत्नी अपने मायके से तुलसीदास के घर पहुंची तो उन्हें ना पाकर बहुत ही चिंतित हुई। उन्हें इस बात का डर लगने लगा कि जो बात तुलसीदास ने उनसे उनके मायके में कह कर आई थी शायद वही तो ना कर दिया। कुछ वर्षों बाद तुलसीदास को सिद्ध की प्राप्ति हो गई और इनका नाम रामबोला से बदलकर गोस्वामी तुलसीदास हो गया। इसके बाद से तुलसीदास जी ने कभी भी किसी भी महिला की तरफ नहीं देखा।

रत्नावली की मृत्यु

अपने पति से विरक्त होने के बाद रत्नावली भी एक साध्वी बन गई और पति के स्मरण में ही इन्होंने अपने प्राणों को त्याग दिया। रत्नावली की मृत्यु 1651 विक्रम संवत में हुआ था।

निष्कर्ष

हम आप सभी लोगों से उम्मीद करते हैं कि आप सभी लोगों को हमारे द्वारा लिखा गया यह महत्वपूर्ण लेख रत्नावली का जीवन परिचय (Ratnavali Biography in Hindi) अवश्य ही पसंद आया होगा। यदि आपको हमारे द्वारा लिखा गया यह लेख वाकई में पसंद आया हो तो कृपया इसे अवश्य शेयर करें और यदि आपके मन में इस लेख को लेकर किसी भी प्रकार का कोई सवाल या फिर कोई सुझाव है तो कमेंट बॉक्स में हमें अवश्य बताएं।

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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