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स्वर्ण मंदिर का इतिहास और कब व किसने बनवाया?

History of Golden Temple in Hindi: प्राचीन समय से ही हमारा देश धर्म के मामलों में अखंडता में एकता वाला देश रहा है। इस देश में सभी धर्मों को एक समान इज्जत और सम्मान दिया जाता है।

ऐसे ही धर्म में अखंडता दिखाने वाले इस देश में कई तरह के मंदिर, मस्जिद और चर्च, इसके अलावा और भी कई धार्मिक केन्द्र बने हुए हैं। इन सब में से एक स्थान यह भी है, जिसे हम स्वर्ण मंदिर के नाम से जानते है। इस मंदिर के बारे में कई कहानियां इतिहास के पन्नों में मौजूद हैं, जिनमे से कुछ के बारे में हम आपको इस लेख में बता रहे हैं।

History of Golden Temple in Hindi
History of Golden Temple in Hindi

आपको इस लेख में स्वर्ण मंदिर का इतिहास (History of Golden Temple in Hindi) के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी उपलब्ध करने जा रहे है। अतः आप इस लेख को अंत पूरा जरूर पढ़े ताकि आपको इसके बारे में पूरी जानकारी मिल सके।

स्वर्ण मंदिर का इतिहास (History of Golden Temple in Hindi)

इस मंदिर का इतिहास 16वीं शताब्दी से माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर के निर्माण की प्रक्रिया 1588 से शुरू हुई थी। इस मंदिर का निर्माण सिखों के चौथे गुरु रामदास ने करवाया था। इस मंदिर के निर्माण के पीछे गुरु रामदास का उद्देश्य साम्प्रदायिक सद्भावना का था।

वे चाहते थे कि गैर साम्प्रदायिक लोग भी इस मंदिर में आकर गुरु साहब की आराधना कर सके। इस मंदिर की नींव लाहौर के काफी प्रसिद्ध सूफी संत मियां मीर ने रखवाई थी। इस मंदिर का दरबार साहिब के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर के बनने के बाद उसको कई बार नष्ट करने की कोशिश की गई और इस काम में कुछ लोग आंशिक रूप से सफल भी हुए थे।

इस मंदिर में कई लोगों की सच्ची श्रद्धा भी जुड़ी थी। शायद यह ही वजह थी कि लोग इस मंदिर को नष्ट करने में पूर्ण रूप से सफल नहीं हो पाये थे। ऐसा भी माना जाता है कि इस मंदिर के निर्माण के समय यहां पर सिखों के पवित्र धर्म को भी स्थापित किया गया था।

स्वर्ण मंदिर का अन्य नाम

स्वर्ण मंदिर केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व भर में प्रसिद्ध मंदिर हैं। ना केवल सिख धर्म के लोग गुरुद्वारे में आते हैं बल्कि सभी धर्म के लोग यहां पर आते हैं और यहां के बेहद सुंदर दृश्य का लोगों को बहुत ही आकर्षित करता है।

पंजाब में सबसे प्रसिद्ध मंदिर स्वर्ण मंदिर ही है। इसका कारण यह है कि यह बहुत विशाल है तथा साथ ही साथ इस मंदिर को शुद्ध सोने की मदद से बनाया गया है। इस भव्य स्वर्ण मंदिर का एक दूसरा नाम हरिमंदिर साहिब है, बहुत लोग इस मंदिर को इसी नाम से जानते हैं।

स्वर्ण मंदिर के खुलने एवं बंद होने का समय क्या है?

यदि आप भी स्वर्ण मंदिर जाना चाहते हैं और वहां घूमना चाहते हैं और आप सोच रहे हैं कि स्वर्ण मंदिर के खुलने का समय कब से कब तक है, हम कब जाएं कि स्वर्ण मंदिर खुला रहे?

तो हमने नीचे स्वर्ण मंदिर के खुलने एवं बंद होने का समय बताया है। स्वर्ण मंदिर के सभी कार्यों के लिए अलग-अलग समय पारित किया गया है, जिसके बारे में नीचे विस्तार पूर्वक जानकारी दी है:

स्वर्ण मंदिर की किवाड़ खुलने का समयभोर में 2:30 बजे
स्वर्ण मंदिर में कीर्तन का समयजब किवाड़ खुलता है। (2:30 बजे)
श्री अकाल तख्त साहिब से पालकी साहिब के लिए प्रस्थान का समयभोर में 4:30 बजे
सुबह के पहले हुकमनामे का समयभोर में 5:00 बजे
सुबह के दूसरे हुकमनामे का समयसुबह 6:45 बजे
सुबह की पहली अरदास का समयसुबह 5:00 बजे (सुबह का पहला हुकमनामा हो जाने के बाद 5:30 पर सुबह की पहली अरदास होती है।)
दूसरी अरदास का समयसुबह 6:45 बजे (सुबह के दूसरे हुकमनामा का समय तथा दूसरी अरदास का समय एक ही है)
रात के हुकमनामा का समय9:45 पर
हरिमंदिर साहिब से पालकी साहिब के लिए प्रस्थान का समय10:00 बजे (हरमंदिर साहिब से पालकी साहिब के लिए प्रस्थान हो जाने के बाद मंदिर को 10:00 बजे बंद कर दिया जाता है।)

स्वर्ण मंदिर जाने के लिए उचित समय कौन सा रहेगा?

वैसे तो इस मंदिर में जाने के लिए विशेष समय की कोई पाबंदी नहीं है। पर ऐसा माना जाता है कि अगर आप इस मंदिर का पूरी तरीके से आनन्द लेना चाहते हैं यानी यहां पर होने वाली गुरू बाणी को शांति से बैठकर सुनना चाहते है तो इसके लिए आपको ऐसे समय में जाना होगा जब यहां पर ज्यादा लोगों की भीड़ न हो।

क्योंकि तीज त्यौहार में यहां पर ज्यादा लोगों को रुकने की अनुमति नहीं है। इस मंदिर में जाने का उचित समय यह है कि जब आप वहां पर जाये और उस समय कोई विशेष त्योहार न हो।

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स्वर्ण मंदिर कैसे पहुंचे?

स्वर्ण मंदिर पंजाब राज्य के अमृतसर शहर में स्थित है, जो पूरी तरह से वायु, रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। आप इनमें में अपनी सुविधा के अनुसार चयन कर सकते हैं।

स्वर्ण मंदिर के आसपास घूमने की जगहें

अगर स्वर्ण मंदिर के ज्योग्राफिकल ऐरिये की बात करें तो यह मंदिर अमृतसर शहर के बीचो-बीच बसा हुआ है। वहीं इस मंदीर के आसपास कई ऐसी जगह है, जो इस मंदिर पर चार चांद लगा देती है। इस मंदिर के चारों ओर चार दरवाजे बने हुए है।

इस मंदिर के आसपास आपको अमृतसर का शानदार बाजार देखने को मिल जाएगा। इस बाजार में आप शॉपिंग भी कर सकते है। साथ ही इस मंदिर के आसपास आपको गुरुद्वारे भी मिल जायेंगे, जहां पर आप जाकर रात्रि विश्राम कर सकते हैं।

इस मंदिर के पास एक जलियावाला बाग भी देखने को मिलेगा। यह वही जलियावाला बाग है, जहां पर जनरल डायर ने नरसंहार करवाया था, जिसमें करीबन 1500 से भी ज्यादा बेकसूर लोग मारे गये थे। इन सब के अलावा यहां पर कई ऐसे स्थान है, जो घूमने के लिए सही है। जिसमें थड़ा साहिब, गुरूद्वारा शहीद बंगा इत्यादि शामिल है।

स्वर्ण मंदिर के पास बना एक शानदार सरोवर

अमृतसर शहर में बने इस सरोवर के बारे में कहा जाता है कि इस सरोवर को भी गुरू श्री रामदास जी ने ही बनवाया था। हम जिस स्वर्ण मंदिर की बात कर रहे हैं, वह इस सरोवर के बीचो-बीच बना हुआ है और सरोवर का पानी इसके चारो तरफ फैला हुआ है।

इस सरोवर का जल अमृत के समान माना जाता है, इसलिए सरोवर को अमृतसर के नाम से भी संबोधित किया जाता है। ऐसा भी माना जाता है कि इस शहर का नाम भी इस सरोवर के नाम पर ही पड़ा था। इस सरोवर में स्नान करने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। यह सरोवर साम्प्रदायिकता का प्रतीक माना जाता है।

स्वर्ण मंदिर के नियम

अमृतसर में बने इस मंदिर के बारे में कुछ नियम भी है, जो आपको जान लेना चाहिए। इन नियमों के बारे मे वहां जाने से पहले जान लें, यह अनिवार्य है।

  • इस मंदिर में जाने से पहले सब के लिए यह बेहद जरूरी है कि वह अपना सर कपड़े से ढक लेवें, महिला अपना सर चुन्नी से ढक सकती है।
  • इस मंदिर मे प्रवेश करने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि आपके पहने हुए कपड़े ऐसे हो, जिससे आपका पूरा बदन ढका हुआ हो। आधे बदन पर कपड़े पहनने वाले लोग इस मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकते हैं।
  • मांस, मदिरा, शराब इत्यादि का सेवन करके इस मंदिर में कोई प्रवेश नहीं कर सकता है। बेहतर यह होगा कि आप इस मंदिर में जाने से पहले इस बात को सुनिश्चित कर लें।
  • इस मंदिर में फोटो खींचने की मनाही है। अगर आप फोटो खींचना है तो उसके लिए आपको पहले मंदिर प्रबंधन से इजाजत लेनी होती है।
  • स्वर्ण मंदिर में आपको शांति बनाये रखने की सलाह दी जाती है। बेहतर होगा कि आप इस मंदिर में शांति रख इस मंदिर प्रशासन की सहायता करें।

मंदिर में दिया जाता है लंगर

यह इस मंदिर की परम्परा है, जिसे हर लोगों द्वारा काफी धूमधाम से सेलिब्रेट किया जाता है। इस मंदिर में यह प्रथा 16वीं शताब्दी से चली आ रही है। इस परम्परा की शुरुआत सिखों के प्रथम गुरू गुरू नानक देव द्वारा की गई थी। इस लंगर की प्रथा इसलिए काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें लोगों को जमीन पर बिठाकर खाना खिलाया जाता है और इसे ही लंगर कहते है।

भगवान के घर सब के लिए एक समान होते हैं, इसलिए इस मंदिर में सबको एक ही समान खाना परोसा जाता है। इस मंदिर के सेवादार ही आपको खाना परोसते है और सबको एक ही तरह नीचे बैठा कर ही लंगर दिया जाता है। यहां पर बनने वाले लंगर की मात्रा इतनी होती है कि यहां पर एक साथ 5000 लोग एक साथ खाना खा सकते हैं।

स्वर्ण मंदिर के बारे में कुछ तथ्य

इस मंदिर के बारे में आप इस लेख में ऊपर पढ़ चुके हैं, चलिए अब देखते है इस मंदिर के बारे में कुछ तथ्य

  • ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर की नींव लाहौर के सूफी संत द्वारा रखी गई थी, जिसे इतिहास में मियां मीर के नाम से जाना जाता है। वही इस मंदिर को मुख्य रूप देने के लिए सिख धर्म के तीसरे गुरू अमर दास को माना जाता है।
  • ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर सिखों के प्रथम धर्मगुरु गुरु गोविन्द सिंह ने इस स्थान पर आराधना की थी। इस मंदिर के चारों दिशाओं में 4 द्वार है, यह इसलिए है कि ऐसा माना जाता है इस मंदिर में कोई भी धर्म का व्यक्ति आ सकता है।
  • इस मंदिर को जिस स्थान पर बनाया गया है, वहां पर एक सरोवर है और इस मंदिर को इस सरोवर के बीच में ही बनाया गया है। इस मंदिर में जाने के लिए एक विशेष पुल का निर्माण भी किया गया है।
  • इस मंदिर के बारे में यह भी एक खास तथ्य है कि यह मंदिर सफेद मार्बल से बना है और इसके ऊपर असली सोने से लेप किया गया है।
  • भारत के इस स्वर्ण मंदिर में सबसे बड़ा किचन है, जहां पर यहां आने वाले भक्तों के लिए लंगर बनाया जाता है। यहां पर एक बार में बनने वाले लंगर की मात्रा इतनी अधिक है कि यहां पर एक साथ 5000 से भी अधिक लोग एक साथ खाना खा सकते हैं।
  • इस मंदिर को साम्प्रदायिक सद्भावना का प्रतीक माना जाता है। इस मंदिर में सभी धर्म के लोग आ-जा सकते हैं।

स्वर्ण मंदिर में बाबा दीप सिंह का निधन

बाबा दीप सिंह ने एक प्रण लिया था कि उनका प्राण केवल और केवल स्वर्ण मंदिर में ही निकलेगा और उन्होंने अपने इस वचन को अर्थात अपने इस प्रण को बखूबी तरीके से निभाया।

यह बात है 1757 ईसवी की जब जहान खान ने बहुत अधिक मात्रा में सैनिकों के साथ अमृतसर पर आक्रमण कर दिया था। बाबा दीप सिंह इतने बहादुर थे कि उन्होंने लगभग 5000 सैनिकों से लड़ाई की तथा इस युद्ध के अंतर्गत बाबा दीप सिंह का सिर धड़ से अलग हो गया।

परंतु बाबा दीप सिंह ने हार नहीं मानी। उन्होंने अपने वचन को पूरा करने के लिए अपना कटा हुआ सिर अपने हाथ में पकड़ कर पवित्र स्वर्ण मंदिर पहुंच गए और अपनी अंतिम सांस वही ली।

FAQ

क्या यह मंदिर वास्तव में सोने से बना है?

हाँ! यह मंदिर शुद्ध सोने से बना है।

स्वर्ण मंदिर किस वजह से इतना प्रंसिद्व है? 

स्वर्ण मंदिर के प्रसिद्ध होने की दो वजह है पहली, साम्प्रदायिक सद्भावना और दूसरी इस मंदिर की बनावट।

यह स्वर्ण मंदिर कितना पुराना है?

स्वर्ण मंदिर का निर्माण सोलहवीं शताब्दी से माना जाता है।

स्वर्ण मंदिर कहाँ पर स्थित है?

स्वर्ण मंदिर पंजाब राज्य के अमृतसर शहर के बीचों बीच स्थित है।

स्वर्ण मंदिर बनाने में लगाये गये सोने की दर कितनी है?

स्वर्ण मंदिर बनाने के लिए तकरीबन 160 किलोग्राम सोने की खपत हुई मानी जाती है, जिसकी किमत तकरीबन 50 करोड़ रूपये है।

स्वर्ण मंदिर के संस्थापक कौन है?

इस मंदिर का निर्माण सिखों के चौथे गुरु रामदास ने करवाया था। इस मंदिर के निर्माण के पीछे गुरु रामदास का उद्देश्य साम्प्रदायिक सद्भावना का था। वे चाहते थे कि गैर साम्प्रदायिक लोग भी इस मंदिर में आकर गुरु साहब की आराधना कर सके।

स्वर्ण मंदिर किसने बनवाया था?

इस मंदिर का निर्माण सिखों के चौथे गुरु रामदास ने करवाया था।

स्वर्ण मंदिर का निर्माण कब हुआ?

ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर के निर्माण की प्रक्रिया 1588 से शुरू हुई थी।

निष्कर्ष 

इस लेख में आपको भारत के अमृतसर (पंजाब) में स्थित सबसे शानदार मंदिर स्वर्ण मंदिर का इतिहास (History of Golden Temple in Hindi) के बारे में बताया गया है। उम्मीद करते है आपको यह लेख पसंद आया होगा, इसे आगे शेयर जरूर करें। आपको यह लेख कैसा लगा, हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

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Sawai Singh
Sawai Singh
मेरा नाम सवाई सिंह हैं, मैंने दर्शनशास्त्र में एम.ए किया हैं। 2 वर्षों तक डिजिटल मार्केटिंग एजेंसी में काम करने के बाद अब फुल टाइम फ्रीलांसिंग कर रहा हूँ। मुझे घुमने फिरने के अलावा हिंदी कंटेंट लिखने का शौक है।

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