History of Narmada River in Hindi: हमारे भारत में बहुत सी ऐसी नदियां हैं, जो कि पवित्रता की निशानी है। प्रत्येक नदी की पवित्रता को लेकर उसके पीछे का कोई ना कोई विशेष इतिहास एवं कहानी रही है।
भारत में ऐसी मान्यताएं भी है कि पवित्र नदियों में स्नान करने से व्यक्तियों के रोग, कष्ट, दुख एवं पाप कट जाते हैं। आज हम आप अपने इस लेख के माध्यम से ऐसे ही एक पवित्र नदी के विषय में बताने वाले हैं, जिसके मात्र दर्शन से ही मानव के सभी पाप भूल जाते हैं।
माता नर्मदा कौन है?, माता नर्मदा के पीछे का इतिहास, नर्मदा नदी की कहानी, माता नर्मदा की उत्पत्ति के पीछे की प्रचलित कहानियां इत्यादि के विषय में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं और इनके उत्पत्ति के पीछे की कहानियों के विषय में जानना चाहते हैं तो कृपया आप हमारे इस लेख नर्मदा नदी का इतिहास और कहानी (Narmada River History in Hindi) को अंत तक अवश्य पढ़ें।
नर्मदा नदी का इतिहास और कहानी | History of Narmada River in Hindi
माता नर्मदा कौन है?
नर्मदा नदी (Narmada Nadi) भारत के मध्य भाग में पूर्व की दिशा से पश्चिम की तरफ बहने वाली मध्यप्रदेश और गुजरात की प्रमुख नदी के रूप में जानी जाती है। नर्मदा नदी की पूजा भी भारत की प्रसिद्ध नदी गंगा की तरह ही की जाती है। भारत में गंगा से भी पवित्र नदी के रूप में नर्मदा नदी को माना जाता है।
कहा जाता है कि माता गंगा में स्नान करने से व्यक्तियों के रोग कष्ट दूर हो जाते हैं और पाप धुल जाते हैं। परंतु माता नर्मदा के सिर्फ दर्शन मात्र से व्यक्ति के आधे कष्ट दूर हो जाते हैं। नर्मदा नदी की उत्पत्ति अमरकंटक के शिखर से हुई है। माता नर्मदा की उत्पत्ति के पीछे अनेकों प्रकार के कारण बताए जाते हैं।
माता नर्मदा के उद्गम स्थल से लेकर समुद्र संगम के मध्य लगभग 10 करोड़ से भी अधिक तीर्थ स्थल बने हुए हैं। नर्मदा नदी को भारत की सबसे पौराणिक नदी कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि नर्मदा नदी के कण-कण में भगवान शिव निवास करते हैं। भारत में नर्मदा नदी को माता का दर्जा दिया जाता है। नर्मदा नदी को भारत में अन्य नदियों की तुलना में सर्वोपरि रखा गया है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार और पुराणों में माता नर्मदा के विषय में कई बातें कही गई हैं। जैसे कि जो लोग माता नर्मदा की श्रद्धा के साथ भक्ति करते हैं और उनका नित्य रूप से स्मरण करते हैं तो उन्हें कभी भी सांप नहीं काटता।
कैसे पड़ा नदी का नाम देवी नर्मदा
एक बार भगवान शिव अमरकंटक के सरोवर के पास में ही बैठकर तपस्या कर रहे थे तो उनके पसीने से एक नदी का निर्माण हुआ, यह नदी भगवान शिव को ठंडक प्रदान करती थी। जब भगवान शिव अपनी तपस्या से उठे तो माता नर्मदा ने उन्हें अपने चमत्कारी लीलाओं को बताया और भगवान शिव एवं पार्वती माता सुनकर अचंभित रह गए।
माता नर्मदा ने उन्हें यह बात बताई तो भगवान शिव का मन बहुत ही ज्यादा हर्षित हुआ और भगवान शिव ने कहा कि देवी आपने हमारे ह्रदय को काफी हर्षित किया है और आज से आपका नाम नर्मदा होगा, उसी समय से अमरकंटक से निकली इस नदी का नाम नर्मदा पड़ा।
नर्मदा शब्द का अर्थ होता है, सुख देने वाली। नर्मदा शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, पहला नरम और दूसरा दा। नरम का अर्थ होता है, सुख और दा का अर्थ होता है, देने वाली।
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माता नर्मदा की उत्पत्ति के पीछे का इतिहास
नर्मदा नदी की उत्पत्ति के पीछे अनेकों प्रकार की कहानियां बताई जाती है, जिन के विषय में हम सभी लोग नीचे जानेंगे। आइए नर्मदा नदी की उत्पत्ति के पीछे के इतिहास को जानते हैं।
जैसा कि बताया कि माता नर्मदा की उत्पत्ति अमरकंटक के शिखर से हुई है। कहा जाता है कि माता नर्मदा का उद्गम स्थल अमरकंटक के शिखर का मैकाल है। अतः यही कारण है कि माता नर्मदा को मैकाल कन्या के नाम से भी जानते हैं।
माता नर्मदा के मैकाल कन्या कहे जाने का विस्तृत वर्णन स्कंद पुराण में रेवा खंड के अंतर्गत किया गया है। माता नर्मदा के उद्गम स्थल से निकलने वाली धारा पहाड़ों के चट्टानों से गुजरते हुए भेड़ाघाट में संगमरमर की चट्टानों के ऊपर से बहती है और समुद्र में जाकर मिलती है।
ऐसा भी कहा जाता है कि माता नर्मदा अमरकंटक के सुंदर सरोवर में स्थित शिवलिंग से निकलती हैं। शिवलिंग से निकलने वाली नर्मदा नदी की पावन धारा को रूद्र कन्या के नाम से जाना जाता है।
एक छोटे से सरोवर से निकलने वाली माता नर्मदा आगे चलकर बड़ा ही विशाल रूप धारण कर लेती हैं। माता नर्मदा उतनी ही ज्यादा पवित्र है, जितनी की माता गंगा।
माता नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक के शिखर से लेकर सागर संगम के मध्य लगभग 10 करोड़ से भी अधिक तीर्थ स्थल बने हुए हैं। इस पवित्र नदी के तट पर स्थित अनेकों ऐसे तीर्थ स्थल हैं, जो कि अपने आप में विशेष महत्व रखते हैं।
माता नर्मदा के तट पर बने इन तीर्थ स्थलों पर श्रद्धालुओं का हमेशा भीड़ लगी रहती है। माता नर्मदा के तट पर बने तीर्थ स्थलों में कुछ प्रमुख तीर्थ स्थल हैं जैसे कि कपिलधारा, दूध धारा, मांधाता, शूलपाड़ी, शुक्लतीर्थ, भेड़ाघाट, भदौंच इत्यादि।
माता नर्मदा अपने उद्गम स्थल अमरकंटक से निकलकर छत्तीसगढ़ से होते हुए मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात में पहुंचकर लगभग 1310 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद भरौंच के आगे खंभात की खाड़ी में से होते हुए समुद्र में जाकर मिल जाती है।
भारतीय परंपराओं एवं प्राचीन मान्यताओं के अनुसार माता नर्मदा की परिक्रमा करने का विशेष प्रावधान है। प्रत्येक वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं और माता नर्मदा की परिक्रमा कर पुण्य की प्राप्ति भी करते हैं।
पौराणिक मान्यताओं में माता नर्मदा के लिए ऐसा कहा गया है कि नर्मदा नदी के दर्शन मात्र से ही भक्तों के समस्त पाप कट जाते हैं और उन्हें एक नए जीवन की प्राप्ति होती है।
माता नर्मदा के उद्गम स्थल से निकलने के बाद जबलपुर के निकट भेड़ाघाट में आने के समय वहां पर एक नर्मदा जलप्रपात बनता है, जो कि बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध है। पद्मा पुराण एवं मत्स्य पुराण के अनुसार गंगा नदी और सरस्वती नदी कनखल में मिलती है, जो कि बहुत ही पवित्र स्थान माना जाता है।
कोई भी गांव हो या फिर जंगल नर्मदा नदी सभी स्थानों पर ही पवित्र ही मानी जाती हैं। भारत के सबसे पौराणिक ग्रंथ विष्णु धर्म सूत्र के अनुसार माता नर्मदा के सभी स्थलों को श्राद्ध के लिए योग्य माना जाता है।
माता नर्मदा की उत्पत्ति भगवान शिव के शिवलिंग से हुई है, अतः अमरकंटक से उद्गम हुई माता नर्मदा की पवित्र स्थल को महेश्वर और उनकी पत्नी का निवास स्थान भी कहा जाता है। माता नर्मदा को पितरों की पुत्री कहा जाता है क्योंकि नदी के तीर्थ स्थान पर शोध करने वाले लोगों के पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
माता नर्मदा की उत्पत्ति से संबंधित अन्य कहानियां (नर्मदा नदी की कहानी)
माता नर्मदा की उत्पत्ति से संबंधित अनेकों प्रकार की कहानियां प्रचलित हैं, जिनके विषय में नीचे निम्नलिखित रुप से बताया गया है। तो आइए जानते हैं माता नर्मदा की उत्पत्ति से संबंधित कुछ विशेष कहानियों के विषय में।
माता नर्मदा ने क्यों ली कुंवारी रहने की कसम
जैसा कि मैंने आपको बताया कि देवी नर्मदा राजा मैखल की पुत्री थी। एक बार आजा मैखल ने देवी नर्मदा का विवाह सोनभद्र से तय किया। माता नर्मदा की काफी इच्छा थी कि वह एक बार राजकुमार को देख ले।
इसके लिए उन्होंने अपनी सहेलियों को जुटाया और अपने सखी जुहिया के माध्यम से राजकुमार के पास अपने संदेश को पहुंचाया। बहुत समय व्यतीत हो गया परंतु राजकुमारी की सखी जुहिया वापस नहीं लौटी।
अतः राजकुमारी को अपनी सखी जुहिया की काफी चिंता होने लगी और वह जोहिया की खोज में निकल पड़ी। राजकुमारी अपनी सखी की खोज में सोनभद्र तक पहुंची और वहां उन्होंने जुहिआ को सोनभद्र के साथ देखा।
राजकुमारी ऐसा देखकर काफी ज्यादा क्रोधित हो गई और इसके बाद इन्होंने आजीवन कुंवारी रहने का प्रण ले लिया और वही से उलटी दिशा में वापस लौट आई। इसके बाद में माता नर्मदा अरब सागर में जाकर मिल गई, जबकि भारत में अन्य नदियां बंगाल की खाड़ी में मिलती हैं। इसी कारण की वजह से माता नर्मदा ने कुंवारी रहने की कसम ली थी।
मध्य प्रदेश की जीवन रेखा कही जाती है माता नर्मदा
माता नर्मदा को प्राचीन समय से ही मध्य प्रदेश की जीवन रेखा कहा जाता है। नर्मदा नदी की उत्पत्ति अमरकंटक के शिखर से हुई है और नर्मदा नदी पूर्व से पश्चिम की तरफ जाती है। नर्मदा नदी अमरकंटक से खंभात की खाड़ी में अरब सागर से जाकर मिलती हैं। नर्मदा नदी भारत की तीसरी सबसे लंबी नदी है।
मध्यप्रदेश में इन लोगों के जीवन हेतु और मध्य प्रदेश को पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाने का कार्य माता नर्मदा ही करती हैं। अतः यही कारण है कि माता नर्मदा को मध्य प्रदेश की जीवन रेखा कहा जाता है।
क्यों की जाती है माता नर्मदा की परिक्रमा
माता नर्मदा भारत की पहली ऐसी नदी है, जिन की परिक्रमा की जाती है। अनेकों ग्रंथों के मुताबिक माता नर्मदा की उत्पत्ति और उनकी महत्वता का विस्तार से वर्णन मिलता है। अनेक कथाओं के अनुसार माता नर्मदा के दर्शन मात्र से ही मनुष्यों के पाप मिट जाते हैं और इतना ही नहीं माता नर्मदा भारत पहली ऐसी नदी है, जिन की परिक्रमा की जाती है।
ऐसा कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति माता नर्मदा की परिक्रमा कर लेता है, उस व्यक्ति के सभी दुख दर्द मिट जाते हैं और मृत्यु के बाद उस व्यक्ति को सीधा स्वर्ग मिलता है अर्थात मोक्ष की प्राप्ति होती है।
क्यों कहां जाता है माता नर्मदा को अविनाशी
कई ग्रंथों में हमें ऐसा देखने को मिला है कि माता नर्मदा की उत्पत्ति भगवान शिव के पसीने से हुई थी और माता नर्मदा को नाम भी भगवान शिव नहीं दिया था। इसके बाद ऐसा भी कहा जाता है कि माता नर्मदा ने कई हजारों वर्षों तक भगवान शिव की तपस्या की और भगवान शिव माता नर्मदा से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन भी दिए।
भगवान शिव के द्वारा माता नर्मदा को बहुत से वरदान दिए गए हैं। माता नर्मदा को अविनाशी होने का भी वरदान प्राप्त है अर्थात किसी भी प्रलय में माता नर्मदा अविनाशी हैं। संपूर्ण विश्व में एकमात्र ऐसी नदी है, जो कि अविनाशी हैं। नर्मदा में पाए जाने वाले पाषाणों के शिवलिंग होने का भी वरदान मिला है।
यही कारण है कि माता नर्मदा में पाए जाने वाले शिवलिंग को बिना प्राण प्रतिष्ठा के ही पूजा जा सकता है। इसके अलावा माता नर्मदा ने अपने तट पर भगवान शिव और पार्वती के साथ ही सभी देवताओं के वास करने का भी वरदान प्राप्त किया है।
FAQ
नर्मदा नदी गुजरात और मध्यप्रदेश में बहने वाली प्रमुख नदी है।
नर्मदा नदी को रेवा नाम से भी जाना जाता है।
अमरकंटक
निष्कर्ष
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