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गोवर्धन पूजा पर निबंध

भारत त्योहारों का देश है। यहां पर अलग-अलग तरह के त्यौहार अलग-अलग तरीके से मनाए जाते हैं। दिवाली, रक्षाबंधन, नवरात्रि, होली इसके साथ और भी अनेक से त्योहार मनाए जाते हैं। यह त्योहार दिवाली के बाद मनाया जाता है।

ऐसा कहा जाता है कि दिवाली के पश्चात वर्ष में पांच त्यौहार और आते हैं, जिसमें एक प्रमुख त्यौहार गोवर्धन पूजा का है। गोवर्धन पूजा दीपावली के 1 दिन पश्चात मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा को लेकर एक बहुत ही प्राचीन कथा कही जाती है, जिसका भी उल्लेख हम इस लेख में करेंगे।

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हम यहां पर गोवर्धन पूजा पर निबंध शेयर कर रहे है। इस निबंध में गोवर्धन पूजा के संदर्भित सभी माहिति को आपके साथ शेयर किया गया है। यह निबंध सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए मददगार है।

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गोवर्धन पूजा पर निबंध 250 शब्द (Essay on Govardhan Puja in Hindi)

यह हिंदुओं का पवित्र त्यौहार है। यह त्योहार दिवाली के बाद मनाया जाता है। दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन की पूजा की जाती है। यह त्यौहार ज्यादातर राष्ट्र के उत्तरी हिस्से में मनाया जाता है। इसे अन्नकूट पूजा के साथ-साथ गोवर्धन पूजा के रूप में भी माना जाता है। इस त्योहार पर हर साल इस दिन को बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है।

ऐसा कहा जाता है कि देवी अन्नपूर्णा को प्रभावित करने के लिए इस त्यौहार को मनाया जाता है। इस दिन 56 से भी अधिक प्रकार के भोजन बनाए जाते हैं। लोग पवित्र गाय माता की पूजा करते हैं और इस दिन को मनाते हैं।

ऐसा कहा जाता है कि जब गोवर्धन पर्वत को बचाया गया था, लोगों ने खुशी जताई थी कि उनके भोजन का स्रोत बच गया था। इसलिए श्रद्धांजलि के रूप में लोग भोजन की देवी यानी मां अन्नपूर्णा को विभिन्न प्रकार की खाद्य सामग्री प्रदान करते हैं।

गोवर्धन पूजा से हमें बहुत ही सीख मिलती है। उसी में सबसे पहली चीज है हमेशा वही करना जो सही हो और भगवान किसी भी कीमत पर हमेशा आपकी मदद करते ही हैं। ऐसी मान्यता है कि अगर हम इस दिन को खुशी के साथ मनाते हैं तो पूरे वर्ष हम खुश रहते हैं।

इस त्यौहार को सभी भारतीय अपने अपने तरीके से मनाते हैं। सब परिवारों में अलग-अलग परंपराएं निभाई जाती हैं। हम सभी इन विशेष अवसरों पर एकजुट होते हैं और पर्व को एक साथ मनाते हैं।

हम भोजन साझा करते हैं और अपने नए-नए कपड़े दूसरों को दिखाते हैं। यह सब पूर्ण रूप से जीवन को जीने के बारे में और इसका माध्यम उत्सव ही है।

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प्रस्तावना

गोवर्धन पूजा भारत के उत्तरी भागों में मनाया जाता है और धीरे-धीरे गोवर्धन पूजा को भारत के अन्य भागों में भी मनाया जा रहा है। गोवर्धन पूजा दीपावली के 1 दिन पश्चात होती है और आज के दिन लोग भगवान श्री हरि विष्णु के प्रमुख अवतार श्री कृष्ण की पूजा करते हैं।

गोवर्धन पूजा को दूसरे शब्दों में अन्नकूट पूजा के नाम से भी जाना जाता है। गोवर्धन पूजा कि त्यौहार को लोग बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं और बच्चों से लेकर बूढ़े व्यक्ति तक सुबह सुबह उठकर स्नान करते हैं और अन्न की पूजा करते हैं।

आज के ही दिन लोग गौ माता की भी पूजा करते हैं। क्योंकि ऐसा मानना है श्री कृष्णा का गौ माता के प्रति बहुत लगाव था। अतः गौ माता की पूजा करने से सुख एवं समृद्धि मिलती है।

गोवर्धन पूजा कैसे मनाया जाता है?

हमारे भारत के उत्तरी भागों में गोवर्धन पूजा को करने के लिए इस दिन 56 प्रकार के भोजन बनाया जाते हैं और इस का भोग लगाया जाता है। गोवर्धन पूजा के दिन लोग गाय के गोबर से भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति बनाते हैं और उनकी पूजा करते हैं।

लोग अपनी श्रद्धा दिखाने के लिए सुबह सुबह उठकर स्नान करते हैं और गोवर्धन पूजा की तैयारियों में लग जाते हैं। गोवर्धन पूजा के दिन लोग अन्न से बने भोग ही बनाते हैं, क्योंकि इस गोवर्धन पूजा का अन्य नाम अन्नकूट पूजा भी है।

गोवर्धन पूजा से संबंधित पौराणिक मान्यता

ऐसा कहा जाता है, द्वापर युग में जब वर्षा नहीं हो रही थी, तब लोग इंद्र की पूजा करने के लिए यज्ञ की तैयारियां कर रहे थे, क्योंकि इंद्र को बादलों का देवता कहा जाता है। उस समय भगवान श्री कृष्ण ने लोगों को यह बताया कि हमें इंद्र की पूजा नहीं करनी चाहिए।

क्योंकि वर्षा कराना इंद्र का कर्तव्य है और यदि हमें पूजा करनी है तो इस गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, जो कि हमें खाने के लिए अन्य और हमारे गायों के लिए हरी हरी घास देता है।

लोगों ने श्रीकृष्ण की बातों पर अमल किया और इंद्र की पूजा छोड़कर गोवर्धन पूजा की तैयारियों में लग गए। इस बात से इंद्र नाराज हुए और उन्होंने अपना कहर दिखाना शुरू किया। गुस्से में इंद्र ने लगभग 7 दिनों तक लगातार घनघोर वर्षा की।

इस वजह से वहां पर बाढ़ आ गई। इससे बचने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली से गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और लोगों को आश्रय दिया।

इसके साथ-साथ उन्होंने इंद्र को भी इस बात का एहसास दिलाया कि वह गलत है और इंद्र ने भी अपनी गलती मानी एवं वर्षा रोक दी। तभी से लेकर आज तक इस त्यौहार को मनाया जाता है और गोवर्धन पर्वत अन्नदाता था, इसलिए इस त्यौहार को अन्नकूट त्यौहार भी कहा जाता है।

उपसंहार

गोवर्धन पूजा से हमें यह सीख मिलती है कि परिस्थिति चाहे जो भी हो, हमें हमेशा सच का हिसाब देना चाहिए। हमें वही करना चाहिए जो सही है, क्योंकि भगवान भी उसी का साथ देता है, जो सच्चाई का साथ देता है।

इसके साथ-साथ गोवर्धन पूजा हमें यह सिखाती है कि हमें हमारे कर्तव्य को करना चाहिए ना कि तब जब कोई हमसे विनती करें।

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प्रस्तावना

गोवर्धन हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है। इस त्यौहार को सभी बहुत ही उत्साह के साथ मनाते हैं। इस दिन गोवर्धन पूजा पृथ्वी पर भगवान कृष्ण द्वारा किए गए कृत्य में से एक है। यह कार्य उत्तर प्रदेश के मथुरा के पास किया गया था। इसलिए यह त्यौहार इस क्षेत्र में विशेष रूप से मनाया जाता है।

गोवर्धन पूजा क्या है?

हिंदू कैलेंडर के हिसाब से यह बहुत ही शुभ दिन माना गया है और हर वर्ष मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की मूर्तियां बनाते हैं और विभिन्न प्रकार के भोजन और मिठाईयां परोसते हैं।

महिलाएं इस दिन पूजा पाठ करते हैं और भजन गाते हैं एवं गायों को भी माला पहनाते हैं। उन पर तिलक लगाती हैं और उनकी पूजा करते हैं। यह अवसर देवराज इंद्र पर भगवान कृष्ण के विजय समारोह के रूप में मनाया जाता है।

गोवर्धन पूजा का महत्व

इस पूजा का बहुत ही अत्यधिक महत्व है। ऐसा बताया जाता है कि गाय भी उसी तरह पवित्र होती है जैसे नदियों में गंगा। गाय को देवी लक्ष्मी का रूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि देती हैं, उसी प्रकार गौमाता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती है।

गोवर्धन की पूजा क्यों करते हैं?

हिंदू मान्यता के मुताबिक भगवान कृष्ण ने गोवर्धन की पूजा की थी और इंद्र का अहंकार तोड़ा था। इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र की पूजा करने से इंकार कर दिया था और गोवर्धन की पूजा शुरू करवाई थी। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर उसकी पूजा की जाती है।

गोवर्धन पूजा की विधि

यह पूजा दिवाली के दूसरे दिन की जाती है। इस दिन लोग गोबर से अपने आंगन को साफ करके, उसे लेप करके उस पर गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर या उसका चित्र बनाकर भगवान गोवर्धन की पूजा करते हैं।

इसके पश्चात गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा की जाती है। पूजा संपन्न होने के बाद प्रसाद के रूप में अन्नकूट का भोग लगाया जाता है और इसको प्रसाद के तौर पर सभी में वितरित किया जाता है।

गोवर्धन पूजा की कथा

इस पूजा की परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है। उससे पहले बृजवासी इंद्र देव की पूजा किया करते थे। जब श्री कृष्ण को यह बात पता चली तब उन्होंने इंद्र देवता की पूजा करने से इंकार कर दिया और उन्होंने कहा कि इंद्रदेव तो केवल हमें बरसात द्वारा पानी ही देते हैं।

हमें गाय के गोबर का संरक्षण करना चाहिए। इससे पर्यावरण भी अच्छा रहेगा और वातावरण भी शुद्ध रहता है। इसका प्रयोग हम हमारी खेती में भी कर सकते हैं।

इसलिए हमें इंद्र कि नहीं गोबर का पर्वत बनाकर गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए। परंतु जब यह बात इंद्रदेव को पता लगी तब इंद्र देव श्री कृष्ण से और ब्रिज वासियों से नाराज हो गए और उन्होंने भारी बरसात की।

सब कुछ तहस-नहस होने लगा तब श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली से उठाकर सभी देशवासियों को उनके क्रोध से बचाया और इसके बाद उसी समय ब्रिज वासियों ने इंद्र देवता की पूजा को छोड़कर गोवर्धन पूजा की प्रवृत्ति निभाई और यह परंपरा आज भी हमारे भारत देश में विद्यमान है।

गोवर्धन पूजा पर क्या नहीं करना चाहिए?

  • गोवर्धन पूजा या अन्नकूट पूजा भूलकर भी बंद कमरे में नहीं करनी चाहिए। क्योंकि गोवर्धन पूजा खुले स्थान पर ही की जाती है।
  • इस दिन गायों की पूजा करते समय अपने इष्ट देव और भगवान श्री कृष्ण की पूजा करना बिल्कुल भी नहीं भूलना चाहिए।
  • गोवर्धन पूजा के दिन चंद्रमा के दर्शन नहीं किए जाते, इसलिए भूल कर भी इस दिन चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए।
  • अगर आप गोवर्धन पूजा के दिन गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने जाते हैं तो आप गंदे कपड़े पहनकर परिक्रमा बिल्कुल भी ना करें।
  • गोवर्धन पूजा परिवार के सभी लोगों को अलग-अलग नहीं करनी चाहिए बल्कि एक ही जगह पर परिवार के सभी लोगों को गोवर्धन पूजा करनी चाहिए।
  • पूजा में परिवार के किसी भी सदस्य को काले या नीले रंग के वस्त्र धारण नहीं करने चाहिए।
  • गोवर्धन पूजा वाले दिन भूलकर भी किसी पेड़ या पौधे को नहीं काटना चाहिए।

अन्नकूट क्या होता है?

गोवर्धन पूजा में अन्नकूट का सबसे अधिक महत्व माना गया है। भक्त भगवान कृष्ण को 56 व्यंजन तैयार करके भोग चढ़ाते हैं। नाथद्वारा और मथुरा में मंदिरों में भगवान कृष्ण की मूर्ति के साथ-साथ अन्य स्थानों पर भी बढ़िया कपड़े और कीमती गहने चढ़ाए जाते हैं।

इस दिन दूध से स्नान कराने के बाद मूर्तियों को रेशम और शिफॉन जैसे महीन कपड़ों में लपेटा जाता है। इन वस्त्रों के रंग आमतौर पर लाल, पीले या केसरिया होते हैं क्योंकि इन्हें हिंदू समुदाय द्वारा शुभ माना जाता है। इसमें हीरे, मोती, सोने और अन्य कीमती धातुओं और पत्थरों के गहने सावधानी से मूर्तियों पर रखे जाते हैं।

गोवर्धन पूजा का नाम गोवर्धन किस प्रकार पड़ा?

दीपावली के दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रथमा को अन्नकूट का त्यौहार मनाया जाता है। एक कथा के अनुसार यह पर्व द्वापर युग में आरंभ हुआ था।

क्योंकि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन और गायों के पूजा के निमित्त पके हुए अन्न को भोग में लगाए थे। इसीलिए इस दिन का नाम अंकूट पड़ा। कई जगह इस पर्व को गोवर्धन पूजा के नाम से भी जाना जाता है।

उपसंहार

इस त्योहार से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी अहंकार नहीं करना चाहिए क्योंकि अहंकार कभी भी टूट सकता है। इससे यह सीख भी मिलती है कि हमें पर्यावरण पर भी अधिक महत्व देना चाहिए।

द्वापर युग में इस प्रकार गोवर्धन पूजा जोकि कृष्ण द्वारा शुरू की गई थी। उसका पालन हम भारतवासी आज तक निभाते आ रहे हैं और आगे भी निभाएंगे।

अंतिम शब्द

आर्टिकल में हमने गोवर्धन पूजा पर निबंध (Essay on Govardhan Puja in Hindi) के बारे में बात की है। मुझे पूरी उम्मीद है कि हमारे द्वारा लिखा गया यह आर्टिकल आपको पसंद आया होगा।

Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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