History of Babar in Hindi: भारत पर मुगल सल्तनत ने तकरीबन 300 साल तक राज किया था। इस दौरान मुगल सल्तनत में कई ऐसे शासक भी हुए, जिन्होंने मुगलों की शान को हमेशा बना के रखा। हम बात कर कर रहे है मुगल शासक बाबर की, जो अपने शौर्य के लिए इतिहास में जाना जाता है।
बाबर को एक शासक के साथ एक योद्धा के रूप में भी जाना जाता है। इस लेख में आपको बाबर का इतिहास और जीवन परिचय (babar history in hindi) के बारे में ही बताया जा रहा है। अतः आप इस लेख को अंत तक पढ़े ताकि आपको इसके बारे में पूरी जानकारी मिल सके।
बाबर का जीवन परिचय (History of Babar in Hindi)
पूरा नाम | ज़हीरुद्दीन मुहम्मद बाबर |
जन्म और जन्म स्थान | 14 फ़रवरी 1483, फ़रग़ना वादी (उज़्बेकिस्तान) |
माता-पिता | उमर शेख़ मिर्ज़ा (पिता), क़ुतलुग़ निगार ख़ानम (माता) |
भाई | चंगेज़ खान |
पत्नियाँ | आयेशा सुलतान बेगम, जैनाब सुलतान बेगम, मौसमा सुलतान बेगम, महम बेगम, गुलरुख बेगम, दिलदार बेगम, मुबारका युरुफझाई, गुलनार अघाचा |
पुत्र-पुत्रियाँ | हुमायूं, कामरान मिर्जा, अस्करी मिर्जा, हिंदल मिर्जा, फख्र -उन-निस्सा, गुलरंग बेगम, गुलबदन बेगम, गुलचेहरा बेगम, अल्तून बिषिक, कथित बेटा |
शासनकाल | 20 अप्रैल 1526 – 26 दिसंबर 1530 |
धर्म | इस्लाम |
वंश | तैमूरी राजवंश |
आत्मकथा | बाबरनामा |
संस्थापक | मुगल वंश |
कब्र | बाग़-ए-बाबर, काबुल |
उतराधिकारी | हुमायूँ |
इमारतें | बाबरी मस्जिद, जमा मस्जिद, पानीपत मस्जिद |
मृत्यु और स्थान | 26 दिसम्बर 1530, आगरा |
बाबर का जन्म
बाबर का जन्म उज़्बेकिस्तान फरगना घाटी फ्नुकड़ में 14 फरवरी 1483 को हुआ था। बाबर के पिता का नाम उमर शेख मिर्जा था, जो स्वयं फरगना घाटी के एक शासक थे और माता का नाम कुतलुग निगार खानम था।
बाबर का आरम्भिक जीवन
भारत के इतिहास में मुगल सम्प्रदाय काफी ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। इसी मुगल संप्रदाय की नींव रखने वाले बाबर ने भारत में में करीब 300 साल तक राज किया है। बाबर ने अपने पिता की मृत्यु के बाद उनका पूरा काम संभाला था। बाबर ने जब अपने पिता की मृत्यु के बाद काम संभाला था तब बाबर की उम्र मात्र 12 साल थी। बाबर को बचपन से ही काफी महत्वाकांक्षी माना जाता था।
बाबर ने तुर्किस्तान के फरगन प्रदेश को जीत कर उस राज्य के राजा बन गया था। बाबर सिर्फ एक ही बात पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करता था, वह था उनका लक्ष्य। बाबर स्वयं चंगेज का परिवार का ही बताते है। बाबर की माने तो चंगेज खान उनकी माता साइड का वंशज था।
बाबर के खून में दो महान शासकों का खून था, जिस वजह से वह एक महान शासक बना। ऐसा माना जाता है बाबर एक महान योद्धा था। बाबर अपनी कम उम्र से ही भूमि में उतर गये था और उन्होंने अपने जीवन में कई सारे युद्ध, हार-जीत और कई संधि विच्छेद देखे थे।
बाबर का व्यक्तित्व शाहसिक, आकर्षक, संस्कृति उतार-चढ़ाव, धानी प्रतिभा और सैन्य प्रतिभा जैसी खूबियों से भरा हुआ था। बाबर एक प्रतिभाशाली तुर्की कविता इसे प्रकृति से बेहद प्रेम था, इसीलिए इसने अपने शासनकाल में कई बगीचों का निर्माण करवाया था।
बाबर को उज्बेकिस्तान का राष्ट्रीय नायक माना जाता था। बाबर के द्वारा लिखी गई कविताएं उज्बेकिस्तान की लोकप्रिय उजबेक लोकगीत बन गई। साल 2005 में अक्टूबर में पाकिस्तान ने भी उसके सम्मान में उसके नाम से बाबुल क्रूज मिसाइल को विकसित किया था।
बाबर का भारत आना
भारत में अपना साम्राज्य स्थापित करने से पहले बाबर मध्य एशिया में अपना साम्राज्य स्थापित करना चाहता था। परन्तु वहाँ उसे कोई विशेष सफलता नहीं मिली तो वह भारत की और बढ़ा और भारत आकर यह पर अपना साम्रज्य स्थापित किया।
बाबर जब पहली बार भारत आया था, उस समय भारत की राजनीति उसके एकदम अनुकूल थी। बाबर जब भारत आया था, उस समय दिल्ली के सुल्तान लड़ाईया हार रहा था तब बाबर को यह मौका अच्छा लगा और उसने भारत में अपना साम्राज्य स्थापित करना आरम्भ किया। उस समय दिल्ली और उत्तरी भारत के कुछ हिस्सों पर राजपूतों का राज था और उस क्षेत्र के आसपास के क्षेत्र स्वतंत्र थे।
बाबर जब भारत आया था, उस समय दिल्ली का सुल्तान इब्राहिम लोदी था, जो कि शासन करने में असमर्थ था। इस बात से नाराज आलम खान ने बाबर को भारत आने के न्योता भेजा और उन्हें भारत बुलाया। बाबर को यह न्योता बहुत पसंद आया और उसने फिर भारत की और रुख किया। भारत आने के बाद बाबर ने दिल्ली में अपना साम्राज्य स्थापित किया।
बाबर का शारीरिक जीवन
शारीरिक सुरक्षा करने के लिए बाबर काफी सचेत था। बाबर को योग करना काफी पसंद था। बाबर के बारे में कहा जाता है कि यह अपने दोनों कंधे पर दो लोगों को बैठा कर भागा करता था। इतना ही नहीं, बाबर ने दो बार गंगा नदी तैर के पार की हैं।
बाबर का वैवाहिक जीवन
भारत के इतिहास को पढ़े तो बाबर की कुल 11 पत्नियां थी। बाबर की उन 11 पत्नियों से उसको कुल 20 बच्चे उत्पन्न हुए थे। आयशा सुल्तान बेगम, जैनाब सुल्तान बेगम, मौसम सुल्तान बेगम, महम बेगम, गुलरूख बेगम, दिलदार बेगम, मुबारका युरुफजई और गुलनार अघाचा इत्यादि औरतों को उसकी बेगम के तौर पर जाना जाता था। बाबर ने अपने बड़े बेटे हुमायूं को अपना उत्तराधिकारी बनाया था, जिसने उसकी मृत्यु के बाद भारत में शासन किया था।
बाबर की प्रजा
फारसी भाषा में मंगोल जाति के लोगों को मुगल कहकर पुकारा जाता था। बाबर की प्रजा में मुख्य रूप से फारसी और तुर्की लोग शामिल थे। बाबर की सेना में खासतौर पर फारसी लोग शामिल थे। तुर्क, मध्य एशियाई कबीले के अलावा बाबर के राज्य और उनकी सेना में पश्तो और बर्लाव जाति के लोग शामिल थे।
बाबर का भारत पर पहला आक्रमण
बाबर ने भारत पर अपना पहला आक्रमण 1519 ई० में बाजौर पर किया था और इस आक्रमण में बाबर ने भेरा के किले को जीता था। इस युद्ध और इस घटना का वर्णन इतिहास के स्त्रोत बाबरनामा में भी मिलता है। इतिहास के स्त्रोत के अनुसार बाबर ने इस युद्ध मेंपहली बार बारूद और तोपखाने का इस्तेमाल किया था।
बाबर का भारत पर द्वितीय आक्रमण
1519 में सितंबर को बाबर ने भारत की ओर दोबारा अभियान शुरू किया। यूसुफजई अफ़गानों को अपने अधीन करने के लिए बाबर खेबर दर्रे से आगे बढ़ा। उसके बाद बाबर ने पेशावर की किलेबंदी कर दी।
भारत के विरुद्ध आगामी कार्यवाहीयों में उपयोग करने के लिए रसद-संग्रह से सम्पर्क बनाया। लेकिन जब उसे बदख्शा से उपद्रवों की सूचना मिली तो बिना लक्ष्य को पूरा किए वह काबुल लौट गया।
बाबर का भारत पर तीसरा आक्रमण
भारत पर दूसरे आक्रमण करने के समय बिना लक्ष्य को पूरा किए वह काबुल लौट गया, जिसके बाद 1520 ईसवी में बाबर ने दोबारा भारत पर आक्रमण करने के लिए तीसरा अभियान शुरू किया। इस बार बाबर ने बैजोर तथा भेरा नगर को पुनः अधिकृत कर लिया। उसके बाद वह सियालकोट की ओर आगे बढ़ा, वहां पर बिना प्रतिरोध के ही लोगों ने बाबर की अधीनता को स्वीकार कर लिया।
लेकिन सैमदपुर की जनता ने उसकी अधीनता को स्वीकार करना पसंद नहीं किया, जिसके बाद उन पर बल का प्रयोग किया गया। इसके बाद बाबर को कंधार से उपद्रव की सूचना मिली, जिसके बाद लगभग 2 वर्षों तक वह शाहवेग के विरुद्ध कार्यवाही करने में व्यस्त रहा। उसके बाद 1522 में छलपूर्वक उसने कंधार के दुर्ग को जीत लिया।
यह भी पढ़े: जलाल उद्दीन मोहम्मद अकबर की जीवनी और इतिहास
बाबर का चौथा आक्रमण
बाबा का चौथा आक्रमण लगभग 1524 ईसवी को हुआ। उस समय दिल्ली का सुल्तान इब्राहिम लोदी था। उस समय इब्राहिम लोधी और दौलत खान के बीच अनबंध थी। पंजाब का स्वतंत्र शासक बनने की लालसा लिए वह बाबर को अपना सम्राट बनाने के लिए निमंत्रण दिया।
15 से 24 ईसवी में बाबर ने निमंत्रण को स्वीकार किया, जिसके बाद उसने एक शक्तिशाली सेना बनाई और फिर लाहौर की ओर आगे बढ़ा। इसी दौरान दौलत खां को हराने के लिए इब्राहिम लोदी ने अपनी कुछ सेना भेजी और उस पर जीत प्राप्त की। उसके बाद वो आगे लाहौर को भी अधिकृत कर लिया। उसके बाद वह दीवालपुर की ओर आगे बढ़ा, उसे भी ध्वस्त करके अधिकृत कर लिया। आगे इसने पंजाब को भी अधिकृत करने का प्रयास किया।
बाबर का पानीपत का युद्ध
बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच पानीपत की पहली लड़ाई हुई थी। इतिहास की यह लड़ाई अप्रैल 1526 ई० में बाबर और भारत के सुल्तान इब्राहिम लोदी के बीच हुई थी, यह युद्ध पानीपत के मैदान में हुई थी। कई इतिहासकार इस बात को स्वीकार करते हैं कि इस युद्ध से पहले बाबर ने करीब 4 बार जांच पड़ताल की थी ताकि उसे इस युद्ध में जीत मिल सके।
इस युद्ध के साथ मेवाड़ के राजा राणा संग्राम सिंह भी यह चाहते थे कि बाबर इब्राहिम लोदी से युद्ध करें और इस युद्ध में विजय प्राप्त करें। क्योंकि इब्राहिम लोदी राणा सांगा का शत्रु था।
मेवाड़ के राजा राणा सांगा ने भी अफगान से बाबर को भारत आकर इब्राहिम लोदी से युद्ध करने का निमंत्रण दिया था। इन दोनों के युद्ध में बाबर को जीत मिली थी और इसी के साथ इब्राहिम लोदी खुद को हारता देख कर खुद से स्वयं मौत को गले लगा लिया था।
युद्ध नीति की व्यूह-रचना
इस लड़ाई में बाबर ने अपनी फौज की सुरक्षा के लिए उनके आगे 700 गतिशील गाङियों जिसे ’अराबा’ कहा जाता था, उसके पंक्ति को गीली खाल की रशों से आपस में बांधकर खङा कर दिया था। उन गाड़ियों के बीच सैनिक आसानी से निकल कर आक्रमण कर सके, इसीलिए गाड़ियों के बीच काफी रास्ते को छोड़ रखा था।
उसने दाएं ओर उस्ताद अली की सेना और बाएं ओर मुस्तफा खान को तैनात कर दिया था। उसने इस युद्ध में तोपखाने का प्रयोग किया था। तोपखाने के पीछे उसने अग्रगामी रक्षकों का जमाव रखा था। जिसके पीछे सेना का केंद्र स्थल था, जिसे गुल कहा जाता था। यहां पर बाबर स्वयं संचालन के लिए उपस्थित था। बाबर ने सेना के बाएं अंग में कुछ तुलगुमा को नियुक्त किया और दाएं ओर भी कुछ दूर दूसरा तुलगमा नियुक्त किया गया था।
पानीपत युद्ध के बाद
भारत के हिन्दू राजाओं को लगता था कि बाबर पानीपत का युद्ध जीत कर भारत से चला जाएगा पर ऐसा नहीं हुआ। बाबर ने इसके बाद भारत में ही अपने साम्राज्य की नींव रखने की सोची और यही रह गया।
खानवा की लड़ाई
जिस राणा सांग ने कभी बाबर को भारत आकर इब्राहीम लोदी से युद्ध लड़ने के लिए आमंत्रित किया था, इब्राहीम लोदी से युद्ध लड़ने और जितने के बाद बाबर भारत में ही रह गया और यहां रह कर राणा सांगा को युद्ध के लिए चुनौती दी। परिणाम स्वरूप दोनों के बीच खानवा का युद्ध हुआ। खानवा वर्तमान में राजस्थान के भरतपुर में के छोटी सी जगह है।
इतिहास का यह युद्ध बाबर और राणा सांगा के बीच 16 मार्च 1527 को हुआ था। इतिहासकार ऐसा मानते हैं बाबर के खिलाफ इस युद्ध में राजपूत पूर्ण वीरता से लड़े थे। वही बाबर ने इस युद्ध में तोपखाने का इस्तेमाल किया था और इस युद्ध और साम्प्रदायिक युद्ध बना दिया था।
व्यूह-रचना
खानवा की लड़ाई में भी बाबर ने व्यू रचना पानीपत के युद्ध की तरह ही रखी थी। उसने इसमें सामने के मोर्चे पर बिना बेल के बेलगाड़ी को आपस में लोहे की जंजीरों से बांधकर रखा था। गाड़ियों के कतार के पीछे बाबर ने तो खाने की एक पंक्ति भी खड़ी कर रखी थी, जिसका कमान निजामुद्दीन खलीफा के हाथ में था। बाबर स्वंयम मध्य में स्थित होकर उसने दिलावर खाँ और अन्य हिंदुस्तानी नवाबों को लेकर दाहिने पक्ष को संभाला।
घाघरा का युद्ध
इब्राहिम लोदी और बाबर को हारने के बाद भी बाबर के सामने चुनौतियों कम नहीं थी। बंगाल और बिहार के शासक बाबर को देश से बाहर भगाना चाहते थे। इस समय बंगाल और बिहार में अफगानी शासक शासन करते थे, जो बाबर को देश से भगाना चाहते थे।
इसी विषय को लेकर बाबर और अफगान शासकों के बीच घाघरा ने मैदान में भयंकर युद्ध हुआ था। बाबर को इस युद्ध में जीत मिली और इसके बाद बाबर ने भारत के राज्यों को लूटना चालू कर दिया, इसके भविष्य में कई परिणाम हुए।
बाबर के युद्ध
युद्ध का नाम | वर्ष |
पानीपत का युद्ध | 1526 |
ख़ानवा का युद्ध | 1527 |
चंदेरी का युद्ध | 1528 |
घाघरा का युद्ध | 1529 |
बाबर की क्रूरता
बाबर ने घाघरा के युद्ध के बाद तो देश में लूटमार चालू कर दी और देश में कई राज्यों को बुरी तरीके से लूटा। बाबर ने हिन्दुओं का जबरन धर्म परिवर्तन करवाया। बाबर को एक अय्याश प्रकार का आशिक माना जाता था। भारत में बाबर ने पंजाब, दिल्ली और बिहार राज्यों में अपने साम्राज्य की स्थापना की। बाबर की किताब बाबरनामा में उसके इतिहास की कई कहानियां लिखी मिलती है।
यह भी पढ़े: औरंगजेब का जीवन परिचय और इतिहास
बाबर की स्थापत्य कला
- बाबर ने इन दोनों स्मारकों के अतिरिक्त अन्य कई स्मारकों का निर्माण कराया। बाबर ने भारत में फारसी कला का खास तौर पर विस्तार किया। बाबर को बागो का बहुत शौक था। इसीलिए उसने आगरा में ज्यामितीय विधि से एक बाग का निर्माण करवाया, जिसे नूरे अफगान के नाम से जाना जाता है। हालांकि अब इसे आराम बाग भी कहा जाता है। बाबा ने सड़कों को नापने के लिए एक माप का प्रयोग किया था, जिसका नाम ’गज-ए-बाबरी’ था। यह मापक आगे भी कई सालों तक चलता रहा।
- बाबर ने मूबियाना नामक एक पद शैली का भी विकास किया था।
- बाबर ने ’रिसाल-ए-उसज’ की रचना की, जिसे ’खत-ए-बाबरी’ भी कहा जाता है।
- बाबर ने तुर्की भाषा में “दीवान” नाम का एक काव्य संग्रह का संकलन भी करवाया था।
- वर्तमान अयोध्या शहर में रामकोट में राम मंदिर के जगह पर बाबर ने अपने प्रमुख सेनापति मीर बांकी के निगरानी में यहां पर एक मस्जिद बनाई, जो बाबरी मस्जिद के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
- 1526 में इब्राहिम लोदी के साथ पानीपत के युद्ध में इब्राहिम लोदी को बाबर ने करारी हार दी। इस युद्ध में विजय के बाद बाबर ने पानीपत विजय के प्रतीक के रूप में “पानीपत मस्जिद” का निर्माण करवाया था।
बाबर को मिली उपाधि
बाबर को उसके शासनकाल में कई सारी उपाधि दी गई:
- मिर्जा – यह उपाधि बाबर के पिता ने बाबर को दी थी।
- कलन्दर – बाबर ने अपने शासनकाल में बहुत ज्यादा मात्रा में धन का वितरण प्रजा में किया था, जिस कारण इसे कलंदर की भी उपाधि मिली थी।
- गाजी – यह उपाधि बाबर ने 1527 ई. में खानवा युद्ध के पश्चात् धारण की थी।
- पादशाह (बादशाह) –मिर्जा की उपाधि के बाद बाबर बादशाह को उपाधि मिली। यह उपाधी बाबर ने 1504 ईसवी में काबुल पर अधिकार प्राप्त कर लेने के बाद धारण की थी।
- खाकान – बाबर ने 1526 में स्वयं को ’खाकान’ कहा था और उसने मंगोलों का यह लकब धारण किया था।
इसके अतिरिक्त बाबर को उपवनों का राजकुमार,जीवनी लेखकों का राजकुमार, हजरत-फिरदौस-मकानी और मालियों का मुकुट (राजकुमार) जैसी अन्य उपाधि भी दी गई थी।
बाबर की मृत्यु
घाघरा का युद्ध खत्म होने के बाद बाबर निश्चिंत हो गया था। लेकिन उसके जीवन से अब सुख खत्म हो रहे थे। 1528 ईस्वी में उसका स्वास्थ्य अचानक खराब होते चला गया। वह बहुत ज्यादा अफीम, भांग और मदिरा का सेवन करता था, जिस कारण उसका शरीर छनछनी हो चुका था।
इसी बीच बाबर का पुत्र हुमायूं भी रोग्रस्त हो गया। अपने पुत्र को बचाने के लिए उसने ईश्वर से प्रार्थना की कि हुमायूं को रोगमुक्त कर दें, उसके बदले में ईश्वर उसके प्राण को ले लें। कुछ समय के बाद हुमायूं का स्वास्थ्य ठीक हो गया, जिससे बाबर को विश्वास हो गया कि अब उसका अंत निकट है।जिस कारण उसने हुमायूं को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।
उसके बाद बाबर का स्वास्थ्य और भी तेजी से खराब होने लगा, जिसके बाद 26 दिसंबर 1530 ईसवी को बाबर की मृत्यु आगरा में हो गई। हुमायूं अपने रोग ग्रस्त पिता का इलाज भी नहीं करा सका। यहां तक की पिता की मृत्यु के समय हुमायूं संम्बल में था, जिस कारण बाबर की मृत्यु को गुप्त रखा गया। 4 दिन के बाद वह आगरा पहुंचा और फिर 30 दिसंबर 1530 को हुमायूं का राज्य अभिषेक कराया गया।
बाबरनामा
“बाबरनामा” बाबर की आत्मकथा है। बाबर ने अपनी आत्मकथा स्वयं तुर्की भाषा में लिखी थी। ’अब्दुर्रहीम खानखाना’ ने बाबर की आत्मकथा का अनुवाद फारसी भाषा में किया था। इसमें बाबर ने उस समय के 5 मुस्लिम शासक और दो हिंदू राजाओं का भी उल्लेख किया है। बाबर की आत्मकथा कुल 378 पेज की है, जिसके 122 पेज पर 144 चित्र मौजूद है। बाबरनामा ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण रखता है। क्योंकि वास्तविक इतिहास का यह एशिया में पाया जाने वाला अकेला ग्रंथ है।
बाबर ने अपनी आत्मकथा बाबरनामा में भारत पर आक्रमण करने के दौरान भारत के राजनीतिक दशा के बारे में भी उल्लेख किया है। बाबर ने इस आत्मकथा में हिंदुस्तान में देखी हर चीज का उल्लेख किया है, उसने हिंदू देवी-देवताओं मंदिर और पवित्र धार्मिक स्थानों का भी उल्लेख किया है। बाबर ने अपनी आत्मकथा में अपने चरित्र को बहुत अलग तरीके से पेश किया है, जिसे पढ़ने के बाद सोचने को मजबूर कर देता है कि क्या बाबर वाकई में ऐसा था।
बाबर ने इस आत्मकथा में तुलुग्मा युद्ध प्रणाली के बारे में भी बताया है, जिसका प्रयोग उसने पानीपत और खानवा के युद्ध के दौरान किया था। इस आत्मकथा में सुंदर चित्र भी है, जो भारत के बारे में वर्णन करता है। बाबर ने अपनी आत्मकथा में यह भी कहा है कि हिंदुस्तानियों ने खुलकर उससे दुश्मनी निभाई, जहां-जहां उसकी सेना गई, हिंदुस्तानियों ने अपने घरों को जला दिया और कुओं में जहर डाल दिया।
बाबर के इस आत्मकथा का हिंदी अनुवाद सबसे पहले 1974 में बाबरनामा के नाम से साहित्य अकादमी ने प्रकाशित किया था। हिंदी में इस संस्मरण का अनुवाद युगजीत नवलपुरी ने किया था। एफजी टेलबोट ने इस संस्मरण का अंग्रेजी में अनुवाद किया है।
बाबरी मस्जिद
बाबरी मस्जिद उत्तर प्रदेश के अयोध्या जिले में स्थित था। इस मस्जिद को 1527 ईस्वी में बाबर के आदेश पर मीर बाकी ने निर्माण कराया था। उसी ने इस मस्जिद का नाम बाबरी मस्जिद रखा था। हालांकि 1940 के दशक से पहले तक इस मस्जिद को मस्जिद ए जन्म स्थान भी कहा जाता था।
इस मस्जिद के आसपास के जिलों में भी अनेक पुरानी मस्जिदें मौजूद थी, लेकिन बाबरी मस्जिद उन तमाम मस्जिदों की तुलना में आकार में काफी बड़ा और प्रसिद्ध मस्जिद था। इस मंदिर को लेकर हिंदुओं ने अदालत में याचिका दी कि जिस जगह पर बाबरी मस्जिद बनी थी, उस जगह पर हिंदू धर्म के मंदिर बने थे। उस मंदिर को तोड़कर या उसमें बदलाव करके इस मस्जिद को बनाया गया था।
जिसके बाद हिंदुओं के अनेक अधिकारों के परिणाम स्वरूप भगवान राम के हिंदू भक्तों का प्रवेश होने लगा। इस मस्जिद को लेकर कई सालों तक विवाद चलता रहा और अदालत में से लेकर लंबे समय तक बाहर चलते रही। आखिरकार साल 2020 में कोर्ट का फैसला आया और यहां पर भगवान राम की मंदिर बनाने की खुदाई शुरू हुई।
FAQ
बाबर का जन्म उज़्बेकिस्तान फरगना घाटी फ्नुकड़ में 23 फरवरी 1483 को हुआ था।
बाबर ने मरने से पहले उसके बड़े पुत्र बाबर ने हुमायूं को अपना उत्तराधिकारी बनाया था।
मुग़ल साम्राज्य की स्थापना की थी।
पानीपत का युद्ध इब्राहिम लोदी के साथ किया था।
26 दिसम्बर 1530 ई० को बाबर की मृत्यु आगरा में हुई थी।
बाबर के भारत आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक स्थिति काफी चिंतनीय थी। क्योंकि उस समय भारत अनेक राज्यों में बटा हुआ था और हिंदू राजा एक दूसरे के साथ लड़ने में व्यस्त थे। उस समय देश में राजनीतिक एकता का अभाव था। उस समय केंद्रीय शासन दुर्बल हो चुकी थी, जिसके कारण कई प्रांतों ने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी थी। उस समय दिल्ली का सुल्तान इब्राहिम लोदी था, जो प्रजा को लेकर काफी ज्यादा क्रूरूर था। जिसके कारण अफगान सरदारों ने उसके विरुद्ध विद्रोह कर दिया, जिससे राज्य में अशांति और अराजकता फैल चुकी थी।
बाबर के भारत आक्रमण के समय राणा सांगा मेवाड़ के शासक थे, जिन्होंने गुजरात, मालवा और दिल्ली के सुल्तानों को पराजित कर अपनी सैनिक योग्यता का परिचय दिया था। 1459 में राव जोधा ने जोधपुर दुर्ग की निंव भी रखी और जोधपुर नगर बसाया। कुंभा की मृत्यु के बाद उसने अजमेर और सांभर पर भी अधिकार प्राप्त कर लिया। राव जोधा के 1 पुत्र ने बीकानेर की भी स्थापना की थी।
मुगल साम्राज्य का संस्थापक बाबर था।
हुमायूं
निष्कर्ष
हमारे इस लेख में बाबर हिस्ट्री इन हिंदी (babar history in hindi) के बारे में बताया हैं। इस लेख में बाबर के जीवन से जुड़े किस्सों को और भी बताया है। उम्मीद करते हैं आपको यह लेख पसंद आया होगा। आपको यह लेख कैसा लगा, हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।
यह भी पढ़े
हल्दीघाटी का युद्ध कब और कहाँ हुआ था?, इसका परिणाम और इतिहास
शिवाजी महाराज का जीवन परिचय और इतिहास
मोहम्मद गौरी का इतिहास और जीवन परिचय
एर्तुग़रुल ग़ाज़ी का इतिहास और परिचय