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सरोजनी नायडू पर निबंध

Essay on Sarojini Naidu in Hindi: भारत की वीरांगना सरोजिनी नायडू ने साहित्य और काव्य क्षेत्र में अपनी अहम भूमिका निभाई थी। सरोजिनी नायडू ने स्वतंत्रता संग्राम के लिए हर एक नागरिक को अपने भाषण और कविताओं के माध्यम से जागरूक किया था। हम यहां पर सरोजनी नायडू पर निबंध शेयर कर रहे है। इस निबंध में सरोजनी नायडू के संदर्भित सभी माहिति को आपके साथ शेअर किया गया है। यह निबंध सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए मददगार है।

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सरोजनी नायडू पर निबंध | Essay on Sarojini Naidu in Hindi

सरोजनी नायडू पर निबंध (250 Words)

सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी 1879 को हैदराबाद बंगाली परिवार में हुआ था। उनके पिता अघोरनाथ चट्टोपाध्याय वैज्ञानिक और डॉक्टर थे। सरोजिनी नायडु की माँ वरद सुंदरी देवी एक लेखिका थी और बंगाली में कविता लिखा करती थी।

सरोजिनी ने 12 साल की उम्र में मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की।। मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज में उसने प्रथम स्थान प्राप्त किया। फिर वह अपनी उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड चली गईं। सबसे पहले, उन्होंने लंदन के किंग्स कॉलेज में पढ़ाई की। फिर उन्होंने कैम्ब्रिज के गिर्टन कॉलेज में पढ़ाई की। सरोजिनी ने इंग्लैंड से लौटने के बाद 1898 में डॉ गोविंदराजुलु नायडू से शादी कर ली। यह शादी अंतरजातीय विवाह थी। शादी से पहले उन्हें सरोजिनी चट्टोपाध्याय के नाम से जाना जाता था।

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान वह रवींद्रनाथ टैगोर, गोपाल कृष्ण गोखले और महात्मा गांधी से मिली । महात्मा गांधी से मिलने के बाद देश के प्रति उनकी विचारधारा बदल गई। उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन जैसे आंदोलनों में एक महत्वपूर्ण नेता की भूमिका निभाई1925 में कानपुर में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ, सरोजिनी नायडू कांग्रेस की अध्यक्षता करने वाली पहली भारतीय महिला थीं। वह उत्तर प्रदेश की राज्यपाल बनीं और हमारे देश की पहली महिला राज्यपाल थी।

भारत की कोकिला कई जाने वाली सरोजिनी नायडू ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान देश वाली कविता लिखकर और भाषण देकर लोगों के मन में देश भक्ति की भावना को जागृत किया। अपनी साहित्यक गतिविधियों के द्वारा भी सरोजिनी नायडू नाम कमाया है। सरोजिनी नायडू के जन्म के अवसर को महिला दिवस के रुप में बड़े ही उत्साह और आंनद के साथ मनाया जाता है।

सरोजिनी नायडू पर निबंध (800 Words)

प्रस्तावना

भारत की कोकिला कई जाने वाली सरोजिनी नायडू देश की प्रथम महिला राज्यपाल और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष बनी थी। इसके साथ ही वह एक महान कवयित्री स्वतंत्रता सेनानी और एक प्रसिद्ध वक्ता थी। उनको गांधीजी के विचारने अत्यंत प्रभावित किया, और उन्होंने अनेक आंदोलनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। जिस कारण से उनको कई बार जेल भी जाना पड़ा। सरोजिनी नायडू द्वारा अपने भाषणों और कविताओं के माध्यम से देश की जनता को आजादी के प्रत्ये नई जागरूकता जगाई। वह भारत की एक महान क्रांतिकारी महिला और महान राजनीतिज्ञ थ, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में बहुत योगदान दिया था।

सरोजिनी नायडु का जन्म व बचपन 

सरोजिनी नायडु का जन्म 13 फरवरी 1879 को हैद्राबाद में एक बंगाली परिवार हुआ था। उनके पिता अघोरनाथ चट्टोपाध्याय वैज्ञानिक और डॉक्टर थे और हैद्राबाद कोलेज के एडमिन थे। इसके साथ ही वे इंडियन नेशनल कोंग्रेस हैद्राबाद के सदस्य भी बने। उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और आजादी के संग्राम में कुद पड़े । सरोजिनी नायडु की माँ वरद सुंदरी देवी भी एक लेखिका थी और बंगाली में कविता लिखा करती थी।

उनके 8 भाई बहन थे, जिनमें से सरोजिनी नायडु जी सबसे बडी़ थी। उनके बड़े भाई विरेंद्र्नाथ क्रांतिकारी थे, जिन्होंने बर्लिन कमिटी बनाने में मुख्य भूमिका निभाई । इन्हें 1937 में एक अंग्रेज ने मार डाला था। सरोजिनी नायडु एक और भाई हरिद्रनाथ कवी और अभिनेता थे।

सरोजिनी जी बचपन से ही बहुत होशियार और होनहार थी। सरोजिनि नायडू को कई भाषाओं का ज्ञान था। उन्हें उर्दु, तेलुगु, अंग्रेजी, बंगाली, भाषाऐं अच्छे से आती थी। लंदन की सभा में अंग्रेजी में बोलकर सरोजिनी जी ने सबको अभिभुत कर दिया था। महज 12 वर्ष की उम्र में सरोजिनी जी ने मद्रास यूनिवर्सिटी में मैट्रिक की परीक्षा में टॉप किया था। जिसके चलते सभी लोगों ने सरोजिनी जी की बहुत प्रशंसा की थी।

सरोजिनी नायडु का विवाह 

कॉलेज की पढ़ाई के दौरान सरोजिनी जी की पहचान डॉ. गोविंद राजुलु नायडू से हो गई थी। कॉलेज के दौरान ही दोनों करीब आ गये थे। महज 19 साल की उम्र में पढाई समाप्त होने के बाद सरोजिनी नायडु ने अपनी पसंद से 1897 में इंटर कास्ट मैरेज कर ली थी। वो दौर ऐसा था जब इंटर कास्ट मैरेज गुनाह माना जाता था, फिर भी समाज और लोगों की चिंता न करते हुए उनके पिता ने अपनी बेटी की शादी को स्वीकार कर लिया। उनका वैवाहिक जीवन सुखमय रहा। उनके 4 बच्चे हुए, जयसूर्या, पद्मज, रणधीर और लीलामनि।  

सरोजिनि नायडु के जीवन में राजनितिक पहलू  

साल 1916 में सरोजिनी नायडु महात्मा गाँधी से मिली । उनसे मिलने के बाद से ही सरोजिनी नायडु की सोच में क्रांतिकारी बदलाव आया। फिर तो सरोजिनी जी ने स्वतंत्रता संग्राम के लिये अपनी कमर कस ली। सरोजिनी ने गांव और शहर की औरतों में देशप्रेम का जज्बा जगाया और इस संग्राम में उन्हें भी हिस्सा लेने के लिये प्रोत्साहित किया। साल 1925 में सरोजिनी नायडु कानपुर से इंडियन नेशनल कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष बनी थी।

साल 1928 में सरोजिनी जी अमेरिका से वापस आई और गाँधीजी के अहिंसात्मक आंदोलन में कूद पड़ी। साल 1930 में जब गाँधीजी को गिफ्तार कर लिया गया था, तब सरोजिनी जी ही ने आंदोलन की बागडोर सम्भाली ली थी। साल 1842 में गाँधीजी के भारत छोड़ो आंदोलन में सरोजिनी जी भी गाँधीजी के साथ 21 महीनों के लिये जेल गई थी। सरोजिनी नायडु ने युरोपिय देशों राजनितिक कार्यों में आजादी के लिये स्वतंत्रता के संघर्ष के बारे में जानकारी दी। वे सदैव आजादी के लिये विदेश दौरे पर रहा करती थी।

सरोजिनी नायडु का साहित्य पक्ष 

सरोजिनी नायडु कें पिता चाहते थे कि सरोजिनी जी वैज्ञानिक बने या गणित की पढ़ाई करके इस विषय में आगे बढ़े। लेकिन सरोजिनी जी का मन तो कविता लिखने में ही लगा रहता था। एक बार अपनी गणित की पुस्तक में सरोजिनी जी ने 1300 लाइन की कविता लिख डाली थी, जिसे देखकर पिता ने भी रुचि ली और इसकी कॉपी बनाकर सब जगह प्रचारित किया।

उन्होंने इसे हैद्राबाद के नवाब को भी दिखाया। ये देखकर वे बहुत खुश हुए और उन्होंने सरोजिनी को विदेश में पढ़ने के लिये स्कॉलरशिप दे दी। इसे लेकर सरोजिनी जी पढ़ाई के लिये लंदन के किंग कॉलेज चली गई। कॉलेज पढ़ते हुए भी सरोजिनी जी की रुचि कविता लिखने में गहरी बनी हुई थी। यह गुण उन्हें अपनी मां से विरासत में मिली थी।

विवाह के बाद भी सरोजिनी लगातार कविता लिखती रही। सरोजिनी जी बच्चों के लिये भी बहुत कविताएँ लिखती थी। इसलिये उन्हे भारत की बुलबुल भी कहा जाता था। अत्यंत मधुर आवाज में अपनी कविता का पाठ करने की वजह से उन्हें भारत कोकिला भी कहा गया।

सरोजिनी नायडु की कुछ महत्त्वपूर्ण काव्य पंक्तियाँ

मैं सोच भी बदलता हूँ ,

ऩजरिया भी बदलता हू….!

मिले न मंजिल मुझे,

तो मैं पाने का जरिया बदलता हूँ …

बदलता नहीं अगर कुछ ,

तो मैं लक्श्य नहीं बदलता हूँ …!

उसे पाने का पक्ष नहीं बदलता हूँ ।

एक अन्य कविता

क्या यह जरूरी है कि मेरे हाथों में

अनाज या सोने या परिधानों के मँहगे उपहार हो?

ओ! मैंने पुर्व और पश्चिम की दिशाये छानी है

मेरे शरीर पर अमुल्य आभूषण रहे हैं।

इनसे मेरे टूटे गर्भ से अनेक बच्चों ने जन्म लिया है।    

उन्होंने मात्र 13 साल की उम्र में ही 1300 पदों की ‘झील की रानी’ नाम से लम्बी कविता और लगभग 2000 पक्न्तियों का एक विस्तृत नाटक अंग्रेजी में लिखा था। सरोजिनी नायडु को शब्दों की जादुगरनी कहा जाता था।

सरोजिनी नायडु का पहला कविता संग्रह

उनका पहला कविता संग्रह ‘द गोल्डन थ्रेश्होल्द 1905 में प्रकाशित हुआ। जो आज भी बड़े चाव से पढ़ा जाता है।

सरोजिनी नायडु की मृत्यु 

सरोजिनी नायडु की मृत्यु लखनऊ में अपने कार्यालय में 2 मार्च 1949 को दिल का दौरा पड़ने से हुई थी। उस वक्त उनकी आयु 70 वर्ष थी।

निष्कर्ष

भारत की बुलबुल कई जाने वाली श्रीमती सरोजिनी नायडू को कभी भूल नहीं पाएगा, सरोजिनी नायडू के जन्मदिन को आज भी पूरे देश में महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। वह हम महात्मा गांधी जी के बहुत करीब थी और उनको मिकी हाउस नाम से भी पुकारा जाता था। वह एक सच्चे देशभक्त और क्रांतिकारी वीरांगना थी। जिन्होंने अपने शब्दों के माध्यम से हर नागरिक के अंदर देशभक्त की भावना को जगाया, सरोजिनी नायडू  का आज भी देश का हर एक नागरिक सम्मान करता है।

अंतिम शब्द

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