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जीवन में गुरु का महत्व पर निबंध

गुरु का महत्व वर्तमान समय में ही नहीं बल्कि पुराने समय से ही सर्वोपरि रहा है। गुरु को हमेशा भगवान का दर्जा दिया जाता है।

हमें अपने माता-पिता के बाद जो कुछ भी सिखाया जाता है, वह सब गुरु की ही देन होती है। गुरु ही हमें सच्चाई और अच्छाई के मार्ग को बताते हैं और सही राह पर लाते है।

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Image: Essay On Importance Of Guru In Hindi

आज के इस निबंध के माध्यम से गुरु के महत्व पर विशेष रूप से चर्चा करेंगे और गुरु के महत्व पर निबंध भी जानेंगे।

गुरु का दर्जा हमारे भारत में भगवान से भी ऊंचा माना जाता है और जीवन में गुरु के बिना शिष्यों का कोई भी कार्य नहीं हो पाता। हर कार्य के लिए हम सभी लोगों को गुरु की इच्छा जानी चाहिए।

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गुरु का महत्व निबंध 250 शब्दों में (Guru ka Mahatva Essay in Hindi)

गुरु का मानव के जीवन में सबसे बड़ा महत्व होता है। माता-पिता पहले गुरु होते हैं और माता-पिता के बाद जो दर्जा गुरु को दिया जाता है, वह सर्वोपरि है।

गुरु के सामने स्वयं देवता भी अपना सर झुकाते हैं। भारत में प्राचीन समय से ही गुरुओं का विशेष महत्व रहा है और मनुष्यों के लिए गुरु का दर्जा सर्वोपरि होता है।

गुरु हमें सही राह चुनने में सहायता करते हैं और गुरु हम सभी लोगों को सफलता के मार्ग पर अग्रसर करते हैं।

सभी शिष्यों के लिए एक गुरु चिराग की तरह होते हैं, जो शिष्यों के जीवन को और रोशनी से भर देते हैं। मुख्य रूप से विद्यार्थी जीवन अर्थात शिष्यों के लिए गुरु की भूमिका सबसे ज्यादा अहम है।

गुरु शब्द की उत्पत्ति दो शब्दों से हुई है गु और रू। यदि इसके शाब्दिक अर्थ को देखें तो गू का अर्थ अंधकार और रू का अर्थ उजाला होता है। अर्थात गुरु शिष्यों के जीवन में अंधकार को दूर कर देते हैं और उनके जीवन को उजाले से भर देते हैं।

गुरु अपने सभी शिष्यों के अंधकार रुपी जीवन को प्रकाश की ओर ले जाते हैं और उन्हें सच का मार्ग दिखाते हैं।

गुरु अपने सभी विद्यार्थियों को हर एक तरह से अलग-अलग विषयों से संबंधित जानकारियां प्रदान करते हैं, जो उनके जीवन को हर एक पड़ाव पर सुरक्षित करती है।

गुरु हमेशा अपने शिष्यों को अनुशासित, विनम्र और बड़ों का सम्मान करना सिखाते हैं।

हर एक व्यक्ति के जीवन में गुरु की एक अहम भूमिका होती है और हर एक व्यक्ति गुरु के प्रति अपने आस्था और विश्वास के साथ अपने अपने सम्मान को प्रकट करते हैं।

गुरु का मुख्य उद्देश्य अपने विद्यार्थियों को सफलता के मार्ग पर ले जाना होता है और उन्हें अच्छा ज्ञान के सागर से अवगत कराना होता है।

गुरु अपने हर एक शिष्य को साहित्य, कला और जीवन के हर एक पड़ाव को समझने की अहम शिक्षा प्रदान करते हैं।

गुरु का स्थान पुराने समय से ही सर्वोपरि रहा है और स्वयं भगवान भी गुरु को पूजते हैं।

गुरु को सम्मान देने के लिए हमारे भारत में विशेष रुप से गुरु पूर्णिमा मनाया जाता है और इस दिन गुरु को याद कर के मंदिर और घरों में उनकी पूजा भी की जाती है।

guru ka mahatva essay in hindi

जीवन में गुरु का महत्व 850 शब्दों में निबंध (Guru ka Mahatva Essay in Hindi)

प्रस्तावना

गुरु का महत्व वर्तमान समय में ही नहीं बल्कि पुराने समय से ही सर्वोपरि रहा है। गुरु को हमेशा भगवान का दर्जा दिया जाता है।

हमें अपने माता-पिता के बाद जो कुछ भी सिखाया जाता है वह सब गुरु की ही देन होती है। गुरु ही हमें सच्चाई और अच्छाई के मार्ग को बताते हैं और सही राह पर लाते है।

गुरु शब्द की उत्पत्ति दो शब्दों से हुई है गु और रू। यदि इसके शाब्दिक अर्थ को देखें तो गू का अर्थ अंधकार और रू का अर्थ उजाला होता है। अर्थात गुरु शिष्यों के जीवन में अंधकार को दूर कर देते हैं और उनके जीवन को उजाले से भर देते हैं।

गुरु अपने सभी शिष्यों के अंधकार रुपी जीवन को प्रकाश की ओर ले जाते हैं और उन्हें सच का मार्ग दिखाते हैं।

हर एक व्यक्ति के जीवन में गुरु की एक अहम भूमिका होती है और हर एक व्यक्ति गुरु के प्रति अपने आस्था और विश्वास के साथ अपने अपने सम्मान को प्रकट करते हैं।

गुरु का मुख्य उद्देश्य अपने विद्यार्थियों को सफलता के मार्ग पर ले जाना होता है और उन्हें अच्छा ज्ञान के सागर से अवगत कराना होता है।

गुरु अपने सभी विद्यार्थियों को हर एक तरह से अलग-अलग विषयों से संबंधित जानकारियां प्रदान करते हैं, जो उनके जीवन को हर एक पड़ाव पर सुरक्षित करती है।

गुरु हमेशा अपने शिष्यों को अनुशासित, विनम्र और बड़ों का सम्मान करना सिखाते हैं।

गुरु शब्द की उत्पत्ति

गुरु शब्द की उत्पत्ति दो शब्दों को मिलाकर हुई है, जो कि गु और रु है। गु शब्द का अर्थ अंधकार होता है और रु शब्द का अर्थ रोशनी होता है, अर्थात गुरु शब्द का अर्थ ही अंधकार से निकालकर ज्ञान के तरफ लेकर जाना होता है।

जिंदगी में मनुष्य को अंधकार रूपी परेशानियों से गुरु ज्ञान के उस प्रकाश की ओर ले कर जाते हैं, जो शिष्यों के लिए बहुत ही अहम होता है।

हम सभी लोगों के पहले गुरु हमारे माता-पिता ही होते हैं, परंतु यह हमें संस्कारित शिक्षा प्रदान करते हैं और दुनिया से लड़ने और दुनिया को समझने की शिक्षा हमें हमारे विद्यालय में शिक्षक प्रदान करते हैं।

बिना गुरु के दुनिया का क्या होगा

यदि गुरु नहीं होंगे, तो लोग शिक्षित नहीं हो पाएंगे और बिना शिक्षा के लोग अंधकार में भटकेंगे।

जैसे अंधेरा होने के बाद हम सभी लोग सामग्रियों को सिर्फ और सिर्फ टटोलते रहते हैं, ठीक उसी प्रकार बिना गुरु के जिंदगी में अंधकार छा जाएगा और हम ऐसे ही भटकते रहेंगे और दुनिया का कोई भी व्यक्ति काम नहीं आएगा।

यदि किसी भी सदस्य को उसके जीवन में गुरु नहीं मिला तो वह शिष्य अपने जीवन को दुखों से ही जिएगा और जीवन को सही रास्ते पर लाने के लिए गुरु की तलाश करते रहेगा।

गुरु पूर्णिमा का महत्व

गुरु पूर्णिमा एक बहुत ही पावन दिवस है, क्योंकि आज के दिन गुरु को याद करके उनकी पूजा की जाती है।

यह एक ऐसा दिन होता है, जिस दिन सभी शिष्य अपने अपने गुरुओं को याद करते हैं और उनसे मिलकर अपने भविष्य के लिए आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

गुरु पूर्णिमा के दिन हर एक घर में गुरु नानक देव की पूजा की जाती है, क्योंकि गुरु नानक देव जी नहीं शिक्षा को उजागर किया था।

इस दिन अपने भविष्य को बनाने के लिए लोग गुरु कोई आशीर्वाद के साथ साथ दान धर्म का काम भी करते हैं, जिससे वह पुण्य कमाते हैं।

गुरु को अपने अच्छे से सफल होता है गर्व

जब शिष्य गुरु से शिक्षा प्राप्त करके अपने जीवन में आगे बढ़ते हैं, तो इसका पूरा श्रेय गुरु को मिलता है और शिष्य अपने गुरु को खुद का गर्व मानते हैं।

लोग अपनी सफलता के पीछे का कारण अपने गुरु और माता-पिता को बताते हैं। ऐसे में यदि किसी गुरु का शिष्य अच्छे तरीके से सफल हो जाता है तो गुरु को भी अपने और शिष्य पर गर्व महसूस होता है।

जिंदगी में जो व्यक्ति कुछ भी करता है या कुछ भी बनता है तो वह अपने इस उपलब्धि का श्रेय अपने गुरु और माता-पिता के सपोर्ट को देता है।

गुरु हमेशा अपने शिष्यों पर गर्व महसूस करते हैं और उन्हें सद मार्ग के रास्ते पर लाते हैं।

अपने गुरु को सबसे बड़ा गुरु दक्षिणा किसने दिया था?

हमारे भारतीय इतिहास में बहुत सी ऐसी घटनाएं हैं, जहां पर शिष्यों ने अपने अपने गुरुओं के लिए विशेष बलिदान दिया है और इन सभी कहानियों में सबसे ऊपर बलिदान की कहानी महाभारत में एकलव्य को दिया जाता है।

एकलव्य ने अपने गुरु के लिए अपनी अंगुली काट दी थी और उन्हें अपनी अंगुली दक्षिणा के रूप में दी थी।

एकलव्य एक ऐसा महारथी था, जिसने सिर्फ गुरु की प्रतिमा से गुरु के सभी कलाए सीख लिया था और बहुत ही धुरंधर धनुर्विद्या का ज्ञाता हो गया था।

गुरु द्रोणाचार्य को ऐसा डर था कि कहीं उनका अर्जुन को दिया गया वरदान गलत न साबित हो जाए।

गुरु द्रोणाचार्य ने अर्जुन को ऐसा वरदान दिया था कि तुम इस धरती के सबसे ज्ञानी धनुर्धर बनोगे, परंतु एकलव्य की कला को देखकर द्रोणाचार्य जी को यह डर सताने लगा था।

इसी कारण से गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य से उनके दाएं हाथ का अंगूठा दक्षिणा के रूप में मांग लिया।

एकलव्य अपने गुरु को निराश नहीं करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने बिना कुछ सोचे समझे तलवार निकालकर अपने अंगूठे को काट दिया और गुरु द्रोणाचार्य को दक्षिणा के रूप में दे दिया।

एकलव्य के इस बलिदान को गुरु के लिए किया गया सबसे बड़ा बलिदान माना जाता है।

निष्कर्ष

गुरु सभी मानव के लिए सर्वोपरि है और हमें अपने गुरु के सेवा के लिए हमेशा कुछ ना कुछ करना चाहिए।

जहां तक हो सके हम सभी लोगों को अपने गुरु की सेवा के लिए कुछ ना कुछ करना चाहिए।

अंतिम शब्द

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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