Gotra Kya Hota Hai: सनातन धर्म में शादी-ब्याह, पूजा-पाठ, कर्मकांड आदि में गोत्र के बारे में पूछा जाता है। क्योंकि सनातन धर्म में एक गोत्र के व्यक्ति में शादी वर्जित माना जाता है।
आज की युवा पीढ़ी का धार्मिक कार्यों के प्रति रुचि और दिलचस्पी पूरी तरीके से उदासीन हो गई है। बहुत से लोगों को अपना गोत्र जानने की दिलचस्पी ही नहीं रहती है।
लेकिन गोत्र का इतिहास बहुत ही पुराना है। इसका संबंध आज से सैकड़ों साल पहले ऋषि मुनियों से है। हम हर एक व्यक्ति प्राचीन समय में किसी न किसी ऋषि मुनि के वंशज है और यह हमें अपने गोत्र से ही पता चलेगा।
इस लेख में हम गोत्र क्या है (Gotra Kya Hai), गोत्र कितने होते हैं, अपना गोत्र कैसे जाने की जानकारी लेकर आए हैं।
गोत्र क्या है? (Gotra Kya Hota Hai)
गोत्र प्राचीन समय में मानव समाजों के द्वारा बनाए गए रीति रिवाज का एक हिस्सा है। गोत्र से व्यक्ति का कुल निर्धारित होता है कि वह कौन से वंश से ताल्लुक रखता है।
प्राचीन समय में हमारे देश में लोगों को चार वर्णों में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र में बांटा गया था। आगे चलकर कुम्हाय, राजपूत, चमार जैसे अनेक जातियों में उन्हें बांटा गया और इन अलग-अलग जातियों और वर्णो के बाद उन्हें अलग-अलग गोत्र में विभाजित किया गया। गोत्र की व्याख्या इस तरह भी कि गई है कि गोत्र अर्थात इंद्रियां आघात से रक्षा करने वाला।
गोत्र का महत्व
सनातन धर्म में गोत्र का बहुत ज्यादा महत्व है। खासकरके शादी-ब्याह में कुंडली के जरिए लड़का और लड़की का गोत्र पता किया जाता है। एक ही गोत्र के एक स्त्री-पुरुष के बीच विवाह नहीं हो सकता है। क्योंकि एक ही गोत्र के एक स्त्री-पुरुष को भाई-बहन समझा जाता है।
ऐसे में सामाजिक दृष्टि से उनका आपस में विवाह कराना दंडनीय होता है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह सही नहीं है। एक ही गोत्र में विवाह करने से संतान में जेनेटिकली समस्या आने की संभावना बढ़ जाती है।
गोत्र कितने होते है?
मुख्य रूप से गोत्रों की संख्या 7 है और इन सातों गोत्रों का नाम सप्त ऋषियों के नाम पर रखे गये हैं, जो निम्नलिखित है:
हिन्दू गोत्र लिस्ट
- अत्री
- भारद्वाज
- वशिष्ठ
- विश्वामित्र
- भृगु
- कश्यप
- गौतम
इन सातों गोत्र में कोई भी गोत्र छोटा बड़ा नहीं होता है। अलग-अलग गोत्र के अलग-अलग कुलदेवी भी होती है।
115 गोत्र के नाम
- अत्रि गोत्र
- भृगुगोत्र
- आंगिरस गोत्र
- मुद्गल गोत्र
- पातंजलि गोत्र
- कौशिक गोत्र
- मरीच गोत्र
- च्यवन गोत्र
- पुलह गोत्र
- आष्टिषेण गोत्र
- उत्पत्ति शाखा
- गौतम गोत्र
- वशिष्ठ और संतान
- (क) पर वशिष्ठ गोत्र
- (ख) अपर वशिष्ठ गोत्र
- (ग) उत्तर वशिष्ठ गोत्र
- (घ) पूर्व वशिष्ठ गोत्र
- (ड) दिवा वशिष्ठ गोत्र
- वात्स्यायन गोत्र
- बुधायन गोत्र
- माध्यन्दिनी गोत्र
- अज गोत्र
- वामदेव गोत्र
- शांकृत्य गोत्र
- आप्लवान गोत्र
- सौकालीन गोत्र
- सोपायन गोत्र
- गर्ग गोत्र
- सोपर्णि गोत्र
- शाखा
- मैत्रेय गोत्र
- पराशर गोत्र
- अंगिरा गोत्र
- क्रतु गोत्र
- अधमर्षण गोत्र
- बुधायन गोत्र
- आष्टायन कौशिक गोत्र
- अग्निवेष भारद्वाज गोत्र
- कौण्डिन्य गोत्र
- मित्रवरुण गोत्र
- कपिल गोत्र
- शक्ति गोत्र
- पौलस्त्य गोत्र
- दक्ष गोत्र
- सांख्यायन कौशिक गोत्र
- जमदग्नि गोत्र
- कृष्णात्रेय गोत्र
- भार्गव गोत्र
- हारीत गोत्र
- धनञ्जय गोत्र
- पाराशर गोत्र
- आत्रेय गोत्र
- पुलस्त्य गोत्र
- भारद्वाज गोत्र
- कुत्स गोत्र
- शांडिल्य गोत्र
- भरद्वाज गोत्र
- कौत्स गोत्र
- कर्दम गोत्र
- पाणिनि गोत्र
- वत्स गोत्र
- विश्वामित्र गोत्र
- अगस्त्य गोत्र
- कुश गोत्र
- जमदग्नि कौशिक गोत्र
- कुशिक गोत्र
- देवराज गोत्र
- धृत कौशिक गोत्र
- किंडव गोत्र
- कर्ण गोत्र
- जातुकर्ण गोत्र
- काश्यप गोत्र
- गोभिल गोत्र
- कश्यप गोत्र
- सुनक गोत्र
- शाखाएं गोत्र
- कल्पिष गोत्र
- मनु गोत्र
- माण्डब्य गोत्र
- अम्बरीष गोत्र
- उपलभ्य गोत्र
- व्याघ्रपाद गोत्र
- जावाल गोत्र
- धौम्य गोत्र
- यागवल्क्य गोत्र
- और्व गोत्र
- दृढ़ गोत्र
- उद्वाह गोत्र
- रोहित गोत्र
- सुपर्ण गोत्र
- गालिब गोत्र
- वशिष्ठ गोत्र
- मार्कण्डेय गोत्र
- अनावृक गोत्र
- आपस्तम्ब गोत्र
- उत्पत्ति शाखा गोत्र
- यास्क गोत्र
- वीतहब्य गोत्र
- वासुकि गोत्र
- दालभ्य गोत्र
- आयास्य गोत्र
- लौंगाक्षि गोत्र
- चित्र गोत्र
- विष्णु गोत्र
- शौनक गोत्र
- पंचशाखा गोत्र
- सावर्णि गोत्र
- कात्यायन गोत्र
- कंचन गोत्र
- अलम्पायन गोत्र
- अव्यय गोत्र
- विल्च गोत्र
- शांकल्य गोत्र
- उद्दालक गोत्र
- जैमिनी गोत्र
- उपमन्यु गोत्र
- उतथ्य गोत्र
- आसुरि गोत्र
- अनूप गोत्र
- आश्वलायन गोत्र
गोत्र में वर्ण क्या है?
सात गोत्र में कोई भी गोत्र छोटा बड़ा नहीं होता है। हर एक गोत्र में ब्राह्मण, क्षत्रिय, शूद्र और वैश्य चार वर्ण होते हैं। अलग-अलग जातियों में गोत्र समान ही होता है।
यानी कि अगर कोई व्यक्ति शूद्र है और वहीं कोई व्यक्ति ब्राह्मण है तो भले ही उनकी जात अलग-अलग है लेकिन प्राचीन काल में वे एक ही पिता के वंशज हैं। मतलब उनके गोत्र एक समान हो सकते हैं।
ग्रंथो के अनुसार यह चारों वर्णों की उत्पत्ति भगवान ब्रह्मा के शरीर के अलग-अलग हिस्सों से हुई थी। कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण, बाजूओ से क्षत्रिय, जांघ से वेश्य और पैरों से शूद्रा उत्पन्न हुए थे।
पहले के समय के लोगों को उनके कार्यों के अनुसार इन चार अलग-अलग वर्णों में बांटा जाता था।
- चारों वर्णों में सबसे बड़ा वर्ण ब्राह्मण वर्ण माना जाता था। ब्राह्मण वर्ण में आने वाले लोगों का मुख्य कार्य पूजा करवाना, हवन करवाना, विवाह आदि जैसे धार्मिक कार्य करवाने होते थे।
- प्राचीन समय में राजा सम्राट क्षत्रिय वर्ण में आते थे। राजपूत आदि समाज के लोग क्षत्रिय वर्ण के होते थे, जिनका कार्य राजनीतिक व्यवस्था को संभालना और अपने क्षेत्र के लोगों की रक्षा करना होता था। क्षत्रिय लोग ही राजा बनते थे।
- वैश्य वर्ण में साधारणतः बनिया आदि लोग आते थे। इसमें और भी अलग-अलग जातियां आती थी, जिनका कार्य आय-व्यय की जानकारी रखना, खेती करना, पशुपालन, हिसाब किताब आदि होता था।
- चारों वर्णों में सबसे निम्न वर्ण शुद्र वर्ण होता था। इस वर्ण में आने वाले लोग गांव से बाहर रहकर गुप्तचर के रूप में काम करते थे। इसके अलावा हर तरह के छोटे कार्य शूद्र वर्ण के लोग करते थे।
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अपना गोत्र कैसे जाने?
आज के समय में लोगों को अपना गोत्र पता ना होना बहुत ही आम बात है। क्योंकि आज के युवा को इससे कोई भी लेना देना नहीं है। लेकिन जब पूजा पाठ में गोत्र के बारे में पूछा जाता है तब उन्हें समझ में आता है कि गोत्र के बारे में जानना कितना महत्वपूर्ण होता है।
किसी भी व्यक्ति का गोत्र उसके पूर्वज से संबंधित होता है। उसके पूर्वज किस ऋषि से जुड़े हुए हैं और उस ऋषि के नाम से उनके गोत्र का पता चलता है।
अगर किसी को नहीं पता कि उनका गोत्र क्या है तो सबसे आसान तरीका है कि वह अपने घर में किसी बड़े से पूछ सकते हैं या फिर अपने दादा, पर दादा से इसकी जानकारी ले सकते हैं।
अगर घर में भी किसी को नहीं पता तो वह अपने पाटीदार यानी कि गांव के लोगों से अपने गोत्र के बारे में पूछ सकते हैं। क्योंकि आपके गांव का पाटीदार और आप दोनों एक ही गोत्र के होंगे।
आज के इंटरनेट के समय में लोग इंटरनेट के माध्यम से भी खुद का गोत्र जानने की कोशिश करते हैं। यहां तक कि कई सारी ऐसी ऑनलाइन साइट भी इस चीज का दावा करती है लेकिन यह सच नहीं है।
क्योंकि आपकी गोत्र के बारे में केवल आपके रिश्तेदार ही बता सकते हैं। इसके अलावा कुंडली या फिर अपनी वंशावली पुस्तिका किसी पंडित या ज्योतिष को दिखाकर आप अपना गोत्र ज्ञात कर सकते हैं।
अपना गोत्र ना पता होने पर क्या करें?
जैसे हमने आपको ऊपर बताया कि आपकी कुंडली या फिर वंशावली पुस्तिका के जरिए आप किसी ज्योतिषी के माध्यम से अपने गोत्र की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
लेकिन आपके पास इन दोनों में से कोई भी चीज नहीं है, आपको पता ही नहीं या घर में किसी को नहीं पता कि आपका गोत्र क्या है तो ऐसे व्यक्ति के लिए पंडित “कश्यप” गोत्र का उच्चारण करवाते हैं।
ऐसा इसलिए क्योंकि कश्यप ऋषि ने एक से अधिक विवाह किए थे और उनके अनेक पुत्र हुए थे। ऐसे में जिन लोगों को अपने गोत्र का पता नहीं होता है ऐसे लोगों को कश्यप ऋषि के ऋषिकुल से संबंधित माना जाता है।
निष्कर्ष
इस लेख में आपने भारतीय संस्कृती में एक महत्वपूर्ण शब्द गोत्र के बारे में जाना कि गोत्र क्या होता है (gotra kya hota hai), गोत्र कितने होते है, 115 गोत्र के नाम, गोत्र कैसे पता करें आदि।
हमें उम्मीद है कि इस लेख के जरिए आपको Gotra Kya Hota Hai से संबंधित सभी प्रश्नों का जवाब मिल गया होगा। इस जानकारी को आगे शेयर जरुर करें।
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