ओशो एक आध्यात्मिक गुरु थे, जिन्होंने दुनिया भर के लोगों को ध्यान की शक्ति का एहसास करवाया, ध्यान की कई विधियों के बारे में भी बताया। अपने जीवन काल में यह एक विवादस्पद, रहस्यवादी आध्यात्मिक गुरु रहे।
इन्होंने भारत भर में भ्रमण करके लोगों को अपने खुले विचारों से अवगत कराया। इनके खुले विचारों के कारण ही इन्हें “सेक्स गुरु” भी कहा जाता था। यह भारत में काफी प्रसिद्ध थे। बाद में इंटरनेशनल प्रेस में भी इनके स्वभाव और विचारों को सम्मान दिया गया। मंच पर कई बार इनकी निंदा भी हुई लेकिन इनके विचारों से कई शिष्य भी मिले।
इनके निधन के 30 वर्षों के बाद भी इनका साहित्य आज तक लोगों को मार्गदर्शित कर रहा है। इस जीवन परिचय में प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु ओशो की जीवनी और इनके जीवन के उतार-चढ़ाव के बारे में जानेंगे।
ओशो का जीवन परिचय (Osho Biography in Hindi)
नाम | आचार्य रजनीश, ओशो |
वास्तविक नाम | चंद्र मोहन जैन |
जन्म और जन्मस्थान | 11 दिसंबर 1931, कुचेवाड़ा गांव, मध्य प्रदेश |
पेशा | आध्यात्मिक गुरु |
माता | सरस्वती बाई जैन उर्फ़ माँ अमृत सरस्वती |
पिता | बाबुलाल जैन उर्फ़ स्वर्गीय देवतार्थ भारती |
भाई | पांच भाई (निकलंक कुमार जैन, शैलेंद्र शेखर, अमित मोहन खाते, विजय कुमार खाते, अकलंक कुमार खाते) |
शिक्षा | दर्शनशास्त्र में उच्च स्नातक |
विश्वविद्यालय | सागर विश्वविद्यालय |
धर्म | हिंदू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
मृत्यु | 19 जनवरी 1990 |
ओशो का प्रारंभिक जीवन
ओशो का जन्म मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव कुचेवाड़ा में 11 दिसंबर 1931 को हुआ था। इनके पिता का नाम बाबूलाल जैन उर्फ स्वर्गीय देवदार्थ भारती था। वहीं इनकी माता का नाम सरस्वती बाई जैन उर्फ मां अमृत सरस्वती था। इनके परिवार में इनके पांच भाई और चार बहने थी। ओशो का बचपन का नाम रजनीश चंद्र मोहन जैन था।
ओशो के बचपन से जुड़ी एक बहुत ही रोचक कहानी है कि इनके जन्म के समय इनके माता-पिता को एक ज्योतिषी ने कहा था कि 7 वर्ष के बाद ओशो की मृत्यु हो जाएगी। अगर वह 7 वर्ष के बाद जीवित रह गए तो हर 7 वर्ष के बाद इन्हें मौत का सामना करना पड़ेगा, जिसके कारण इनके माता-पिता अक्सर इन्हें लेकर चिंतित रहा करते थे।
एक बार ओशो जब 14 वर्ष के थे तब वह एक वक्त का खाना खाकर मंदिर में जाकर मौत का इंतजार करने लगे। 7 दिनों तक इन्होंने इसी तरह किया। लेकिन इनका बाल भी बांका नहीं हुआ। इस तरह इनके माता-पिता की चिंता भी दूर हो गई।
ओशो की शिक्षा-दीक्षा
ओशो ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव से ही पूरी की। ओशो शुरुआत से ही स्वतंत्र और निर्भीक प्रवृत्ति के थे। वह कभी भी भीड़ में किसी भी प्रश्न पर तर्क करने से घबराया नहीं करते थे। उनके तीखे सवाल पंडित और पुरोहित को भी आश्चर्यचकित कर देते थे। ओशो विलक्षण प्रतिभा के धनी थे, जिसके कारण अपने उम्र में वह अन्य बच्चों से काफी अलग होते थे।
विद्यालय में अक्सर यह सबसे अधिक अंकों से पास होते थे। शुरुआत से यह काफी जिज्ञासु बच्चे थे। कभी-कभी तो वह अपने शिक्षकों से ऐसे प्रश्न किया करते थे, जो उनके समझ से परे होता था और ऐसे निरंतर सवाल के कारण कई बार तो इन्हें स्कूल में बैठने पर पाबंदी भी लगा दिया गया था।
प्रारंभिक शिक्षा पूरी होने के बाद ओशो ने मध्य प्रदेश के जबलपुर में स्थित सागर विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में स्नातक और उच्च स्नातक की डिग्री प्राप्त की। 21 वर्ष की आयु में ओशो ने मौलश्री वृक्ष के नीचे प्रबोद की प्राप्ति की।
ओशो का शुरुआती सफर
ओशो ने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद रामपुर संस्कृत कॉलेज और जबलपुर विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र पढ़ना शुरू कर दिया। इसी दौरान इन्होंने पूरे देश का भ्रमण भी किया। 1960 मे जबलपुर यूनिवर्सिटी में इन्हें प्रोफेसर के पद पर प्रमोट कर दिया गया था।
इन्हें आचार्य रजनीश के नाम से जाना जाता था। वह पूरे देश में घूम कर आध्यात्मिक भाषण दिया करते थे। 1962 में इनका पहला ध्यान शिविर आयोजित हुआ था।
ओशो अपने भाषण में कई प्रकार के मुद्दों को उठाते थे। वह अक्सर रूढ़िवादी भारतीय धर्म और अनुष्ठानों की आलोचना किया करते थे, जिसके कारण कई बार वे विवादों में भी फंसे। वे काम को आध्यात्मिक विकास को प्राप्त करने की दिशा में पहला कदम मानते थे।
ओशो ने 2 साल के बाद अपनी नौकरी छोड़कर ध्यान के मार्ग पर चलना शुरू कर दिया। इन्होंने न केवल हिंदू बल्कि मुस्लिम सिख इसाई जैन सूफी जैसे कई धर्म पर प्रवचन दिया। 1970 में इन्हें हिंदू नेता ने़कंद के तहत भारतीय प्रेस के द्वारा “सेक्स गुरु” का नाम दिया गया।
1970 के समय ओशो ने अपना ज्यादातर समय शुरुआती अनुयायियों के साथ बिताया। उस समय वे नव सन्यासी के नाम से जाने जाते थे और उस वक्त भी वे आध्यात्मिक ज्ञान दिया करते थे। वह दुनिया भर में दर्शन शास्त्री, रहस्यवादी, धार्मिक गुरु जैसे कई नाम से बुलाए जाते थे। 1974 में ओशो ने महाराष्ट्र के पुणे में अपना फाउंडेशन और आश्रम की स्थापना की, जहां पर वह भारतीय और विदेशी दोनों अनुयायियों को आध्यात्मिक उपदेश दिया करते थे।
1964 में रणकपुर शिविर में ओशो के प्रवचन को पहली बार रिकॉर्ड किया गया और इस प्रवचन की कई सारी किताबें छपी। यहां तक कि ऑडियो कैसेट और वीडियो कैसेट भी तैयार हुई। जिसके जरिए देश भर में उनके प्रवचन फैले।
उनके क्रांतिकारी विचार ने दुनिया भर के बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों और वैज्ञानिकों को प्रभावित किया। इसके कारण दुनिया भर से ओशो के लाखों अनुयायी और शिष्य बने। 1969 में ओशो के अनुयायियों के द्वारा उन्ही के नाम पर मुंबई में एक फाउंडेशन स्थापित किया गया, जिसे बाद में पुणे के कोरेगांव पार्क में स्थानांतरित किया गया। उस फाउंडेशन का नाम है “ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिजॉर्ट।”
ओशो ने अपने प्रवचन और उपदेश के जरिए संन्यास के नाम पर भगवा कपड़े पहनने वाले पाखंडियों की खूब आलोचना की। उन्होंने सम्यक संन्यास को पुनर्जीवित किया। ओशो का कहना था कि संन्यासी वह होता है, जो अपने परिवार, अपनी पत्नी, बच्चे, घर-संसार, सामाजिक जिम्मेदारी को निभाते हुए ध्यान और सत्संग का जीवन जीता है।
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ओशो का अमेरिकी प्रवास
1980 में ओशो अमेरिका चले गए। वहां अमेरिकी प्रांत ओरेगॉन में 65000 एकड़ भूमि क्षेत्र में “रजनीशपुरम” आश्रम की स्थापना की। अमेरिका में ओशो का जीवनकाल काफी विवादस्पद रहा। उनकी महंगी गाड़ियां, रोल्स-रॉयस कार, डिजाइनिंग कपड़े के कारण वे अक्सर चर्चा में ही रहा करते थे।
1985 में उन्होंने अमेरिका को छोड़ दिया और बाकी देश के भ्रमण पर निकल पड़े। लेकिन अमेरिकी सरकार के दबाव में उन्हें 21 देशों में रहने पर प्रतिबंध लगा दिया गया, जिसके बाद में फिर भारत लौट आए।
ओशो की भारत वापसी और मृत्यु
भारत आने के बाद ओशो फिर से अपने पुणे के कोरेगांव पार्क में स्थित आश्रम में रहने लगे और फिर उन्होंने प्रवचन देना शुरू कर दिया। उस दौरान अक्सर समाचार पत्र और मैगजीन में उनके लेख प्रकाशित होते रहते थे।
धीरे-धीरे उनकी तबीयत बिगड़ने लगी। वह अंदर ही अंदर कमजोर होने लगे। उनकी बिगड़ी तबीयत का कारण बताया जाता है कि साल 1985 में एक बार में अमेरिकी जेल में वे कैद थे, जहां पर उन पर काफी प्रताड़न हुआ।
उन्हें थैलियम नामक धीमा जहर भी दिया गया था। यहां तक कि उनके शरीर को रेडिएशन से भी गुजारा गया था, जिसके कारण उनका शरीर कमजोर होने लगा था।
ओशो को धीरे-धीरे इस बात का एहसास होने लगा था कि अब उनके पास चंद समय ही बचा हुआ है, जिसके कारण उन्होंने अचानक से ही अपने प्रवचन की संख्या बढ़ा दी। वे आश्रम में हर रोज रात्रि सत्संग और प्रवचन करते रहते थे।
धीरे-धीरे उनका शरीर और भी ज्यादा कमजोर होने लगा। उसके बाद वे केवल बाकी संयासी और अनुयायियों के साथ मौन बैठक में भाग लिया करते थे।
18 जनवरी 1990 को ओशो के निजी चिकित्सक स्वामी प्रेम अमृतो ने संन्यासियों को सूचना दी कि रात्रि सत्संग में ओशो नहीं आ सकते हैं क्योंकि उनके शरीर का दर्द बढ़ गया है। उसके दूसरे ही दिन ओशो ने प्राण त्याग दिया और संध्या सभा में उनकी मृत्यु की घोषणा की गई।
ओशो ने अपने आश्रम में यह नियम बनाया था कि कोई भी संन्यासी मरेगा तो उसे एक उत्सव के तौर पर मनाया जाएगा। इसीलिए ओशो की मृत्यु के समय बुद्ध ऑडिटोरियम हॉल में 10 मिनट के लिए उनके शव को रखा गया।
उस दौरान हजारों की संख्या में उनके शिष्य इकट्ठा हुए। उनके अंतिम संस्कार में संगीत, नृत्य, ध्यान और मौन के जरिए उन्हें अंतिम विदाई दी गई।
ओशो के अनुसार भगवान शब्द का अर्थ
1970 के बाद ओशो को भगवान रजनीश के नाम से पुकारा जाने लगा था, जिसके कारण उन्हें काफी आलोचना का सामना करना पड़ा। उसे दौरान उन्होंने अपने सफाई में कहा था कि भगवान शब्द का अर्थ केवल ईश्वर ही नहीं होता है। उस हर एक व्यक्ति को भगवान कहा जा सकता है, जो उरानंद की अवस्था में पहुंच जाता है।
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ओशो ने कौन-कौन सी किताबें लिखी है?
ओशो के द्वारा बहुत सारी किताबें लिखी गई है, जिनमें से कुछ किताब इस प्रकार हैं: अंतर की खोज, अंतर्यात्रा, अकथ कहानी प्रेम की, अकथ कहानी प्रेम की, अजहूं चेत गंवार, अंतर्वीणा आदि।
ओशो के बारे में रोचक तथ्य
- ओशो अपने जन्म के समय 3 दिन तक रोए नहीं थे लेकिन तीन दिन के बाद जब उन्हें नहलाया गया तब पहली बार वे रोए।
- ओशो जब अमेरिका में थे, उस समय उनका जीवन काफी लक्सरीयस था, उनके पास 90 से भी ज्यादा रोल्स-रॉयस कार थी।
- ओशो को बचपन से ही लग्जरी जीवन जीना पसंद था। एक बार इन्होंने हाथी पर बैठकर स्कूल जाने की जिद की, उसके बाद उनके माता-पिता को हाथी मंगवा कर इन्हें हाथी पर स्कूल भेजना पड़ा।
- ओशो के जन्म के समय एक ज्योतिषी ने उनके माता-पिता को कहा था कि 7 वर्ष के बाद उनकी मृत्यु हो जाएगी। लेकिन 14 वर्ष के उम्र में उन्होंने अपने मृत्यु का इंतजार किया लेकिन इन्हें कुछ भी नहीं हुआ।
- ओशो बचपन से ही बहुत ही जिज्ञासु थे और काफी हिम्मत वाले थे। मृत्यु के बाद व्यक्ति का क्या होता है, कहां जाता है यह जानने के लिए मात्र 12 वर्ष की उम्र में वे रात्रि में शमशान चले गए थे।
- ओशो मानव कामुकता के बारे में खुलकर अपने विचार व्यक्त करते थे, जिसके कारण भारत में इन्हें “सेक्स गुरु” के नाम से जाना जाता था। वहीं अमेरिका में रोल्स-रॉयस गुरु के नाम से यह प्रसिद्ध थे।
- ओशो सात साल की उम्र तक अपने नाना नानी के घर रहे थे, जिसका उनके व्यक्तित्व पर काफी प्रभाव पड़ा था। क्योंकि उन्हें वहां एक आध्यात्मिक वातावरण मिला।
- ओशो ने शादी नहीं की थी और वह शादी के संबंध में अपने माता-पिता के फैसले का विरोध भी किया करते थे।
- ओशो महात्मा गांधी, हिंदू पाखंड और समाजवाद के कट्टर आलोचक थे और अपने प्रवचन के दौरान अक्सर आलोचना किया करते थे।
- उनका मानना था कि एक सच्चा धर्म वही होता है, जो जीवन का आनंद लेने का तरीका सीखाता है।
- ओशो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और इंडियन नेशनल आर्मी जैसे भारतीय राष्ट्रवादी संगठन से भी जुड़े हुए थे लेकिन बाद में इस संगठन को उन्होंने छोड़ दिया था।
- अपने कॉलेज के दौरान ओशो खाली समय में स्थानीय अख़बार एजेंसी में सहायक संपादक के रूप में नौकरी किया करते थे।
निष्कर्ष
उपरोक्त लेख में भारतीय आध्यात्मिक गुरु ओशो का जीवन परिचय जाना। ओशो का जीवन काल काफी विवादस्पद रहा लेकिन उनके मृत्यु के बाद उनके विचार दुनिया भर के बुद्धिजीवियों को काफी प्रभावित कर रही है।
हमें उम्मीद है कि इस लेख में ओशो बायोग्राफी इन हिंदी (Osho Biography in Hindi) से आपको काफी कुछ सीखने को मिला होगा। यदि यह लेख आपको पसंद आया हो तो इसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए अन्य लोगों के साथ भी जरूर शेयर करें।
Inke vichar tb logo k liye swikar karna asan nhi rha hoga , lekin osho jese vyakti aaj sabke dilo me zinda he…..
ऐसे महान पुरुष पर हमें गर्व है जो भारत माँ की भूमि पर जन्म लेकर पूरे भारत वर्ष में ही नही पूरी दुनिया को अपना पहचान प्रगट करने में अपने आप को सामर्थ साबित करके भारत माँ की भूमि को पूरी दुनियां में अवगत कराएं। ऐसे महान कर्मो को मैं दिल से नमन करता हूँ।
I DON’T HAVE PROPER WORDS TO EXPRESS MY THANKS AND GRATITUDE TOWARDS OSHO. ANOTHER NAME OF EXISTENCE IS OSHO. WHATEVER HE SPOKE, HE DID NOT SPEAK RATHER WORDS HAVE GROWN SPONTANEOUSLY WITHOUT ANY EFFORTS ON PART OF OSHO BECAUSE NATURE WISHED LIKE THAT WITH PURPOSE. IT IS VERY DIFFICULT TO COMMENT UPON OSHO. AT LEAST I CAN NOT SAY ANYTHING ABOUT OSHO. HE IS AN ONLY ALTERNATIVE AVAILABLE TODAY FOR SPIRITUAL JOURNEY
ओशो जैसा व्यक्ति इस ब्रम्हाण्ड पर ना इससे पहले कभी आया था लेकिन उनके पुनर्जन्म की सम्भावना अधिक है ।।।।।।।आज की वर्तमान स्थिति को देखते हुए ओशो आज उपश्थीत होते तो उनका मार्गदर्शन भरत की जानता के लिय्र बहुत ही उपयोगी साबित होती।।।।
ओशो प्रेम नमन
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