हीर रांझा की कहानी सच्ची कहानी (Heer Ranjha Love Story in Hindi): आज के समय में हमने नवयुवकों को बहुत ही शीघ्र प्रेम संबंध में डूबते हुए देखा है। लड़की हो या फिर लड़के सभी एक दूसरे की तरफ आकर्षित होते हैं।आज के समय में प्रेमी जोड़ियों का प्रेम संबंध कभी भी टूटता है और कभी भी जुड़ जाता है।यहां तक ही नहीं हमने सुना और देखा होगा है कि किसी एक से Breakup होने के बाद लड़का-लड़की एक नए प्रेम संबंध में शीघ्र ही बंध जाते हैं।
आज के जमाने का प्रेम कुछ समझ में नहीं आता है। आज हम इस लेख में सभी प्रेमी जोड़ों को हीर-रांझा के अटूट प्रेम संबंध की कहानी (Heer Ranjha ki Kahani) बताने वाले हैं। आप इनकी प्रेम कहानी को सुनकर आज के जमाने के प्रेम संबंधों में अंतर समझ सकेंगे। आइए जानते हैं हीर रांझा के प्यार की अद्भुत कहानी (Heer Ranjha True love Story in Hindi)।
हीर रांझा के अद्भुत प्रेम की सच्ची दास्तान – Heer Ranjha Love Story in Hindi
यह कहानी उस समय की है जब हिंदुस्तान और पाकिस्तान एक थे अर्थात उन का बंटवारा नहीं हुआ था। Heer-Ranjha की यह अद्भुत प्रेम कहानी पाकिस्तान से शुरू हुई थी, रांझा का जन्म पाकिस्तान में स्थित चिनाब नदी के किनारे तख्त हजारा नमक गांव में हुआ था और उसका असली नाम ढीदो था, रांझा तो उसका उपनाम था। रांझा के पिता उस गांव के मुख्य जमींदार थे, उनके पिता का नाम मौजूद चौधरी था।
यह चार भाई थे और यह चारों में से सबसे छोटे थे। चारों भाइयों में सबसे छोटा होने के कारण यह अपने पिता के सबसे ज्यादा प्रिय पुत्र थे। इनके तीनों भाई अपने खेतों में कड़ी मेहनत करते थे और यह पिता के लाडले होने के कारण अपने भाइयों का कामों में हाथ न बटाकर हमेशा बांसुरी बजाया करते थे। इन्हीं कारणों की वजह से इनके भाई इनसे बहुत ही ज्यादा नफरत किया करते थे।
जब रांझा की उम्र मात्र 12 वर्ष की थी तभी उनके सिर से उनके पिता का साया उठ गया। और कुछ बातों को लेकर उनके साथ उनके भाइयों में विवाद हो गया। वह अपने भाइयों से अलग होकर एक पेड़ के नीचे बैठकर बांसुरी बजाया करता था और अपनी शहजादी के बारे में सोचता रहता।
रांझा बचपन से ही बहुत ही आशिक मिजाज का था, उसे खूबसूरती से इतना लगा था कि वह अपने मन में ही अपनी शहजादी की प्रतिमा स्थापित कर ली थी। एक बार वह पेड़ के नीचे बैठकर दुखी मन से अपने शहजादी के बारे में सोच रहा था, तभी वहां से गुजर रहे एक पीर ने उसे देखा और उसे दुखी देखकर उससे पूछा कि तुम इतने दुखी क्यों हो।
तब रांझा ने उन्हें स्वरचित प्रेम गीत सुनाया, जिसमें उन्होंने अपनी शहजादी का बढ़ा चढ़ाकर वर्णन किया था। यह सुनकर पीर ने उन्हें बताया कि तुम्हारी सपनों की शहजादी केवल हीर नामक एक लड़की ही बनेगी। पीर द्वारा इतना सुनने के बाद रांझा अपने हीर की तलाश में निकल गया।
हीर का जन्म पंजाब मैं हुआ था, जो कि आज के समय में पाकिस्तान में था। एक रात राम जाने मस्जिद के अंदर बिताई। अगली सुबह होते ही वह वहां से अपने सपनों की शहजादी को खोजने के लिए रवाना हो गया। वह चलते-चलते एक दूसरे गांव में पहुंच गया जोकि हीर का गांव था।
हीर का जन्म सियाल जनजाति के संपन्न जाट परिवार में हुआ था, जो जगह उस समय पंजाब में था। हीर को देखते ही रांझा समझ गया कि उसके सपनों की शहजादी वही लड़की है। हीर बहुत ही सख्त दिमाग की लड़की थी। एक रात ऐसा कोई ऐसा हुआ कि रांझा हीर की नाव में ही सो गया।
यह देखकर हीर गुस्से से आगबबूला हो गई और जैसे ही उसने रांझा के सिर से कंबल हटाया वह उसे देखती ही रह गई, क्योंकि रांझा बहुत ही हट्टा-कट्टा और रूपवान था। तब रांझा ने उसे अपने सपने की बात बताई। हीर रांझा पर फिदा हो गई और उसे अपने घर ले गए, वहां पर उसने रांझा को नौकरी पर रखवा दिया।
हीर के पिता ने रांझा का मवेशियों को चराने का कार्य सौंप दिया। मवेशियों को चलाते समय बांसुरी बजा करता था और इसी बांसुरी की धुन पर हीर मंत्रमुग्ध हो जाती थी और उसका प्यार रांझा के प्रति बढ़ता ही गया। वे दोनों एक दूसरे से कई सालों तक गुप्त जगह पर मिलते रहे, परंतु वीर के चाचा को इस बात के कहीं से भनक लग गई और उन्होंने उनके पिता चूचक और माता माल की को बता दिया। बात का पता चलते हैं हीर के माता-पिता ने रामसा को नौकरी से निकाल दिया और उन दोनों के मिलने पर रोक लगा दिया।
हीर के पिता ने हीर को शारदा खेरा नाम के एक व्यक्ति से शादी करने के लिए बाधित कर दिया। माता पिता और मौलवियों के दबाव में आकर हीर ने उससे निकाह कर लिया, फिर भी हीर का मन रांझा के लिए ही धड़कता है। शादी का पता चलते ही रांझा बहुत ही दुखी हुआ और उसका दिल टूट गया।
वे कुछ ग्रामीण इलाकों में हीर के याद में अकेला इधर उधर भटकता रहता था। एक दिन वाह इधर उधर भटक रहा था तभी उसे एक जोगी गुरु गोरखनाथ मिले, गोरखनाथ जोगी संप्रदाय के “कानफटा” समुदाय से संबंध रखते थे और वह गोरखनाथ जी के सानिध्य में जोगी बन गया। और यानी भगवान का नाम जलता हुआ पूरे पंजाब में भटकता रहता था।
वह एक दिन घूमते घूमते हीर के ससुराल में पहुंच गया, जहां वह रहती थी। वह हीर के पति सदा शेर के घर पर पहुंच गया और उसका दरवाजा खटखटाया और जोगी की आवाज सुनकर वीर बाहर आई और उसे भिक्षा देने लगी भिक्षा देते वक्त दोनों एक दूसरे को देखते ही रह गए। रांझा फकीर बनकर प्रतिदिन वहां आता और हीर से भिक्षा लेता।
वे ऐसा प्रतिदिन करके एक-दूसरे से मिलने लगे थे। एक दिन वे जब भिक्षा ले रहा था तभी उन दोनों को हीर की भाभी ने देख लिया और रांझा को टोका। भाभी के टोकने पर रांझा गांव के बाहर चला गया। अब लोग उसे फकीर मानकर पूजने लगे थे। जब वे दोनों जुदा हो गए तब हीर की तबीयत रांझे की जुदाई से बहुत ही बिगड़ गई। जब सिर का इलाज वैद्य और हकीम द्वारा नहीं हो पाया तब हीर के ससुर ने रांझा (जोकि फकीर बन गया था) से मदद मांगी, तब रांझा हीर के घर जाता है और जैसे ही वह वीर के सिर पर अपना हाथ फिराता है, वैसे ही हीर के तबीयत में कुछ सुधार होने लगता है।
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जब लोगों को यह पता चला कि फकीर के भेष में रांझा है तो हीर के परिवार वालों और वहां के निवासियों ने उसे पीट-पीटकर गांव से बाहर निकाल दिया। उसे चोर समझकर राजा के सिपाहियों ने उसे पकड़कर राजदरबार में पेश किया तब राजा ने उसकी बेगुनाही की सफाई कहने के लिए कहा, तब रांझे ने राजा को अपने प्रेम के बारे में विस्तारपूर्वक से बताया।
तब राजा ने रांझा को उसके प्रेम की परीक्षा के लिए उसे हाथ में आग लेने को कहा। अपने प्रेम की परीक्षा के लिए रांझा ने अपने हाथ में आग को ले लिया। तब राजा ने हीर के पिता को यह आदेश दिया की वह हीर और रांझा का विवाह एक दूसरे से कर दें। राजा के डर से हीर के पिता ने शादी के लिए मंजूरी दे दी। देखते ही देखते हैं उनके विवाह का दिन आ गया, उसी दिन हीर के चाचा कैदो ने हीर के खाने में जहर मिला दिया जिससे कि वह इस शादी को रोक सके।
इस बात का पता जैसे ही Ranjha को चला वह भागता हुआ वहां पर जब तक आया तब तक बहुत देर हो चुका था । हीर ने जहर मिला हुआ खाना खा लिया जिससे उसकी मृत्यु हो गई। तब रांझा को दुबारा हीर की जुदाई सहानी थी, इसके लिए रांझा ने भी जहर मिला हुआ खाना खाकर हेर की जुदाई में अपना प्राण त्याग दिया। वे Heer Ranjha मृत्यु के बाद भी एक दूसरे के करीब में ही थे।
उन दोनों के शव को उनके पैतृक गांव में ही दफन कर दिया गया। जहां पर भी दफन किए गए थे, वहीं पर उनके प्रेम की निशानी का एक मजार बना हुआ हैं। वे दोनों भले ही मर गए हैं परंतु उनका प्रेम आज भी जिंदा है।
हीर रांझा की प्रेम कहानी (Heer Ranjha ki Kahani in Hindi) के ऊपर अब तक कौन-कौन सी फिल्में बन चुकी हैं – Heer Ranjha Film
- भारत और पाकिस्तान के विभाजन के पहले ही हीर रांझा नाम की चार फिल्में 1928, 1929, 1931 और 1948 में आ चुकी थे। परंतु जैसे ही में सफलता नहीं प्राप्त कर पाई।
- भारत और पाकिस्तान के विभाजन के बाद भारत में हीर रांझा नाम की पहली फिल्म 1971 में बनी जिसमें राजकुमार जी ने रांझा और प्रिया राजवंश जी ने हीर का किरदार निभाया और यह फिल्म बहुत ही ज्यादा सफल रही।
- भारतीय पंजाबी फिल्म हीर रांझा 2009 में निर्मित की गई। जिसके मुख्य अभिनेता गुरदास मान जी थे।
- 1970 में पाकिस्तान में भी हीर रांझा नाम की फिल्म और 2013 में धारावाहिक भी बनाया गया।
निष्कर्ष
हमारा यह लेख हीर रांझा के सच्चे प्यार की कहानी (Heer Ranjha Story in Hindi) आज के समय के आशिकों के लिए था। जो प्रेम को सिर्फ अपने मनोरंजन का साधन समझते हैं और एक दूसरे को प्रेम के नाम पर धोखा देते हैं। यह “हीर रांझा: ए ट्रू लव स्टोरी (Heer Ranjha Lok Katha)” आलेख आज के उन सभी प्रेम जोड़ो को सीख प्रदान करेगा जो अपने जीवन में प्रेम को खिलवाड़ समझते हैं।
हीर रांझा के प्यार की कहानी (Love Story of Heer Ranjha in Hindi) का विडियो भी आपके लिए यहां उपलब्ध कर रहे है जिसे आप हीर-रांझा के बारे में (Heer Ranjha History) और भी ज्यादा जान सके।
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