हर राज्य में विशेष पशु को राज्य पशु का दर्जा दिया जाता है और राजस्थान राज्य में चिंकारा को राज्य पशु का दर्जा दिया गया है। चिंकारा हिरण के छोटे आकार को कहा जाता है।
यह मृग का ही एक प्रकार है और इसकी प्रजाति एन्तिलोप कहलाती है। चिंकारा को एशिया का सबसे छोटा एशियाई मृग भी कहा जाता है। इसका जीवनकाल केवल 12 से 15 वर्ष का ही होता है।
हालांकि यह अत्याधिक लुप्तप्राय प्रजातियों की सूची में है, जिसके कारण बहुत से लोगों को इस जानवर के बारे में जानकारी नहीं है।
आज के इस लेख में हम चिंकारा पर निबंध (Essay on Chinkara in Hindi) लेकर आए हैं। इस निबंध के जरिए हम आपको चिंकारा के बारे में सारी जानकारी देने वाले हैं।
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चिंकारा पर निबंध 200 शब्द (Chinkara in Hindi)
चिंकारा एशिया के दक्षिणी देशों में पाया जाने वाला प्रमुख जानवर है। यह एन्तिलोप प्रजाति का जीव है, जिसका वैज्ञानिक नाम ग्लेजा है। इसीलिए बहुत जगह पर इसे ग्लेजा के नाम से भी जाना जाता है।
यह दिखने में बिल्कुल एक हिरण के बच्चे की तरह लगता है। जिसका वजन लगभग 23 किलो के आसपास होता है और ऊंचाई 65 सेंटीमीटर तक होती हैं।
मौसम के अनुसार चिंकारा का रंग भी बदलता है। गर्मियों में यह लाल भूरा रंग का दिखाई देता है, पेट तथा अंदर की टांगों का रंग हल्का भूरा और सफेद हो जाता है। जबकि सर्दियों में यह पूरी तरीके से लाल भूरे रंग का दिखाई देता है।
चिंकारा को 22 मई 1981 को राजस्थान के राज्य पशु का दर्जा दिया गया। चिंकारा एक शर्मिला और शांत स्वभाव का जानवर है। हिरण की तरह इसके भी सींग होते हैं और यह अकेले रहना पसंद करता है, जिसके कारण यह घनी आबादी में नहीं दिखता।
चिंकारा राजस्थान के मरू क्षेत्र में पाया जाता है क्योंकि वहां की जलवायु इसके लिए अनुकूल होती है। यह लंबे समय तक ऊंट की तरह बिना पानी पिए रह सकता है।
यह कड़ी धूप को भी आसानी से सह लेता है। राजस्थान में जयपुर के नाहरगढ़ अभ्यारण में यह आसानी से देखने को मिल जाता है।
चिंकारा एक शाकाहारी प्राणी है, जो घास फूस, लौकी, कद्दू, तरबूज जैसे साग सब्जियां खाता है। लेकिन रसीले फल और नर्म घास इसकी प्रिय भोजन होते हैं।
गर्मियों के मौसम में जब हरे भरे पेड़ पौधे नहीं मिलते हैं तब यह सूखी घास और झाडियां भी खाकर अपना पेट भर लेता है।
चिंकारा एक खूबसूरत जीव है, जिसका लोग अपने शौक के कारण शिकार करते हैं। जिसके कारण यह अत्यधिक लुप्तप्राय जानवरों के लिस्ट में आ चुका है।
ऐसे में इस विशेष जीव के सरंक्षण पर हमें ध्यान देने की जरूरत है वरना बहुत जल्द इसका अस्तित्व खत्म हो जाएगा।
चिंकारा पर निबंध (500 शब्द)
प्रस्तावना
चिंकारा राजस्थान में पाया जाने वाला एक प्रमुख जानवर है, जो दिखने में हिरण के समान ही होता है। हालांकि यह दक्षिणी एशियाई देश में काफी पाया जाता है, जिसमें बांग्लादेश, श्रीलंका और पाकिस्तान शामिल है।
एन्तिलोप प्रजाति का यह जानवर होता है, जिसका वैज्ञानिक नाम ग्लेजा है। इसीलिए कुछ देशों में इसे ग्लेजा के नाम से भी जाना जाता है।
चिंकारा बहुत ही शांत स्वभाव का होने के कारण यह किसी को भी नुकसान नहीं पहुंचाता है। जैसे ही किसी शिकारी की आहट की आवाज आती है तो यह तेजी से छिप जाता है। इसकी दृष्टि और घ्राण शक्ति सामान्य होती हैं।
सर्दियों के मौसम में मादा चिंकारा प्रजनन करती है। इनका गर्भकाल लगभग साडे 5 महीने तक का होता है। एक मादा चिंकारा एक बार में एक बच्चे को जन्म देती है। इस तरह इनका प्रजन्न धीमी गति से होता है।
चिंकारा के बड़े शत्रु तेंदुआ और भेड़िया होते हैं। जब यह पानी पीने के लिए जाते हैं तो ऐसे जानवर इन पर हमला करते हैं, जिसके कारण पानी पीते समय चिंकारा पर सबसे ज्यादा खतरा होता है। वैसे यह पानी 5 दिन के बाद पिते हैं।
चिंकारा की शारीरिक विशेषताएं
चिंकारा देखने में बिल्कुल एक हिरण के समान होता है। इसका शरीर भी हिरण के आकार का ही होता है। चिंकारा के कुल 11 प्रजातियां होते हैं, जिनके आकार और रंग भी भिन्न-भिन्न होते हैं।
एक स्वस्थ चिंकारा का औसतन वजन 25 से 30 किलोग्राम तक होता है, वहीं इसकी लंबाई 65 सेंटीमीटर तक होती है।
40 सेंटीमीटर लंबी इसकी सिंघ होती है, जो इनके लिए एक प्रमुख हथियार के तौर पर काम करते हैं। यह काफी चमकदार होते हैं। गर्मियों के दौरान ज्यादा देखे जाते हैं।
चिंकारा का निवास स्थान
चिंकारा शांत स्वभाव के होते हैं लेकिन कभी कबार यह क्रोधित भी हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त स्वभाव में काफी शर्मीली होते हैं और हिरण की तरह ही थोड़ा डरपोक भी होते हैं। इसीलिए यह अक्सर अकेले रहते हैं।
हालांकि कई बार ये 5-6 के झुंड में भी नजर आ जाते हैं। चिंकारा आमतौर पर जंगलों में पाए जाते हैं। जंगल ही इनका स्थानीय निवास स्थान होता है। लेकिन यह रेगिस्तान में भी नजर आते हैं।
जहां वे ऊंट की तरह ही कई दिनों तक बिना पानी पिए रह सकते हैं और कड़ी धूप का भी सामना कर सकते हैं। ये ज्यादातर झाड़ियों में छिपे रहते हैं।
चिंकारा का भोजन
चिंकारा शाकाहारी जानवर होते हैं, जो पेड़ पौधे और घास फूस खा कर अपना जीवन यापन करते हैं। वैसे घास ही इनका पसंदीदा भोजन होता है।
गर्मियों के मौसम में जब हरे भरे पेड़ पौधे नहीं होते हैं तब ये सूखी झाड़ियां और घास भी खा लेते हैं।
चिंकारा की जनसंख्या
चिंकारा दिखने में बेहद खूबसूरत होने के कारण लोग इसका शिकार करते हैं और इसके कारण प्रतिदिन इनकी जनसंख्या घटती ही जा रही है।
वर्तमान में यह अत्यधिक लुप्तप्राय जानवरों की सूची में आ चुके हैं। साल 2001 में जानवरों की जनगणना में इनकी कुल संख्या 100000 बताई गई थी। उसके बाद तो अब इनकी संख्या लगातार घटती जा रही है।
ऐसे में इनका संरक्षण करना बहुत ही जरूरी हो गया है। 1981 में चिंकारा को राजस्थान का राज्य पशु का दर्जा भी दिया गया था।
निष्कर्ष
इस लेख में भारत के राजस्थान राज्य में पाया जाने वाला एक विशेष जीव चिंकारा के बारे में जाना, जो अब लुप्तप्राय जीवों के सूची में आ चुका है।
ऐसे में इनके संरक्षण के लिए कठोर कदम उठाना अनिवार्य हो चुका है। जो भी लोग इनका शिकार करें, उन्हें कठोरता पूर्वक दंड देना अनिवार्य हो तभी इनका अस्तित्व बचा रहेगा।
अंतिम शब्द
इस लेख में चिंकारा की शारीरिक विशेषता, इनका निवास स्थान और इनके खानपान के बारे में जाना।
हमें उम्मीद है कि इस लेख में चिंकारा पर निबंध (Essay on Chinkara in Hindi) के जरिए आपको इनके बारे में काफी कुछ जानने को मिला होगा।
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