इस लेख के माध्यम से आपको जिद्दू कृष्णमूर्ति के संपूर्ण जीवन परिचय (Jiddu Krishnamurti Biography Hindi) के बारे में बताएंगे। इस महान दार्शनिक के बारे में जानने के लिए हमारे इस लेख को अंतिम तक अवश्य पढ़ें।
जिद्दू कृष्णमूर्ति एक भारतीय मूल के दार्शनिक लेखक और वक्ता थे। जब थियोसॉफिकल सोसायटी ने जिद्दू कृष्णमूर्ति को ‘विश्व शिक्षक’ के रूप में घोषित किया गया, तब यह बहुत ही छोटी सी उम्र में लोगों के बीच प्रसिद्ध हो गए।
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थियोसॉफिकल सोसायटी का संगठन कृष्णमूर्ति को अपने इस संगठन का मसीहा या यूं कहें इसका कर्ताधर्ता बनाने की जिम्मेदारी सौंपना चाहता था। मगर कृष्णमूर्ति ने अपने आप को इससे अलग कर लिया।
मानसिक अनुभव से प्रेरणा लेते हुए, कृष्णमूर्ति बाद में एक प्रसिद्ध दर्शनिक बने, जिनके आध्यात्मिक विषयों से संबंधित सार्वजनिक व्याख्यान दुनियाभर के श्रोताओं को आकर्षित करते हैं।
कृष्णमूर्ति के विचार संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप, भारत, ऑस्ट्रेलिया और लैटिन अमेरिका में बहुत लोकप्रिय हो चुके थे। भारतीय दर्शनिक कृष्णमूर्ति ने दुनिया भर में कई स्कूलों की स्थापना की।
इसके अतिरिक्त 1928 में कृष्णमूर्ति ने द कृष्णमूर्ति फाउंडेशन की स्थापना की। यही फाउंडेशन दुनिया भर के कई स्कूलों का संचालन भी करती है।
जिद्दु कृष्णमूर्ति का जीवन परिचय (Jiddu Krishnamurti Biography Hindi)
पूरा नाम | जिद्दू कृष्णमूर्ति |
जन्म और जन्मस्थान | 12 मई 1895, तमिलनाडु |
पिता का नाम | जिद्दू नारायनिया |
माता का नाम | संजीवामा |
पेशा | प्रवचनकर्ता, दार्शनिक, लेखक |
धर्म | हिंदू |
नागरिकता | भारतीय |
उपाधि | विश्वगुरु |
भाषा | अंग्रेज़ी, हिन्दी, तमिल |
मृत्यु | 17 फ़रवरी 1986 |
जिद्दू कृष्णमूर्ति का जन्म और प्रारंभिक जीवन
जिद्दू कृष्णमूर्ति का जन्म मद्रास राज्य के मदनपल्ली प्रेसीडेंसी में ब्रिटिश भारत शासनकाल में हुआ। कृष्णमूर्ति की वास्तविक जन्मतिथि के बारे में कोई भी एकमत नहीं है।
लेकिन मैरी लातियंस जिन्होंने जिद्दू कृष्णमूर्ति के जीवन संबंधी सभी कार्यों का वर्णन किया है, उनका दावा है कि कृष्णमूर्ति का जन्म 12 मई 1895 को हुआ था।
कृष्णमूर्ति का जन्म संजीवम्मा और जिद्दू नारायणिया के नामक एक हिंदू ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
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कृष्णमूर्ति ने मानसिक क्रांति ध्यान और समाज में सकारात्मक परिवर्तन के लिए कई प्रयास किए हैं। वे अपने माता-पिता की आठवीं संतान थे। इनके पिता एक थियोसौफिस्ट से और उन्होंने थियोसॉफिकल सोसायटी में एक क्लर्क के रूप में काम करना शुरू किया था।
वर्ष 1903 में कुदप्पा नामक के एक स्थानीय स्कूल में कृष्णमूर्ति का दाखिला किया गया। कृष्णमूर्ति बचपन से ही बौद्धिक रूप से सक्षम माने जाते थे। जब कृष्णमूर्ति की उम्र मात्र 10 वर्ष की थी, तभी इनकी माता का देहांत हो गया।
इसी वजह से इनका पालन-पोषण करने का जिम्मा थियोसॉफिकल सोसायटी ने उठाया। क्योंकि यह सोसाइटी कृष्णमूर्ति के बौद्धिक तेज़ से बहुत ही अच्छी तरह से परिचित थे।
जिद्दू कृष्णमूर्ति का संपूर्ण जीवन सफर (Jiddu Krishnamurti Life Story)
थियोसॉफिकल सोसायटी ने कृष्णमूर्ति और उनके भाई नित्यानंद को भी अपने स्वामित्व में शिक्षा दीक्षा का ग्रहण करवाया। इनकी बेहतर शिक्षा के लिए ही इस सोसाइटी ने इन दोनों भाइयों को विदेश भी भेजा था।
कृष्णमूर्ति ने अपने जीवन में बहुत संघर्ष किया, परंतु उन्होंने बहुत ही कम समय में ही बेहतर अंग्रेजी बोलना सीख लिया था। कृष्णमूर्ति समाज के प्रमुख सदस्यों एवं विशेषकर एनिमेशन के बहुत करीबी बन गए, जिन्होंने उनके समग्र व्यक्तित्व को विकसित करने में अपनी मुख्य भूमिका निभाई।
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बाद में आगे चलकर कृष्णमूर्ति की प्रतिभा से परिचित होकर एनी बेसेंट ने इन्हें कानूनी रूप से अपना पुत्र घोषित किया। वर्ष 1911 में एक अंतरराष्ट्रीय संगठन ‘ऑर्डर ऑफ द स्टार इन द ईस्ट’ की स्थापना की गई। यह ‘विश्व शिक्षक’ के लिए तैयार किया गया एक मंच था, जिसमें कृष्णमूर्ति को इसका प्रमुख बनाया गया था।
वर्ष 1911 से 1914 तक कृष्णमूर्ति और नित्यानंद ने कई यूरोपीय यात्राएं की। इन दिनों के बीच में कृष्णमूर्ति और उनके भाई नित्यानंद के बीच में और भी नजदीकता बनती गई और किसी बीच उन्हें को ओएसई आयोजन सचिव भी बनाया गया।
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कृष्णमूर्ति द्वारा लिखी गई किताबें
1954 में कृष्णमूर्ति द्वारा लिखी उनकी किताबों में से एक “कृष्ण द फर्स्ट एंड लास्ट फ़्रीडम” प्रकाशित हुई थी, जो काफी लोकप्रिय हुई और इसके नौ अलग-अलग भाषाओं में कुल 36 संस्करणों को प्रकाशित किया गया था। यह पुस्तक दुनिया भर के हजार से भी ज्यादा पुस्तकालयों में रखा गया था।
1973 में कृष्णमूर्ति के द्वारा लिखी गई एक आत्मकथा “कृष्णमूर्ति की नोटबुक” प्रकाशित हुई, जो चेतना की स्थिति के बारे में बताती है। यह पुस्तक भी काफी लोकप्रिय हुई।
कृष्णमूर्ति के कुछ प्रमुख दार्शनिक विचार (Jiddu Krishnamurti Quotes)
कृष्णमूर्ति को प्रकृति से बहुत ही गहरा लगाव था और उनके ऊपर प्रकृति का बहुत गहरा प्रभाव भी था। वह चाहते थे कि प्रत्येक व्यक्ति प्रकृति की सुंदरता को समझें और उनको नष्ट ना करें।
कृष्णमूर्ति का विचार था कि शिक्षा केवल पुस्तकों में सीखना और तथ्यों के कंठस्थ करने मात्र के लिए ही नहीं की जाती है।
ईश्वर के अस्तित्व पर उठे प्रश्न का जवाब देते हुए कृष्णमूर्ति के यह विचार है कि ईश्वर है और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार ईश्वर सुंदर, न्याय प्रिय, सर्वशक्तिमान और आनंदाता है। ईश्वर ने मनुष्य को अपने छवि में गढा है। ऐसे में मनुष्य को भी ईश्वर के समान ही सुंदर, शांत और न्यायप्रिय होना चाहिए।
कृष्णमूर्ति कहते हैं कि मनुष्य के अंदर भय उसे उलझा कर रखता है और यह भक्ष दो कारणों से आता है मनुष्य के विचार और उसके दिमाग में समय की अवधारणा। मनुष्य बीते हुए स्मृतियों को याद करके चिंतित होता है और आने वाले समय की भी चिंता करके उलझा रहता है।
उनके अनुसार शिक्षा का मतलब हम इस योग्य बन सके कि पक्षियों के कलंक को सुने और आकाश को देख सके वृक्षों तथा पहाड़ियों के अनुपम सौंदर्य को बहुत ही प्रियतम तरीके से समझ सके।
कृष्णमूर्ति जी की मृत्यु (J. Krishnamurti Death Hindi)
जिद्दू कृष्णमूर्ति की मृत्यु 17 फरवरी 1986 में 90 वर्ष की आयु में हुई थी। इनके बीमारी का कारण कैंसर था। इन्होंने अपने मृत्यु होने के कुछ दिनों पहले ही एक घोषणा की थी कि उनके रहस्य में अनुभव उनके साथ ही मर जाएंगे और कोई भी उनका उत्तराधिकारी नहीं होगा।
वे नहीं चाहते थे कि उनके द्वारा किए गए अनुभवों को कोई अन्य व्यक्ति प्राप्त करें, जिससे वह दुरुपयोग करके मानव जाति को हानि पहुंचाए। कृष्णमूर्ति विभिन्न पुस्तकों, वीडियो और अन्य स्रोतों के माध्यम से लोगों पर प्रभाव डालते थे।
FAQ
कृष्णमूर्ति के विचार अनुसार सत्य एक पथ हीन भूमि Truth is a Pathless Land की भांति है। यदि मनुष्य को सत्य तक पहुंचना है तो इसके लिए कोई भी आपको राजमार्ग नहीं मिलेगा। सत्य मनुष्य के भीतर ही समाहित होता है और यह एक कोने में छुपा होता है, सत्य का केवल अंतरात्मा के जरिए ही अनुभव किया जा सकता है।
कृष्णमूर्ति का कहना है कि कष्ट का संबंध मानव शरीर से है, जबकि दुख एक मानसिक पीड़ा की अनुभूति होती हैं। कष्ट को औषधि के जरिए सही किया जा सकता है परंतु मानसिक पीड़ा को ठीक करने के लिए मनोवैज्ञानिक ढंग से मनुष्य को समझना पड़ता है। भूत और भविष्य की स्मृति दुख का कारण होती है।
कृष्णमूर्ति का मानना है कि भय को मानव शरीर की गंभीर बीमारी का जनक माना जाता है। भय के कारण मानव अपने जीवन में प्रतियोगिताओं और जीवन में आने वाली समस्याओं से लड़ने के बजाय भयभीत हो जाता है। कृष्णमूर्ति के अनुसार आत्मज्ञान के बल पर भय को मुक्त किया जा सकता है।
कृष्णमूर्ति का कहना है कि इंसान को पता नहीं होता है कि जीवन जीने का क्या अर्थ है और वह अपनी मृत्यु से भयभीत रहता है। वे कहते हैं कि मृत्यु दो प्रकार की होती है, शारीरिक मृत्यु और मन की मृत्यु। शारीरिक मृत्यु एक अनिवार्य घटना होती है, जबकि मन की मृत्यु ही वास्तविक मृत्यु हैं।
जिद्दू कृष्णमूर्ति की मृत्यु 17 फरवरी 1986 में 90 वर्ष की आयु में हुई थी।
जे कृष्णमूर्ति के पिता का नाम जिद्दू नारायनिया था।
जे कृष्णमूर्ति का जन्म 12 मई 1895 को तमिलनाडु में हुआ।
जे कृष्णमूर्ति का पूरा नाम जिद्दू कृष्णमूर्ति है।
निष्कर्ष
इन्होंने अपने संपूर्ण जीवन काल में मानव जाति के हित के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य किए हुए हैं। हमें इनके जीवन से महत्वपूर्ण प्रेरणा लेनी चाहिए।
ऐसे महत्वपूर्ण लोगों के बारे में हमें जानना चाहिए और उनके जीवन से प्रेरणा लेकर वास्तविक जीवन में भी सुधार करके आगे बढ़ना चाहिए।
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