History of Jaisalmer in Hindi: अगर कोई राजस्थान घुमने आये और जैसलमेर ना जाए ऐसा हो ही नहीं सकता, असली राजस्थान तो जैसलमेर में ही देखने को मिलता है। एक ऐसा शहर जहाँ भारत के अनेक इतिहास आज भी जीवित अवस्था में देखने को मिलते है। एक ऐसा शहर जहाँ पर मरुस्थल की महक आती है। जैसलमेर राजस्थान ही नहीं पूरे भारत का सबसे एतिहासिक शहरों में से एक है।
आज हम इस आर्टिकल में जैसलमेर का इतिहास बताने वाले हैं। जैसलमेर अपने आप में बहुत ख़ास है और अपनी खूबसूरती और मरुस्थल से जाना जाता है। जैसलमेर घूमने का मन बना रखा है तो पहले इस शहर का इतिहास जरुर पढना चाहिए। यहाँ हम इस आर्टिकल में जैसलमेर का इतिहास और रोचक तथ्य (History of Jaisalmer in Hindi) बताने वाले हैं।
यहाँ हम जैसलमेर से जुड़ी छोटी-बड़ी सभी जानकारियों को शामिल करेंगे। उम्मीद है आपको हमारा यह आर्टिकल अच्छा लगेगा, तो चलिए शुरू करते है, जैसलमेर के बारें में पढना।
जैसलमेर का इतिहास और रोचक तथ्य | History of Jaisalmer in Hindi
जैसलमेर परिचय बिंदु
शहर का नाम | जैसलमेर |
राज्य | राजस्थान |
देश | भारत |
जनसंख्या | 1,35,286 (2019 जनगणना के अनुसार) |
घनत्व | 26,527/ किलोमीटर 68,705/ मिल |
क्षेत्रफल | 552 मीटर, 738 फिट |
उंचाई | 5.1 km, 2 sq mi |
जैसलमेर की प्रसिद्दी | जैसलमेर शहर में मौजूद हवेलियाँ, मरुस्थल, मिट्टी के टीले, जैसलमेर का किला एंव जैन मंदिरों से प्रसिद्द है। यहाँ पीले पत्थरों से बने भवन भी देखने लायक है। |
विवरण | जैसलमेर शहर, पश्चिमी राजस्थान राज्य, भारत में स्तिथ है। |
जैसलमेर का इतिहास
हिंदुस्तान के सुदूर पश्चिम में स्थित थार के मरुस्थल में जैसलमेर स्थित है। इनकी स्थापना यदुवंशी भाटी के वंशज रावल जैसल द्वारा भारतीय इतिहास के मध्य काल के प्रारंभ में लगभग 1178 ई. जैसलमेर की स्थापना की गई थी। रावल जैसल के महान वंशजों ने भारत के गणतंत्र में परिवर्तन होने तक।
अपनी वंशावली को भंग किए बिना लगभग 770 वर्षों तक लगातार शासन किया, जो अपने आप में एक अनुपम घटना है। सल्तनत काल के लगभग 300 वर्षों के इतिहास में यह राज्य मुगल साम्राज्य से भी लगभग 300 वर्षों तक अपने अस्तित्व को बनाए रखने में सक्षम रहा था। भारत की परिस्थिति चाहे जैसी भी रही मुगल और अंग्रेज आए और गए, राज्य के वंशजों ने अपने वंश के गौरव के महत्व को यथावत रखा।
जैसलमेर का भौगोलिक क्षेत्र
इसका भौगोलिक क्षेत्र 16,062 वर्ग मीटर के विस्तृत भू-भाग में फैला हुआ था। रेगिस्तान की विषम परिस्थितियों में स्थित होने के कारण यहां की जनसंख्या 20 सदी के प्रारंभ में मात्र 76,255 ही रह गई थी।
जैसलमेर की भौगोलिक स्थिति
भारतीय मानचित्र के अनुसार जैसलमेर 20001 से 20002 उत्तरी अक्षांश व 69029 से लेकर 72020 पूर्व देशांतर तक है। परंतु ऐतिहासिक घटनाओं के अनुसार जैसलमेर की सीमाएं सदैव घटती बढ़ती रहती है। इसके अनुसार राज्य का क्षेत्रफल भी कभी कम या ज्यादा हो सकता है।
इस क्षेत्र में दूर-दूर तक स्थाई और अस्थाई दोनों ही रेत के ऊंचे ऊंचे टीले है, जो तेज हवा आंधीयो के साथ-साथ अपनी जगह भी बदलते रहते हैं। इसलिए रेतीली टिलों के मध्य में कहीं-कहीं पर पथरीले पहाड़ और पठार भी स्थित है। इस इलाके का संपूर्ण ढाल सिंधु नदी और कच्छ के रण अर्थात पश्चिम दक्षिण की ओर हैं।
जैसलमेर का भूगोल
जैसलमेर राज्य की भूमि संपूर्ण तरह से रेतीली और पथरीली है। इस कारण यहां का तापमान मई-जून में अधिकतम 45 सेंटीग्रेड तथा दिसंबर जनवरी में न्यूनतम 05 सेंटीग्रेड तक रहता है। इस प्रदेश में जल का कोई भी स्थाई स्रोत नहीं है। अच्छी वर्षा होने पर कई स्थानों पर जल एकत्रित हो जाता है। यहां के जल स्त्रोत का मुख्य स्रोत कुएँ है, जो वर्षा के जल से एकत्रित पानी होता है।
जैसलमेर का मौसम
जनवरी मार्च तक यहां ठंड पड़ती है तब यहां का तापमान 0 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। अप्रैल-जून तक यहां पर गर्मी अत्यधिक मात्रा में होती है। औसत तापमान 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। इस मौसम मध्य में जब सूर्य सिर पर होता है तब उसकी किरणें धार के रेगिस्तान पर पड़ती है। तब यहां की रेत सुनहरी कलर की दिखती है।
यह प्रकृति का एक चमत्कार है कहीं ना कहीं पर्यटकों को इसी कारण जैसलमेर अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। अक्टूबर से दिसंबर तक मानसून और ठंडी के बीच के मौसम में यहां आप ठंड और बारिश दोनों मौसम का लुफ्त उठा सकते हैं।
जैसलमेर शहर की बनावट
संकरी गलियों वाले जैसलमेर शहर बहुत ऊंचे-ऊंचे भव्य आलीशान भवन और हवेलियों के लिए जाना जाता है। यहां की हवेलियां मध्यकालीन शाही राजाओं की याद दिलाती है। जैसलमेर इतने छोटे-छोटे क्षेत्र में फैला है कि पर्यटक यहां पैदल घूमते हुए मरुस्थल भूमि के इस सुनहरे मुकुट को बहुत अच्छे से निहार सकते हैं।
ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर ऐसा कहा जाता है कि जैसलमेर की स्थापना भाटी राव जैसल ने 12वीं शताब्दी में की थी। ऐतिहासिक दृष्टि से देखने पर जैसलमेर शहर पर खिलजी राठौर, मुगल तुगलक आदि ने कई बार आक्रमण किया था, इसके बावजूद जैसलमेर के शाही भवन राजपूत शैली के सच्चे साथी है।
जैसलमेर की विशेषताएँ
जैसलमेर एक ऐसे स्थल पर स्थित है, जिसका भारतीय इतिहास में एक अलग ही महत्व है। भारत के उत्तर पश्चिम सीमा पर इस राज्य का विस्तृत क्षेत्रफल होने के कारण तुर्की के प्रारंभिक हमलों को यहां के शासकों ने न केवल सहन किया बल्कि बहुत अच्छे से उनके साथ युद्ध कर, उन्हें पीछे धकेल कर शेष राजस्थान, गुजरात तथा मध्य भारत को बाहरी आक्रमणकारियों से सदियों तक सुरक्षित रखा।
आर्थिक क्षेत्र में यह राज्य एक साधारण आय वाला तथा पिछड़ा क्षेत्र रहा इसी कारण यहां के शासक कभी शक्तिशाली सेना का गठन नहीं कर सके। इसके बावजूद भी इनके पड़ोसी राज्यों ने इसके विस्तृत भू-भाग को दबाकर नए राज्यों का संगठन कर लिया, जिसमें बीकानेर खैरपुर, मीरपुर, बहावलपुर एवं शिकारपुर शामिल है।
जैसलमेर के इतिहास (History of Jaisalmer in Hindi) को अगर और बारीकी से देखें तो यदुवंश तथा मथुरा के राजा यदुवंश के वंश के वंशजों का पंजाब राजस्थान के भूभाग में पलायन और कई राज्यों की स्थापना आदि के अनेकानेक ऐतिहासिक व सांस्कृतिक मधुर प्रसंग जुड़े हुए हैं। आवागमन के साधन शुलभ वह सरल ना होने के कारण यह शहर अन्य राज्यों के शहर से कटा हुआ था। जैसलमेर में मूल भारतीय संस्कृति लोक शैली के लिए सामाजिक मान्यताएँ निर्माण कला संगीत कला साहित्य स्थापत्य आदि के मूल रूप बनाए रखे हैं।
जैसलमेर की स्थापत्य कला
जैसलमेर की सांस्कृतिक इतिहास (History of Jaisalmer in Hindi) पर अगर नजर डालें तो यहां की स्थापत्य कला का एक अलग ही महत्व है। जैसलमेर में स्थापित कला का सही क्रम राज्य की स्थापना के साथ दुर्ग निर्माण से आरंभ हुआ है जो निरंतर चलता रहा। यहां के स्थापत्य को राजकीय तथा व्यक्तिगत दोनों का लगातार सहयोग मिलता रहा। इस क्षेत्र के स्थापत्य की अभिव्यक्ति यहां की किले गढियों, राजभवनो, मंदिरों, हवेलियों, जलाशयों, छतरियों व जनसाधारण के प्रयोग में लाए जाने वाले मकान आदि से होता है।
जैसलमेर में हर 20 से 30 किलोमीटर के फासले में छोटे-छोटे दुर्ग बने हुए है। दुर्गों का इतिहास 1000 वर्ष का है। मध्ययुगीन इतिहास में इनका बहुत महत्वपूर्ण था। यह उस समय की तात्कालिक राजनीति परिस्थितियों के अनुसार निर्मित किए जाते थे।
दुर्ग की सुंदरता के साथ-साथ इसकी मजबूती और सुरक्षा को भी ध्यान में रखा जाता था। उस समय दुर्ग में एक मुख्य द्वार रखने की परंपरा थी, दुर्गों का निर्माण मुख्य रूप से पत्थरों द्वारा किया जाता है। परंतु किशनगढ़ शाहगढ़ आदि के दुर्ग इसके अपवाद है, यह दुर्ग पक्की ईंटों के बने हैं। प्रत्येक दुर्ग में 4 या इससे अधिक बुर्ज बनाए जाते थे। इसका मुख्य कारण था, यह दुर्गु को मजबूती सुंदरता और सामरिक दृष्टि से संपन्न बनाता था।
जैसलमेर मंदिर स्थापत्य
जैसलमेर नगर व आसपास के क्षेत्र में ऊंचे शिखरों भव्य गुंबदो जैन मंदिरों का स्थापत्य कला की दृष्टि से बहुत बड़ा महत्व है। जैसलमेर शहर में स्थित मंदिरों में प्रथम मंदिर लक्ष्मी नारायण मंदिर है। इसके बाद जैन मंदिर मैं जागती गर्भ ग्रह, मुख्य मंडप, गुढ मंडप, रंगमंडन स्तंभ व शेखर आदि में गुजरात के सोलंकी व बघेल कालीन मंदिरों का स्पष्ट प्रभाव देखने को मिलता है। जैसलमेर से ही करीब 15 किलोमीटर दूर कारीयाप में लोक देवता एवं परम गौ भक्त बापूजी का लगभग 850 ईसवी का प्राचीन मंदिर भी देखने योग्य है।
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जैसलमेर की चित्रकला
चित्रकला की दृष्टि से देखने पर जैसलमेर का अपना एक विशेष स्थान रहा है। जैसलमेर शहर में स्थित संभावनाथ जैन मंदिर जो 1402 से 1416 ईसवी में बना थ तथा शांतिनाथ जैन मंदिर 1436- 1440 ई. और चंद्रप्रभु जैन मंदिर जो 1480 ईस्वी में बना था, इसके अंदर बनी चित्रकला देखने योग्य है। जो प्राचीन भारत के चित्रकारों की प्रतिभा को दर्शाता है।
18-19 वीं शताब्दी में बनी जैसलमेर के प्रसिद्ध हवेलिया स्थापत्य कला की बेजोड़ मिसाल है। इन हवेलियों के अंदर बने भित्ति चित्र काफी सुंदर है। यहां के प्रसिद्ध मेहता परिवार द्वारा बनाई गई हवेली के अंदर की चित्रकला तो बड़ी अद्भुत है। इसी के साथ-साथ नथमल की हवेली तथा किले का प्रसाद और बादल महल ने जैसलमेर की चित्रकला को संसार भर में प्रसिद्ध कर दिया।
जैसलमेर की भाषा
राजस्थान मुख्य भाषा मारवाड़ी है। परंतु जैसलमेर क्षेत्र में दो तरह की भाषा बोली जाती है, पहले नंबर की थली जो थार के रेगिस्तानी इलाके में बोली जाती है, दूसरी मारवाड़ी हैं।
उदाहरण के तौर पर:- लखा, म्याजलार, के इलाके में मालनी घाट भाषा को मिश्रित भाषा बोली जाती है। वहीं परगना सम सहगढ व घोटाडु की भाषा में थाट व हिंदी भाषा की मिश्रण वाली बोलचाल भाषा बोली जाती है। विसनगढ, खुहडी नाचणा आदि पर गणों में जो बहावलपुर सिंध से लगी हुई है।
माड बीकानेरी व सिंधी भाषा का मिश्रण है। इसी तरह लाठी, पोकरण, फलौदी के क्षेत्र में घाट भाषा का मिश्रण है। राजस्थान राजधानी में बोली जाने वाली इन सभी बोलियों का मिश्रण है, जो माड, सिंधी, मालाणी, पंजाबी, गुजराती भाषा का सुंदर मिश्रण।
जैसलमेर का साहित्य
मरुस्थल संस्कृति का का प्रतीक जैसलमेर कला और साहित्य के मुख्य केंद्र रहा है। विक्रम संवत 1500 खतर गच्छाचार्य भद्र सूरी के निर्देश के अनुसार जैसलमेर के महारावल चकदेव के समय गुजरात स्थल पारण जैन ग्रंथों की लाइब्रेरी जैसलमेर के दुर्ग में स्थापित की गई थी। यहाँ रखे हुए 1 ग्रंथों की कुल संख्या 2693 है, जिसमें से 426 तारीख सहित पत्र लिखे हुए हैं।
ताम्रपत्र पर उपलब्ध प्राचीनतम ग्रंथ विक्रम संवत 1117 का है तथा हस्तलिखित ग्रंथ विक्रम संवत 1270 का है। इन ग्रंथों की भाषा प्राकृत, मगधी संस्कृत, अपभ्रंश तथा ब्रज भाषा में है। यहां पर जैन ग्रंथों के अलावा कुछ जैनत्तर साहित्य की रचना हुई, जिसमें काव्य व्याकरण नाटक श्रंगार संख्या मीमांस, न्याय विश्व शास्त्र, आयुर्वेद, योग इत्यादि कई विषय पर उत्कृष्ट रचनाओं का निर्माण हुआ, आज भी यथावत रूप से संग्रहालय में स्थित है।
जैसलमेर का संगीत
लोक संगीत की दृष्टि से जैसलमेर एक विशिष्ट स्थान रहा है। यहां पर प्राचीनतम ऐसे ही मधुर राग गाया जाता है, जिस पर तंबूरे यंत्र का प्रयोग किया जाता है। यहां के कलाकारों ने मनमोहक करने वाले अत्यंत ही सरल और मन मुग्ध कर देने वाले संगीत और गीत की रचना की है।
इन गीत कारों की रचना में लोक गाथाओं पहेली सुभाषित काव्य के साथ-साथ वर्षा सावन तथा अन्य मौसम पशु पक्षी व सामाजिक बंधनों की भावनाओं से ओतप्रोत गीत और संगीत की रचना की है। लोकगीतों के विशेषज्ञों के अनुसार जैसलमेर के लोकगीत बहुत प्राचीन परंपरागत और विशुद्ध है जो बंधे बंधाए रूप में गाए जाते है। जैसे” पधारो म्हारा घर पावणा”
वर्तमान जैसलमेर की देखने लायक जगह
- सोनार किला
- व्यास छतरी
- पटुओ की हवेली
- दीवान नथमल की हवेली
- सलीम सिंह की हवेली
- गडसीसर सरोवर
- जैसलमेर फोर्ट
जयपुर से जैसलमेर कैसे जाएँ?
- जयपुर से जैसलमेर की दूरी 560 किलोमीटर है।
- बस के द्वारा जयपुर से जैसलमेर आने में 10 घंटे तक लग सकते है।
- आप रेलवे मार्ग से भी जयपुर से जैसलमेर आ सकते हैं।
- हवाई मार्ग की सुविधा अभी जैसलमेर में मौजूद नहीं है। अगर फिर भी आना चाहो तो आपको जयपुर से जोधपुर हवाई यात्रा करनी होगी, उसके बाद किसी कैब या बस के माध्यम से जैसलमेर आ सकते है। जोधपुर से जैसलमेर की दूरी 300 किलोमीटर है।
दिल्ली से जैसलमेर कैसे आये?
- दिल्ली से आप रेलवे या बस के माध्यम से जैसलमेर आ सकते है।
- दिल्ली से जैसलमेर की दूरी करीब 760 किलोमीटर है और आपको 14 घंटो का सफर करना पड़ता है।
- हवाई मार्ग से आप जैसलमेर नहीं आ सकते है, इसके लिए आपको जोधपुर आना होगा। उसके बाद ही आप जैसलमेर आ पाएंगे।
अहमदाबाद से जैसलमेर कैसे आये?
- अहमदाबाद गुजरात से जैसलमेर आने के लिए आप बस और रेल दोनों का उपयोग कर सकते है।
- 530 किलोमीटर की यात्रा करके आप अहमदाबाद से जैसलमेर आ सकते हैं।
- आपको अहमदाबाद से जैसलमेर आने में करीब 11 घंटे लग सकते है।
नहीं।
7 दिन में प्रत्येक व्यक्ति पर 8000 रूपए खर्च होते है।
आप सर्दियों में यहाँ घुमने का आनंद ले सकते है, गर्मियों के मौसम में यहाँ पर गर्मी काफी ज्यादा पड़ती है।
जैसलमेर का किला काफी ज्यादा दर्शनीय है।
निष्कर्ष
हमने यहाँ जैसलमेर से जुड़ी लगभग सभी जानकारी दे दी है। आपको “जैसलमेर का इतिहास और रोचक तथ्य (History of Jaisalmer in Hindi)” आर्टिकल कैसा लगा, हमें कमेंट में जरुर बताएं। जैसलमेर से जुड़ा अगर कोई सवाल है तो आप कमेंट में पूछ सकते हैं। अगर जानकारी अच्छी लगी है तो अपने दोस्तों के साथ शेयर जरुर करें और हमारी वेबसाइट को बुकमार्क कर लेंवे।
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