Maratha Empire in Hindi: जब-जब मराठा शब्द का जिक्र होता है तब-तब निश्चित तौर पर सबसे पहले जिनका स्मरण होता है, वो हैं महान मराठा शिवाजी महाराज, जिन्होंने मराठा साम्राज्य को अपने अद्भुत पराक्रम से जगमगा दिया। शिवाजी महाराज मराठा साम्राज्य के संस्थापक होने के साथ-साथ एक महान देशभक्त भी थे, जिनके बारे में प्रसिद्ध है “मुगलों की ताकत को जिसने तलवारों पर तोला था”।
मराठा साम्राज्य की स्थापना (Maratha Empire in Hindi)
कई वर्षों तक पश्चिमी दक्कन पठार ने मराठा योजनाओं के लिए एक घर का काम किया। यह सब शिवाजी भोसले के अधीन था, जो एक बहुत प्रमुख योद्धा थे। वर्ष 1645 में शिवाजी के देखरेख में बीजापुर की सल्तनत विरोध में खड़े हो गए हैं और उन्होंने मिलकर एक नया साम्राज्य की स्थापना की।
इस साम्राज्य को शिवाजी भोसले ने एक नाम दिया जिसका नाम “हिंदवी स्वराज्य” रखा। शासन में हिंदुओं के बीच स्वयं पर स्वयं से ही शासन का आवाहन लिया गया। परंतु उस समय भारत में मुगलों का राज था। मुगलों को भारत से बाहर निकालने के लिए मराठों ने भी दृढ़ निश्चय कर लिया था।
क्योंकि मराठा यह चाहते थे कि उनके देश का शासन हिंदुओं के द्वारा ही किया जाए। शिवाजी भोसले का टकराव मुगलों के साथ वर्ष 1657 से प्रारंभ हो गया था। इसी समय शिवाजी भोसले ने अपने अभियानों के दम पर भूमि के बड़े क्षेत्रों पर अपना अधिकार कर लिया। मराठों ने ना केवल मुगलों से निपटने के लिए बल्कि अन्य शासकों के साथ मुद्दों से निपटने के लिए बल इकट्ठा किया था। मराठों को नई भूमि पर शासन करने के लिए उनके पास आधिकारिक खिताब का अभाव था।
उपमहाद्वीप में हिंदू राज्य की स्थापना और विस्तार 6 जून 1674 को मराठा साम्राज्य का शासक शिवाजी भोसले को घोषित कर दिया गया। मराठा शासक शिवाजी भोसले के राज्याभिषेक में सभी गैर हिंदू शासकों को संदेश भेजा गया। संदेश पर स्पष्ट रूप से यह लिखा हुआ था कि “यह समय हिंदुओं के लिए अपनी मातृभूमि पर नियंत्रण करने का है”
जिसके पश्चात एक भव्य राज्य अभिषेक की मेजबानी करके जिसमें बहुत अधिक संख्या में लोग उपस्थित थे, (50,000 से अधिक जनता एवं शासक) उसने शिवाजी ने स्वयं को हिंदू साम्राज्य का सम्राट घोषित कर दिया।
जिसके पश्चात शिवाजी भोसले ने मुगलों को एक सीधा संदेश भेजा कि शिवाजी उनके प्रतिद्वंदी हैं। इस कार्य के बाद शिवाजी भोसले को छत्रपति की उपाधि मिल गई। जिसके बाद से लोग उन्हें छत्रपति शिवाजी के नाम से जानने लगे। इसी तरह शिवाजी भोसले ने मराठा साम्राज्य की स्थापना की।
मराठा साम्राज्य का विस्तार
राज्य विस्तार के पश्चात छत्रपति शिवाजी को राज्य करने के लिए उपमहाद्वीप में केवल 4.1% हिस्सा था, जिसे देखकर छत्रपति शिवाजी ने प्रारंभ से ही अपने राज्य के विस्तार पर अपना पूरा ध्यान केंद्रित कर दिया। वह अपने राज्य को बहुत दूर तक विस्तार करना चाहते थे। राज्य विस्तार के कुछ समय पश्चात ही रायगढ़ को राजधानी बनाई और रायगढ़ को राजधानी बनाने के पश्चात छत्रपति शिवाजी ने अक्टूबर 1674 में खानदेश में छापामार पद्धति का पालन करते हुए खानदेश पर कब्जा कर लिया।
राज्याभिषेक के 2 वर्ष के भीतर ही छत्रपति शिवाजी ने अपने राज्य का विस्तार पोंडा, करवार, कोल्हापुर तथा अथानी जैसे आसपास के प्रदेशों पर कर लिया, जिसके पश्चात वर्ष 1677 में छत्रपति शिवाजी ने गोलकुंडा के शासक के साथ एक संधि में प्रवेश किया।
उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि गोलकुंडा के शासक मुगलों का विरोध करने के लिए सहमत थे तथा उसी वर्ष छत्रपति शिवाजी ने कर्नाटक पर आक्रमण कर दिया और अपने राज्य का विस्तार दक्षिण की ओर करते चले गए, जिसमें गिंगी और वेल्लोर किले को अपने अधीन कर लिया।
शिवाजी महाराज की उपलब्धियां
- शिवाजी महाराज ने 1643 ईस्वी में बीजापुर के सिंहगद किला जीता।
- 1643 ईस्वी में तोरण का किला जीता।
- 1659 में अफजल खां को पराजित किया।
- 1663 ईस्वी में शाइस्ता खां को पराजित किया।
- 12 अप्रैल 1680 को शिवाजी की मृत्यु हो गई।
शिवाजी की मृत्यु के बाद की स्थिति
अपनी मृत्यु के बाद विशाल साम्राज्य के साथ-साथ शक्तिशाली सेना भी पीछे छोड़ गए थे। 300 किले, 40000 घुड़सवार सैनिक, 5000 पैदल सैनिक, पश्चिमी समुद्र तट पर नौसैनिक जहाज। शिवाजी की मृत्यु के बाद उनका पुत्र संभाजी राज गद्दी पर बैठा।
शंभाजी का जन्म
1680 में शंभा जी का जन्म हुआ, शंभाजी भी अपने पिता शिवाजी महाराज की तरह महत्वकांक्षी और वीर योद्धा थे। शंभा जी ने पुर्तगाल और मैसूर के चिक्का देव राय को पराजित किया। शंभाजी की मृत्यु 1689 उनकी मृत्यु के बाद उनका पुत्र राजा राय राजगद्दी पर बैठा।
राजा राय का जन्म
1670 राजगढ़ फोर्ट मैं हुआ था। 3 मार्च 1700 सिंहगढ़ फोर्ट राजा राय का देहांत हुआ। जब राजा राय का देहांत हुआ तब उनका पुत्र शिवाजी दितिया महज 4 वर्ष का ही था। मराठा राज्य तक संकट की स्थिति में थातब, ताराबाई भोंसले जो राजाराम की पहली पत्नी थी। अपने नाबालिग पुत्र शिवाजी द्वितिया को उत्तराधिकारी घोषित कर राज्य की शासन व्यवस्था अपने हाथ में ले ली।
ताराबाई भोसले वीरांगना नारी थी। 7 साल तक ताराबाई ने औरंगजेब को कड़ी टक्कर दी और मराठा सरदारों को एक करके ही दम लिया।
- ताराबाई का जन्म:- 1675 (सतारा)
- तारा बाई की मृत्यु:- 9 दिसंबर 1761 (सतारा)
ताराबाई की राजनीतिक उपलब्धियां
पति राजा राम की मृत्यु के बाद राजगद्दी सुरक्षित नहीं थी, पुत्र भी नाबालिग था। अपने नाबालिग पुत्र को निमित्त बनाकर शासन की भागदौड़ अपने हाथ में ली। ताराबाई की सोच दूरदर्शी थी, उन्हें पता था सिहासन अगर रिक्त रहेगा तो औरंगजेब हमला कर देगा।
ताराबाई ने औरंगजेब को कड़ी टक्कर दी और मराठा एकता पर बल दिया। उनकी मृत्यु के बाद उनका पुत्र शिवाजी द्वितिया राज गद्दी पर बैठा। शासन की भागदौड़ अपने हाथ में संभाली।
शिवाजी द्वितिया
- जन्म:- 9 जून 1696
- मृत्यु:- 14 मार्च 1726 (रायगढ़ फोर्ट)
छत्रपति शाहू जी महाराज
मांगो साहू जी महाराज ने मराठा साम्राज्य की भागदौड़ 1717 ईस्वी में अपने हाथों में संभाली। शिवाजी के वंशज छत्रपति शाहूजी की महत्वकांक्षी सम्राट थे। साहू जी महाराज ने 1707 में सतारा और कोल्हापुर राज्य की स्थापना की। मराठा साम्राज्य का हिस्सा धार इंदौर ग्वालियर भी रहा और वहां तक भी मराठा साम्राज्य का परचम लहराया।
15 दिसंबर 1749 को सतारा में साहू जी महाराज की मृत्यु हुई। राजाराम 1750 में राजाराम ने मराठा साम्राज्य की भागदौड़ अपने हाथ में सभांली। छत्रपति शाहूजी महाराज द्वितीय 1777 में मराठा साम्राज्य के शासक बने। मुगलों के प्रति नफरत उनके मन में बचपन से ही रही, उन्होंने मुगलों से अंतिम समय तक टक्कर ली।
1808 में उनकी मृत्यु हो गई। छत्रपति शाहूजी महाराज द्वितिया मराठा साम्राज्य का अंतिम शासक थे। इसके बाद मराठा साम्राज्य की भागदौड़ पेशवा के हाथों में आ गई। पेशवा मराठा सम्राट के महामात्य (प्रधानमंत्री) रहते थे, यहीं से ही मराठों का पतन प्रारंभ हो गया।
मराठों के पतन के कारण
किसी भी विशाल साम्राज्य के पतन का कोई एक मुख्य कारण नहीं होता, उसके कई कारण होते हैं। तभी विशाल साम्राज्य पतन की ओर जाता है। अगर हम मराठों के पतन का कारण ढूंढे मुख्य कारण इस प्रकार के है। साहू जी तृतीया के बाद कोई भी ऐसा शासक नहीं निकला, जो दूरदर्शी हो और परिस्थितियों को पहचान जाए। साहू जी तृतीया के बाद सभी आपसी संघर्ष करने लग गए।
एकता पर उन्होंने बल नहीं दिया, जिसका पूरा पूरा फायदा पेशवा को मिला। पेशवा इनके प्रधानमंत्री हुआ करते थे, साहू जी तृतीया के बाद संगठन मे मुख्य अभाव रहा, उनके बाद कोई भी योग्य नेतृत्व नहीं मिल पाया।
शराब और कबाब इनकी कमजोरी बनती गई। इनकी दोष पूर्ण नीति इनके पतन का भी कारण बनी। अन्याय अत्याचार और भीतरी घात का शिकार भी मुख्य कारण बना। इनकी आपसी फूट का सीधा-सीधा लाभ के पेशवा को मिला और भी कई अन्य कारण है इनके पतन के।
मराठा साम्राज्य पर मेरे विचार
शिवाजी महाराज का अथक परिश्रम, साहस शौर्य, दूरदर्शिता, न्याय पूर्ण प्रणाली, प्रजा के प्रति समर्पण ने ही मराठा साम्राज्य को उस ऊंचाई की ओर ले गए। तब वर्तमान भारत की आर्थिक, राजनीति, संपूर्ण व्यवस्था मुगलों के अधीन थी। विपरीत परिस्थितियों में शिवाजी महाराज ने मुगलों का डटकर सामना किया, विरोध किया, संगठन को मजबूत किया। अपने अंतिम समय तक जब तक शिवाजी महाराज जीवित रहे तब तक मराठा साम्राज्य शक्ति का मुख्य केंद्र बन चुका था।
शिवाजी महाराज इतने दूरदर्शी थे कि उन्हें पता था सेना अगर ताकतवर रहेगी तभी शत्रु को शक्ति का एहसास होगा। शिवाजी महाराज ने पैदल सेना, घुड़सवार सेना और जल सेना इन तीनों को ताकतवर बनाया। अपने अंतिम समय तक जब तक जीवित रहे, उनका नियंत्रण राज्य की प्रत्येक गतिविधियों पर रहता था। उनकी मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी शंभाजी से लेकर साहू जी तृतीय तक ने साम्राज्य की सुरक्षा की।
साहू जी बाद उनके उत्तराधिकारी कमजोर साबित हुये, जिसका पूरा पूरा लाभ पेशवा को मिला। एक समय ऐसा आया राज्य का नियंत्रण पेशवो के हाथ में आने लगा। वहीं से ही पेशवा राजवंश की स्थापना हो गई।
राज्य के आर्थिक सामाजिक राजनीति सभी महत्वपूर्ण फैसले पेशवा लेने लगे। मराठा सम्राट तो महज तब तक कठपुतली बनकर ही रह गए थे। अंतिम मराठा सम्राट के पतन के बाद ही पेशवा वंश का जन्म हुआ। वह तब तक कायम रहा जब तक मुगलों ने संपूर्ण भारत पर अपना नियंत्रण नहीं किया था।
निष्कर्ष
हमने मराठा सामराज्य से जुड़ी लगभग सभी जानकारी इस मराठा साम्राज्य का इतिहास (Maratha Empire in Hindi) आर्टिकल में शामिल करी है। आपको हमारा यह आर्टिकल कैसा लगा, जरुर बताएं। ऐसी ही अच्छी जानकारी पाने के लिए हमारी वेबसाइट को बुकमार्क करें और इतिहास से जुड़ी अनेक बातों को पढ़े और शेयर करें।
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