Essay on Bio-Diversity in Hindi: नमस्कार दोस्तों, आज हम आप सभी लोगों को अपने इस महत्वपूर्ण लेख के माध्यम से शेयर करने जा रहे हैं, जैव विविधता पर निबंध। जैव विविधता मनुष्य एवं जीव जंतुओं के साथ-साथ पेड़ पौधों के लिए भी बहुत ही आवश्यक है।
जय विविधता ही एक ऐसी पहचान है, जिसके माध्यम से हम जीवो और मनुष्य में अंतर पहचान पाते हैं। जैव विविधता पर निबंध विद्यार्थियों के लिए परीक्षा के दृष्टिकोण से बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण होता है, तो चलिए शुरू करते हैं, जय विविधता पर निबंध।
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जैव विविधता पर निबंध | Essay on Bio-Diversity in Hindi
जैव विविधता पर निबंध (250 शब्दों में)
हमारी पृथ्वी पर अनेकों प्रकार के जीवन विकसित हुए हैं, जो कि मानव के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। संपूर्ण पृथ्वी पर अनेकों ऐसे पादप और जीव जंतु हैं, जोकि एक दूसरे से पारिस्थितिक तंत्र के अनुरूप भिन्न है। जीवन चक्र की क्रमिक रूप से बदलाव होती रहती है और इस बदलाव को ही जैव विविधता का नाम दिया जाता है।
वर्तमान समय में जैव विविधता के प्रति विश्व सचेत है और अनेक विश्व संगठन तथा सरकारें मिलकर इनके संरक्षण के लिए प्रार्थना कर रही हैं। यदि हम कहें, तो जैव विविधता एक प्रकार से सामान जातियों में जातियों में अंतर है। वर्तमान समय में जैव विविधता पर बहुत ही ज्यादा संकट आन पड़ा है तथा संपूर्ण विश्व में बहुत सी ऐसी जातियां हैं, जो कि प्रतिवर्ष विलुप्ती की ओर अग्रसर हो रही है।
जैव विविधता शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम अमेरिका के कीट वैज्ञानिक ई. ओ. विल्सन ने वर्ष 1986 में “अमेरिकन फोरम ऑन बायोलॉजिकल डायवर्सिटी” पर एक रिपोर्ट में प्रस्तुत किया। जैव विविधता दो शब्दों से मिलकर बना है, जैव और विविधता। जैव का अर्थ होता है, जीवन और विविधता का अर्थ विभिन्नता होता है, अतः इसका शाब्दिक अर्थ जैव जगत में व्याप्त जीवो में विभिन्नताए हैं।
इल्टीस के कथन अनुसार “जैव विविधता एक वृहद समूह है जोकि जंगली एवं विकसित जातियों को स्वयं में समावेशित करता है यह साथियों अपने स्वरूप एवं कार्यों में सुंदरता एवं उपयोगिता से कल्पना पूर्ण होते हैं।” जैव विविधता पूर्ण रूप से पूर्वजों पर निर्भर करती है। जय विविधता को ज्यादातर नुकसान पूर्वजों के आलस्य पन को माना जाता है।
जय विविधता पर निबंध (800 शब्दों में)
प्रस्तावना
जैव विविधता पृथ्वी पर जीवो के पहचान को व्यक्त करने की एक महत्वपूर्ण निशानी है। जैव विविधता के कारण ही मानव और जानवरों में फर्क किया जाता है। वर्तमान समय में बहुत से ऐसे जीव हैं, जोकि धीरे-धीरे विलुप्ति के कगार पर पहुंच रहे हैं, इनके विलुप्ति के कगार पर पहुंचने का एकमात्र कारण मनुष्यों के द्वारा उपयोग किए जाने वाले यंत्र और उनसे निकलने वाली गर्मी है।
मनुष्य के द्वारा उपयोग किए जाने वाले यंत्रों से काफी गर्मी और उसमें निकलती है जो कि जीवो के लिए अनुकूल वातावरण को बदल देती है और यही वातावरण उनके लिए प्रतिकूल हो जाते हैं, अतः वेद धीरे-धीरे समाप्ति की ओर बढ़ने लगते हैं, जो जीव इन वातावरण में स्वयं को ढाल लेते हैं, वही आगे अपना जीवन यापन कर पाते हैं, अन्यथा वह जीव जो स्वयं को वातावरण के प्रति ढाल नहीं पाते वह विलुप्त हो जाते हैं।
जैव विविधता के संबंध में अलग अलग वैज्ञानिकों के द्वारा दी गई परिभाषाएं
वैज्ञानिक माइकल विदारिक और जॉन स्माल के अनुसार “एक ऐसी शब्दावली जो एक पारिस्थितिक तंत्र के सभी जीव जंतुओं एवं पादपों की विभिन्नता को वर्णित करता है उसे ही जैव विविधता कहते हैं।”
वैज्ञानिक रीचार्ड और टीराईल के अनुसार “जैव विविधता का साधारण अर्थ पृथ्वी पर उपस्थित जीवो के मध्य विभिन्नता है।”
वैज्ञानिक भरूचा के कथन के अनुसार “जैव विविधता संपूर्ण पर्यावरण का वह भाग है, जिसमें जातियों के आनुवंशिकता, विभिन्नता तथा विभिन्न स्तरों पर पादपों एवं जीवो की विभिन्नताओ एवं समृद्धता को सम्मिलित किया गया है।”
वैज्ञानिक रिचर्ड्सन लिंडले गोविंद और हैगेट के अनुसार “जैव विविधता जाति जींस जाति समूह और पारिस्थितिक तंत्र का एक संगठन है, जोकि मिलकर के एक बायोम का निर्माण करती है, जिसके कारण जीवो में विभिन्नताये स्पष्ट हो जाती हैं।”
जैव विविधता के प्रकार
जैव विविधता को तीन भागों में विभक्त किया गया है, जो कि नीचे कुछ इस प्रकार से दिया गया है:
- प्रजातीय विविधता: प्रजातीय जैव विविधता के अनुसार एक क्षेत्र में जीव जंतु और पादपो की संख्या को ही उस क्षेत्र की प्रजातिय विविधता कहते हैं। कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जो कि इससे समृद्ध हैं और इसी के विपरीत कुछ ऐसे हैं, जो कि इससे असमृद्ध हैं। वर्तमान समय में पहले की अपेक्षा जातियां बहुत ही ज्यादा कम हो गई हैं। एक वंश में विभिन्न जातियों के मध्य जो विविधताएं मिलती हैं, वह जातिगत जैवविविधता ही होती है।
- अनुवांशिकी विविधता: जीव जंतु एवं पादपों के मध्य प्रत्येक अनुवांशिक आधार पर कुछ ना कुछ अंतर अवश्य होता है, यह अंतर उनके जिन के अनेक समन्वय के आधार पर निर्धारित होता है। जीन के मध्य के समन्वय के कारण ही उस व्यक्ति की पहचान बनती है, यदि उदाहरण के तौर पर देखें, तो प्रत्येक मनुष्य के एक दूसरे से भिन्न होने का कारण जीन है। यदि जब कभी भी अनुवांशिकता के स्वरूप में परिवर्तन आता है, या फिर जिन में किसी प्रकार की स्वरूप में त्रुटि आती है, तो इसमें अनेकों प्रकार की विकृतियां उत्पन्न हो सकती हैं।
- पारिस्थितिकी विविधता: पारिस्थितिकी तंत्र व्यवस्था पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार के जीवो के मध्य निर्धारित किया जाता है। पारिस्थितिक तंत्र विभिन्न प्रकार की जातियों और आवास स्थल का एक रैखिक प्रारूप है। अनेकों मत के अनुसार एक भौगोलिक क्षेत्र के विभिन्न पारिस्थितिक तंत्र हो सकते हैं, जैसे कि मैदानी, मरुस्थलीय, जलीय, सागरीय, पर्वतीय, वनीय इत्यादि। विकसित जैव विविधता मानवीय प्रयासों से विकसित होती है।
भारत में जैव विविधता
जैसा कि हम सभी लोग जानते हैं, कि भारत एक बहुत ही विशाल देश है, भारत में बहुत ही अधिक भौगोलिक एवं पर्यावरणीय विविधताएं पाई जाती हैं। यदि हम संपूर्ण विश्व में भारत की क्षेत्रीय विस्तार के रूप में देखें, तो हमें यह पता चलेगा, कि हमारा भारत संपूर्ण विश्व में क्षेत्रीय विस्तार की दृष्टि से सातवां स्थान रखता है। हमारे भारत एक छोर से दूसरे छोर की लंबाई उत्तर से लेकर दक्षिण तक 3214 किलोमीटर और पूर्व से पश्चिम तक लगभग 2935 किलोमीटर है। वर्तमान समय में भारत में कुल 91 हजार पशुओं की प्रजातियां ज्ञात है जो कि संपूर्ण विश्व का लगभग 6.5% है।
निष्कर्ष
ना केवल हमारे देश से बल्कि संपूर्ण विश्व से धीरे धीरे जीवो की प्रजातियां विलुप्त होती जा रही हैं। ऐसे में संपूर्ण देश अपने-अपने देश में जीवो के विलुप्त को रोकने के लिए अनेकों प्रकार के प्रयास कर रही है। यदि जैव विविधता को संरक्षित नहीं किया गया तो आने वाले समय में बहुत सी ऐसी प्रजातियां है, जो भी विलुप्त हो जाएंगी और हमारे आने वाली पीढ़ी को इनके बारे केवल किताबों में ही जानकारियां जानने को मिलेंगी, इन सभी का निष्कर्ष यह निकलता है, कि हमें जैव विविधता को संरक्षित करना चाहिए।
अंतिम शब्द
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