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जोशीमठ का इतिहास और इसका महत्व

Joshimath History in Hindi: भारत का उत्तरी राज्य उत्तराखंड देव भूमि के रूप में जाना जाता है। यहां पर भारत के चारों धाम स्थित है। इसके अलावा यहां पर अन्य कई छोटे-बड़े देवी देवताओं के मंदिर है, जो काफी ज्यादा प्रसिद्ध है और प्रत्येक मंदिरों से जुड़ी कुछ ना कुछ पौराणिक मान्यताएं प्रचलित है।

ऐसा ही एक विशेष मंदिर जोशीमठ है, जो आजकल खबरों में काफी ज्यादा छाया हुआ है। क्योंकि कुछ दिन पहले यहां पर भयानक दरार पड़ी है, जिसके कारण यहां लोग काफी ज्यादा प्रभावित हुए हैं। यहां तक कि जोशीमठ में भूमि दादर आने से राज्य सरकार से लेकर केंद्र सरकार भी आपदा से निपटने के लिए तैयारियां शुरू कर दी है।

पिछले कुछ दिनों से आपदा अधिकारी मौजूदा हाल का जायजा ले रहे हैं। तकनीकी समिति की जांच करने के बाद यहां के प्रशासन की तरफ से भी आपदा प्रभावित इलाकों में मौजूद जर्जर मकान और होटलों को तोड़ने का फैसला लिया गया है।

यदि इन जर्जर इलाकों में स्थित मकानों एवं होटलों को ना तोड़ा गया तो जानमाल का काफी ज्यादा नुकसान होने की आशंका है। जिस कारण प्रशासन ने अब तक 600 से भी ज्यादा घरों एवं दो होटलों को तोड़ने के लिए उसे चिह्नित कर दिया है।

Joshimath History in Hindi
Image: Joshimath History in Hindi

हालांकि ऐसी घटना होने के बाद भी जोशीमठ एक ऐसा धार्मिक स्थल है, जहां पर हर कोई घूमने जाना चाहता है। यह जगह ना केवल सामाजिक महत्व रखता है बल्कि धार्मिक दृष्टि से भी यह काफी महत्वपूर्ण है। जोशीमठ के बिना बद्रीनाथ समेत कई धार्मिक स्थल का दर्शन करना संभव नहीं माना जाता है।

माना जाता है कि जब तक इस शहर में मौजूद नरसिंह देवता के मंदिर का दर्शन ना कर लिया जाए तब तक बद्री धाम के दर्शन का लाभ प्राप्त नहीं होता। तो चलिए इस लेख के माध्यम से जोशीमठ के महत्व एवं यहां मौजूद नरसिंह देवता के मंदिर से जुड़ी रोचक तथ्यों के बारे में जानते हैं।

जोशीमठ क्या है और इसका महत्व

जोशीमठ उत्तराखंड के राजनीतिक और सांस्कृतिक इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह धार्मिक दृष्टि से बहुत ही प्रख्यात जगह है। यह जगह उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल के चमोली जनपद में समुद्र तल से 6107 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।

चमोली स्थान बद्रीनाथ से 32 किलोमीटर पहले औली डांडा की ढलान पर अलकनंदा के बांए ओर स्थित है। बद्रीनाथ मार्ग पर कर्णप्रयाग से इसकी दूरी 75 किलोमीटर की है और विष्णु प्रयाग से लगभग 12 किलोमीटर दूर है। जोशीमठ से 38 किलोमीटर दूर फूलों की घाटी स्थित है।

जोशीमठ को कई धार्मिक स्थलों का प्रवेश द्वार माना जाता है। इसी जोशीमठ में चारों धामों में से एक बद्रीनाथ धाम स्थित है, जहां पर हर साल श्रद्धालुओं की भीड़ रहती हैं। बद्रीनाथ धाम के दर्शन करने आने वाले श्रद्धालुओं को जोशीमठ नहीं ठहराया जाता है। इस प्रकार बद्रीनाथ धाम का जोशीमठ आधार है।

हिंदू अनुयायियों के अतिरिक्त सिख समुदायों के लिए भी जोशीमठ काफी ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि सिखों के पावन तीर्थ स्थल हेमकुंड साहिब जाने के दौरान जोशीमठ मुख्य पड़ाव है।

जोशीमठ का इतिहास (Joshimath History in Hindi)

कहा जाता है कि 815 ईसवी पूर्व में एक शहतूत के पेड़ के नीचे आदि शंकराचार्य को ज्ञान की दिव्य ज्योति प्राप्त हुई थी। तब से ही इस जगह का नाम ज्योतिरमठ पड़ा, जो बाद में विकसित होकर जोशीमठ कहलाया।

यहां पर आदि शंकराचार्य ने घोर तपस्या करके शंकर भाष्य नामक ग्रंथ की रचना की थी। यहां पर ज्योतिरमठ की स्थापना करने के बाद आदि शंकराचार्य ने उस मठ को अपने अनन्य शिष्य त्रोटका को सौंप दिया और फिर वे यहां के प्रथम शंकराचार्य बने।

ज्योतिरमठ में स्थित शिवालय को ज्योतिश्वर महादेव कहा जाता है। यहां पर स्थित मुख्य मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। इसके अतिरिक्त यहां पर वासुदेव, नवदुर्गा का मंदिर भी है। यहां पर वासुदेव की 8 फीट ऊंची प्रतिमा स्थित है। भगवान नरसिंह देव का मंदिर मुख्य है। नरसिंह देव भगवान विष्णु के चौथे अवतार माने जाते हैं।

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जोशीमठ के बारे में रोचक तथ्य

  • जोशीमठ में स्थित भगवान नरसिंह देव की मूर्ति करीबन 10 इंच की है, जो 12000 साल पुरानी है। इसे शालिग्राम पत्थर से बनाया गया है। यह प्रतिमा एक कमल पर विराजमान है।
  • जोशीमठ में भगवान नरसिंह देव के दाएं साइड भगवान राम, माता सीता, हनुमान जी और गरुड़ की मूर्तियां स्थापित है। वहीं उनके बाएं साइड में कालिका माता की प्रतिमा स्थापित है।
  • जोशीमठ से 10 किलोमीटर की दूरी पर तपोवन स्थित है। वहां से गर्म पानी की धारा निकलती है, जिसे अमृत के समान माना जाता है।
  • जोशीमठ में आदि शंकराचार्य की तपस्थली गुफा है, जिसे ज्योतिश्वर महादेव के नाम से प्रख्यात है।
  • जोशीमठ के बारे में स्कंद पुराण, विष्णु पुराण, शिव पुराण जैसे कई धार्मिक हिंदू ग्रंथों में भी वर्णन मिलता है।
  • जोशीमठ में एक शहतूत का पेड़ है। माना जाता है कि वह 2400 वर्ष पुराना वृक्ष है, जिसके जड़ की गोलाई लगभग 36 मीटर है। इस वृक्ष को कल्पवृक्ष भी कहा जाता है।
  • जोशीमठ के नरसिंह मंदिर में भगवान बद्रीनाथ की शीतकालीन गद्दी है। माना जाता है शीतकाल में भगवान बद्रीनाथ इसी मंदिर में आकर विराजते हैं।
  • नरसिंह मंदिर को नरसिंह बद्री मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर की स्थापना को लेकर कहा जाता है कि इस मंदिर की उत्पत्ति भगवान शिव ने की थी। वहीं कुछ लोगों का मत है कि कश्मीर के राजा ललितादित्य मुक्तापीड द्वारा इस मंदिर का निर्माण किया गया था। वहीं कुछ लोग मानते हैं कि महाभारत के पांडवों ने इस मंदिर की नींव रखी थी।
  • जोशीमठ के नरसिंह मंदिर में आदि शंकराचार्य की भी गद्दी है। कहा जाता है कि नरसिंह मंदिर में भगवान नरसिंह की प्रतिमा की स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी। क्योंकि भगवान नरसिंह उनके इष्ट देव थे।

मंदिर में स्थापित नर्सिंह भगवान की मूर्ति की एक बाजू पतली होने का रहस्य

जोशीमठ के नरसिंह मंदिर में स्थित भगवान नरसिंह के प्रतिमा में उनके एक बाजू पतली नजर आती है। इस रहस्य के पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि जिस स्थान पर यह मंदिर बना हुआ है इस स्थान पर प्राचीन समय में वासुदेव नामक एक राजा का शासन हुआ करता था।

एक बार जब वासुदेव नामक राजा शिकार के लिए महल से बाहर गया तब उसी समय भगवान नरसिंह एक सामान्य पुरुष के रूप में पधारते हैं। महल में प्रवेश करने के बाद महारानी नरसिंह भगवान को भोजन करवाती है और उसके बाद राजा के बिस्तर पर जाकर आराम करने के लिए कहती है।

उसी बीच राजा महल में लौटता है तब देखता है कि एक पुरुष उसके बिस्तर पर लेटा हुआ है। जिसके कारण वह क्रोध में आकर उस पुरुष के बाजू पर तलवार से वार कर देता है। उसके बाद उस पुरुष के बाजू से खून के बदले दूध निकलने लगता है और फिर वह पुरुष नरसिंह भगवान के रूप में बदल जाता है, जिसे देख राजा क्षमा याचना मांगने लगता है।

उसके बाद भगवान नरसिंह उसे कहते हैं कि तुमने जो अपराध किया है, उसका दंड तुम्हें मिलेगा। तुम्हें अपने परिवार के साथ जोशीमठ को छोड़कर कत्यूर में जाकर बसना पड़ेगा, तुम्हारे इस प्रहार के प्रभाव के कारण मंदिरों में जो मेरी मूर्ति है, उसकी एक बाजू पतली होती जाएगी और एक दिन वह बाजू पतली होकर गिर जाएगी, जिससे राजवंश का अंत हो जाएगा।

यहां तक कि केदारखंड के सनत कुमार संहिता में भी इस बात का जिक्र किया गया है कि जब भगवान नरसिंह की मूर्ति से उनका हाथ टूट कर गिर जाएगा तब जय विजय नाम की दो पहाड़ी जो विष्णु प्रिया के समीप पटमिला नामक स्थान पर स्थित है यह दोनों आपस में मिल जाएंगे, जिससे बद्रीनाथ के दर्शन करने का रास्ता बंद हो जाएगा।

उस समय जोशीमठ के तपोवन क्षेत्र में स्थित भविष्य बद्री मंदिर में भगवान बद्रीनाथ के दर्शन हो पाएंगे। कहा जाता है कि भविष्य बद्री मंदिर की स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने ही की थी।

जोशीमठ कैसे पहुंचें?

यदि आप जोशीमठ पहुंचना चाहते हैं और यहां पर स्थित नरसिंह देवता का मंदिर एवं अन्य मंदिरों का दर्शन करना चाहते हैं तो आप हवाई, रेलवे और सड़क तीनों ही मार्ग के जरिये जा सकते हैं।

यदि आप ट्रेन मार्ग के जरिए जोशीमठ पहुंचना चाहते हैं तो बता दे कि जोशीमठ का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन देहरादून और हरिद्वार है। हरिद्वार जोशीमठ से करीबन 270 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, वहीँ देहरादून 290 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

यह दोनों ही रेलवे स्टेशन चंडीगढ़, लुधियाना, दिल्ली, मुंबई, लखनऊ, बेंगलुरु जैसे विभिन्न शहरों से जुड़े हुए हैं। रेलवे स्टेशन पहुंचने के बाद यहां से लोकल बस या टैक्सी जोशीमठ के लिए मिल जाती है।

यदि आप जोशीमठ हवाई मार्ग के जरिए आना चाहते हैं तो जोशीमठ का सबसे करीबी एयरपोर्ट देहरादून में स्थित जौली ग्रांट एयरपोर्ट है। इसकी दूरी जोशीमठ से करीबन 265 किलोमीटर है।

यह हवाई अड्डा दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चंडीगढ़, बेंगलुरु जैसे हवाई अड्डों से डायरेक्ट जुड़ा हुआ है। यदि आपके शहर से यहां के लिए सीधे फ्लाइट नहीं मिलती तो आप इन संबंधित शहरों के लिए फ्लाइट बुक कर सकते हैं और यहां से जौली ग्रांट एयरपोर्ट के लिए फ्लाइट बुक कर सकते हैं।

यदि आप बस के जरिए जोशीमठ पहुंचना चाहते हैं तो बता दे कि किसी अन्य राज्य से जोशीमठ के लिए सीधे आपको बस नहीं मिलेगी। ज्यादातर बसें दिल्ली एवं उत्तराखंड के बीच ही सीधे चलती है।

ऐसे में आपको अपने शहर से पहले बस के माध्यम से दिल्ली आना पड़ेगा और फिर दिल्ली से आपको हरिद्वार या देहरादून के लिए बस पकड़नी पड़ेगी। यहां पर पहुंचने के बाद आपको दूसरी बस से जोशीमठ जाना होगा।

बहुत से लोग अपने प्राइवेट वाहनों से भी जोशीमठ आते हैं। यदि आप अपने प्राइवेट वाहन कार या बाइक के जरिए जोशीमठ आना चाहते हैं तो बता दे कि हरिद्वार और देहरादून से जोशीमठ जाने वाली सड़कों की स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं है। ऐसे में यदि आप एक अच्छे अनुभवी वाहन चालक है तभी यह यात्रा आपके लिए ज्यादा सुलभ होगी।

एक और बात यहां से जोशीमठ के मार्ग में आपको बहुत कम ही पेट्रोल पंप देखने को मिलेगा। ऐसे में आप जिस स्थान से आ रहे हैं और जहां भी आपको पेट्रोल पंप दिख जाता है, आप एक साथ ही अपने वाहन की फ्यूल टैंक फुल करवा लें।

FAQ

जोशीमठ कहां पर स्थित है?

जोशीमठ उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल के चमोली जनपद में स्थित है, जो बद्रीनाथ मार्ग पर कर्णप्रयाग से 75 किलोमीटर आगे और बद्रीनाथ से 32 किलोमीटर पहले ओली डांडा के ढलान पर अलकनंदा के बाई और स्थित है।

जोशीमठ की स्थापना किसने की थी?

जोशीमठ आदि शंकराचार्य के द्वारा स्थापित उनके चार मुख्य मठों में से एक है। इसका असली नाम ज्योतिरमठ है। माना जाता है कि इस जगह पर आदि शंकराचार्य ने बहुत कड़ी तपस्या की थी।

जोशीमठ में कौन से भगवान का मंदिर स्थित है?

जोशीमठ में मुख्य रूप से भगवान विष्णु के चौथे अवतार नरसिंह देव का मंदिर स्थित है। इसके अतिरिक्त वासुदेव एवं नव दुर्गा का भी मंदिर स्थित है।

निष्कर्ष

आज के इस लेख में आपने उत्तराखंड के एक धार्मिक स्थल जोशीमठ के इतिहास (Joshimath History in Hindi) के बारे में जाना। जोशीमठ से जुड़ी रोचक तथ्य एवं जोशीमठ तक पहुंचने के मार्ग के बारे में आपने इस लेख में जानकारी प्राप्त की।

हमें उम्मीद है कि यह लेख आपके लिए जानकारी पूर्ण रहा होगा। यदि यह लेख आपको पसंद आया हो तो इसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से अन्य लोगों के साथ भी जरूर शेयर करें।

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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