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भारत के राष्ट्रपति के कार्य और शक्तियां

Rashtrapati ke Karya

भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में राष्ट्रपति का पद सबसे सर्वोच्च पद होता है। भारतीय संघ के कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होती है। राष्ट्रपति देश का संवैधानिक प्रधान होता है, इन्हे देश का प्रथम नागरिक भी कहा जाता है।

हालांकि राष्ट्रपति नाम मात्र के कार्यपालिका है। असल कार्यपालिका प्रधानमंत्री और उसका मंत्रिमंडल होता है। लेकिन उसके बावजूद भारत के राष्ट्रपति को कई विधायी और न्यायिक शक्तियां दी गई है, जिसके कारण राष्ट्रपति भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

इस लेख में हम भारत के राष्ट्रपति के कार्य (Rashtrapati ke Karya) और उनके शक्तियों के बारे में जानेंगे।

राष्ट्रपति के कार्य (Rashtrapati ke Karya)

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 60 में राष्ट्रपति के कर्तव्य के बारे में उल्लेख किया गया है।

  • राष्ट्रपति भारत के संविधान और कानून का संरक्षण, सुरक्षा और बचाव करते हैं।
  • राष्ट्रपति राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • वह औपचारिक प्रमुख के रूप में कार्य करते हैं।
  • राष्ट्रपति संवैधानिक मामलों में एक सलाहकार की भूमिका निभाते हैं। प्राप्त जानकारी के आधार पर सरकार को कई राष्ट्रीय महत्व के मामलों पर सलाह देते हैं।
  • देश की सरकार सही ढंग से चल रही है या नहीं इसकी निगरानी करते हैं।
  • राष्ट्रपति प्रतीकात्मक कार्य करते हैं, जिसमें स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस जैसे राष्ट्रीय पर्व के अवसर पर राष्ट्र को संबोधित करते हैं।

राष्ट्रपति की शक्तियां (Rashtrapati ki Shaktiyan)

राष्ट्रपति की नियुक्ति संबंधित अधिकार

राष्ट्रपति को बहुत से पदों की नियुक्तियां करने का अधिकार दिया गया है। राष्ट्रपति के पास निम्नलिखित पदों पर न्युक्तियां करने की शक्ति है:

  • भारत का प्रधानमंत्री
  • प्रधानमंत्री की सलाह पर मंत्री परिषद के अन्य सदस्यों की नियुक्ति
  • राज्य के राज्यपाल
  • भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक
  • सर्वोच्च और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश
  • भारत के महान्यायवादी
  • मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त
  • संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष
  • संघ क्षेत्र के मुख्य आयुक्त
  • पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य
  • भारत के राजदूत और अन्य राजनयिक
  • अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य
  • वित्त आयोग के सदस्य

राष्ट्रपति की विधायी शक्तियां

राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग होता है। राष्ट्रपति को कई तरह की विधाई शक्तियां दी गई है। राष्ट्रपति की निम्नलिखित विधायी शक्तियां प्रदान की गई है:

लोकसभा भंग करने का अधिकार

जब राष्ट्रपति को लगे कि सरकार ठीक से काम नहीं कर पा रही है तो राष्ट्रपति को लोकसभा को भंग करके नए चुनाव कराने का अधिकार है।

राष्ट्रपति संसद के सत्र को आहूत करने, सत्रावसान करने संबंधित अधिकार दिया गया है। राष्ट्रपति को संसद के दोनों सदनों में एक साथ अभिभाषण करने की शक्ति दी गई है।

संसद सदस्यों के मनोनयन का अधिकार

संविधान के अनुच्छेद 331 के अंतर्गत राष्ट्रपति को संसद सदस्यों के मनोनियन का अधिकार दिया गया है। राष्ट्रपति को संसद में दो आंग्ल भारतीय समुदाय के व्यक्तियों को नामांकित करने का अधिकार है।

इसके साथ ही कला, साहित्य, विज्ञान, सामाजिक कार्य में पर्याप्त अनुभव और दक्षता रखने वाले 12 व्यक्तियों को वे राज्यसभा में नामांकित कर सकते हैं।

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विधेयकों पर स्वीकृति

कोई भी विधायक कानून में तभी परिवर्तित होता है जब वह दोनों सदनों से पारित होता है। लेकिन दोनों सदनों से पारित होने के बाद राष्ट्रपति का स्वीकृति मिलना जरूरी है।

कोई भी विधायेक राष्ट्रपति के स्वीकृति मिलते ही कानून बन जाता है। इसलिए हर एक विधेयक पर राष्ट्रपति का हस्ताक्षर होता है।

विधेयकों की वापसी

दोनों सदनों से पारित होने के बाद राष्ट्रपति के सामने प्रस्तुत विधेयक से राष्ट्रपति संतुष्ट नहीं है तो वह विधेयक को पूर्नविचार करने के लिए संसद वापस भेज सकते हैं। हालांकि राष्ट्रपति विधायक को खारिज नहीं कर सकते।

संसद के द्वारा पारित विधेयक पर अपनी सहमति वापस लेने की शक्ति को राष्ट्रपति के पॉकेट वीटो के रूप में जाना जाता है। इसे राष्ट्रपति किसी भी बिल को कानून बनने से रोक सकते हैं।

अध्यादेश जारी करना

जब संसद का सत्र नहीं चल रहा होता है ऐसी स्थिति में संविधान के अनुच्छेद 123 के अंतर्गत राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने का अधिकार है। इन अध्यादेशों का प्रभाव संसद के द्वारा पारित कानून के बराबर ही होता है।

हालांकि राष्ट्रपति राज्य सूची के विषयों पर अध्यादेश जारी नहीं कर सकते हैं। इसके अलावा जब दोनों सदन सत्र में होते हैं तब भी राष्ट्रपति अध्यादेश जारी नहीं कर सकते।

इन सब के अतिरिक्त राष्ट्रपति को नए राज्यों का निर्माण करने, वर्तमान राज्य के क्षेत्र, सीमा, उसके नाम में परिवर्तन करने का अधिकार दिया गया है। राज्यों के बीच व्यापार, वाणिज्य और समागम पर निरबंध लगाने का अधिकार दिया गया है।

संचित निधि के उपयोग करने का विधेयक, धन विधेयक पर राष्ट्रपति का पूर्ण सहमति जरूरी होता है।

भारत के राष्ट्रपति की न्यायिक शक्तियाँ

संविधान के अनुच्छेद 72 के अंतर्गत भारत के राष्ट्रपति को कई सारी न्यायिक शक्तियां दी गई है, जिसमें क्षमादान, सजा को बदलना, सजा में कमी और राहत शामिल है। राष्ट्रपति चाहे तो किसी भी व्यक्ति की सजा को कम कर सकता है।

वह अपनी शक्ति का प्रयोग करके किसी के सजा की अवधि को कम कर सकता है। राष्ट्रपति चाहे तो किसी अपराधी की मृत्यु दंड की सजा को आजीवन कारावास में बदल सकता है। अगर किसी अपराधी पर कानूनी कार्यवाही चल रही है तो राष्ट्रपति उसके कार्यवाही प्रक्रिया को और भी बढ़ा सकता है।

राष्ट्रपति अपने इस शक्ति का प्रयोग केवल असाधारण परिस्थितियों में ही करते हैं। क्योंकि राष्ट्रपति को न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने या अदालत के फैसलों को बदलने का अधिकार नहीं होता है।

राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियाँ

भारतीय संविधान के भाग 18 के अनुच्छेद 352 से 360 के अंतर्गत राष्ट्रपति के आपातकालीन शक्तियों का उल्लेख किया गया है। राष्ट्रपति अपने इन शक्तियों के जरिए देश में शांति, स्थिरता व सुरक्षा बनाए रखने में मदद करते हैं।

देश में किसी भी प्रकार का संकट आने पर राष्ट्रपति मंत्री परिषद के परामर्श से तीन प्रकार का आपात लागू कर सकता है।

राष्ट्रीय आपातकाल

देश में युद्ध, बाहृय आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के कारण देश में खतरा या संकट आता है तो ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति को राष्ट्रीय आपात घोषित करने का अधिकार है, जिसके तहत राज्य सरकार संघ की कार्यपालिका के पूर्ण नियंत्रण में आ जाती हैं। यहां तक कि इस परिस्थिति में नागरिक के कुछ मौलिक अधिकार भी निलंबित किये जा सकते हैं।

वित्तीय आपात

संविधान के अनुच्छेद 360 के अंतर्गत जब देश में वित्तीय संकट के आने का आभास राष्ट्रपति को होता है तब वे वित्तीय आपात की घोषणा कर सकते हैं।

राज्य आपातकाल

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के अंतर्गत जब किसी भी राज्य में संवैधानिक तंत्र विसफल हो जाता है या राज्य संघ की कार्यपालिका के किसी निर्देश का पालन करने में असमर्थ रहता है तब राष्ट्रपति राज्य आपातकाल की घोषणा कर सकता है।

इस परिस्थिति में राज्य में राष्ट्रपति का शासन आ जाता है और संघ न्यायिक कार्य छोड़कर राज्य प्रशासन के कार्य अपने हाथ में ले लेता है।

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सैनिय शक्ति

  • भारत का राष्ट्रपति सशस्त्र बलों का सर्वोच्च कमांडर होता है।
  • राष्ट्रपति भारतीय थल सेना, नौसेना, वायु सेना के कमान को औपचारिक रूप से संभालते हैं।
  • वायु सेवा, नौसेना, थल सेना के प्रमुखों की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा ही की जाती है। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ कमेटी के अध्यक्ष की नियुक्ति भी राष्ट्रपति करते हैं।
  • प्रधानमंत्री व रक्षा मंत्रालय के द्वारा राष्ट्रपति को देश की सुरक्षा और सैन्य तैयारी की नियमित जानकारी मिलते रहती है।
  • सशस्त्र बलों के जवानों और अधिकारियों को उनके वीरता और बहादुरी के लिए परमवीर चक्र, महावीर चक्र और वीर चक्र जैसे कई सैन्य सम्मान व पुरस्कार राष्ट्रपति के द्वारा दिए जाते हैं।

निष्कर्ष

इस लेख में आपने भारत के राष्ट्रपति के कार्य (rashtrapati ke karya) और उनके शक्तियों के बारे में जाना।

हर एक भारतीय नागरिक और प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर रहे विद्यार्थियों को देश के राष्ट्रपति के कर्तव्य और शक्तियों के बारे में जानकारी रखना बहुत जरूरी है।

इसलिए इस लेख को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए अन्य लोगों के साथ भी जरूर शेयर करें ताकि यह जानकारी सब तक पहुंच सके।

Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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