श्रीमद्भागवत गीता हिंदुओं का पवित्र ग्रंथ है, जिसमें 700 श्लोक एवं 18 अध्याय है। महाभारत के युद्ध के दौरान युद्ध के मैदान में अपने सगे संबंधियों को देख जब अर्जुन अपने कर्तव्य से विचलित हो गए थे, उस समय भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिए थे, वही गीता है।
भागवत गीता में जीवन के हर एक प्रश्नों का उत्तर समाहित है। जो मनुष्य गीता को पढ़ लेता है, वह जीवन के सभी दुख, वासना, ईर्ष्या, क्रोध, लोभ, मोह, लालच जैसे बंधनों से मुक्त हो जाता है।
भागवत गीता मनुष्य के जीवन को बहुत ही सरल बना देता है। क्योंकि भागवत गीता में जीवन का असली मकसद बताया गया है।
इसलिए जीवन में एक बार हर एक व्यक्ति को भागवत गीता जरूर पढ़ना चाहिए और भगवत गीता का ज्ञान जरुर प्राप्त करना चाहिए।
आज के इस लेख में गीता उपदेश इन हिंदी (geeta updesh) लेकर आए हैं, जो निश्चित ही आपके ज्ञान को बढ़ाएगा।
गीता के उपदेश (Geeta Updesh in Hindi)
परिवर्तन संसार का नियम है
भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं कि यहां सब कुछ बदलता रहता है। कालचक्र में इतनी शक्ति होती है कि वह राजा को रंक और रंक को राजा बना देता है।
इस जीवन में एक पल में क्या हो जाना है और दूसरे पल में क्या हो जाना है इसका आकलन कोई नहीं कर सकता।
इस जीवन में कोई भी चीज स्थाई नहीं है। हर एक चीज शुरू होने के बाद उसका अंत अवश्य होता है और फिर नई चीज शुरू होती है। जीवन में दुख आते हैं तो कुछ पल के बाद सुख भी आते हैं।
कभी लाभ होते हैं तो कभी हानि भी होती है। कभी जय होता है तो कभी पराजय भी होता है। कभी मान होता है तो कभी अपमान भी होता है। इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वह दुख को भी अस्थाई समझकर उसे अपनाएं।
सही समय की प्रतीक्षा करना मूर्खता है
गीता में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को कहते हैं कि किसी चीज को शुरू करने के लिए कभी कोई सही समय नहीं होता। मनुष्य जब कोई चीज शुरू करता है, वही उसके लिए सही समय होता है।
जो मनुष्य सही समय के इंतजार में रहता है, उसके लिए सही समय कभी नहीं आता और वह कभी भी अपने काम को शुरू नहीं कर पाता।
ऐसे मनुष्य जीवन भर सही समय का इंतजार करते ही रह जाते हैं और कभी सफलता प्राप्त नहीं कर पाते। इसलिए मनुष्य को चाहिए कि सही समय की प्रतीक्षा करने के बजाय वह अभी से ही काम को शुरू करें।
वर्तमान का आनंद लना चाहिए
गीता में कहा गया है कि बीते कल और आने वाले कल की चिंता करना व्यर्थ है। क्योंकि ना बीते हुए कल को बदला जा सकता है और ना आने वाले कल को देखा जा सकता है।
मानव को वर्तमान का आनंद लेना चाहिए। भूतकाल में बीते घटनाओं को सोच कर एवं आने वाले कल की चिंता करके मनुष्य वर्तमान के सभी पलों को व्यर्थ गुजार देता है।
जो हो गया सो हो गया और जो होगा उसे टाला नहीं जा सकता। इस सत्य को अपनाकर मनुष्य को वर्तमान के हर एक पल का आनंद उठाना चाहिए।
नजरिए को शुद्ध करें
हर व्यक्ति दुनिया को अपने-अपने नजरिए से देखता है, जिसकी जैसी नजर यह दुनिया उसके लिए उसी तरह है।
दुनिया को बदलने से पहले खुद के नजरिया को बदलना जरूरी होता है। जिस दिन आपका नजरिया अच्छा हो जाएगा, यह दुनिया भी आपको बहुत अच्छी लगेगी।
नजरिया हमारे व्यक्तित्व का बहुत अहम हिस्सा होता है। यही हमारे जीवन यात्रा की दिशा तय करता है। नजरिया सकारात्मक और नकारात्मक दोनों हो सकता है।
नकारात्मक नजरिया होने से व्यक्ति केवल निराशा और दुख पाता है। लेकिन, सकारात्मक नजर से व्यक्ति को यह जीवन बहुत ही सरल और सहज लगने लगता है।
क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु होता है
क्रोध मानव के विनाश का कारण होता है। क्योंकि क्रोध से भ्रम पैदा होता है और भ्रम से बुद्धि विचलित हो जाती हैं। क्रोध में मानव को कुछ भी आभास नहीं रहता है।
क्रोध में मानव अपनों के प्रति भी गलत शब्द का प्रयोग करता है। गलत शब्द व्यक्ति को दिल से चोट पहुंचाता है, जो घाव कभी मिट नहीं पाता।
क्रोध में मानव कभी भी सही निर्णय नहीं ले पाता और क्रोध में ली गई निर्णय हमेशा ही दुखदाई होती है। क्रोध में व्यक्ति की आंखें बंद हो जाती है और उसका मुंह खुल जाता है।
वह समझ ही नहीं पाता कि क्या सही और गलत है। क्रोध उसे गलत राह पर ले जाती है। इसलिए मनुष्य को क्रोध पर काबू करके मन को शांत रखना चाहिए।
कर्म करें, फल की चिंता न करें
युद्ध के परिणाम को सोचकर जब अर्जुन विचलित हो जाते हैं तब भगवान श्रीकृष्ण उन्हें कर्म का ज्ञान देते हुए कहते हैं कि कर्म कर फल की इच्छा मत रख।
क्योंकि कर्म करना मनुष्य के अधीन है लेकिन फल प्राप्त करना मनुष्य के अधीन नहीं है। मनुष्य अगर सच्चे दिल से और कर्म को धर्म समझकर कर्म कर रहा है तो उसे एक ना एक दिन कर्म का फल जरुर मिलेगा।
जो मनुष्य फल की इच्छा रख के कर्म करता है, वह सुख दुख के जाल में फंस जाता है। क्योंकि जब मनुष्य अपने कर्म से फल प्राप्त नहीं कर पाता तो दुख उसे घेर लेती है।
फल की पहली चिंता करने से मनुष्य अपने कर्म को सही से नहीं कर पाता। लेकिन, जो मनुष्य बिना फल की चिंता किए कर्म को करता है, उसे फल अवश्य मिलता है और वही व्यक्ति ज्ञानी होता है।
मन पर नियंत्रण रखना
मन जिसके बारे में हम सुनते हैं लेकिन कभी देख नहीं पाते। क्योंकि मन हमारे शरीर का एक शक्तिशाली अदृश्य हिस्सा है।
मन ही तो है जो मनुष्य में तरह तरह के भाव को उत्पन्न कराता है और मनुष्य उसी के अनुसार व्यवहार करता है।
मन मनुष्य को अपने जाल में इस कदर फसा के रखता है कि मनुष्य लाख कोशिश कर ले लेकिन वह अपने मन पर काबू नहीं पा पाता।
मन काफी शक्तिशाली होता है, वह मनुष्य को अपने अधीन रखता है और हमारा मन हमें नाचना चाहता रहता है।
मन मनुष्य को घमंड की मदिरा पिलाकर मदहोश करने की शक्ति रखता है। मन मनुष्य को जीवन के अंत तक अपने जाल से निकलने नहीं देता। जिस कारण मनुष्य सदा जीवन के मोह माया में व्यस्त रहता है।
हर मनुष्य की आत्मा के अंदर परमात्मा का प्रकाश है और उस परमात्मा का साक्षात्कार करने के लिए मनुष्य को अपने मन पर नियंत्रण करना पड़ता है।
एक बार मनुष्य मन पर काबू पाने में सफल हो जाए तो वह जीवन के मोह माया से बहुत आसानी से पीछा छुड़ा सकता है।
आत्मा अविनाशी है
मनुष्य का शरीर विनाशी है, उसका कोई अस्तित्व नहीं। लेकिन मनुष्य का आत्मा अविनाशी है, आत्मा कभी नहीं मरती यह सदा अमर रहती है। आत्मा को ना कोई शस्त्र मार सकता है, ना कोई अस्त्र मार सकता है।
मनुष्य का शरीर मृत्यु के बाद 5 तत्वों में विलीन हो जाता है लेकिन, आत्मा दोबारा नए शरीर में जन्म लेती है।
इस प्रकार जो व्यक्ति जीवन के इस सत्य को समझ जाता है कि आत्मा कभी नहीं मरती वह व्यक्ति कभी किसी के मरने का शोक नहीं मनाता।
क्योंकि उसे पता है कि केवल शरीर मरा है, आत्मा तो जिंदा है। शरीर का नाश होने के बाद आत्मा दुबारा किसी अन्य शरीर का रूप लेगी।
एक ही कर्म किसी के लिए पाप बन जाता है और दूसरे के लिए पुण्य बन जाता है
व्यक्ति जो कर्म कर रहा है, वह पाप है या पुण्य यह कार्य को करते हुए देखकर नहीं कहा जा सकता। व्यक्ति किसी भी कर्म को जिस भावना से करता है, वही उस व्यक्ति के कर्म को पाप और पुण्य के रूप में परिभाषित करता है।
उदाहरण के लिए कोई व्यक्ति धन के लालच में किसी की हत्या कर देता है, वहीं दूसरा व्यक्ति किसी की जान बचाने के लिए किसी दुष्ट व्यक्ति की हत्या कर देता है।
यहां दोनों व्यक्ति के द्वारा किसी की हत्या की गई है, दोनों का ही कर्म समान है। लेकिन दोनों का कर्म पाप का भागीदारी नहीं है।
लूट के उद्देश्य से हत्या करने वाले व्यक्ति का कर्म पाप का भागीदारी होगा। लेकिन, किसी के जान बचाने के उद्देश्य दुष्ट व्यक्ति की की गई हत्या पाप की श्रेणी में नहीं आएगा।
इस श्रुष्टि में जो जन्म लेता है, वो निश्चित रूप से मृत्यु के अधीन हो जाता है
इस सृष्टि में जो भी जन्म लेता है, वह निश्चित रूप से मरता है यह सनातन सत्य है, जिसे कोई नहीं टाल सकता। मनुष्य, पशु, पंछी, जीव, पेड़, पौधे हर सांस लेने वाले प्राणी जन्म के साथ अपनी मृत्यु की भी तारीख लिखवाकर आते हैं।
इस सत्य से परिचित होने के बावजूद मनुष्य जीवन पर्यंत सब कुछ पाने की लालसा करता है। आखिर उस चीज को पाकर क्या फायदा जिसका सुख मनुष्य जीवन पर्यंत नहीं ले सकता।
जिस चीज को पाने के लिए मनुष्य जीवन भर संघर्ष करता है, जिसे पाने के लिए अपनों से लड़ जाने को तैयार रहता है, जिसे पाने के लिए सब कुछ कर जाता है, उनमें से कोई भी चीज मृत्यु के दौरान उसके साथ नहीं जाती।
इसलिए हर मनुष्य को जीवन के इस सत्य को अपनाकर संतुष्ट रहना चाहिए।
खुद पर विश्वास करें
खुद पर विश्वास मनुष्य को ताकतवर बनाती है। आपकी सफलता आपके खुद के विश्वास पर निर्भर करती है। व्यक्ति अगर खुद पर विश्वास कर ले तो वह हर एक कठिन कार्य को कर सकता है।
खुद पर विश्वास मनोबल को बढ़ाती है और व्यक्ति लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दृढ़ निश्चय कर पाता है।
खुद पर विश्वास करके अगर मनुष्य कर्म में लग जाए तो उस कर्म को करने में उसे आनंद आता है और निश्चित ही उसे सफलता मिलती हैं।
भगवानों में कोई छोटा-बड़ा नहीं
आज संसार के मानव विभिन्न धर्मों में बंट चुका हैं। और वे धर्म, संप्रदाय और भगवान के नाम पर लड़ते झगड़ते हैं।
लेकिन उन्हें नहीं पता कि संसार में ईश्वर के कई रूप हैं और इसमें कोई भी छोटा या बड़ा नहीं है। परमात्मा का हर एक रुप समान है।
जिस तरीके से हर एक नदी अंत में सागर में जाकर मिलती है, उसी तरह हर एक धर्म, मत की धाराएं परमात्मा रूपी सागर में जमा होती हैं। इस संसार के निर्माता एक ही परमपिता है।
इसलिए हर एक इंसान को धर्म जात से परे एक ईश्वर की आराधना करते हुए मिल जुल कर रहना चाहिए।
ज्ञान और कर्म समान हैं
जो व्यक्ति कर्म और ज्ञान को अलग अलग समझता है, वह अज्ञानी है। ज्ञानी व्यक्ति के लिए कर्म और ज्ञान दोनों ही एक ही है। क्योंकि बिना कर्म के ज्ञान का कोई अर्थ नहीं।
गीता कहती है कि ज्ञान को पढ़ने से प्राप्त नहीं किया जा सकता। इसके लिए अनुभव करना पड़ता है और अनुभव करने के लिए कर्म करना जरूरी होता है। इस तरह कर्म करने से ज्ञान का अनुभव होता है।
कर्तव्य पालन जरूरी है
संसार में सबसे बड़ा धर्म कर्तव्य का पालन करना है। जो व्यक्ति अपने कर्तव्यों का भली-भांति पालन करता है, उसे सुख और मन की शांति का अनुभव होता है।
अपना कर्म भले ही कितना ही कष्टदायक क्यों ना हो लेकिन अपने कर्म को कर्तव्य समझकर करना दूसरे की नकल करने से श्रेष्ठ होता है।
कर्तव्य मनुष्य को बेहतर बनाता है। हर एक कर्म में दोष होता है। इसलिए दोष देकर अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटना चाहिए।
जिस प्रकार अग्नि के साथ धूंवा भी होता है, उसी तरह हर एक कर्तव्य में छोटा बड़ा दोष हो सकता है। लेकिन इस पर ज्यादा विश्लेषण करने से संशय और अकर्मण्यता पैदा होता है।
कभी अति नहीं करना चाहिए
जीवन में हर एक चीजों का संतुलन होना जरूरी है। जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं किसी भी हालाद में अति नहीं करना चाहिए।
जैसे दुःख आने पर बहुत ज्यादा निराशा में डूबना नहीं चाहिए और ना ही सुख आने पर बहुत ज्यादा खुश होना चाहिए। क्योंकि कोई भी चीज अस्थाई होती है।
इससे असंतुलन पैदा होता है, जो जीवन की गति और दिशा को बाधित करता है और इससे अनावश्यक दुख और कष्ट उत्पन्न होते हैं। मन विचार और कर्म में संतुलन बनाकर ही ज्ञान की प्राप्ति की जा सकती है।
निष्कर्ष
आज के इस लेख में आपने हिंदुओं का पवित्र ग्रंथ भागवत गीता में लिखे गए धार्मिक उपदेश इन हिंदी के बारे में जाना।
गीता के उपदेश मनुष्य के जीवन को बहुत ही सरल और सहज बनाता है। इन उपदेश के जरिए मनुष्य सही ज्ञान प्राप्त कर पाता है और जीवन का सही अर्थ समझ पाता है।
हमें उम्मीद है कि आज का यह लेख जिसमें भगवत गीता के उपदेश (Geeta ka Updesh) बताएं है आपके लिए बहुत ही जानकारी पूर्ण रहा होगा। इस लेख को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए अन्य लोगों के साथ भी जरूर शेयर करें।
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