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क़ुतुब मीनार का इतिहास और रहस्य के बारे में संपूर्ण जानकारी

Qutub Minar History in Hindi: भारत में प्राचीन काल से लेकर मध्यकाल तक कई शासकों ने शासन किया है। इनमें दिल्ली सल्तनत के काल में दिल्ली में कई ऐतिहासिक इमारत उन शासकों के द्वारा बनाई गई हैं। आज यही इमारत देश विदेश के लोगों के लिए भारत में पर्यटन का एक प्रमुख स्थान बन चुका है। दिल्ली सल्तनत काल में निर्मित वास्तु कला में एक बेहतरीन उदाहरण क़ुतुब मीनार है।

कुतुब मीनार भारत की राजधानी दिल्ली में स्थित पांच मंजिला वाला ऐतिहासिक इमारत है, जो मुगल वास्तुकला का एक सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। ताजमहल के बाद भारत में दूसरा सबसे अधिक देखे जाने वाले स्मारक में कुतुब मीनार है। क़ुतुब मीनार यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों में से एक है, जो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों को अपनी अद्भुत ऐतिहासिक आकर्षण से आकर्षित करता है। जितनी खूबसूरत यह इमारत है, इससे जुड़े रहस्य और इसके तथ्य भी उतने ही रोचक है।

Qutub Minar History in Hindi
कुतुब मीनार

यदि आप भी मुगल कालीन वास्तुकला के बेजोड़ नमूने के इतिहास के बारे में जानना चाहते हैं तो आप बिल्कुल सही लेख पर आए हैं। क्योंकि आगे इस लेख में हम कुतुब मीनार का इतिहास (Qutub Minar History in Hindi), इसकी वास्तुकला, इससे जुड़े कुछ रोचक तथ्य एवं इससे जुड़े रहस्य के बारे में जानने वाले हैं।

कुतुब मीनार का इतिहास (Qutub Minar History in Hindi)

कुतुब मीनार का निर्माण कार्य कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1199 ईसवी में किया था। मोहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली पर गुलाम वंश की स्थापना की थी और दिल्ली के दक्षिण भाग महरौली क्षेत्र में कुतुब मीनार के निर्माण का कार्य शुरू करवाया था।

हालांकि 5 मंजिल के मीनार को बनाने के उद्देश्य से इसका आधार रखा गया था लेकिन दो मंजिलें का कार्य पूर्ण होने के बाद ही कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु हो गई थी। जिसके बाद कुतुबुद्दीन ऐबक के गुलाम और उसके दामाद इल्तुतमिश जो कुतुबुद्दीन ऐबक के बाद उत्तराधिकारी बना था, उसने कुतुब मीनार के बाकी के तीन और मंजिलों को बनाया था।

उसके बाद सन 1369 में एक भयंकर आसमानी बिजली कुतुब मीनार के शिर्ष पर गिरी थी, जिसके कारण ऊपरी मंजिला छतिग्रस्त हो गई थी। तब उस समय के तत्कालीन शासक फिरोज़ शाह तुगलक ने कुतुब मीनार की मरम्मत करवाकर पांचवी और अंतिम मंजिल बनाई थी।

इस मीनार को लेकर कई सारे विवाद हैं। क्योंकि कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इस मस्जिद को कुतुबुद्दीन ऐबक ने हिंदू राजाओं और विजय के बाद बनवाया था। तो कुछ लोगों का मानना है कि इस मीनार का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने खास करके नमाज पढ़ने के लिए बनवाया था।

कुतुब मीनार कहां है?

क़ुतुब मीनार भारत की राजधानी दिल्ली के दक्षिण भाग महरोली क्षेत्र में स्थित है। महरोली का अर्थ मिहिर अवेली होता है। बताया जाता है इस कस्बे में कभी प्रख्यात खगोल शास्त्री मिहिर जो विक्रमादित्य के दरबार में रहा करते थे, इसी क्षेत्र से थे। इसीलिए इस जगह का नाम महरोली पड़ा।

कुतुब मीनार की वास्तुकला

  • क़ुतुब मीनार 5 मंजिल का इस्लामिक वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है। क़ुतुब मीनार की पहली तीन मंजिल को लाल बल में पत्थर के इस्तेमाल से बनाया गया है। वहीँ चौथी और पांचवी मंजिल को मार्बल और बलुए पत्थर से निर्मित किया गया है।
  • क़ुतुब मीनार जिन पत्थरों से निर्माण किया गया है, उन पत्थरों पर फुल बैलों की महीन नक्काशी की गई है, जो इसकी सुंदरता में चार चांद लगाता है। वहीँ इन पत्थरों पर कुरान की आयतें भी लिखी गई है।
  • क़ुतुब मीनार भारत इतिहास की सबसे बेहतरीन स्थापत्य कला में से एक है, जिसकी कुल ऊंचाई 240 फीट है। वहीं इसकी चौड़ाई 14.3 फीट है, जो गोलाकार आधार के साथ खड़ा है।
  • मीनार के शिर्ष तक पहुंचने के लिए एक शानदार सरपीले आकार में 379 सीढ़ियां लगी हुई है।
  • कुतुब मीनार के प्रत्येक मंजिलों पर एक गोलाकार बालकनी भी बनाई गई है, जिस पर जटिल वास्तुकला से उसे सुशोभित किया गया है।
  • कुतुब मीनार के प्रत्येक मंजिलों के बाद बडे शालीनता एवं सुगमता के साथ एक घेरा भी बनाया गया है, जो देखने में बिल्कुल मधुमक्खी के छत्ते के सामान लगता है।
  • क़ुतुब मीनार को एक बहुत बड़े परिसर में बनाया गया है, जिसके आसपास अन्य कई सारी ऐतिहासिक इमारतें हैं जैसे अलाई दरवाजा, अलाई इल्तुतमिश का मकबरा, मीनार, मस्जिदें आदि।
  • कुतुब मीनार के सबसे नीचे वाली मंजिल में कुवत उल इस्लाम मस्जिद भी निर्मित की गई है, जिसका निर्माण कुतुबुद्दीन ने 1198 में किया था। माना जाता है यह मस्जिद भारत की सबसे पहली मस्जिद है। इतना ही नहीं इस मस्जिद के पूर्वी दरवाजे पर एक महत्वपूर्ण चीज भी लिखा गया है कि इस मस्जिद को 27 हिंदू मंदिरों को तोड़कर पाई गई सामग्रियों से निर्मित की गई है।

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क़ुतुब मीनार परिसर में देखने लायक महत्वपूर्ण स्थल

क़ुतुब मीनार एक विशाल परिसर में फैला हुआ है, जहां पर कुतुब मीनार के अतिरिक्त अन्य बहुत से देखने लायक महत्वपूर्ण स्थल है।

लोहा स्तंभ

कुतुब मीनार परिसर में स्थित 7.2 मीटर ऊंचा लोह स्तंभ सभी इतिहासकारों और सैलानियों के लिए आश्चर्यचकित कर देने वाला स्थल है। इस स्तंभ को कीर्ति स्तंभ के नाम से भी जाना जाता है, जो भगवान विष्णु के ध्वज के रूप में समर्पित है। माना जाता है इस लो स्तंभ का निर्माण चौथी शताब्दी में गुप्त वंश के शासक चंद्रगुप्त द्वितीय ने किया था।

इस स्तंभ के ऊपरी भाग पर हिंदू देवता गरुड़ का चित्र भी अंकित किया गया है। स्तंभ 98% लोहे से बना हुआ है, लेकिन दिलचस्प बात यह है कि इतने साल हो जाने के बावजूद इस स्तंभ में अभी तक जंग नहीं लगी है और अभी तक यह मजबूती से खड़ा है। इस स्तंभ को लेकर लोगों की एक धारणा भी है कि यदि कोई अपने हाथों को पीछे करके इस स्तंभ को दोनों हाथों से घेरकर यदि छु लेता है तो उस व्यक्ति की इच्छा पूरी हो जाती हैं।

कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद

कुतुब मीनार परिसर के भीतर ही कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद स्थित है। इस मस्जिद का निर्माण कुतुबउद्दीन ऐबक ने लाल बलुवे पत्थर और संगमरमर के इस्तेमाल से बनाया था लेकिन आज यह मस्जिद खंडहर हो चुका है। लेकिन कहा जाता है यह मस्जिद दिल्ली यहां तक कि भारत में सबसे पहले निर्मित मस्जिद है, जो शानदार वास्तुकला का उदाहरण हैं।

इल्तुतमिश का मकबरा

कुतुब मीनार परिसर के भीतर उत्तरी पूर्वी हिस्से में इल्तुतमिश का मकबरा स्थित है, जो कुतुब मीनार की तरह ही महत्वपूर्ण प्राचीन स्मारक है। यह दिल्ली में कुवत उल इस्लाम मस्जिद के उत्तर पश्चिम में स्थित है। इसका निर्माण 1235 में शमसुद्दीन इल्तुतमिश द्वारा किया गया था।

इल्तुतमिश दिल्ली सल्तनत में गुलाम वंश का दूसरा शासक था, जो कुतुबुद्दीन ऐबक का गुलाम एवं उसका दामाद था। क़ुतुब मीनार को पूर्ण करवाने का कार्य इसी ने किया था। इल्तुतमिश का मकबरा इतिहास प्रेमियों के लिए एक आकर्षक स्थल है, जो खूबसूरत संरचना और इसकी बेजोड वास्तुकला लोगों को मंत्रमुग्ध कर देती है।

अलाइ मीनार

कुतुब मीनार परिसर में देखने लायक स्थलों में अलाइ मीनार भी है। हालांकि यह एक अधूरी संरचना है, जिसका निर्माण अलाउद्दीन खिलजी ने किया था। दरअसल अलाउद्दीन खिलजी उच्च महत्वकांक्षी वाला शासक था और वह कुतुब मीनार के आकार का दोगुना मीनार बनाने की इच्छा से इस परियोजना की शुरुआत किया था।

लेकिन 1316 ईसवी में उसकी मृत्यु हो गई, जिसके कारण इस परियोजना को वह पूरा नहीं करवा पाया और 24.5 मीटर तक ही इसका निर्माण हो पाया। इसके बावजूद इस मीनार की अधूरी संरचना भी यहां आने वाले दर्शकों को लुभाती है।

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कुतुब मीनार का रहस्य

  • कुतुब मीनार के बारे में कुछ इतिहासकार का ऐसा मत है कि कुतुब मीनार का निर्माण मुस्लिम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक ने नहीं बल्कि विश्व प्रख्यात खगोलशास्त्री वरामिहिर जो सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक थे, उन्होंने किया था।
  • उस समय इस मीनार का नाम विष्णु स्तंभ हुआ करता था। इस मीनार का प्रयोग खगोलशास्त्री वराहमिहिर द्वारा खगोलीय गणना के अध्ययन के लिए किया जाता था। इतना ही नहीं वराहमिहिर के साथ उनके कुछ गणितज्ञ, तकनीविद और कुछ सहायक भी उनके साथ रहा करते थे।
  • कहा जाता है उस समय विष्णु स्तंभ 7 मंजिलों वाला था, जो हिंदू राशि चक्र को समर्पित 27 नक्षत्र या तारामंडल को दर्शाती 27 गुंबदार इमारतें थी। 7 मंजिल की इमारत सप्ताह के 7 दिनों को दर्शाते थे और इसके साथ ही मंजिल पर ब्रह्मा जी की मूर्ति स्थापित थी। लेकिन मोहम्मद गोरी कुतुबुद्दीन ऐबक के साथ मिलकर विष्णु स्तंभ पहुंचा और इस मंजिल के ऊपरी दो मंजिलों को गिरा दिया। इनके दीवारों पर संस्कृत में विवरण लिखे हुए थे एवं मूर्तियां अंकित थी लेकिन बाद में कुतुबुद्दीन ने इसे छतिग्रस्त करके दूसरी तरफ अरबी में इसे लिखवा दिया।
  • इस तरीके से कहा जाता है कि कुतुब मीनार के परिसर में मौजूद लौ स्तंभ जिसे गरुड़ध्वज या गरुड़ स्तंभ कहा जाता है, जो 16 साल से जैसे का तैसा मजबूत तरीके से खड़ा है। इसके अतिरिक्त अन्य बहुत से प्रमाण वहां मौजूद है, जो इस तथ्य की सत्यता को बढ़ावा देते हुए बताते हैं कि क़ुतुब मीनार से पहले विष्णु स्तंभ था।

कुतुब मीनार से जुड़ी भूतिया कहानी

यदि आप कभी कुतुब मीनार देखने के लिए गए हैं या जो जा चुके हैं, उनसे जवाब पूछेंगे तो पता चलेगा कि कुतुब मीनार के अंदर जाने वाले दरवाजे को सरकारी तौर पर बंद कर दिया गया है। कहा जाता है कुतुब मीनार को लेकर कई सारी भूतिया हादसे हुए है। यहां आस-पास बुरी शक्ति के होने का एहसास होता है।

वैसे बात करें कि कुतुब मीनार के अंदर के दरवाजे को सरकारी तौर पर क्यों बंद किया गया है तो दरअसल अंदर 1984 के दिन एक घटना घटी, जिस कारण इस दरवाजे को हमेशा के लिए बंद कर दिया गया। दरअसल कुतुब मीनार के अंदर इसके सिर्फ तक पहुंचने के लिए 379 सीढ़ियां बनी है, जो काफी छोटी है। जिस पर एक बार में एक व्यक्ति ही ऊपर चढ़ सकते हैं और नीचे उतर सकते हैं। यहां तक कि अंदर रोशनी आने के लिए कोई खुला झरोखा नहीं है। इलेक्ट्रिक बल्ब से ही अंदर रोशनी दी जाती थी।

जिस कारण 4 दिसंबर 1984 के दिन 400 से भी ज्यादा लोग कुतुब मीनार के अंदर घुसे हुए थे, जो ऊपर चढ़ने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन तभी अचानक से सारी बल्ब बंद हो गई और अंधेरा छा गया। अचानक से अंधेरा हो जाने के कारण सभी लोग डर गए थे, जिसके कारण वे हड़बड़ी में नीचे उतरने की कोशिश कर रहे थे कि छोटी सिढि़या होने के कारण बहुत से लोग नीचे गिर गए। बताया जाता है कि उस घटना में 45 लोगों की मौत हुई थी, जिनमें ज्यादातर बच्चे ही थे।

दोबारा इस तरह की घटना ना हो, इसीलिए सरकार ने कुतुब मीनार के अंदर जाने वाले दरवाजे पर हमेशा के लिए ताले लगा दिए। हालांकि बाद में कई बार इस दरवाजे को खोलने की कोशिश की गई, लेकिन जब जब इस दरवाजे को खोलने की कोशिश की जाती तब तक कुछ ना कुछ हादसा हो जाता। इसीलिए अब तक यह दरवाजा बंद ही है।

इस तरह आज भी लोग इस घटना को सामान्य नहीं मानते हैं। इस बात की पुष्टि पैरानॉर्मल इन्वेस्टिगेटर लोग भी करते हैं। उनका भी मानना है कि इस जगह पर अंजान शक्तियों के होने का एहसास होता है। कुछ लोगों का मानना है कि कुतुब मीनार के आसपास मृत लोगों की आत्मा के घूमने का एहसास होता है।

बहुत से लोग 1984 में घटित घटना से पहले भी अंदर जा चुके हैं और उनका मानना है कि इस घटना से पहले भी अंदर पैरानॉर्मल एक्टिविटी के होने का एहसास होता था। अगर कोई अकेले अंदर जाता तो ऐसा लगता था मानो उसके साथ कोई और भी चल रहा है। यहां तक कि प्रशासन का भी कहना है कि अंदर जाना सुरक्षित नही है, इसीलिए इसको बंद रखना ही भलाई है।

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कुतुब मीनार के बारे में कुछ रोचक तथ्य

  • 1505 ईसवी में भूकंप आने के कारण कुतुब मीनार लगभग तबाह हो गया था। लेकिन बाद में दोबारा मरम्मत कराई गई थी। लेकिन 1803 ईस्वी में फिर एक और भयंकर भूकंप जिसने पहले से भी ज्यादा नुकसान पहुंचाया था। हालांकि फिर से उसकी मरम्मत करा दी गई।
  • भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के द्वारा 1871-72 में एक रिपोर्ट तैयार की गई थी। उस रिपोर्ट में बताया गया था कि कुतुब मीनार के परिसर में मौजूद मस्जिद का निर्माण हिंदू मंदिरों को तोड़कर किया गया है।
  • कुतुब मीनार के नाम को लेकर कुछ इतिहासकारों का विवाद है। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि क़ुतुब मीनार का नाम इसकी स्थापना करने वाले गुलाम वंश के शासक और दिल्ली सल्तनत के पहले मुस्लिम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक के नाम पर रखा गया है, जिसका अर्थ न्याय का ध्रुव होता है। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि क़ुतुब मीनार का नाम मशहूर मुस्लिम सूफी संत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर रखा गया था।
  • कुतुब मीनार के अंतिम पांचवी मंजिल का निर्माण फिरोजशाह तुगलक के द्वारा 1368 ईस्वी में किया गया था।
  • कुतुब मीनार के बारे में कहा जाता है कि आज दिल्ली के जिस स्थान पर क़ुतुब मीनार है, वहां पर एक समय लालकोट हुआ करता था। जिसका निर्माण तोमर राजवंश के राजपूत राजा अनंगपाल तोमर ने करवाया था। राजा अनंगपाल ने हीं दिल्ली को सबसे पहले शहर के रूप में बसाया था और दिल्ली का आगे विस्तार पृथ्वीराज चौहान ने किया था, जिसे मोहम्मद गोरी ने युद्ध में हरा दिया था। कहा जाता है कुतुबुद्दीन ऐबक ने लाल कोट सहित 27 हिंदू और जैन मंदिरों को तोड़कर कुतुब मीनार का निर्माण करवाया था।
  • माना जाता है कुतुब मीनार का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने मस्जिद के रूप में किया था और पहले इसका प्रयोग मस्जिद के रूप में ही किया जाता था। यहां पर लोग अजान दिया करते थे लेकिन अब यह एक पर्यटन स्थल बन चुका है।
  • कहा जाता है ऐतिहासिक भव्य कुतुब मीनार का निर्माण अद्भुत इमारत जाम की मीनार से प्रेरित होकर बनाई गई थी।
  • कुतुब मीनार मुगलकालीन वास्तु शैली से लाल बलुए पत्थर के इस्तेमाल से बनाया गया है। इसे मध्यकालीन भारत में बनी वास्तु कला का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण बताया जाता है। इस मीनार को बनाने के लिए वास्तुकार और शिल्पकारों ने बहुत छोटी छोटी बातों को ध्यान में रखा है। इसका अंदाजा मीनार के दीवारों पर की गई खूबसूरत नक्काशी से पता चल जाती है।
  • कुतुब मीनार के निर्माण में नागरी और अरबी लिपि के कई सारे शिलालेखों का इस्तेमाल किया गया है। बताया जाता है कुतुब मीनार के मीनारों की संरचना राजपूत टावरों से प्रेरित रिती है।

क़ुतुब मीनार जाने का सही समय

यदि आप क़ुतुब मीनार जाना चाहते हैं तो वहां जाने के लिए अच्छे समय की बात करें तो क़ुतुब मीनार भारत के उत्तर में स्थित राज्य दिल्ली में स्थित है। अप्रैल से अगस्त सितंबर तक यहां पर काफी ज्यादा गर्मी होती है। इसीलिए इन महीनों के दौरान वहां पर घूमना थोड़ा सा उमस भरा हो सकता है।

लेकिन यदि आप अक्टूबर से मार्च के महीने में जाते हैं तो आपके लिए यह सबसे बेहतर समय साबित होगा। क्योंकि इस दौरान यहां पर हल्की ठंड रहती है और मौसम भी सुहाना रहता है। हालांकि आप चाहे तो साल के किसी भी दिन क़ुतुब मीनार को देखने के लिए जा सकते हैं। इस मीनार में सुबह 6:00 बजे से प्रवेश शुरू होता है और शाम के 6:00 बजे बंद हो जाता है।

कुतुब मीनार कैसे पहुंचे?

कुतुब मीनार दिल्ली में स्थित है और दिल्ली भारत का एक प्रमुख शहर एवं राजधानी है, जिसके कारण दिल्ली की ट्रांसपोर्ट कनेक्टिविटी देश के लगभग हर राज्य के साथ है। भारत के राज्य के किसी भी जगह से सड़क मार्ग, रेल मार्ग और हवाई मार्ग से दिल्ली पहुंच सकते हैं। यहां पर मेट्रो ट्रेन की सुविधा भी है।

दिल्ली से कुतुब मीनार तक पहुंचने के लिए आप मेट्रो ट्रेन की मदद ले सकते हैं। यहां पर कुतुब मीनार मेट्रो स्टेशन भी स्थित है। इसके साथ ही दिल्ली में इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट भी है, जिससे आप हवाई मार्ग के जरिए भी दिल्ली पहुंच सकते हैं और फिर लोकल बस के माध्यम से क़ुतुब मीनार तक पहुंच सकते हैं।

FAQ

क़ुतुब मीनार का वास्तुकार कौन था?

वैसे तो कुतुब मीनार की आधारशिला गुलाम वंश के प्रथम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक ने रखी थी। लेकिन दो मंजिले के निर्माण करने के बाद ही उसकी मृत्यु हो गई, जिसके बाद इसे आगे उसके दामाद इल्तुतमिश ने पूर्ण करवाया। लेकिन बाद में फिरोज़ शाह तुगलक ने कुतुब मीनार के अंतिम और पांचवी मंजिल का निर्माण करवाया था। उसके बाद इस मीनार का पुनः निर्माण कार्य लोदी वंश के शासक सिकंदर लोदी ने किया था।

क़ुतुब मीनार की लम्बाई कितनी है?

कुतुबमीनार कुल 5 मंजिली मीनार है, जिसे सीढ़ियों से जोड़ा गया है। इसकी कुल लंबाई 72.5 मीटर है। अगर फिट में बात करें तो 238 फीट है, जो आपको शहर का एक खूबसूरत नजारा दिखाएगा।

क़ुतुब मीनार का असली नाम क्या है?

कुछ इतिहासकार का मानना है कि कुतुब मीनार का निर्माण खगोल शास्त्र वरामिहिर ने निर्माण किया था और उस समय इस टावर का नाम विष्णु स्तंभ या ध्रुव स्तंभ था।

क्या कुतुब मीनार में खाना खा सकते है?

नहीं कुतुब मीनार में पानी पीने के अलावा किसी भी प्रकार के भोजन करने की अनुमति नहीं है। यहां प्रवेश के लिए टिकट काउंटर के बगल में ही शौचालय की सुविधा उपलब्ध है।

कुतुब मीनार के नीचे क्या है?

क़ुतुब मीनार का निचला हिस्सा ऊपर वाले हिस्से की तुलना में चौड़ा है और नीचे वाले हिस्से में कुवत उल इस्लाम की मस्जिद बनी है, जिसे भारत की पहली मस्जिद मानी जाती है।

कुतुब मीनार में कितने कमरे हैं?

कुतुब मीनार के अंदर के हिस्से में एक कमरा स्थित है और उसी के नीचे एक तहखाना भी है, जिसके नीचे शाही परिवारों के सदस्यों की कब्र के लिए 8 कोनों वाले 4 कमरे हैं। बताया जाता है इस कमरे के मध्य में शाहजहां और मुमताज महल की भी कब्र है।

लोह स्तंभ की क्या खासियत है?

लोह स्तंभ कुतुब मीनार परिसर में ही स्थित एक ऐतिहासिक टावर है, जिसे गरुड़ स्तंभ भी कहा जाता है। इस स्तंभ की खासियत यह है कि यह स्थान लगभग 16 साल से भी ज्यादा पुराना है और इस स्तंभ का 98% भाग लोहे का बना हुआ है, उसके बावजूद अब तक इस स्तंभ में कोई जंग नहीं लगा है।

निष्कर्ष

आज के इस लेख में आपने भारत की ऐतिहासिक और सुप्रसिद्ध मीनार कुतुब मीनार के निर्माण के इतिहास (Qutub Minar History in Hindi), वास्तुकला और इससे जुड़ी कुछ रोचक तथ्यो को जाना। हमें उम्मीद है कि आज का यह लेख आपके लिए जानकारी पूरा रहा होगा।

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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