जब भी हम दोहों और पदों के बारे में बात करते हैं तो सबसे पहले कबीरदास का नाम ही हमारे मुख में आता है। कबीरदास ने अपने दोहों और पदों से समाज को एक नई दिशा दी है।
हिंदी साहित्य के महान कवि होने के साथ ही कबीर दास विद्दंत विचारक, भक्तिकाल के प्रमुख कवि और अच्छे समाज सुधारक थे।
कबीर दास की सधुक्कड़ी मुख्य भाषा थी। लेकिन हमें इनके पदों और दोहों में हिंदी भाषा की एक अलग ही झलक दिखाई देती है।
कबीर दास की मुख्य रचनाओं में हमें पंजाबी, राजस्थान, अवधी, हरियाणवी, ब्रज, खड़ी बोली आदि देखने को मिलती है। इन्होंने अपनी सकारात्मक विचारों और कल्पना शक्ति से कई प्रसिद्ध रचनाएँ लिखी।
कबीर दास ने अपनी रचनाओं के माध्यम से हिन्दी साहित्य को समृद्ध बनाने के लिए अपना अहम योगदान दिया है।
इन्होंने अपनी रचनाओं में भारतीय संस्कृति को बहुत अच्छे तरीके से वर्णित किया है, जिसमें हमें उसका महत्व समझने को मिलता है। इन्होंने अपनी रचनाओं से लोगों को सकारात्मक मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया है।
कबीर दास भक्तिकाल की निर्गुण भक्ति धारा से बहुत प्रभावित थे। कबीर दास का प्रभाव हमें सिख, हिन्दू, मुस्लिम आदि धर्मों में देखने को मिलता है।
इन्होंने अपने जीवन में समाज में व्याप्त ऊंच-नीच, जातिगत भेदभाव आदि जैसी भयंकर बुराईयों दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
कबीर दास के दोहों, पदों और उनकी रचनाओं को पढ़कर कोई भी अपने जीवन को सफल बना सकता है और अपने जीवन को एक नई दिशा में अग्रेसित कर सकता है।
यहां पर हम कबीर दास की जीवनी (Kabir Das ka Jivan Parichay) के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी प्राप्त करने वाले है, जिसमें कबीर की शिक्षा कहां तक हुई थी, कबीरदास जी के गुरू कौन थे, उनकी पत्नी का नाम क्या था, कबीर दास जी की प्रमुख रचनाएँ कौनसी है आदि के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करेंगे।
कबीर दास का जीवन परिचय | Kabirdas Biography in Hindi
कबीर दास की जीवनी एक नज़र में (kabir das ka jeevan parichay)
नाम | कबीर दास |
जन्म और स्थान | विक्रमी संवत 1455 (सन 1398 ई०), लहरतारा तालाब, काशी (वाराणसी) |
पिता का नाम | नीरू |
माता का नाम | नीमा |
पत्नी का नाम | लोई |
बच्चे | 2 बच्चे, कमाल (लड़का) और कमाली (लड़की) |
शिक्षा | – |
प्रमुख रचनाएँ | अनुराग सागर, अमर मूल, अर्जनाम कबीर का, उग्र ज्ञान मूल सिद्धांत- दश भाषा |
पेशा | संत, विद्दंत विचारक, भक्तिकाल के प्रमुख कवि और अच्छे समाज सुधारक |
गुरू का नाम | रामानंद |
भाषा | सधुक्कड़ी, पंजाबी, राजस्थान, अवधी, हरियाणवी, ब्रज, खड़ी बोली आदि |
मृत्यु | सन 1494 ई० (विक्रमी संवत 1551), मगहर, (उत्तर प्रदेश, भारत) |
कबीरदास का जन्म
भारत के हिंदी हिंदी साहित्य के महिमामंडित व्यक्ति कबीर के जन्म को लेकर अनेक मतभेद हैं।
कुछ लोगों का मानना हैं कि कबीर का जन्म विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ था। ब्राह्मणी को रामानंद स्वामी ने पुत्रवती का आशीर्वाद दिया था और ब्राह्मणी ने समाज में बदनामी के डर से बालक कबीर को लहरतारा तालाब के पास छोड़ दिया था।
इनके माता-पिता को लेकर भी लोगों की एक राय नहीं हैं। कुछ लोगों का मानना हैं कि कबीर के माता-पिता नीरू और नीमा था तो कुछ लोग कहते हें कि उन्होंने केवल उनका पालन-पोषण ही किया था। उनको यह बच्चा लहरतला तालाब के पास मिला था।
वहीं कबीर को मानने वाली दूसरी धारा का मानना हैं कि कबीर लहरतारा तालाब में कमाल के फूल पर बाल रूप में प्रकट हुए थे और वे अवतारी पुरुष थे।
कबीर के जन्म और उनके धर्म को लेकर लोगों में भले ही विवाद हो लेकिन उनकी शिक्षा और विचार इसके मोहताज नहीं।
भक्तिकाल के प्रमुख कवि और समाज सुधारक कबीर की भाषा सधुक्कड़ी थी, लेकिन इनके साहित्य में ब्रज, पंजाबी, अवधि, राजस्थानी और हरियाणवी खड़ी बोली देखने को मिलती है।
कबीर की शिक्षा (Kabir ki Shiksha)
ऐसा कहा जाता हैं कि कबीर को बचपन में पढ़ने-लिखने में कोई रूचि नहीं थी और साथ ही न ही उनकी कोई खेल-कूद में रूचि थी।
परिवार में अत्यधिक गरीबी के कारण उनके माता-पिता भी उनको पढ़ाने की स्थिति में नहीं थे। इसलिए कबीर ने कभी भी अपने जीवन में किताबी शिक्षा ग्रहण नहीं की।
कहा जाता हैं कि कबीर के मुख से कहे गये दोहों को लिखित रूप उनके शिष्यों द्वारा किया गया। कबीर के कामात्य और लोई नाम के दो शिष्य थे, जिनका कबीर ने अपने दोहों में कई बार ज़िक्र किया हैं।
कबीर की रामानंद द्वारा गुरु दीक्षा (Kabir Das ke Guru)
जिस समय कबीर दास शिक्षा के योग्य हुए, उस समय काशी में रामानंद प्रसिद्ध पंडित और विद्वान व्यक्ति थे।
कबीर ने कई बार रामानंद से मिलने और उन्हें अपना शिष्य बनाने की विनती भी की। लेकिन उस समय जातिवाद अपने चरम पर था, इसलिए हर बार उन्हें आश्रम से भगा दिया जाता था।
उन्हें रामानंद से शिक्षा प्राप्त करने का बहुत ही बड़ा उत्साह था, इसलिए इन्होंने एक दिन रामानंद से मिलने की योजना बनाई।
रामानंद रोज सुबह जल्दी 4 बजे गंगा स्नान करने घाट पर जाया करते थे। एक दिन कबीर उनके रास्ते में लेट गये। जैसे ही रामानंद उस रास्ते से निकले, उनका पैर कबीर पर पड़ा।
बालक कबीर को देखकर अचानक से उनके मुंह से निकल पड़ा “राम-राम”, अपने गुरु रामानंद को प्रत्यक्ष देखकर कबीर बेहद खुश हुए और कबीर को राम-राम नाम का गुरु मन्त्र मिल गया। रामानंद कबीर की श्रद्धा को देखकर अत्यंत प्रसन्न होकर उन्हें अपना शिष्य बना लिया।
कबीर दास को जब रामानंद ने अपना शिक्षा बना लिया तो यह उनके आश्रम जाकर उनसे शिक्षा प्रदान प्राप्त करने लगे और वहां से इन्होंने संस्कृत, हिंदी, उर्दू और फारसी भाषा का अध्ययन किया।
अपने गुरु के कहने पर इन्होंने लेखनी कार्य करने का सोच लिया और एक प्रसिद्ध कवि बने। आज के समय में कबीर दास दुनिया के जाने-माने कवि हैं।
कबीर दास ने अपनी लेखनी के साथ-साथ जातिवाद के साथ-साथ अनेक समाज सुधार कार्य किए, जिन्हें कभी भी भुलाया नहीं जा सकता।
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कबीरदास के प्रमुख शिष्य
कबीरदास के दो शिष्य थे धर्मदास और गोपाल। धर्मदास कबीर के प्रिय शिष्य थे, यह जाति से बनिया थे।
हालांकि कबीर अशिक्षित थे, लेकिन वह आत्म ज्ञान और अनुभव से समृद्ध थे। उनके गुरु रामानंद ने उन्हें आत्मज्ञान और प्रभु भक्ति का ज्ञान दिया, जिसके कारण कबीर एकांत प्रिय और चिंतन स्वभाव के बन चुके थे।
कबीर दास में जो भी ज्ञान था, वे बस मुख से लोगों को ज्ञान देते थे। उनके शिष्यों ने उनके बोले गए कथनों को कलमबध्द किया।
इस तरह कबीर दास ने कोई भी ग्रंथ नहीं लिखे, जो भी लिखे गए सब उनके शिष्यों के द्वारा ही लिखे गए।
कबीर के ज्ञान और विचार उनके शिष्यों पर काफी प्रभाव डालती थी। जब तक धर्मदास कबीर से नहीं मिले थे, वह कट्टर मूर्ति पूजन थे। वह हमेशा अपने हाथों में पत्थर की मूर्ति रखा करते थे।
लेकिन जब काशी में पहली बार उनकी मुलाकात कबीर से हुई तो कबीर दास ने उन्हें मूर्ति पूजन करने से मना कर दिया। उसके बाद उन दोनों की फिर से मुलाकात वृंदावन में हुई।
वहां भी कबीर ने उनके हाथों में एक मूर्ति देखी, जिसे जमुना में डाल दिया। उसके बाद कुछ दिनों के बाद कबीर दास स्वयं धर्मदास के घर बांधवगढ़ पहुंचे।
वहां पर उन्होंने धर्मदास को कहा कि तुम जिस पत्थर को पूजते हो, वही पत्थर तुम्हारे घर में तोलने के बाट है।
कबीर दास का यह कथन धर्मदास के मन में इस तरह बैठा कि उन्होंने कबीर को अपना गुरु बना लिया और आगे चलकर धर्मदास ने कबीर दास की मृत्यु के पश्चात कबीर पंथ की एक अलग शाखा की स्थापना की।
हालांकि कबीर दास इस पंथ से परे थे। इस पंथ में बौद्ध, हिंदू, मुस्लिम, सिख सभी धर्म के मानने वाले लोग आते हैं।
कबीर का वैवाहिक जीवन (विवाह, पत्नी व बच्चे) (kabir das ka vivah)
संत कबीर दास बहुत ही ज्यादा निर्धन थे और ऐसे में इनका विवाह नहीं हो रहा था और बाद में संत कबीरदास का विवाह लोई नाम की कन्या से हुआ था।
विवाह के बाद कबीर और लोई को दो संतानें हुई, जिसमें एक लड़का व दूसरी लड़की। कबीर के लड़के का नाम कमाल तथा लड़की का नाम कमाली था।
इतनी गरीबी के द्वारा इनके बच्चों का पालन पोषण करना बहुत ज्यादा मुश्किल हो गया था और उनकी पत्नी प्रतिदिन इन्हें खरी-खोटी सुनाया करती थी।
गरीबी को लेकर अक्सर उनकी पत्नी और कबीर दास में झगड़े होते रहते थे और हर बार कबीर दास अपने पत्नी की बातों को सुना करते थे और मन ही मन बहुत ही शर्मिंदगी महसूस करते थे।
कबीर की धार्मिक प्रवृति होने के कारण उनके घर साधु-संत और सत्संग करने वालों की हर दिन आवाजाही बनी रहती थी।
अत्यधिक गरीबी और ऊपर से निरंतर मेहमानों की आवाजाही के कारण अक्सर कबीर की पत्नी कबीर से झगड़ा करती थी।
इस पर कबीर अपनी पत्नी को किस तरह समझाते थे, इसका वर्णन इस दोहे में इस प्रकार से हैं:
सुनि अंघली लोई बंपीर।
इन मुड़ियन भजि सरन कबीर।।
कबीर के एक और दोहे से इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि उनका पुत्र कमाल कबीर के विचारों का विरोधी था, जो इस प्रकार हैं:
बूड़ा बंस कबीर का, उपजा पूत कमाल।
हरि का सिमरन छोडि के, घर ले आया माल।।
वहीं कबीर को मानने वाली दूसरी धारा का मानना हैं कि कबीर बाल-ब्रह्मचारी और विराणी थे। उनके अनुसार कामात्य उनका शिष्य था तथा कमाली और लोई उनका शिष्या का नाम था। कबीर लोई शब्द का इस्तेमाल कम्बल के रूप में भी करते थे जो इस प्रकार हैं:
“कहत कबीर सुनहु रे लोई।
हरि बिन राखन हार न कोई।।”
कबीर के एक दूसरे दोहे से इस बात का संकेत मिलता हैं कि कबीर की पत्नी ही बाद में कबीर की शिष्या बन गयी होगी, जो इस प्रकार हैं:
“नारी तो हम भी करी, पाया नहीं विचार।
जब जानी तब परिहरि, नारी महा विकार।।”
संत कबीर का साहित्य (Kabir Das ka Sahityik Parichay)
कबीर दास के नामों से मिले ग्रंथों की संख्या अलग-अलग हैं। एच.एल विल्सन के अनुसार कबीर के नाम से कुल 8 ग्रन्थ हैं। वहीं विशप जी.एच वेस्टकॉट ने कबीर के नाम पर कुल 84 ग्रंथों की सूची जारी की हैं।
कबीरदास की वाणी का संग्रह “बीजक” नाम से मशहूर हैं, यह तीन हिस्सों में विभाजित हैं, जो इस प्रकार से हैं, रमैनी, सबद और सारवी।
कबीरदास की रचनाएं और भाषा
कबीर दास की रचनाओं में सिद्धो, सूफी और नाथो की बातों का प्रभाव देखने को मिलता है। उनके काव्य में रहस्यवाद और भावनात्मक के भी दर्शन होते हैं। कबीर ने अपने रचना में स्वयं को जुलाहा और काशी का निवासी बताया है।
कबीर दास निर्गुण ईश्वर की आराधना करते हुए एक महान समाज सुधारक के रूप में माने जाते हैं और उनके रचना में हिंदू और मुसलमान दोनों संप्रदाय के लोगों की कुरीतियों पर व्यंग देखने को मिलता है।
कबीर की रचनाओं में राम शब्द का काफी प्रयोग किया गया है। कबीर दास की रचना में शांत, श्रृंगार और हास्य रस का भी प्रयोग किया गया है।
कबीर की तमाम रचनाओं का संकलन “बीजक” नाम से प्रसिद्ध है जिसे तीन भागों में बांटा गया है: साखी, शब्द और रमेणी।
उनकी पहली रचना “साखी”, दूसरी रचना “शबद” और तीसरी रचना “रमेणी” हैं। रमेणी में पद शैली में उनके सिद्धांतों का विवेचन किया गया है।
वहीं शबद में गेय पद है, जिन्हें गा सकते हैं। सबद और रमेणी इन दोनों भागो में ब्रज भाषा का प्रयोग किया गया है।
कबीर दास एक जन सामान्य कवि थे, जिसके कारण उनकी रचनाओं में बहुत ही सीधी सरल भाषा देखने को मिलती है।
कबीर दास की रचना में हिंदी में सम्मिलित तमाम बोलियां जैसे अवधि, खड़ी बोली, पंजाबी, ब्रजभाषा, राजस्थानी, हरियाणवी के शब्द सम्मिलित है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल कबीर की रचनाओं के भाषा को “पंचमेल खिचड़ी” कहते हैं। वहीं आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर दास को “वाणी का डिक्टेटर” कहा है। इसके अतिरिक्त उनके रचना के भाषा को सधुकक्डी भाषा भी कहा जाता है।
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कबीर की प्रमुख रचना कौन सी है? (Kabir Das ki Rachnaye in Hindi)
कबीर दास ने बहुत ही रचनाएं लिखी और कबीर दास की सभी रचनाएं बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध है।
संत कबीर दास ने अपनी गरीबी को दूर करने के लिए यह लेखनी का कार्य शुरू किया था और वर्तमान समय में इनका यह लिखने का काम इनके लिए बहुत ही ज्यादा प्रभावी सिद्ध हुआ और कबीर दास को चरम उपलब्धि तक पहुंचाया।
वर्तमान में संत कबीरदस की कुल 61 रचनाएं (Kabir ki Rachnaye) उपलब्ध हैं, जो इस प्रकार से हैं। कबीर दास के द्वारा लिखी गई यह सभी रचनाएं नीचे निम्नलिखित हैं:
कबीरदास की रचनाएं (kabir das ji ki rachnaen)
- अनुराग सागर
- अमर मूल
- अर्जनाम कबीर का
- उग्र ज्ञान मूल सिद्धांत- दश भाषा
- अगाध मंगल
- आरती कबीर कृत
- अठपहरा
- अक्षर खंड की रमैनी
- अलिफ़ नामा
- कबीर गोरख की गोष्ठी
- उग्र गीता
- अक्षर भेद की रमैनी
- कबीर और धर्मंदास की गोष्ठी
- कबीर की साखी
- चौका पर की रमैनी
- कबीर की वाणी
- कबीर अष्टक
- जन्म बोध
- कर्म कांड की रमैनी
- कबीर परिचय की साखी
- काया पंजी
- चौतीसा कबीर का
- छप्पय कबीर का
- तीसा जंत्र
- पुकार कबीर कृत
- नाम महातम की साखी
- निर्भय ज्ञान
- पिय पहचानवे के अंग
- व्रन्हा निरूपण
- बलख की फैज़
- वारामासी
- बीजक
- भक्ति के अंग
- मुहम्मद बोध
- भाषो षड चौंतीस
- राम रक्षा
- मगल बोध
- रमैनी
- राम सार
- रेखता
- शब्द राग गौरी और राग भैरव
- विचार माला
- विवेक सागर
- शब्द अलह टुक
- सननामा
- शब्द राग काफी और राग फगुआ
- शब्द वंशावली
- शब्दावली
- संत कबीर की बंदी छोर
- ज्ञान गुदड़ी
- ज्ञान चौतीसी
- सत्संग कौ अग
- ज्ञान सरोदय
- ज्ञान सागर
- साधो को अंग
- ज्ञान सम्बोध
- ज्ञान स्तोश्र
- सुरति सम्वाद
- स्वास गुज्झार
- हिंडोरा वा रेखता
- हस मुक्तावालो
कबीर दास की सबसे प्रसिद्ध रचना कौन सी है?
कबीर दास ने अपनी रचनाओं में भगवान का गान करते हुए समाज सुधार का भी कार्य किया है।
कबीर दास ने बहुत सी रचनाएं लिखी हैं, जिनमें से इनकी कुछ लोकप्रिय रचनाएं भी हैं, जिन्हें लोगों के द्वारा बहुत ही ज्यादा पसंद किया जाता है।
कबीर दास का चर्चा करते हुए इन रचनाओं का नाम सर्वोपरि होता है, जिन की सूची निम्नलिखित है:
- बीजक
- सुख निधन
- होली अगम
- साखी
- शबद
- रमैनी
- रक्त
संत कबीरदास के दोहे
गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय।।
अर्थ: इस दोहे के माध्यम से कबीर दास जनमानस को कहना चाहते हैं कि अगर आपके सामने गुरु और भगवान दोनों खड़े हैं तो सबसे पहले आप किनका चरण स्पर्श करेंगे।
गुरु ने ही अपने ज्ञान से भगवान से मिलने का रास्ता बताया है। इसलिए भगवान से ऊपर गुरु की महिमा होती है। इसलिए हमें गुरु के ही चरण सबसे पहले स्पर्श करने चाहिए।
निंदक नियेरे राखिये, आँगन कुटी छावायें।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए।।
अर्थ: इस दोहा के माध्यम से कबीरदास कहते हैं कि निंदक हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। निंदक लोग जो दूसरों की बुराई करते हैं, उन्हें हमेशा अपने पास रखना चाहिए।
क्योंकि ऐसे लोग बिना साबुन पानी के ही इंसान के स्वभाव को निर्मल बना देते हैं। क्योंकि वह आपके गलतियों को बताते हैं, जिससे आपको अपनी गलतियों को सुधारने का मौका मिलता है।
ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।।
अर्थ: इस दोहे के माध्यम से कबीर दास जनमानस को अपनी वाणी शीतल रखने की सलाह देते हैं। वे कहते हैं कि ऐसी वाणी बोलिए कि सामने वाला व्यक्ति आपके वाणी को सुनकर प्रसन्न हो, उसके मन को अच्छा लगे और ऐसी वाणी होनी चाहिए कि दूसरे के साथ खुद को भी आनंद मिले।
बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर।।
अर्थ: इस दोहे के माध्यम से कबीर दास खुद पर घमंड या अभिमान ना करने की सलाह देते हैं।
इसके लिए वे खजूर के पेड़ का उदाहरण लेते हैं और कहते हैं कि जिस तरह खजूर का पेड़ होता तो है तो बहुत बड़ा लेकिन वह ना ही किसी को छाया दे सकता है और उसका फल भी बहुत दूर लगता है, जिसके कारण कोई उसके फल को भी नहीं खा सकता।
ठीक इसी प्रकार व्यक्ति अगर किसी का भला नहीं कर पा रहा है तो उसका बड़ा होने का कोई फायदा नहीं।
पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात।
देखत ही छुप जाएगा है, ज्यों सारा परभात।।
इस दोहे के माध्यम से कबीर दास ने जनमानस को यह समझाने का प्रयत्न किया है कि इंसान की इच्छाएं एक पानी के बुलबुले की तरह होती है, जो पल भर में बनती है और पल भर में समाप्त हो जाती है।
लेकिन एक सच्चे गुरु से मुलाकात हो जाने से यह सब मोह माया और सारी अंधकार हट जाती है ।
न्हाये धोए क्या हुआ, जो मन मैल न जाए।
मीन सदा जल में रहे, धोए बास जाए।।
अर्थ: कबीर दास इस दोहे के माध्यम से जनमानस को समझाने का प्रयत्न करते हैं कि इंसान को अपने मन के मेल धोने चाहिए।
इंसान बाहर से साफ सुथरा हो या ना हो लेकिन अंदर से उसके मन साफ होने चाहिए तभी वह सच्चा इंसान है।
जिस तरह सदा जल में मछली के रहने पर भी उसके धोने से बांस नहीं जाता, ठीक उसी प्रकार शरीर को धोने से मन के मैल साफ नहीं होते हैं।
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कबीर दास की मृत्यु
प्राचीन मान्यता हैं कि काशी में अपने प्राण त्यागता हैं, उसको स्वर्ग की प्राप्ति होती हैं और मगहर में जिसकी मृत्यु होती हैं, उसे नरक मिलता हैं। इस रूढ़ीवादी धरना को तोड़ने के उद्देश्य से ही संत कबीर अपने अंतिम दिनों में मगहर चले गये थे।
कबीरदास की मृत्यु सन 1494 ई० (विक्रमी संवत 1551), मगहर, (उत्तर प्रदेश, भारत) हुए थी।
ऐसा माना जाता हैं कि उन्हें अपनी मृत्यु का अंदेशा पहले ही हो गया था। कुछ कुछ लोगों का ऐसा मानना हैं कि कबीर को मगहर जाने के लिए मजबूर किया गया था।
कबीर के शत्रु चाहते थे कि कबीर की मृत्यु के बाद उनको मुक्ति की प्राप्ति न हो।
“जौ काशी तन तजै कबीरा
तो रामै कौन निहोटा।”
कबीर ने समाज में व्याप्त कुरीतियों और रूढ़ीवाद पर जमकर प्रहार किया और समाज को एक नई दिशा दी।
कबीरदास की मृत्यु पर विवाद
कबीर दास की मृत्यु को लेकर एक बहुत ही रोचक विवाद है। कहा जाता है कि जब कबीर दास ने अपना देह त्याग किया था तब उनके अनुयायियों के बीच में काफी विवाद और झगड़े होने लगे थे।
उनके हिंदू अनुयाई का कहना था कि कबीरदास हिंदू थे, इसीलिए उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीति रिवाज के अनुसार होना चाहिए।
वहीं मुस्लिम अनुयायियों का कहना था कि कबीर दास मुसलमान थे, इसलिए उनका अंतिम संस्कार मुसलमानों के रीति रिवाज के अनुसार होना चाहिए।
तब कबीर दास ने अपने अनुयायियों को दर्शन दिए और कहा कि मैं ना तो कभी मुस्लिम था ना हिंदू, मैं तो दोनों ही था या यूं कहे कि मैं दोनों ही नहीं था।
क्योंकि मैंने ईश्वर और अल्लाह दोनों का ही साक्षात्कार किया है। इसलिए तुम मुझे दो धर्मों में विभाजित मत करो और मेरे कफन को हटाकर देखो।
जब उनके अनुयायियों ने उनके कफन को हटाया तो पाया कि उनके कफन के नीचे उनका मृत देह ना होकर बहुत सारे पुष्प रखे हुए थे, जिसे दोनों संप्रदायों ने आपस में बांट लिया।
उन्ही पुष्पों को अपने-अपने रीति रिवाजों से अंतिम संस्कार कर दिया। इसलिए आज भी मगहर में कबीर दास की समाधि और मजार दोनों ही स्थित है।
कबीरदास के महान विचार
- कबीर दास धरती पर अलग-अलग धर्मों में बटवारा करना एक मिथ मानते थे, गलत मानते थे। उनका कहना था कि सभी धर्म को एक सार्वभौमिक रास्ता अपनाना चाहिए, जिसका अनुसरण सब कोई कर सके। वे सदा ही हिंदू मुस्लिम एकता को बढ़ावा देते थे।
- कबीर ने जीवात्मा और परमात्मा का आध्यात्मिक सिद्धांत दिया। उन्होंने लोगों को बताया कि मोक्ष असल में क्या होता है। उनका मानना था कि धरती पर जीवात्मा और परमात्मा का मिलन ही मोक्ष होता है।
- कबीरदास मूर्ति पूजा को हमेशा ही नकारा करते थे। उनका मानना था कि ईश्वर एक ही होता है और पत्थर की पूजा करने से कुछ नहीं होता है। अगर पत्थर की पूजा करने से भगवान मिलता तो मैं पहाड़ की पूजा करता। जिस व्यक्ति में दया भावना नहीं है, वह कभी ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता है।
- उन्होंने हमेशा ही लोगों को अहिंसा का पाठ सिखाया, भक्ति और सूफी आंदोलन के विचारों को बढ़ावा दिया। वह कर्मकांड और तपस्वी तरीकों का हमेशा ही आलोचना करते थे।
- कबीरदास कहते थे जिस तरह अत्यधिक वर्षा और अत्यधिक धूप अच्छा नहीं, उसी तरह ज्यादा बोलना और ज्यादा चुप रहना भी अच्छा नहीं होता।
- कबीरदास कहते थे कि जिस तरह चिड़िया की चोंच भर पानी ले जाने से नदी के पानी में कमी नहीं होती है, उसी तरह गरीबों को दान देने से धन में कभी कमी नहीं होती हैं।
FAQ
कबीर दास का जन्म वाराणसी के लहरतारा तालाब पर हुआ था।
संत कबीर दास का वास्तविक नाम जुलाहा कबीर है।
विक्रमी संवत 1455 (सन 1398 ई०)
कबीर दास के गुरू का नाम रामानंद था।
नीरू और नीमा
कबीर दास की मृत्यु सन 1494 ई० (विक्रमी संवत 1551), मगहर (उत्तर प्रदेश, भारत) हुई थी।
कबीर दास की पत्नी का नाम लोई था।
होली अगम, साखी, रक्त, कबीर बीजक, शब्द, सुखनिधन, वसंत आदि।
कबीर का जन्म स्थान लहरतारा तालाब, काशी (वाराणसी) माना जाता है।
अंतिम शब्द
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