Poems on Animals in Hindi: नमस्कार दोस्तों, आज हमने यहां पर जानवरों पर कविताएं शेयर की है। यह हिंदी कविताएं आपको पसंद आएगी ऐसी हम उम्मीद करते हैं।
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जानवरों पर कविता – Poems on Animals in Hindi
Poem on World Animal Day in Hindi
जानवरों के उसूल
एक छछूंदर धोती पहने,
गया कराने शादी।
उसके साथ गई जंगल की
आधी-सी आबादी।
जब छछूंदरी लेकर आईं,
फूलों की वरमाला।
छोड़ छछूंदर, चूहेजी को,
पहना दी वह माला।
इस पर कुंवर, छछूंदरजी का
भेजा ऊपर सरका।
ऐसा लगा भयंकर बादल,
फटा और फिर बरसा।
बोला, अरी बावरी तूने,
ऐसा क्यों कर डाला।
मुझे छोड़कर चूहे को क्यों,
पहना दी वरमाला।
वह बोली -रे मूर्ख छछूंदर,
क्यों धोती में आया।
जानवरों के क्या उसूल हैं,
तुझे समझ ना आया।
सभी जानवर रहते नंगे,
यह कानून बना है।
जो कपड़े पहने रहते हैं,
उनसे ब्याह मना है।
गाय (Poem on Cow in Hindi)
साँझ ढलने
और इतना अन्धेरा घिरने पर भी
घर नहीं लौटी गाय
बरसा में भीगती मक्का में होगी
या किसी बबूल के नीचे
पानी के टपके झेलती
पाँवों के आसपास
सरसराते होंगे साँप-गोहरे
कैसा अधीर बना रही होगी उसे
वन में कड़कती बिजली रो तो नहीं रही होगी
दूध थामे हुए थनों में
कैसा भयावह है अकेले पड़ जाना
वर्षा-वनों में
जीवन में जब दुखों की वर्षा आती है
इतने ही भयावह ढंग से अकेला करते हुए
घेरती है जीवनदायी घटाएँ
शेर (Poem on Lion in Hindi)
झुमलोॅ-झुमलोॅ की रं आवै
जंगल के राजा कहलावै।
गर्दन पर लटकै छै बाल
भूरा रंग के सौंसे खाल।
कमरोॅ सें धौने छै भागी
जीभ छेकै कि लागै कटारी।
झुण्ड बनाय केॅ रहलोॅ शेर
कोसो चलै छै रातिये बेर।
शेर दहाड़ै, दै नै हाँक
आगिन रं चमकै छै आँख।
जानवर (Hindi Poems On Animals)
मेरे अन्दर
एक जानवर है
जो मेरे
अन्दर के आदमी को
सताता है
धमकाता है
और डराए रखता है
फिर भी कई बार
मेरे अन्दर का आदमी
उस दरिंदे की
ज़रूरत महसूस करता है।
जंगल में रहना
मुश्किल है शायद
जानवर हुए बिना!
कुत्ता (Poem on Dog in Hindi)
उसकी सारी शख्सियत
नखों और दाँतों की वसीयत है
दूसरों के लिए
वह एक शानदार छलांग है
अँधेरी रातों का
जागरण है नींद के खिलाफ़
नीली गुर्राहट है
अपनी आसानी के लिए तुम उसे
कुत्ता कह सकते हो
उस लपलपाती हुई जीभ और हिलती हुई दुम के बीच
भूख का पालतूपन
हरकत कर रहा है
उसे तुम्हारी शराफ़त से कोई वास्ता
नहीं है उसकी नज़र
न कल पर थी
न आज पर है
सारी बहसों से अलग
वह हड्डी के एक टुकड़े और
कौर-भर
(सीझे हुए) अनाज पर है
साल में सिर्फ़ एक बार
अपने खून से ज़हर मोहरा तलाशती हुई
मादा को बाहर निकालने के लिए
वह तुम्हारी ज़ंजीरों से
शिकायत करता है
अन्यथा, पूरा का पूर वर्ष
उसके लिए घास है
उसकी सही जगह तुम्हारे पैरों के पास है
मगर तुम्हारे जूतों में
उसकी कोई दिलचस्पी नही है
उसकी नज़र
जूतों की बनावट नहीं देखती
और न उसका दाम देखती है
वहाँ वह सिर्फ़ बित्ता-भर
मरा हुआ चाम देखती है
और तुम्हारे पैरों से बाहर आने तक
उसका इन्तज़ार करती है
(पूरी आत्मीयता से)
उसके दाँतों और जीभ के बीच
लालच की तमीज़ जो है तुम्हें
ज़ायकेदार हड्डी के टुकड़े की तरह
प्यार करती है
और वहाँ, हद दर्जे की लचक है
लोच है
नर्मी है
मगर मत भूलो कि इन सबसे बड़ी चीज़
वह बेशर्मी है
जो अन्त में
तुम्हें भी उसी रास्ते पर लाती है
जहाँ भूख –
उस वहशी को
पालतू बनाती है।
जंगलों से चले जंगली जानवर
Poems On Animals In Hindi
जंगलों से चले जंगली जानवर
शहर में आ बसे जंगली जानवर
आदमी के मुखौटे लगाए हुए
हर कदम पर मिले जंगली जानवर
आप भी तीसरी आँख से देखकर
खुद ही पहचानिए जंगली जानवर
एक औरत अकेली मिली जिस जगह
मर्द होने लगे जंगली जानवर
आप पर भी झपटने ही वाला है वो
देखिए…देखिए..जंगली जानवर!
बन्द कमरे के एकान्त में प्रेमिका
आपको क्या कहे-जंगली जानवर!
आजकल जंगलों में भी मिलते नहीं
आदमी से बड़े जंगली जानवर
जानवरों का मेला (Animals Poem in Hindi)
शोर मचा अलबेला है,
जानवरों का मेला है!
वन का बाघ दहाड़ता,
हाथी खड़ा चिंघाड़ता।
गधा जोर से रेंकता,
कूकूर ‘भों-भों’ भौंकता।
बड़े मजे की बेला है,
जानवरों का मेला है।
गैा बँधी रँभाती है,
बकरी तो मिमियाती है।
घोड़ा हिनहिनाए कैसा,
डोंय-डोंय डुंडके भैंसा।
बढ़िया रेलम-रेला है,
जानवरों का मेला है!
घूम हाथी, झूम हाथी
हाथी झूम-झूम-झूम,
हाथी घूम-घूम-घूम!
राजा झूमें रानी झूमें, झूमें राजकुमार,
घोड़े झूमें फौजें झूमें, झूमें सब दरबार!
झूम झूम घूम हाथी, घूम झूम-झूम हाथी!
हाथी झूम-झूम-झूम,
हाथी घूम-घूम-घूम!
धरती घूमें, बादल घूमें सूरज चाँद सितारे!
चुनिया घूमें, मुनिया घूमें, घूमें राज दुलारे!
झूम-झूम घूम हाथी, घूम झूम-झूम हाथी!
हाथी झूम-झूम-झूम!
हाथी घूम-घूम-घूम!!
राज महल में बाँदी झूमें, पनघट पर पनिहारी,
पीलवान का अंकुश घूमें, सोने की अम्बारी!
झूम झूम, घूम हाथी, घूम झूम-झूम हाथी!
हाथी झूम-झूम-झूम!
हाथी घूम-घूम-घूम!
हाथी का जूता (Poem on Elephant in Hindi)
एक बार हाथी दादा ने
खूब मचाया हल्ला,
चलो तुम्हें मेला दिखला दूँ-
खिलवा दूँ रसगुल्ला।
पहले मेरे लिए कहीं से
लाओ नया लबादा,
अधिक नहीं, बस एक तंबू ही
मुझे सजेगा ज्यादा!
तंबू एक ओढ़कर दादा
मन ही मन मुसकाए,
फिर जूते वाली दुकान पर
झटपट दौड़े आए।
दुकानदार ने घबरा करके
पैरों को जब नापा,
जूता नहीं मिलेगा श्रीमन्-
कह करके वह काँपा।
खोज लिया हर जगह, नहीं जब
मिले कहीं पर जूते,
दादा बोले-छोड़ो मेला
नहीं हमारे बूते!
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