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विवादास्पद धर्मगुरु आचार्य रजनीश (ओशो) की जीवनी

अध्यात्मिक गुरु ओशो की जीवनी (Osho Biography in Hindi): ओशो एक ऐसे आध्यात्मिक गुरू रहे हैं, जिन्होंने ध्यान की अतिमहत्वपूर्ण विधियाँ दी। ओशो के चाहने वाले पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। इन्होंने ध्यान की कई विधियों के बारे बताया तथा ध्यान की शक्ति का अहसास करवाया है।

हमें ध्यान क्यों करना चाहिए? ध्यान क्या है और ध्यान को कैसे किया जाता है। इनके बारे में ओशो ने अपने विचारों में विस्तार से बताया है। इनकी कई बार मंच पर निंदा भी हुई लेकिन इनके खुले विचारों से इनको लाखों शिष्य भी मिले। इनके निधन के 30 वर्षों के बाद भी इनका साहित्य लोगों का मार्गदर्शन कर रहा है।

Osho Biography in Hindi
osho ka jivan parichay

आज हम इस लेख में ओशो बायोग्राफी इन हिंदी (Rajneesh Osho Biography in Hindi) विस्तार पूर्वक जानने वाले है। इस लेख में हम रजनीश ओशो का जीवन परिचय जानने के साथ ही ओशो को अपने जीवन में किन-किन समस्यों का सामना करना पड़ा और ओशो की मृत्यु कैसे और कब हुई (osho wiki hindi)। आप इस लेख को अतं तक जरूर पढ़े।

ओशो का जीवन परिचय | Osho Biography in Hindi

ओशो की जीवनी एक नजर में

नामआचार्य रजनीश, ओशो
वास्तविक नामरजनीश चन्द्रमोहन जैन
जन्म और जन्मस्थान11 दिसम्बर 1931, कुचवाड़ा (मध्यप्रदेश)
पिता का नामबाबूलाल जैन
माता का नामसरस्वती जैन
कार्यक्षेत्रआध्यात्मिक गुरू
निधन19 जनवरी 1990, पुणे (महाराष्ट्र)
निधन का कारणकंजेस्टिव हार्ट फैल्योर
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ओशो से पूर्व लोगों ने बहुत से संतों, मनोवैज्ञानिकों, दार्शनिकों आदि को पढ़ा या सुना होगा, लेकिन ओशो ने उनके संदेशों के वास्तविक अर्थों को समझाया। ओशो ने सही अर्थों में इस जगत को मनुष्यता का नया अर्थ दिया, कैसे इस बोझपूर्ण जीवन को बोधपूर्ण बनाया जाए इसकी नई सीख दी।

सदियों से चली आ रही रूढिवादी सोच और मान्यताओं को नया अर्थ देने का काम ओशो द्वारा ही किया गया तथा धर्म को नई परिभाषा दी। ओशो ने सिखाया कि कैसे बाहर और भीतर के जगत के साथ तालमेल बैठाकर जीवन को सुंदर बनाया जा सकता है।

ओशो (osho hindi) ने ऐसी ध्यान की विधियों से परिचय करवाया जिससे मनुष्य अपने अंतस की गहराइयों में पहुँचकर जीवन के अर्थों को समझ सके। ओशो ने हमेशा जोर दिया कि जीवन जैसा हैं उसे वैसा ही स्वीकार करो, इसे बदलने की चेष्टा मत करो। परिस्थतियों को बदलने और उससे भागने की बजाय ओशो ने सिखाया कि कैसे इन सबसे प्रति जागरूक होकर इससे परे हुआ जा सकता है।

ओशो अपने पीछे साहित्य का इतना बड़ा भंडार छोड़कर गये हैं कि आप कुछ भी पढ़ो आपको लगेगा कि ओशो इसके बारे में पहले ही बता चुके हैं। ओशो को सुनने और पढ़ने पर आपको ऐसा लगता हैं कि जैसे ओशो ने यह मेरे लिए ही बोला है।

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Osho Biography in Hindi

ओशो किसी भी पुरानी परम्परा का हिस्सा नहीं, ओशो से एक नए युग का आरम्भ होता है, ओशो पूरब और पश्चिम के बीच का सेतु है। ओशो द्वारा एक नई मनुष्यता का जन्म हुआ है जो अतीत की धारणाओं से पूर्णतया मुक्त है।

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ओशो का जन्म और शिक्षा (Osho Life Story Hindi)

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ओशो के बचपन का चित्र

ओशो का जन्म 11 दिसम्बर 1931 को मध्यप्रदेश के एक छोटे से गाँव कुचवाड़ा (Osho Birth Place) में हुआ। ओशो का पूरा नाम व बचपन का नाम “रजनीश चन्द्रमोहन जैन” (Rajneesh Chandra Mohan Jain) था। ओशो के जन्म के समय एक विचित्र घटना घटी, कहते हैं कि ओशो जन्म के तीन दिनों तक न तो रोये और न अपनी माता का दूध पिया इससे उनके घरवाले चिंतित हो उठे।

इसके बाद ओशो (osho life story hindi) के नाना जो ओशो के काफी करीब रहे उन्होंने ओशो की माँ को समझाया की तुम नहाओ और इसके बाद इसे दुसरे कमरे में लेकर जाओ वो तुम्हारा दूध पिएगा और वाकई में ऐसा ही हुआ। इससे ओशो के नाना और ओशो की माँ को अंदाजा हो गया था कि उनके यहाँ पैदा हुआ बच्चा कोई साधारण बच्चा नहीं है।

ओशो का विद्रोही बचपन और स्कूली शिक्षा (About Osho in Hindi)

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ओशो अपने माता-पिता के साथ

ओशो बचपन से ही विद्रोही प्रवृति के थे, उनको इतनी आसानी से किसी भी बात के लिए राजी करना आसान नहीं था। बरसात के समय विकराल रूप में बहती और उफनती नदियों को तैरकर पार करना ओशो के लिए साधारण सी बात थी।

वे बचपन से ही स्वतंत्र और निर्भीक प्रवृति के थे। वे अंधभक्तों की भीड़ के अगुवा बने बैठे तथाकथित महात्माओं से भरी भीड़ में तर्क करने से नहीं घबराते थे, उनके तीखे सवालों से पंडित और पुरोहित घबरा जाते थे।

ओशो युवावस्था के दौरान

ओशो विलक्षण प्रतिभा के धनी थे जो उन्हें अपनी उम्र के अन्य बच्चों से अलग बनाती थी, उनकी सदियों से चली आ रही सोच और व्यवस्था को बदलने की कोशिश किसी क्रांति से कम नहीं थी।

बचपन में स्कुल के दौरान वे शिक्षकों से ऐसे सवाल करते थे जो उनकी समझ से परे थे, निरंतर ऐसे सवालों से परेशान होकर स्कूल प्रशासन ने उनके क्लास में बैठने पर पाबंदी लगा दी और नगरपालिका से शिकायत करी की इस बच्चे को आगे से स्कूल नहीं आने दिया जाये। इस पर नगरपालिका ने हस्तक्षेप किया और स्कूल प्रबंधन से कहा कि यह जिज्ञासु बच्चा हैं इसे पढ़ने दिया जाए। वे स्कूल में एग्जाम में सबसे अधिक अंक प्राप्त कर वे शिक्षकों को हैरान कर देते थे।

ओशो की कॉलेज शिक्षा और संबोधि (Osho History in Hindi)

ओशो को 21 मार्च 1953 को परम जागरण का अनुभव हुआ जिसे संबोधि कहा जाता है, इस संबंध में ओशो का व्यक्तव हैं कि अब मैं किसी भी खोज में नहीं हूँ, अस्तित्व ने अपने समस्त द्वार मेरे लिए खोल दिए है।” इस घटना के दौरान ओशो मध्यप्रदेश के जबलपुर में कॉलेज में दर्शनशास्त्र के विद्यार्थी थे, संबोधि के बाद भी उन्होंने अपनी शिक्षा जारी रखी और सन 1957 में सागर विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में प्रथम श्रेणी और गोल्डमेडलिस्ट रहकर एम.ए की उपाधि प्राप्त की।

अपने शिक्षकों के साथ ओशो सबसे दायीं ओर (धोती में)

इसके बाद उन्होंने कुछ सालों तक जबलपुर विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में काम किया। वे छात्रों के बीच “आचार्य रजनीश” के नाम से लोकप्रिय थे। इस दौरान वे सम्पूर्ण भारत में भ्रमण कर आध्यामिक जन-जागरण की एक लहर फैला रहे थे। ओशो ने अपना जीवन का 25 प्रतिशत हिस्सा यात्राओं में गुजरा। उनके क्रांतिकारी प्रवचनों को सुनने के लिए लोगों की भारी भीड़ इकठ्ठी होती थी, उनकी उपस्थिति में एक प्रकार का आकर्षण था जो लोगों को अपनी और खींचने को मजबूर कर देती थी।

ओशो का कॉलेज के प्रोफेसर पद से इस्तीफा और भारत भ्रमण

भारत भ्रमण के दौरान प्रवचन देते ओशो

ओशो ने सन 1966 को विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पद से इस्तीफा दे दिया और अपना बाकी का जीवन उन लोगों को समर्पित कर दिया जो स्वयं को जानने और अध्यात्म के गहरे अर्थों से परिचित होना चाहते थे। ओशो का मानना था कि जो अस्तित्व ने जो संबोधि का खजाना उन पर लुटाया है उसके हक़दार वे सब हैं जिन्होनें मनुष्य योनी में जन्म लिया है।

ओशो ने अपने सन्यासियों को “जोरबा दी बुद्धा” की परिभाषा दी, यह एक ऐसा मनुष्य है जो जोरबा की तरह भौतिक जीवन का पूरा आनंद लेना जानता है और वह गौतम बुद्ध की तरह भी गहन मौन में उतरने की कला जानता हैं। जोरबा दी बुद्धा भौतिक और अध्यात्मिक दोनों तरह से समृद्ध व्यक्ति है। वह जीवन को खंड-खंड में ने देखकर उसकी सम्पूर्णता को स्वीकार करता है।

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श्री रजनीश आश्रम की स्थापना (Osho International Foundation)

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श्री रजनीश आश्रम पुणे

पुरे भारत में भ्रमण करने के बाद ओशो सन 1970 में मुंबई में रहने के लिए आ गये। ओशो के मुंबई में आने के बाद भारतीयों के साथ-साथ विदेशी लोगों की भी भारी भीड़ ओशो की देशनाओं को समझने में उत्सुक होने लगी। इसी दौरान ओशो ने हिमाचल प्रदेश के मनाली में अपने एक ध्यान शिविर में नव-सन्यास की दीक्षा देना शुरू किया। इसके पश्चात वे आचार्य रजनीश से “भगवान श्री रजनीश” के रूप में पहचाने जाने लगे।

ओशो मनाली शिविर के दौरान नव-सन्यास दीक्षा

ओशो 1974 को अपने बहुत से अनुयाइयों के साथ हमेशा के लिए पूना रहने के लिए आ गये और यहाँ “श्री रजनीश आश्रम” की स्थापना की। पूना आने के बाद उनकी लोकप्रियता भारत के साथ-साथ विदेशों में भी बढ़ने लगी। पूना में रहकर ओशो ने अपनी शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार जोरों से किया। उन्होंने अपने प्रवचनों में मानव-चेतना के विकास के हर पहलु को उजागर किया। जीवन का ऐसा कोई पहलु नहीं हैं जिस पर ओशो का प्रवचन उपलब्ध न हो। ओशो हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओँ में प्रवचन उपलब्ध है।

अमेरिका के ऑरेगन में रजनीशपुरम् की स्थापना

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अमेरिका में रजनीशपुरम् का एक दृश्य

1980 में ओशो के विदेशी सन्यासियों ने अमेरिका के ओरेगन में 64 हजार एकड़ बंजर जमीन खरीदकर एक कम्यून का निर्माण किया जहाँ ओशो को रहने के लिए आमंत्रित किया गया। ओशो हमेशा अपने प्रवचनों में कहते थे कि वे एक ऐसे कम्यून का निर्माण करना चाहते हैं जहाँ मनुष्य के सम्पूर्ण विकास की परिकल्पना हो और मनुष्य अपनी पूर्ण खिलावट के रूप में प्रकट हो सके। ओशो का यह कम्यून सैन फ्रांसिस्को से तीन गुणा बड़ा था।

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रजनीशपुरम

ओशो 1980 में भारत छोड़कर अपने बहुत से सन्यासियों के साथ अमेरिका चले गये। ओशो के सभी संन्यासी उस 64 हजार एकड़ बंजर जमीन को सुंदर जगह के रूप में बदलने के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे थे।

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रजनीशपुरम पोस्ट ऑफिस  – Image Credit: oregondigital.org

इसी मेहनत का नतीजा रहा कि ओरेगन की सुनसान और बंजर घाटी देखते ही देखते सुंदर और हरे-भरे स्वर्ग के रूप में तब्दील हो गयी। ओशो के अनुयाइयों द्वारा बसाई गयी इस जगह को नाम दिया गया “रजनीशपुरम्”। भगवान रजनीश की यह एक ऐसी जगह थी जहाँ उनके पास अपने कई निजी विमान थे उनका अपना एयरपोर्ट था और साथ ही था रॉयल्स रॉयल कारों का एक पूरा काफिला।

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ओशो की रॉयल्स रोयस कारों का काफिला

अमेरिका में रहने के दौरान ओशो की लोकप्रियता में तेजी से इजाफा होने लगा ओशो से प्रभावित होने वालों में ज्यादातर युवा वर्ग था जो तन, मन और धन से ओशो के लिए पूरी तरह से समर्पित थे। इस तरह से एक विदेशी व्यक्ति की बढ़ती लोकप्रियता के चलते अमेरिकी सरकार घबरा गयी।

अमेरिका सरकार द्वारा ओशो को जेल भेजना और अमेरिका छोड़ना

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ओशो हथकड़ियों में गिरफ्तारी के दौरान

धीरे-धीरे अमेरिकी सरकार ने ओशो के आश्रम पर शिकंजा कसने लगी, ओशो के यहाँ आने वाले सन्यासियों को सरकार ने वीसा देना बंद दिया और आश्रम में गैर-कानूनी गतिविधियों की अफवाहें भी फैलाई जाने लगी और भगवान् रजनीश की छवि को धूमिल करने की कोशिशें की जाने लगी।

ओशो ने इस संबंध कहा हैं कि

मेरी एक भी बात का जवाब पश्चिम में नहीं हैं, मैं तैयार था प्रेसिडेंट रोनाल्ड रीगन (अमेरिकी राष्ट्रपति) से वाइट हाउस में डिस्कस करने को खुले मंच पर क्योंकि वे फंडामेंटलिस्ट इसाई हैं, वे मानते हैं कि इसाई धर्म ही एक मात्र धर्म हैं बाकी सब धर्म धोधे हैं, संभवतः मैं उन्हें दुश्मन जैसा लगा।“

आख़िरकार ओशो पर झूठे आरोप लगाकर अमेरिकी सरकार द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया और इस दौरान इन्हें पूरे 12 दिनों तक अज्ञातवास में रखा गया। ओशो का इस तरह से जेल में जाना उनके अनुयाइयों के लिए किसी गहरे सदमें से कम नहीं था। इसके बाद यह तय हो गया था कि अब भगवान रजनीश अमेरिका में नहीं रहेंगे।

14 नवम्बर 1985 को ओशो ने अमेरिका छोड़ दिया और इस दौरान ओशो विश्व के अलग-अलग देशों में रहने के उद्देश्य से भ्रमण किया। लेकिन अमेरिकी सरकार के दबाव में 21 देशों ने अपने यहाँ रहने की इजाजत नहीं दी तो कुछ देशों ने ओशो के देश में प्रवेश पर ही प्रतिबन्ध लगा दिया।

ओशो का पुन: भारत आगमन (Osho Return to India)

इसके पश्चात 1987 में ओशो पुन: अपने आश्रम और अपने देश भारत लौट आये, उनका पुणे आश्रम आज “ओशो इंटरनेशनल कम्यून” के नाम से जाना जाता है। भारत पहुंचकर ओशो ने एक बार फिर प्रवचन देना शुरू किया। ओशो अपने प्रवचनों में पाखंडों और मानवता के प्रति होने वाले षड्यंत्रों से पर पर्दा उठाने लगे।

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बॉलीवुड अभिनेता विनोद खन्ना के साथ ओशो

इस दौरान भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के बुद्धिजीवियों ने ओशो के प्रति अपने लेखों में गैर-पक्षपातपूर्ण चिंतन अपनाया। अक्सर समाचार पत्रों और मैगजीन में ओशो के लेख प्रकाशित होने लगे। कला वर्ग से जुड़े लोग ओशो आश्रम पुणे में आने लगे। मनुष्यता का चिर-आकांक्षित सपना पूरा होते देखकर लोगों को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं होता था।

ओशो द्वारा भगवान् शब्द का त्याग और अपनी मृत्यु का पूर्व अनुमान

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प्रेमियों के संग की मौन बैठक में ओशो (Osho Biography in Hindi)

26 दिसंबर 1988 में ओशो ने अपने नाम के आगे से “भगवान” शब्द को हटा दिया और आश्रम के बुद्ध सभागार में संध्यां कालीन मीटिंग (सत्संग) में सभी प्रेमियों ने अपने सद्गुरु को “ओशो” नाम से पुकारने का निर्णय लिया।

इसके बाद ओशो की तबियत बिगड़ने लगी थी, उनका शरीर कमजोर और भीतर से क्षीण होता जा रहा था। ऐसा माना जाता हैं कि उनकी इस बिगड़ती तबियत का कारण था 1985 में अमेरिकी जेल के दौरान “थेलियम” नामक धीमा जहर दिया गया था और उनके शरीर को प्राण-घातक रेडिएशन से गुजरा गया था।

इसी दौरान ओशो ने अपने प्रवचनों की संख्या अचानक से बढ़ा दी। ऐसा माना जाता हैं कि शायद ओशो को इस बात का अंदाजा हो गया था कि अब उनके पास ज्यादा वक्त नहीं है।

ओशो पुणे आश्रम में हर रोज रात्रि सत्संग में अपने अनुयाइयों के साथ ध्यान, सत्संग और प्रवचन करते रहे। ओशो की आवाज में एक प्रकार का आकर्षण था, उनकी आवाज में जादू था जिसनें लाखों लोगों को प्रभावित किया। लेकिन 1989 ने यह जादुई आवाज अचानक से खामोश हो गयी। ओशो का शरीर अत्यधिक कमजोर हो गया था, इस वजह से उन्होंने प्रवचन देना बंद कर दिया और केवल रात्रि सत्संग में कुछ समय के लिए अपने सन्यासियों के साथ मौन बैठक में भाग लेने लगे।

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ओशो का अपने संयासियों को अंतिम नमस्कार

इस रात्रि सत्संग को ओशो ने “ओशो वाइट रॉब ब्रदरहुड” नाम दिया। ओशो 16 जनवरी 1990 तक हर रोज रात्रि सत्संग में भाग लेते रहे और 17 जनवरी को केवल नमस्कार करके सत्संग से वापस चले गये।

18 जनवरी 1990 की पुणे आश्रम में रात्रि सत्संग के दौरान उनके निजी चिकित्सक स्वामी प्रेम अमृतो ने सूचना दी कि ओशो के शरीर में दर्द बहुत बढ़ गया इसलिए वे हमारे बीच नहीं आ सकते हैं। लेकिन अपने कमरे में ही सात बजे से हमारे साथ ध्यान में बैठेंगे।

ओशो की आखिरी विदाई का महोत्सव

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ओशो का शरीर

19 जनवरी 1990 को ओशो अपने इस जर्जर और पीड़ादायक शरीर को छोड़कर हमेशा के लिए अस्तित्व में विलीन हो गये। जिसकी घोषणा 19 जनवरी के सांध्य सभा के दौरान की गयी। ओशो की इच्छा थी कि जब वे शरीर छोड़े तो उनके प्रेमी रोयें नहीं दुखी न हो उनकी मृत्यु को एक महोत्सव के रूप में मनाएं। इसी के अनुरूप ओशो के शरीर को उनके पुणे आश्रम के गौतम दि बुद्ध ऑडिटोरियम हॉल में दस मिनिट के लिए रखा गया।

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बड़ी मौज से सोया हैं सबको जगाने वाला

करीब दस हजार ओशो के शिष्यों और प्रेमियों ने अपने प्यारे सद्गुरु की आखिरी विदाई को उत्सव, संगीत-नृत्य, ध्यान और मौन के रूप में मनाया। इसके बाद उनका शरीर दाह क्रिया के लिए ले जाया गया।

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ओशो का शरीर (Osho Biography in Hindi)

21 जनवरी 1990 को उनके अस्थि-फूल के कलश महोत्सवपूर्वक कम्यून में लाकर च्वान्ग्त्सू हॉल में निर्मित संगमरमर की समाधी भवन में स्थापित किया। जिस पर स्वर्णिम अक्षरों से अंकित हैं।

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ओशो की समाधी (Osho Biography in Hindi)

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De. 11, 1931 – Jan. 19, 1990

आख़िरकार ओशो का इस धरती पर आने का मकसद पूरा गया था, लोगों को उनकी बातें समझ आने लगी थी। ओशो द्वारा सिखाई गयी बातें जीवन और मृत्यु को उत्सव की मानना, प्रतिक्षण जीवन को जीना लोग यह समझ चुके थे।

आज से करीब 30 साल पहले ओशो के समकालीन लोगों को शायद ओशो की बातें समझ में नहीं आई होगी और समाज के लिए इतनी आसानी से उनकी बातों को स्वीकारना आसान नहीं रहा होगा। लेकिन आज ओशो पहले की तुलना कहीं अधिक जीवित है।

ओशो का अपने प्रेमियों को आखिरी सन्देश

तुम मेरे शरीर को जाके, अर्थी पर चढ़ाके जला देना, लेकिन अगर किसी ने हृदय से भरकर मुझसे प्रश्न पुछा, तो उसे उत्तर मिल जायेगा

क्योंकि मैं तो हूँ, मैं तो रहूँगा, मुझे जलाने का कोई उपाय नहीं हैं और मुझे मिटाने का कोई उपाय नहीं हैं”

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ओशो के अनसुने और रोचक तथ्य (Unknown Facts of Osho in Hindi)

  • ओशो को जूते पहनना पसंद नहीं था इसलिए वे हमेशा चप्पल ही पहनते थे।
  • जब ओशो का जन्म हुआ, उसके तीन दिन बाद तक ओशो ना ही रोये और ना ही हँसे। जब तीन दिन के बाद ओशो को नहलाया गया तब ओशो पहली बार रोये थे।
  • ओशो अपने बाएं हाथ से लिखते थे।
  • ओशो फ़ोटो खिंचवाने और सुंदर से पेन रखने के शौकीन थे।
  • ओशो को किसी भी काम में देरी बिलकुल पसंद नहीं थी।
  • इनको किताबें पढना बहुत पसंद था इसलिए कभी-कभी वे किताबे खरीदने के लिए चोर बाजार चले जाते थे।
  • ओशो अपने खाने के लिए सोने और चांदी के बर्तन प्रयोग में लेते थे।
  • ओशो को धुल और मिट्टी से एलर्जी थी और उनको दुर्गन्ध वाली जगह पर नींद नहीं आती थी।
  • ओशो बहुत जिज्ञासु थे, उनको हर बात जानने कि उत्सुकता बनी रहती थी। एक बार ओशो 12 वर्ष की उम्र रात के समय ओशो श्मशान यह जानने के लिए चले जाते है कि मरने के बाद व्यक्ति का क्या होता है और वह कहाँ जाता है।
  • ओशो ने एक इन्टरव्यू में कहा था कि उनको 365 रोल्स रॉयल कारें खरीदनी है। एक समय ऐसा था कि उनके पास 90 से भी अधिक रोल्स रॉयल कारें थी।
  • ओशो को पढ़ना लिखना बहुत पसंद था। जब वह किशोरावस्था में थे तो एक दिन में 3-3 किताबे पढ़ लिया करते थे। वह जर्मनी, मार्क्स, और भारतीय दर्शन की पुस्तकें पढ़ना अच्छा लगता था।
  • ओशो हमेशा से ही लग्जरी जीवन जीना पसंद करते थे। एक बार बचपन में उन्होंने के जिद्द पकड़ ली थी कि उनको स्कूल हाथी पर बैठकर ही जाना है। उनकी जिद्द के आगे उनके पिता को हाथी मंगवाकर, उनको हाथी पर स्कूल छोड़ना पड़ा।
  • ओशो नदी में नहाते-नहाते अपने दोस्तों को पानी में डूबा देते थे। इसको लेकर दोस्तों से विवाद भी हो जाता था। इस पर उनका कहना था कि वो देखना चाहते है कि मरना क्या होता है।
  • ओशो के पिता के पास 1400 एकड़ जमीन थी।
  • ओशो ने अपने पिता को भी सन्यास दिलाया था, सन्यास लेते ही ओशो के पिता उनके पैरों में पड़कर रोने लगे थे।
  • ज्योतिषियों ने हर सातवें वर्ष में 21 साल तक उनकी मृत्यु के योग के बारे में बताया था। जब ओशो 14 वर्ष के थे तो उन्होंने एक मंदिर में 7 दिनों तक लेटकर अपनी मौत का इंतजार किया। वहां पर एक सांप भी आया लेकिन उसने कुछ नहीं किया।

ओशो की पुस्तके (Osho Books in Hindi)

अकथ कहानी प्रेम की
फरीद-वाणी पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं दस OSHO Talks

अकथ कहानी प्रेम की
फरीद-वाणी पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं दस OSHO Talks

अजहूं चेत गंवार
पलटू-वाणी पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं इक्कीस OSHO Talks

अंतर की खोज
जीवन के विभिन्न पहलुओं पर सूरत में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं चार OSHO Talks

अंतर्यात्रा
ध्यान साधना शिविर, आजोल में ध्यान-प्रयोगों एवं प्रश्नोत्तर सहित हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं आठ OSHO Talks

अंतर्वीणा
विभिन्न मित्रों व प्रेमियों को ओशो द्वारा लिखे गए 150 पत्रों का संग्रह

अथातो भक्ति जिज्ञासा, भाग 1
शांडिल्य के भक्ति-सूत्रों पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं 40 OSHO Talks में से 20 (01 से 20) OSHO Talks का संग्रह

अथातो भक्ति जिज्ञासा, भाग 2
शांडिल्य के भक्ति-सूत्रों पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं 40 OSHO Talks में से 20 (21 से 40) OSHO Talks का संग्रह

अध्यात्म उपनिषद
ध्यान साधना शिविर, माउंट आबू में हुई सीरीज के अंतर्गत अध्यात्म उपनिषद के सूत्रों पर दी गईं सत्रह OSHO Talks

अनंत की पुकार
ओशो के कार्य में संलग्न कार्यकर्ताओं के बीच लोनावला, नारगोल, माथेरान एवं मुंबई में प्रश्नोत्तर सहित दी गईं चौदह OSHO Talks का संग्रह

अनहद में बिसराम
प्रश्नोत्तर सीरीज के अंतर्गत पुणे में दी गईं दस OSHO Talks

अपने माहिं टटोल
ध्यान साधना शिविर, उदयपुर में प्रश्नोत्तर सहित हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं दस OSHO Talks

अमी झरत बिगसत कंवल
दरिया-वाणी पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं चौदह OSHO Talks

अमृत की दिशा
ध्यान साधना पर पुणे एवं मुंबई में दी गईं पांच OSHO Talks का संग्रह

अमृत द्वार
जीवन के विभिन्न पहलुओं पर पुणे में प्रश्नोत्तर सहित हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं पांच OSHO Talks

अमृत वाणी
ओशो द्वारा विविध बिंदुओं पर लिखे गए तैंतीस क्रांति-सूत्रों का संग्रह

अरी, मैं तो नाम के रंग छकी
जगजीवन साहिब के वचनों पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं दस OSHO Talks

असंभव क्रांति
ध्यान साधना शिविर, माथेरान में प्रश्नोत्तर सहित हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं दस OSHO Talks

आंखों देखी सांच
जीवन के विभिन्न पहलुओं पर पुणे में प्रश्नोत्तर सहित हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं पांच OSHO Talks

आपुई गई हिराय
प्रश्नोत्तर सीरीज के अंतर्गत पुणे में दी गईं दस OSHO Talks

ईशावास्योपनिषद
ध्यान साधना शिविर, माउंट आबू में हुई सीरीज के अंतर्गत ईशावास्योपनिषद के सूत्रों पर दी गईं तेरह OSHO Talks

उड़ियो पंख पसार
प्रश्नोत्तर सीरीज के अंतर्गत पुणे में दी गईं दस OSHO Talks

उत्सव आमार जाति, आनंद आमार गोत्र
प्रश्नोत्तर सीरीज के अंतर्गत पुणे में दी गईं दस OSHO Talks

उपासना के क्षण
मित्रों व प्रेमियों के छोटे-छोटे समूहों के बीच प्रश्नोत्तर सहित ओशो द्वारा दी गई ग्यारह अंतरंग वार्ताओं का संग्रह

एक एक कदम
सामाजिक और राजनैतिक समस्याओं पर प्रश्नोत्तर सहित दी गईं सात OSHO Talks का संग्रह

एक ओंकार सतनाम
गुरु नानकदेव के ‘जपुजी’ पर पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं बीस OSHO Talks

एक नया द्वार
जीवन के विभिन्न पहलुओं पर इंदौर में दी गईं पांच OSHO Talks का संग्रह

FAQ

ओशो का जन्म कब और कहां हुआ?

ओशो का जन्म 11 दिसम्बर 1931 को मध्यप्रदेश के एक छोटे से गाँव कुचवाड़ा में हुआ।

ओशो का असली नाम क्या था?

ओशो का पूरा नाम व बचपन का नाम “रजनीश चन्द्रमोहन जैन” था।

ओशो की समाधि पर क्या लिखा है?

Never Born
Never Died
Only Visited this
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De. 11, 1931 – Jan. 19, 1990

ओशो की मृत्यु कब हुई थी?

19 जनवरी 1990

ओशो की उम्र कितनी है?

58 वर्ष (11 दिसम्बर 1931–19 जनवरी 1990)

रजनीश की मौत कैसे हुई?

18 जनवरी 1990 की पुणे आश्रम में रात्रि सत्संग के दौरान उनके निजी चिकित्सक स्वामी प्रेम अमृतो ने सूचना दी कि ओशो के शरीर में दर्द बहुत बढ़ गया इसलिए वे हमारे बीच नहीं आ सकते हैं। लेकिन अपने कमरे में ही सात बजे से हमारे साथ ध्यान में बैठेंगे। 19 जनवरी 1990 को ओशो अपने इस जर्जर और पीड़ादायक शरीर को छोड़कर हमेशा के लिए अस्तित्व में विलीन हो गये। जिसकी घोषणा 19 जनवरी के सांध्य सभा के दौरान की गयी।

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Sawai Singh
Sawai Singh
मेरा नाम सवाई सिंह हैं, मैंने दर्शनशास्त्र में एम.ए किया हैं। 2 वर्षों तक डिजिटल मार्केटिंग एजेंसी में काम करने के बाद अब फुल टाइम फ्रीलांसिंग कर रहा हूँ। मुझे घुमने फिरने के अलावा हिंदी कंटेंट लिखने का शौक है।

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Comments (3)

  1. ऐसे महान पुरुष पर हमें गर्व है जो भारत माँ की भूमि पर जन्म लेकर पूरे भारत वर्ष में ही नही पूरी दुनिया को अपना पहचान प्रगट करने में अपने आप को सामर्थ साबित करके भारत माँ की भूमि को पूरी दुनियां में अवगत कराएं। ऐसे महान कर्मो को मैं दिल से नमन करता हूँ।

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  2. I DON’T HAVE PROPER WORDS TO EXPRESS MY THANKS AND GRATITUDE TOWARDS OSHO. ANOTHER NAME OF EXISTENCE IS OSHO. WHATEVER HE SPOKE, HE DID NOT SPEAK RATHER WORDS HAVE GROWN SPONTANEOUSLY WITHOUT ANY EFFORTS ON PART OF OSHO BECAUSE NATURE WISHED LIKE THAT WITH PURPOSE. IT IS VERY DIFFICULT TO COMMENT UPON OSHO. AT LEAST I CAN NOT SAY ANYTHING ABOUT OSHO. HE IS AN ONLY ALTERNATIVE AVAILABLE TODAY FOR SPIRITUAL JOURNEY

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  3. ओशो जैसा व्यक्ति इस ब्रम्हाण्ड पर ना इससे पहले कभी आया था लेकिन उनके पुनर्जन्म की सम्भावना अधिक है ।।।।।।।आज की वर्तमान स्थिति को देखते हुए ओशो आज उपश्थीत होते तो उनका मार्गदर्शन भरत की जानता के लिय्र बहुत ही उपयोगी साबित होती।।।।
    ओशो प्रेम नमन
    ?????????

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