भारतीय सनातन धर्म में गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व है। यह पर्व दीपावली का ही एक हिस्सा है। दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। यह पूजा का पर्व सदियों से चला आ रहा है।
आमतौर पर हम दीपावली के दूसरे दिन को छोटी दीपावली कहते हैं, उसी दिन सुबह के समय मुहूर्त के अनुसार गोवर्धन पूजा की जाती है।
दीपावली हिंदू धर्म का सबसे बड़ा और मुख्य त्योहार माना जाता है क्योंकि इसी दिन भगवान श्री राम 14 वर्ष के वनवास को पूर्ण कर के वापस अयोध्या लौटे थे। इसीलिए इस दिन सदियों से ही दीपावली का प्रचलन सनातन के अंतर्गत देखने को मिलता है।
दरअसल दीपावली का त्यौहार कई दिनों तक चलता है, जिनमें दीपावली से पहले धनतेरस और रूप चौदस का पर्व मनाया जाता है। उसके बाद दीपावली का दिन आता है। इस दिन शाम के समय मुहूर्त के अनुसार माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है तथा दूसरे दिन छोटी दीपावली का पर्व मनाया जाता है।
इसी दिन सुबह के समय मुहूर्त के अनुसार गोवर्धन पूजा की जाती है। प्रत्येक वर्ष हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक मास की अमावस्या के दिन दीपावली का त्यौहार मनाया जाता है और उसके दूसरे दिन यानी प्रतिपदा के दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। सनातन धर्म में इस पूजा और पर्व का विशेष महत्व देखने को मिलता है।
गोवर्धन पूजा कब है 2023
गोवर्धन पूजा को एक पर्व के रूप में मनाया जाता है। विशेष रूप से यह पर्व दीपावली का ही एक हिस्सा है क्योंकि दीपावली के दूसरे दिन ही छोटी दीपावली के दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार गोवर्धन पूजा कार्तिक मास की “शुक्ल पक्ष प्रतिपदा” के दिन है।
अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष यानी वर्ष 2023 में 14 नवंबर को गोवर्धन पूजा है। अगर आपको तारीख याद नहीं रहती है तो आप दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा कर सकते हैं।
क्योंकि दीपावली हमेशा कार्तिक मास की अमावस्या को होती है और उसके ठीक दूसरे दिन यानी कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन गोवर्धन पूजा की जाती है।
गोवर्धन पूजा क्यों मनाई जाती है (Govardhan Puja Kyu Manaya Jata Hai)
गोवर्धन पूजा देवराज इंद्र के अहंकार को दूर करने के लिए की जाती है। बता दें कि प्राचीन मान्यताओं के अनुसार जब देवराज इंद्र अपने अहंकार में आकर गोकुल वासियों पर अत्यधिक तेजी से बारिश कर रहे थे।
उस समय भगवान श्री कृष्ण गोवर्धन नामक विशालकाय पर्वत को अपनी उंगली पर उठा लिया था, जिसके नीचे सभी गोकुल वासी खड़े हो गए और इस प्रकार से देवराज इंद्र कुछ भी नहीं कर पाए।
देवराज इंद्र का अहंकार भगवान श्री कृष्ण के आगे गोवर्धन पर्वत की वजह से चूर-चूर हो गया था। इसी वजह से हर वर्ष गोवर्धन पूजा की जाती है, जिसमें गाय, भगवान कृष्ण और गोवर्धन पर्वत की पूजा होती है।
गोवर्धन पूजा का महत्व
गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व अहंकार की पराजय तथा प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान करना है। क्योंकि इस दिन हम पहाड़, गाय, भगवान तथा गोबर की पूजा करते हैं।
ऐसा करने से हमारे तथा आने वाली पीढ़ी के लिए प्राकृतिक संसाधनों के प्रति सम्मान उत्पन्न होता है तथा किस प्रकार से भगवान श्री कृष्ण ने देवराज इंद्र का अहंकार चूर-चूर किया था, इसे जीवित रखने के लिए भी गोवर्धन पूजा का महत्व बताया जाता है।
गोवर्धन पूजा का महत्व सनातन धर्म के अंतर्गत प्राकृतिक संसाधन पहाड़ गाय गोबर तथा भगवान श्री कृष्ण से जुड़ा हुआ है।
गोवर्धन पूजा विधि
दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा के तहत घर के आंगन में गाय के गोबर से एक गोवर्धन पर्वत बनाया जाता है। उसके ऊपर फूल डालकर उसे अच्छी तरह से सजाया जाता है, उसके ऊपर एक दीपक जला कर रखते हैं, आसपास में जल चढ़ाते हैं।
धूपबत्ती अगरबत्ती इत्यादि अर्पित करते हैं तथा सनातन धर्म की रीति रिवाज के अनुसार उस पहाड़ की पूजा की जाती है।
पूजा के दौरान गाय के दूध, दही, घी, गंगाजल, शहद इत्यादि का इस्तेमाल किया जाता है। पूजा समाप्त होने के बाद घर परिवार के सभी लोग पानी का लोटा लेकर गाय के गोबर से बने उस गोवर्धन पर्वत की सात परिक्रमा पूरी करके उस पानी को गिराया जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि सात परिक्रमा पूरी करने के बाद उस पानी को गिरा कर उसके ऊपर खेत की तरह हल के जैसे हाथ से धान बोया जाता है। ऐसा माना जाता है गोवर्धन पूजा करने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
यह भी पढ़े
- लाभ पंचमी कब और क्यों मनाया जाता है? (महत्व, पूजा की विधि, प्रचलित मान्यताएं और सावधानियां)
- नरक चतुर्दशी कब और क्यों मनाई जाती है?(महत्व, कथा और पूजा विधि)
- दीपावली क्यों मनाई जाती है? कारण और महत्व
गोवर्धन पूजा से संबंधित प्रचलित मान्यताएं
गोवर्धन पूजा करने के पीछे की प्रचलित धार्मिक मान्यता इस प्रकार है कि जब भगवान श्री कृष्ण ने इतना विशालकाय गोवर्धन पर्वत को अपने उंगली पर उठाकर गोकुल वासियों की सहायता करके देवराज इंद्र का अभिमान चूर कर दिया था।
तभी भगवान श्री कृष्ण ने सभी को कुल वासियों को आदेश दिया कि कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन गोवर्धन पर्वत को छप्पन भोग लगाकर उसकी पूजा करें। ऐसा करने से जीवन भर आप सभी के घर में सुख समृद्धि बनी रहेगी, जिसके बाद सदियों सदियों से ही इसी तरह से गोवर्धन पूजा की जाती है।
गोवर्धन पूजा करते समय क्या सावधानियां रखें?
गोवर्धन पूजा का पर्व दीपावली के दूसरे दिन सुबह के समय मनाया जाता है। लेकिन गोवर्धन पूजा करने से पहले आपको इस बात का ध्यान रखना है कि क्या पूजा का समय शुभ मुहूर्त के आधार पर है या नहीं? क्योंकि अगर आपने गोवर्धन पूजा और शुभ मुहूर्त में नहीं की है, तो यह आपके लिए नुकसानदेह हो सकती है।
धर्म शास्त्रों के अनुसार गोवर्धन पूजा हमेशा सुबह के समय मुहूर्त के अनुसार ही करनी चाहिए। ऐसा करने से घर परिवार में सुख समृद्धि बनी रहती है। धन की प्राप्ति होती है, निरोगी काया रहती है तथा हमेशा लाभ की ही प्राप्ति रहती है।
निष्कर्ष
गोवर्धन पूजा का पर्व सनातन धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह पर्व सतन धर्म के मुख्य और सबसे बड़े त्यौहार दीपावली का ही एक हिस्सा है। दीपावली के दूसरे दिन इस त्यौहार को मनाया जाता है। इसके अंतर्गत विशेष रूप से भगवान श्री कृष्ण, गाय एवं गोबर से बने हुए गोवर्धन पहाड़ की पूजा की जाती है।